सरायकेला रियासत | Saraikela Pricly State | Kharsawan Princly State | खरसावां रियासत

Ancient History Of JharkhandJharkhand GK

Saraikela Kharsawan Princely State

सरायकेला खरसावां देशी रियासत

आजादी के समय भारत में 560 से ज्यादा देशी रियासते थी। इन देशी रियासतों में अविभाजित बिहार में केवल दो देशी रियासते थी:- सरायकेला रियासत और खरसावां रियासत। इन रियासतों में कभी भी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रत्यक्ष आधिपत्य नही हो पाया था। सरायकेला और खरसावां रियासत की संबंध अंग्रेजों के साथ हमेशा अच्छे रहे थे। इस वजह से 1899 ई में इन दोनों रियासतों को देसी रियासत के रुप में अंग्रेजो ने स्वीकृति दी थी। 1899 में सरायकेला-खरसावां दोनों ब्रिटिश शासन का करद राज्य बन गया। इन दोनों राज्यों के लिए अलग कचहरी थाना तथा पुलिस की व्यवस्था की गई। सरायकेला राज्य के लिए सरायकेला तथा गोविंदपुर में थाना बनाए गए वहीं खरसावां राज्य के लिए खरसावां तथा कुचाई में थाना बनाए गए। इन दोनों रियासतों को चाईबासा के प्रिंसिपल असिस्टेंट के देखरेख में रहना पड़ता था। 1934 में इन दोनों रियासतों को Eastern States Agency की देखरेख में रख दिया गया था। यह दोनों रियासतें 1 जनवरी 1948 को भारतीय संघ में सम्मिलित हुआ। उस समय इसे उड़ीसा राज्य के मयूरभंज जिले का अंग बनाया गया था।

खरसावां गोलीकांड

जिसके विरोध में यहां के लोगों ने 1 जनवरी 1948 को खरसावां हाट मैदान में एक विद्रोही सभा की थी। इस सभा में जयपाल सिंह मुंडा शामिल होने वाले थे किंतु सुरक्षा वजहों से वह इस सभा में शामिल ना हो पाए जिस वजह से यहां की भीड़ उग्र हो गई और उड़ीसा मिलिट्री पुलिस को गोली चलानी पड़ी जिससे कई लोगों की मृत्यु हो गई। इस घटना को झारखंड के इतिहास में “खरसावां-गोलीकांड” के नाम से जाना जाता है। समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया ने इस घटना को “आजाद भारत का जालियांवाला हत्याकांड” नाम दिया था। लोगों के उग्र विरोध के कारण 18 मई 1948 को सरायकेला और खरसावां को अस्थाई रूप से तत्कालीन बिहार के सिंहभुम जिला में सम्मिलित कर लिया गया। सरायकेला और खरसावां कुल 139 दिन उड़ीसा राज्य के अंतर्गत रहे। 1956 में एक सरकारी नोटिफिकेशन के द्वारा सरायकेला खरसावां को स्थाई रूप से तत्कालीन बिहार का अंग घोषित किया गया।

Kharsawan Golikand Monument
Kharsawan Golikand Monument

Note:- Eastern States Agency की स्थापना 1934 में की गई थी जो उड़ीसा प्रांत में स्थित सभी 24 देसी रियासतों की देखरेख करता था। इसे 1 जनवरी 1948 को भारत सरकार द्वारा खत्म कर दिया गया था।

Note:- खरसावां गोलीकांड में शहीद हुए व्यक्तियों के परिवार को झारखंड सरकार द्वारा सरकारी नौकरी में 5% क्षैतिज आरक्षण दिया जाता है।

