Mains Question No 8 – Explain contibution of women freedom fighters during freedom struggle

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Question No 8 – Explain contibution of women freedom fighters of Jharkhand during freedom struggle before & after 1857 revolt.

प्रश्न संख्या 8 – 1857 के विद्रोह से पहले और बाद में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान झारखंड की महिला स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान की व्याख्या करें।

Introduction:-In Jharkhand, examples of women’s participation in the freedom struggle can be seen even before the first freedom struggle of 1857. Women of Jharkhand played an important role in achieving India’s independence. However, their life, struggle and contribution to the movement is not mentioned as much as that of men. Additionally, their names are rarely heard when the freedom movement is discussed or mentioned briefly. Despite facing social barriers and discrimination, these women challenged patriarchal norms and joined the freedom struggle, inspiring future generations with their bravery and determination.

परिचय:- झारखंड में महिलाओं की स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी का उदाहरण 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से पहले से देखने को मिलता है। झारखंड की महिलाओं ने भारत की स्वतंत्रता प्राप्त में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालाँकि, उनके जीवन, संघर्ष और आंदोलन में योगदान का उल्लेख पुरुषों के समान कही नही मिलता है। इसके अतिरिक्त, स्वतंत्रता आंदोलन की चर्चा करते समय या संक्षेप में उल्लेख करते समय उनके नाम शायद ही कभी सुने जाते हैं। सामाजिक बाधाओं और भेदभाव का सामना करने के बावजूद, इन महिलाओं ने पितृसत्तात्मक मानदंडों को चुनौती दी और स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुईं, और अपनी बहादुरी और दृढ़ संकल्प से भावी पीढ़ियों को प्रेरित किया।

Women Freedom fighters prior to the 1857

Rani Sarweshwari- Rani Sarveshwari of Sultanabad State (Maheshpur, Pakur) fought the Sastra War against the British during the fourth phase of the Pahadia rebellion in 1781–1782 along with the Pahadia chieftains. The British had announced to include it in Damin-e-Koh to control the Sultanabad state. Then Queen Sarveshwari revolted against the British commander Cleveland. After a serious trial in 1807, British Commander Cleveland sent him to Bhagalpur jail and he died there.

रानी सर्वेश्वरी- सुल्तानाबाद राज्य (महेशपुर, पाकुड़) की रानी सर्वेश्वरी ने पहाड़िया विद्रोह के चौथे चरण के दौरान 1781-1782 पहाड़िया सरदारों के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ सहस्त्र युद्ध की थी। अंग्रेजों ने सुल्तानाबाद राज्य को नियंत्रित करने के लिए इसे दामिन-ए-कोह में शामिल करनें की घोषणा कर दिया था। तब रानी सर्वेश्वरी ने ब्रिटिश कमांडर क्लीवलैंड के खिलाफ सहस्त्र विद्रोह कर दिया। 1807 में एक गंभीर मुकदमे के बाद ब्रिटिश कमांडर क्लीवलैंड ने उन्हें भागलपुर जेल भेज दिया और वही उनकी मृत्यु हो गई।

Ratni Khadia – After the martyrdom of Telanga Khadiya in 1880, the Khadiya movement was continued by his wife Ratni Khadiya. Raised voice against landlords, moneylenders and the British. Forwarded the organization “Jori Panchayat” established by Telanga Khadiya for the return of snatched land of tribals and the traditional rights of Khadiya community on that land.

रत्नि खड़िया – 1880 में तेलंगा खड़िया के वीरगति के बाद खड़िया आंदोलन को उसकी पत्नी रत्नी खड़िया ने जारी रखा। जमीदारों, महाजनों और अंग्रेजो के विरुद्ध आवाज़ उठाई आदिवासियों की छीनी हुई जमीन की वापसी और उस जमीन पर खड़िया समुदाय की परंपरागत अधिकारों के लिए तेलंगा खड़िया द्वारा स्थापित “जोरी पंचायत” संगठन को आगे बढ़ाई।

Runia-Jhunia –During the Kol Revolt (1831-32), when on 11 December 1831, the tribals of Tamar raised the bugle of rebellion against the British, landlords, contractors & moneylenders. Then Budhu Bhagat’s family led this rebellion in Silgai village. This rebellion is also known as Larka Movement. This rebellion is also known as Larka Movement. Budhu Bhagat’s three sons (Haldhar, Girdhar and Udayakaran) and two daughters (Runia and Jhunia) showed bravery in this rebellion. On 14 February 1832, the British army of Captain Impey surrounded Budhu Bhagat and his associates in Silgai village. It was here that 150 of his followers including Budhu Bhagat attained martyrdom. In this massacre, Budhu Bhagat’s brother, nephew, son (Uday Karan), both daughters (Runia and Jhunia) also attained martyrdom.

रूनिया-झुनिया – कोल विद्रोह (1831-32) के दौरान जब 11 दिसंबर 1831 में तमाड़ के आदिवासियों ने अंग्रेजो, जमींदारों, ठेकेदारों, महाजनों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल फूँका तब बुधु भगत के परिवार ने सिलगाई गाँव मे इस विद्रोह का नेतृत्व किया। इस विद्रोह को लरका आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है। इस विद्रोह में बुधु भगत के तीन बेटे ( हलधर, गिरधर और उदयकरण) और दो बेटियाँ (रुनिया और झुनिया) ने बहादुरी दिखाई थी। 14 फरवरी 1832 को कैप्टन इम्पे की अंग्रेजी सेना ने बुधु भगत और इनके सहयोगियों को सिलगाई गाँव मे घेर लिया था। यहीं बुधु भगत सहित इनके 150 अनुयायी वीरगति को प्राप्त हुए। इस नरसंहार में बुधु भगत के भाई, भतीजे, बेटा (उदय करण), दोनो बेटी (रुनिया और झुनिया) भी वीरगति को प्राप्त हुई।

Sumi Murmu : Wife of Sidho Murumu participated in 1855-56 Santhal Hool. संथाल विद्रोह (1855-56) का नेतृत्व चुन्नी मुर्मू के परिवार ने किया था। सिद्धो मुर्मू की पत्नी सुमि मुर्मू ने इस विद्रोह में अपने परिवार का साथ दिया था।

Fulo-Jhano –Twin sisters of heroes of Santhl Hool sidho, Kanho, Chand, Bhairv. During the Hool (1855-56) they played a crucial role of messengers. They village after village with saal twig to spread the message of Hool. They led the Santhal revolt in Sangrampur (Pakur) where they killed 21 men by axe. Both got martyrdom in Sangrampur. They were the first women in India who took arms against British.

फूलो -झानो – ये संथाल हूल के नायकों सिद्धो, कान्हो, चांद, भैरव की जुड़वां बहनें थीं। हूल (1855-56) के दौरान उन्होंने दूत की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे हूल का संदेश फैलाने के लिए साल की टहनी लेकर गांव-गांव जाती थी और जनसमर्थन तैयार करती थी। उन्होंने अपने भाइयों के अनुपस्थिति में संग्रामपुर गांव (पाकुड़) में संथाल विद्रोह का नेतृत्व किया जहां उन्होंने 21 लोगों को कुल्हाड़ी से मार डाला और दोनो बहने वीरगति को प्राप्त हुई।

Women Freedom fighters post to the 1857

मानकी मुंडा और अन्य वीरांगनाएं – गया मुंडा के पूरे परिवार ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संग्राम में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। गया मुंडा की पत्नी मानकी मुंडा ने 1899-900 के दौरान मुंडा विद्रोह में सक्रिय रूप से योगदान दिया। गया मुंडा के पुत्र सानरे मुंडा को ऐटकीडीह में कांस्टेबल जयराम के हत्या के आरोप में फाँसी दी गई। वही इसी घटना में सक्रिय भूमिका निभाने वाली उसके माताजी मानकी मुंडा को 2 साल की सश्रम कारावास दी गई। वही गया मुंडा की पुत्री और पुत्रवधुओं को मुंडा विद्रोह में सक्रिय भूमिका निभाने के कारण 1 वर्ष की सश्रम कारावास दी गई। मुंडा विद्रोह में कई अन्य वीरांगनाओं ने भी सशस्त्र भाग लिया था जिसमे प्रमुख थी:- नेगी मुंडा, लिम्बु मुंडा, साली मुंडा, चंपी मुंडा, थिगी मुंडा।

Manki Munda and other brave women- Gaya Munda’s entire family sacrificed everything in the fight against British rule. Gaya Munda’s wife Manaki Munda took active part in the Munda rebellion during 1899–900. Sanre Munda, son of Gaya Munda, was hanged for the murder of constable Jayaram in Atkidih. His mother Manki Munda, who played an active role in the same incident, was given two years of rigorous imprisonment. Gaya Munda’s daughter and daughters-in-law were given one year rigorous imprisonment for playing an active role in the Munda rebellion. Many other brave women also took armed part in the Munda rebellion, prominent among them were:- Negi Munda, Limbu Munda, Sali Munda, Champi Munda, Thigi Munda.

1917 में महात्मा गांधी के प्रथम झारखण्ड आगमन के पश्चात् झारखंड के महिलाओ का स्वतंत्रता आंदोलन के रुझान में तेजी आयी और यहां की सक्रिय महिला नेताओं की प्रेरणा से झारखण्ड के महिला समाज में आजादी की लहर पैदा हो गयी।

After Mahatma Gandhi’s first visit to Jharkhand in 1917, the trend of women’s freedom movement of Jharkhand gained momentum and with the inspiration of the active women leaders here, the spirit of freedom started rising in the women’s society of Jharkhand.

Saraswati Devi –She is considered as the first women freedom fighter of undivided Bihar. She was first woman to be arrested from Hazaribagh. During Non-Cooperation Movement in 1921 she was arrested along with Shaligram Singh, KB Sahay, Triveni Singh and Bajrang Sahay. In 1925 she met with Gandhi ji when he delivered a speech in Matwari Maidan. She opposed Parda system with KB Sahay. 30 January 1930 when Swadhinta diwas was being celebrated across the nation Saraswati Devi hoisted the tricolor despite lathi charge.

During civil disobedience movement Saraswati devi addressed 600 Santhals in Dumri (Giridih) on March 8, 1932. Again in 1940 she was arrested in charge of procession. During Quit India movement when arrest of top leaders had begun then Saraswati Devi led the movement in Hazaribagh. A mass procession taken out in the leadership of Saraswati Devi. Rameshwar Prasad, Kasthurmal Agarwal, Krishna Pathak and others flared the tricolor lowering the British flag in Collectorate. Late evening she was arrested and sent to Bhagalpur Jail.

On reaching Bhagalpur jail mobbed released her form police custody and a huge procession was taken out. After this Saraswati Devi herself surrendered. During the imprisonment she gave birth to a son Dwarkanath Sahu. Apart form above Devi also served various post :- Chairman of Hazaribagh Congress Committee, Chairman of Hazaribagh Charkha Sangha, Chairman of Hazaribagh Mahila Sangha, Member of Bihar Harijan Sangha.

सरस्वती देवी – इन्हें अविभाजित बिहार की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी माना जाता है। वह हज़ारीबाग़ से गिरफ़्तार होने वाली पहली महिला थीं। 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान उन्हें शालिग्राम सिंह, केबी सहाय, त्रिवेणी सिंह और बजरंग सहाय के साथ गिरफ्तार किया गया था। 1925 में उनकी मुलाकात गांधी जी से हुई जब वे मटवारी मैदान में भाषण दे रहे थे। उन्होंने केबी सहाय के साथ पर्दा प्रथा का विरोध किया. 30 जनवरी 1930 को जब पूरे देश में स्वाधीनता दिवस मनाया जा रहा था तो लाठीचार्ज के बावजूद सरस्वती देवी ने तिरंगा फहराया।

सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान 8 मार्च, 1932 को डुमरी (गिरिडीह) में 600 संथालों को संबोधित किया। फिर 1940 में उन्हें जुलूस के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। फिर 1940 में उन्हें जुलूस के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जब बड़े नेताओं की गिरफ़्तारी शुरू हो गयी थी तब सरस्वती देवी ने हज़ारीबाग़ में आंदोलन का नेतृत्व किया था। सरस्वती देवी के नेतृत्व में सामूहिक जुलूस निकाला गया। समाहरणालय में रामेश्वर प्रसाद, कस्तूरमल अग्रवाल, कृष्णा पाठक व अन्य ने ब्रिटिश झंडा उतारकर तिरंगा फहराया। देर शाम उसे गिरफ्तार कर भागलपुर जेल भेज दिया गया।

भागलपुर पहुंचने पर भीड़ ने उन्हें पुलिस हिरासत से रिहा कर दिया और एक विशाल जुलूस निकाला गया। इसके बाद सरस्वती देवी ने खुद ही सरेंडर कर दिया. कारावास के दौरान उन्होंने एक पुत्र द्वारकानाथ साहू को जन्म दिया। उपरोक्त स्वरूप के अलावा देवी ने विभिन्न पदों पर भी कार्य किया:- हज़ारीबाग़ कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, हज़ारीबाग़ चरखा संघ के अध्यक्ष, हज़ारीबाग़ महिला संघ के अध्यक्ष, बिहार हरिजन संघ के सदस्य।

श्रीमती साधना देवी – 1930 में नमक आंदोलन के दौरान साधना देवी, सरस्वती देवी और केबी सहाय ने खजांची तालाब में नमक कानून को चुनौती दी। इस बार उन्हें सरस्वती देवी और मीरा देवी के साथ हजारीब में 6 महीने की जेल हुई।

Sadhna Devi – During salt movement in 1930 Sadhna Devi, Saraswati Devi and KB Sahay challenge the salt law at Khajanchi Talab. This time she was jailed for 6 month along with Saraswati devi and Mira devi at Hazaribag Jail.

Sarla Devi- She was Famous freedom fighter from Hazaribagh. She led the national movement in Hazaribagh. She was chairperson of 16th Bihari Student conference held on 5-6 Oct 1921 in Hazaribagh Chariman.

सरला देवी – वह हज़ारीबाग़ की प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थीं। उन्होंने हज़ारीबाग़ में राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व किया। वह 5-6 अक्टूबर 1921 को हज़ारीबाग़ में आयोजित 16वें बिहारी छात्र सम्मेलन की अध्यक्ष थीं।

श्रीमती मीरा देवी – 14 जुलाई 1930 में गिरिडीह में श्रीमती मीरा देवी ने गांधीजी से प्रभावित होकर कुछ स्थानीय महिलाओं के साथ मिलकर नमक क़ानून को तोड़ी। इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। वह बिहार की महिलाओं को राष्ट्रीय आंदोलन के लिए संगठित करती थीं।

Meera Devi – on 14 July 1930, in Giridih, Mrs. Meera Devi, influenced by Gandhiji, broke the salt law along with some local women. He was arrested. She used to mobilize women from Bihar to national movement.

Shailbala Roy-In the Salt Movement of 1931 AD, the women of Santhal Pargana, influenced by the provocative speech of Mrs. Shailbala Rai, broke the Salt Law.

श्रीमती शैलबाला राय- सन 1931 ई. के नमक आंदोलन में श्रीमती शैलबाला राय के उत्तेजक भाषण से प्रभावित होकर संथाल परगना की महिलाओं ने नमक कानून को भंग किया।

Prema Devi-She led a procession in Dumka on 19 Aug 1942 during Quit India movement. She was active freedom fighter from Dumka.

प्रेमा देवी- इन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 19 अगस्त 1942 को दुमका में एक जुलूस का नेतृत्व किया। वह दुमका की सक्रिय स्वतंत्रता सेनानी थीं।

Jamvanti Devi –She ccompanied Prema Devi during Quit India movement.

जामवंती देवी – भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वह प्रेमा देवी के साथ थीं।

Mahadevi Kejriwal –Mahadevi Kejriwal, wife of Motilal Kejriwal, Congress president of Santal Pargana district (Dumka), was also an active worker of the Congress. Mahadevi Kejriwal played an active role in all the movements launched by Congress in Santal Pargana region. He led the individual Satyagraha in Dumka during 1941.

महादेवी केजरीवाल- संताल परगना जिला (दुमका) के कांग्रेस अध्यक्ष मोतीलाल केजरीवाल की पत्नी महादेवी केजरीवाल भी कांग्रेस की सक्रिय कार्यकर्ता रही। संताल परगना क्षेत्र में कांग्रेस द्वारा चलाए गए सभी आंदोलनों में महादेवी केजरीवाल ने सक्रिय भूमिका निभाई। इन्होने दुमका में व्यक्तिगत सत्याग्रह का नेतृत्व किया था।

Usha Rani Mukherjee – She was the wife of famous freedom fighter Marang Baba (Lambodar Mukherjee). Along with her husband, she took forward the national movement in Santal Pargana. The couple were supporters of Subhash Chandra Bose and founded his party Forward Bloc in Santal Pargana. Usha Rani Mukherjee was made the first woman president of the Forward Bloc in Santhal Pargana. Usha Rani Mukherjee actively participated in the Quit India Movement due to which she was kept in Bhagalpur jail for 6 months. While Usha Rani was in jail, she gave birth to a daughter, Jayanti Mukherjee, Who later became the first female paratrooper in the Indian Army.

उषा रानी मुखर्जी – ये प्रसिध्द स्वतंत्रता सेनानी मारांग बाबा (लम्बोदर मुखर्जी) की पत्नी थी। इन्होने अपने पति के साथ मिलकर संताल परगना में राष्ट्रीय आंदोलन को आगे बढ़ाई। ये दंपति सुभाष चंद्र बोस के समर्थक थे और उनकी पार्टी फारवर्ड ब्लॉक की स्थापना संताल परगना में किया। उषा रानी मुखर्जी को संथाल परगना में फॉरवर्ड ब्लॉक की पहली महिला अध्यक्ष बनाया गया था। भारत छोड़ो आन्दोलन में ऊषा रानी मुखर्जी ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया जिससे उसे 6 महीने के लिए भागलपुर जेल में रखा गया। जब उषा रानी जेल में थीं, तब उन्होंने एक बेटी जयंती मुखर्जी को जन्म दिया, जो बाद में भारतीय सेना में पहली महिला पैराट्रूपर बनी।

Rajkumari Saroj Das –She led the nationalist movement from Palamu. Organised the workers of Japla Cement Factory and farmers against the Britishers.

राजकुमारी सरोज दास – उन्होंने पलामू से राष्ट्रवादी आंदोलन का नेतृत्व किया। जपला सीमेंट फैक्ट्री के मजदूरों और किसानों को अंग्रेजों के खिलाफ संगठित किया।

Birji Mirdha –Birji Mirdha was the wife of freedom fighter Harihar Mirdha. Both of them were active Congress workers from Santal Pargana who played active roles in all the movements run by the Congress. She, along with her husband, participated in the Quit India movement for the country’s independence. Because of which the British shot him dead on 28 August 1942.

बिरजी मिर्धा – बिरजी मिर्धा स्वतंत्रता सेनानी हरिहर मिर्धा की पत्नी थी। ये दोनो संताल परगना से कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता थे जिन्होंने कांग्रेस द्वारा चलाए गए सभी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाए। इन्होंने अपने पति के साथ मिलकर देश की आजादी के लिए भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया था। जिस वजह से अंग्रेजों ने इनकी 28 अगस्त 1942 में गोली मारकर हत्या कर दी थी।

देवमनिया भगत – झारखंड के गुमला, लोहरदगा, रांची के कई महिलाओं ने ताना भगत आंदोलन में भाग लिया। इनमे से गुमला जिला के सिसई की देवमनिया भगत ने सबसे प्रमुख भूमिका निभाई। गांधीजी से प्रभावित होकर सिसाई प्रखंड में गांधीजी के स्वतंत्रता आंदोलन के विचारों को जन-जन तक पहुंचाई।

Devmania Bhagat – Many women from Gumla, Lohardaga, Ranchi of Jharkhand participated in the Tana Bhagat movement. Among these, Devmania Bhagat of Sisai in Gumla district played the most prominent role. Influenced by Gandhiji, he spread the ideas of Gandhiji’s freedom movement to the people in Sisai block.

Conclusion –In conclusion, we can say that women played an important role in India’s freedom movement and their contribution cannot be ignored. Despite facing challenges such as violence, exploitation and social stigma, these women stood up for their rights and freedom. The role of women of Jharkhand is visible in the land movement, tribal rebellion as well as in all the movements conducted during the freedom struggle. Apart from this, his role in student movement and labor movement was also very important. Even today his legacy continues to inspire and his contribution is important.

निष्कर्ष – निष्कर्षतः हम कह सकते है कि महिलाओं ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनके योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हिंसा, शोषण और सामाजिक कलंक जैसी चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, ये महिलाएं अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए खड़ी रही। झारखंड के महिलाओ की भूमिका भूमि आंदोलन, जनजातीय विद्रोह के साथ साथ स्वतंत्रता संग्राम के दौरान चलाए गए सभी आंदोलन में दृष्टिगत होती है। साथ ही छात्र आंदोलन, मजदूर आंदोलन में भी इनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है। आज भी उनकी विरासत प्रेरणा देती रहती है और उनका योगदान महत्वपूर्ण है।

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