सरायकेला रियासत

सिंह वंशी राजा जगन्नाथ सिंह के 2 पुत्र थे पुरुषोत्तम सिंह और विक्रम सिंह। पुरुषोत्तम सिंह की विवाह के तुरंत बाद ही मृत्यु हो गई थी उसकी पत्नी गर्भवती थी। पुरुषोत्तम सिंह के मृत्यु के 3 महीने बाद उसके पुत्र अर्जुन सिंह ने जन्म लिया। इस तरह जगन्नाथ सिंह के दो वंशज होने के कारण सिंह वंश का विभाजन हुआ और पोरहाट राज्य के दो टुकड़े हो गए। विक्रम सिंह को 76 वर्ग किलोमीटर का एक क्षेत्र दिया गया जिसके 12 गांव थे। तथा पुरुषोत्तम सिंह के पुत्र अर्जुन सिंह को पोरहाट की राजा बनाया गया अब यह राज्य पोरहाट पीड के नाम से जाना जाने लगा। सरायकेला रियासत की स्थापना 1620 ई में सिंहवंशी अर्जुन सिंह के पुत्र विक्रम सिंह-1 (1620-1677) ने किया था। इन्होंने अपने परंपरागत पदवी सिंहदेव को छोड़, कुंवर की उपाधि धारण की। इनके वंशजो ने 1884 तक इस पदवी को धारण किया, इसके बाद राजा पदवी को अपनाया। यह रियासत 700 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ था। प्रारंभ में विक्रम सिंह को संजय और खरकाई नदी के बीच में 76 वर्ग किमी का एक क्षेत्र सौंपा गया था, जिसके अंतर्गत सिर्फ 12 गांव थे। विक्रम सिंह बहुत महत्वाकांक्षी तथा युद्ध पवृत्ति का व्यक्ति था इ। इन्होंने आसपास के कई क्षेत्र दूंगी, कंदरा, खरसावां, आसंतली, पाटकोम, बक्साई, गम्हारिया, इच्छागढ़ को जीतकर 700 वर्ग किमी की सराइकेला रियासत की स्थापना की। इसके उत्तर में मानभूम जिला पश्चिम में खरसावां और कोल्हान गवर्नमेंट स्टेट दक्षिण में मयूरभंज स्टेट तथा पूर्व में धालभूम था।18 मई 1948 को सरायकेला रियासत की अंतिम राजा आदित्य प्रताप सिंह देव ने भारत के विलय-समझौता पत्र में हस्ताक्षर किए। 1939 में यहां के राजा आदित्य देव ने अपने राज्य में काफी सुधारात्मक कारी किए थे।

सरायकेला रियासत के ध्वज
सरायकेला रियासत के ध्वज

1857 विद्रोह के समय सरायकेला/खरसावां रियासत की स्थिति – 1857 ई के विद्रोह के दौरान जब चाईबासा कैंटोनमेंट में सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया था उस समय यहां के कमांडर शिश्मोर ने चाईबासा कैंट की जिम्मेवारी सरायकेला रियासत के राजा जगन्नाथ सिंह को सौंप कर भाग गया था। विद्रोहियों ने जब रांची जाने का निर्णय लिया उस वक्त संजय नदी उफान पर थी। विद्रोही रांची ना पहुंचे इसलिए संजय नदी के तट पर सरायकेला के राजा जगन्नाथ सिंह और खरसावां के राजा हरि सिंह ने उसका रास्ता रोका था। उस वक्त पोरहाट के राजा अर्जुन सिंह ने अपने सेनापति जग्गू दीवान को विद्रोहियों की मदद करने के लिए भेजा था। इस विद्रोह में जगन्नाथ सिंह को अंग्रेजों का साथ देने के लिए कराइकेला को सरायकेला रियासत के अधीन कर दिया।

तमाड़ विद्रोह के दौरान सरायकेला विरासत की स्थिति इस समय सरायकेला रियासत का राजा कुंवर विक्रम सिंह -2 था। 1820 में तमाड विद्रोह के क्रांतिकारी नेता रुदन सिंह ने सरायकेला रियासत में शरण ली थी लेकिन कुंवर विक्रम सिंह ने इसे पकड़ कर अंग्रेजों के हवाले कर दिया था।

पलामू के रक्सेल Video

https://youtube.com/live/erzytrr5lV4?feature=share

खरसावां रियासत

खरसावां रियासत की स्थापना 1650 ई में विक्रम सिंह के द्वितीय पुत्र पद्म सिंह ने किया था। खरसावां राज्य का क्षेत्रफल 225 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ था। इस राज्य के उत्तर में रांची पूर्व में सरायकेला रियासत, दक्षिण में कोल्हान गवर्नमेंट स्टेट अवस्थित थे। विक्रम सिंह के 3 पुत्र थे। सबसे बड़े पुत्र नारूसिंह कुंवर ने सरायकेला रियासत को आगे बढ़ाया। वहीं इसके द्वितीय पुत्र ने 1650 में खरसावां रियासत की नींव डाली तथा इसके तीसरे पुत्र किशन सिंह ने आसनतली रियासत बनाया। आसनतली रियासत में उत्तराधिकारी के अभाव में 1770 को पदम सिंह ने अपने राज्य में मिला लिया। पदम सिंह ने “ठाकुर” की पदवी धारण की थी जो इनके वंशजों द्वारा भी बहुत दिनों तक धारण किया गया।

Note:- इन दोनों रियासतों ने 1857 के विद्रोह के समय तथा 1837 में कोल्हान कब्जा के समय अंग्रेजों का साथ दिया था।

खरसावां रियासत के ध्वज
खरसावां रियासत के ध्वज

सरायकेला खरसावां देशी रियासत

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *