Basic Structure Mains

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MAINS JPSC POLITY –What do you understand by ‘Doctrine of Basic Structure’? Discuss its evolution and significance in strengthening democracy.

मुख्य परीक्षा जेपीएससी राजव्यवस्था – ‘बुनियादी संरचना के सिद्धांत’ से आप क्या समझते हैं? लोकतंत्र को मजबूत करने में इसके विकास और महत्व पर चर्चा करें।

Introduction – The doctrine of Basic Structure was propounded by the Indian Judiciary on 24th April 1973 in the Keshavananda Bharati casen by Justice Hans Raj Khanna.. The doctrine of basic structure is just a judicial innovation to ensure that the power of amendment is not misused by the Parliament.

The general idea behind this doctrine is that the basic features of the Constitution of India should not be altered to such an extent that the true identity of the Constitution gets lost. The principle of basic structure is not defined in the Constitution, but the structure of the Constitution can be defined through its contents. Generally we can say any legal principle that, if removed from the Constitution, would result in a loss of national brotherhood, unity, and integrity, as well as individual dignity, would be regarded as an essential aspect of the Basic Structure. The test to determine basic structure is not universal and is fact-based. It would depend on the facts of the particular case.

परिचय – मूल संरचना का सिद्धांत भारतीय न्यायपालिका द्वारा 24 अप्रैल 1973 को केशवानंद भारती मामले में जस्टिस हंसराज खन्ना द्वारा प्रतिपादित किया गया। बुनियादी संरचना का सिद्धांत सिर्फ एक न्यायिक नवाचार है जो यह सुनिश्चित करता है कि संसद द्वारा संशोधन की शक्ति का दुरुपयोग न किया जाय। इस सिद्धांत के पीछे सामान्य विचार यह है कि भारत के संविधान की मूल विशेषताओं को इस हद तक नहीं बदला जाना चाहिए कि संविधान की वास्तविक पहचान खो जाए। बुनियादी संरचना का सिद्धांत संविधान में परिभाषित नहीं है, लेकिन इसकी अवयवों से के माध्यम से संविधान के ढांचे को परिभाषित किया जा सकता है। आमतौर पर हम यह कह सकते हैं कि कोई भी कानूनी सिद्धांत, जिसे यदि संविधान से हटा दिया गया, तो राष्ट्रीय भाईचारे, एकता और अखंडता के साथ-साथ व्यक्तिगत गरिमा की हानि हो उसे बुनियादी संरचना का एक अनिवार्य पहलू माना जाएगा। बुनियादी संरचना को निर्धारित करने का परीक्षण सार्वभौमिक नहीं है यह तथ्य-आधारित है। यह किसी विशेष मामले के तथ्यों पर निर्भर करता है।

Genesis & Development of the Doctrine of Basic Structure

बुनियादी संरचना के सिद्धांत की उत्पत्ति और विकास

The Supreme Court of India developed the Basic Structure Doctrine during a series of cases between 1951 and 1973. The development of the basic structure theory began with the Right to Property case and the First Constitutional Amendment Act of 1951.

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 1951 और 1973 के बीच कई मामलों के दौरान बुनियादी संरचना सिद्धांत विकसित किया। मूल संरचना सिद्धांत के विकास की शुरुआत संपत्ति के अधिकार के मामले और 1951 के पहले संवैधानिक संशोधन अधिनियम से हुई।

Shankari Prasad vs. Union of India (1951) – The Supreme Court held that the Parliament has the power to amend any part of the constitution, including fundamental rights.

शंकरी प्रसाद बनाम भारत संघ (1951) – सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि संसद के पास मौलिक अधिकारों सहित संविधान के किसी भी भाग में संशोधन करने की शक्ति है।

Sajjan Singh vs. State of Rajasthan (1965) – The Supreme Court agreed with its judgment in the Shankari Prasad case. But Justice Hidyatullah and Justice Mudholkar raised doubts over the unrestricted power of the Parliament to amend the Constitution including fundamental rights.

सज्जन सिंह बनाम राजस्थान राज्य (1965) – इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने शंकरी प्रसाद मामले के फैसले में सहमति जताई लेकिन न्यायमूर्ति हिदायतुल्ला और न्यायमूर्ति मुधोलकर ने मौलिक अधिकारों सहित संविधान में संशोधन करने की संसद की अप्रतिबंधित शक्ति पर संदेह जताया।

Golak Nath vs. State Of Punjab Case (1967) – In this case the Supreme Court overturned Shankari Prasad case judgment and ruled that Article 368 only lays down the procedure to amend the constitution and does not give absolute powers to the Parliament to amend any part of the constitution. The term ‘basic structure’ was first used in this case, by lawyer M.K Nambyar.

गोलक नाथ बनाम पंजाब राज्य मामला (1967) – इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शंकरी प्रसाद मामले के फैसले को पलट दिया और फैसला सुनाया कि अनुच्छेद 368 केवल संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया निर्धारित करता है और संसद को संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन करने की पूर्ण शक्ति नहीं है। इस मामले में सर्वप्रथम वकील एम.के. नांबियार ने ‘बुनियादी संरचना’ शब्द का प्रयोग पहली बार किया था।

24th Constitution Amendment Act (1971) – To surpass the Golaknath judgment constraints, the government enacted the 24th amendment act, which introduced a provision to Article 368 of the Constitution, which stated that the Parliament has the power to take away any of the fundamental rights. It also made it obligatory for the President to give his assent on all the Constitution Amendment bills sent to him.

24वां संविधान संशोधन अधिनियम (1971) – गोलकनाथ निर्णय की बाधाओं को पार करने के लिए, सरकार ने 24वां संशोधन अधिनियम लागू किया, जिसने संविधान के अनुच्छेद 368 में एक प्रावधान जोड़ा गया, जिसमें कहा गया कि संसद के पास किसी भी मौलिक अधिकार को कम करने की शक्ति है। इसमें राष्ट्रपति के लिए भेजे गए सभी संविधान संशोधन विधेयकों पर अपनी सहमति देना भी अनिवार्य बना दिया।

Kesavananda Bharati vs. State of Kerala (1973) –The Supreme Court, in this case, upheld the validity of the 24th Constitution Amendment Act by reviewing its decision in the Golaknath case. However, the Supreme Court held that the Parliament has the power to amend any provision of the constitution, but in doing so, the Basic Structure of the constitution is to be maintained. This principle propounded by the Supreme Court is known as “Theory of Basic Structure of the Constitution”. Thus, this landmark judgment meant that every provision of the Constitution could be amended, but these amendments can be subjected to judicial review to ascertain that the Basic Structure of the Constitution remains intact.

केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) – इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गोलकनाथ मामले में अपने फैसले की समीक्षा करके 24वें संविधान संशोधन अधिनियम की वैधता को बरकरार रखा। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि संसद के पास संविधान के किसी भी प्रावधान में संशोधन करने की शक्ति है, लेकिन ऐसा करने में, संविधान की मूल संरचना को बनाए रखा जाना चाहिए। उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रतिपादित किया इस सिद्धांत को “संविधान की मूल संरचना का सिद्धांत” के रूप में जाना जाता है। इस प्रकार, इस ऐतिहासिक फैसले का मतलब था कि संविधान के हर प्रावधान में संशोधन किया जा सकता है, लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए कि संविधान की मूल संरचना बरकरार है, इन संशोधनों की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है।

42nd Amendment Act (1976) – The government in 1976 enacted the 42nd Amendment Act that declared no limitation to the power of Parliament under article 368.

42वां संशोधन अधिनियम (1976) – सरकार ने 1976 में 42वां संशोधन अधिनियम बनाया, जिसमें अनुच्छेद 368 के तहत संसद की शक्ति पर कोई सीमा नहीं होने की घोषणा की गई।

Indira Gandhi vs Raj Narain and Minerva Mills v. Union of India- In these case Constitution Benches of the Supreme Court used the basic structure doctrine to strike down the 39th Amendment and parts of the 42nd Amendment respectively, and paved the way for restoration of Indian democracy. The Supreme Court’s position on constitutional amendments laid out in its judgement is that Parliament can amend the Constitution but cannot destroy its “basic structure”.

इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण और मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ- इस मामलो में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठों ने बुनियादी संरचना सिद्धांत का इस्तेमाल किया तथा क्रमशः 39वें संशोधन और 42वें संशोधन के कुछ हिस्सों को रद्द करके भारतीय लोकतंत्र की बहाली का मार्ग प्रशस्त किया। अपने फैसले में दिए गए संवैधानिक संशोधनों पर सर्वोच्च न्यायालय की स्थिति यह है कि संसद संविधान में संशोधन कर सकती है, लेकिन इसकी “बुनियादी संरचना” को नष्ट नहीं कर सकती।

Waman Rao vs. Union of India (1981) –This case also known as the ‘Doctrine of Prospective Overruling’. This case re clarified the doubt arouse out from Keahvanand Bharti Case related to the theory of basic structure. The SC held that:-

1. It is a misconception that the case which is violating fundamental rights also damages the basic structure.

2. Any Act only can be placed in the 9th schedule when it does not harm basic structure of Constitution.

3. In this case SC clarified that the basic structure doctrine is not a rigid or static concept but an evolving principle. It adapts to the new changes in the society.

वामन राव बनाम भारत संघ (1981) – इस मामले को ‘संभावित ओवररूलिंग के सिद्धांत’ के रूप में भी जाना जाता है। इस मामले ने बुनियादी संरचना के सिद्धांत से संबंधित केहवानंद भारती मामले से उत्पन्न संदेह को फिर से स्पष्ट कर दिया। SC ने कहा कि:-

1. यह गलत धारणा है कि जो मामला मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर रहा है वह मूल ढांचे को भी नुकसान पहुंचाता है।

2. किसी भी अधिनियम को 9वीं अनुसूची में तभी रखा जा सकता है जब वह संविधान के मूल ढांचे को नुकसान न पहुंचाए।

3. इस मामले में SC ने स्पष्ट किया कि बुनियादी संरचना सिद्धांत एक कठोर या स्थिर अवधारणा नहीं है बल्कि एकक्रमशः विकसित होने वाला सिद्धांत है। यह समाज में नये परिवर्तनों के अनुरूप ढलता है।

Elements Of Basic Feature

Indra Sahney & Others vs. Union of India(1992)-This is also known as the Mandal case, in this case Supreme Court declared the Rule of Law as a Basic Structure of the constitution.

इंद्रा साहनी और अन्य बनाम भारत संघ (1992)- इसे मंडल मामले के रूप में भी जाना जाता है, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में “कानून के शासन” को संविधान की मूल संरचना के रूप में घोषित किया।

Kihoto Hollohan Case (1993)- इस मामले को दलबदल के रूप में जाना जाता है, इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने स्वतंत्र और संसदीय चुनाव, संप्रभुता, लोकतंत्र और गणतंत्र को संविधान की मूल संरचना माना है।

किहोटो होलोहन केस (1993) –इस मामले को दलबदल मामले के रूप में जाना जाता है, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव, संप्रभुता, लोकतंत्र और गणतंत्र को संविधान की मूल संरचना माना।

S.R. Bommai vs. Union of India (1994)- In this case Supreme Court declared Federalism, Secularism, and Democracy as the Basic Structure of the Constitution.

एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994) – इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने संघवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र को संविधान की मूल संरचना घोषित किया।

As per Sikri, C.J., the basic structure constitutes the following elements- The supremacy of the Constitution, Republican and Democratic forms of Government, Secular character of the Constitution, Separation of Powers between the legislature, the Executive, and the Judiciary, Federal Character of the Constitution

सीकरी, सी.जे. के अनुसार, मूल संरचना में निम्नलिखित तत्व शामिल हैं- संविधान की सर्वोच्चता, सरकार के गणतांत्रिक और लोकतांत्रिक स्वरूप, संविधान का धर्मनिरपेक्ष चरित्र, विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों का पृथक्करण, संविधान का संघीय चरित्र।

Shelat and Grover, JJ., added the following to the above list – The mandate to build a welfare state contained in the Directive Principles of State Policy, Unity and integrity of India, The sovereignty of the country.

शेलाट और ग्रोवर, जे.जे. ने निम्नलिखित को उपरोक्त सूची में जोड़ा – एक कल्याणकारी राज्य के निर्माण का अधिदेश राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में निहित है, भारत की एकता एवं अखण्डता, देश की संप्रभुता

Hegde and Mukherjee, JJ.,-He included in the basic structure the sovereignty of India, the democratic character of the polity, the unity of the country, the essential features of individual freedom, the mandate of building a welfare state.

हेगड़े और मुखर्जी, जे.जे. इन्होने भारत की संप्रभुता, राज्य व्यवस्था का लोकतांत्रिक चरित्र, देश की एकता, व्यक्तिगत स्वतंत्रता की आवश्यक विशेषताएं, एक कल्याणकारी राज्य के निर्माण का जनादेश को मूल संरचना में शामिल किया

Justice Y.V. Chandrachud, J – He included in the basic structure Sovereign democratic republic status, Equality of status and opportunity of an individual, Secularism and freedom of conscience and religion, Government of laws and not of men i.e. the rule of law.

न्यायमूर्ति वाई.वी. चंद्रचूड़, जे – उन्होंने बुनियादी ढांचे में संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थिति, व्यक्ति की स्थिति और अवसर की समानता, धर्मनिरपेक्षता और अंतरात्मा और धर्म की स्वतंत्रता, कानूनों की सरकार, मनुष्यों की नहीं यानी कानून का शासन को शामिल किया।

Whereas Jaganmohan Reddy, J., believed that it was the Preamble that laid down the basic features of the Constitution, which are – A sovereign democratic republic, The provision of social, economic, and political justice, Liberty of thought, expression, belief, faith, and worship, Equality of status and opportunity.

जबकि जगनमोहन रेड्डी, जे. का मानना ​​था कि यह प्रस्तावना ही थी जिसने संविधान की बुनियादी विशेषताएं निर्धारित कीं, जो हैं – एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय का प्रावधान, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, विश्वास और पूजा की स्वतंत्रता, स्थिति और अवसर की समानता।

Ashwini Shivram v. State of Maharashtra, 1998 –The doctrine of equality enshrined in Art.14 of the Constitution, which is the basis of the Rule of Law, is the basic feature of the Constitution.

अश्विनी शिवराम बनाम महाराष्ट्र राज्य, 1998 – संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित समानता का सिद्धांत, जो कानून के शासन का आधार है, संविधान की मूल विशेषता है

Waman Rao v. Union of India(1981) & Minerva Mills v.Union of India(1980)-Judicial review is a part of the basic constitutional structure.

वामन राव बनाम भारत संघ (1981) और मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980)- न्यायिक समीक्षा बुनियादी संवैधानिक संरचना का एक हिस्सा है।

Significance of the Basic Structure Doctrine

Promotes Constitutional Ideals- The basic structure doctrine upholds the soul of the Constitution which is inextricably linked to the values enshrined in the Preamble, without which the document and the ideas that make it sacred would collapse.

संवैधानिक आदर्शों को बढ़ावा देता है- मूल संरचना सिद्धांत संविधान की आत्मा को कायम रखता है जो प्रस्तावना में निहित मूल्यों से अटूट रूप से जुड़ा हुआ है, जिसके बिना दस्तावेज़ और इसे पवित्र विचार ध्वस्त हो जायेंगे।

Maintains Supremacy of the Constitution – The doctrine has helped to maintain the supremacy of the Constitution and has prevented its destruction by a majority government in Parliament.

संविधान की सर्वोच्चता बनाए रखता है – सिद्धांत ने संविधान की सर्वोच्चता बनाए रखने में मदद की है और संसद में बहुमत सरकार द्वारा इसके विनाश को रोका है।

It secure the rule of law – The courts have clarified that the basic structure aims to secure the rule of law essential for preservation of the democratic system.

यह कानून के शासन को सुरक्षित करता है – अदालतों ने स्पष्ट किया है कि बुनियादी संरचना का उद्देश्य लोकतांत्रिक व्यवस्था के संरक्षण के लिए आवश्यक कानून के शासन को सुरक्षित करना है।

Balance of the responsibility – Basic Structure Doctrine, balance has been reached between the responsibilities of Parliament and the Supreme Court for protecting the Indian Constitution.

जिम्मेदारी का संतुलन – बुनियादी संरचना सिद्धांत, भारतीय संविधान की रक्षा के लिए संसद और सर्वोच्च न्यायालय की जिम्मेदारियों के बीच संतुलन प्रदान करता है।

Protects Citizen’s Rights- Basic Structure protects the fundamental rights & Socio economic right of the citizens against arbitrariness and authoritarianism of the legislature.

नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है- मूल संरचना विधायिका की मनमानी और सत्तावाद के खिलाफ नागरिकों के मौलिक अधिकारों और सामाजिक-आर्थिक अधिकार की रक्षा करती है।

Dynamic in nature – Unlike earlier theories, this theory is dynamic in nature as it is progressive and open to change over time. Which makes the Constitution a living document.

प्रकृति में गतिशील – यह सिद्धांत पूर्व के सिद्धांतों के विपरीत प्रकृति में गतिशील होने के कारण यह प्रगतिशील है और समय में परिवर्तन के लिए खुला है। जो संविधान को एक जीवंत दस्तावेज़ बनाते हैं.

Criticism of Basic Structure doctrine

Inconsistent with the principle of separation of powers- The basic structure theory has also been criticised as it is inconsistent with the concept of separation of power. It accords power to the judiciary that allows it to impose its philosophy on a government that is formed democratically. Vice President and Rajya Sabha Chairman Jagdeep Dhankhar has recently publicly criticized the judiciary, saying that courts cannot undermine “parliamentary sovereignty”.

शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के साथ असंगत – मूल संरचना सिद्धांत की भी आलोचना की गई है क्योंकि यह शक्ति के पृथक्करण की अवधारणा के साथ असंगत है। यह न्यायपालिका को शक्ति प्रदान करता है जो उसे लोकतांत्रिक तरीके से बनी सरकार पर अपना विचार थोपने की अनुमति देता है। उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ की हाल ही में न्यायपालिका की सार्वजनिक आलोचना की है और यह कहा कि अदालतें “संसदीय संप्रभुता” को कमजोर नहीं कर सकतीं।

Inappropriate and destructive to constitutional validity- This doctrine is criticized by saying that it is inappropriate and destructive to constitutional validity.

संवैधानिक वैधता के लिए अनुपयुक्त और विनाशकारी – इस सिद्धांत की आलोचना यह कहके की जाती है कि यह संवैधानिक वैधता के लिए अनुपयुक्त और विनाशकारी है।

Vagueness – Basic structure doctrine is criticized for its vagueness as it has been left open before the judiciary to decide the same on the case to case basis. Different judges may have different opinions in a case.

अस्पष्टता – मूल संरचना सिद्धांत का इसकी अस्पष्टता के लिए आलोचना की जाती है क्योंकि इसे न्यायपालिका के समक्ष मामले दर मामले के आधार पर निर्णय लेने के लिए खुला छोड़ दिया गया है। विभिन्न जज के एक मामले में विभिन्न राय हो सकते है।

No Constitutional Basis- It is not defined in the constitution nor in any statute and amounts to rewriting of the constitution without amendment procedure.

कोई संवैधानिक आधार नहीं- इसे न तो संविधान में और न ही किसी क़ानून में परिभाषित किया गया है और यह संशोधन प्रक्रिया के बिना संविधान को फिर से लिखने के बराबर है।

Encroachment of Democratic Power- It is an illegitimate infringement of the judiciary on principle of majority rule. It gives unelected judges the power to restrict the activity of an elected legislature. It translates judiciary into the third decisive chamber of parliament.

लोकतांत्रिक शक्ति का अतिक्रमण- यह बहुमत शासन के सिद्धांत पर न्यायपालिका का नाजायज उल्लंघन है। यह अनिर्वाचित न्यायाधीशों को निर्वाचित विधायिका की गतिविधि को प्रतिबंधित करने की शक्ति देता है। यह न्यायपालिका को संसद के तीसरे निर्णायक सदन में तब्दील करता है।

Judicial Overreach – This doctrine allows judicial overrich. Recently, National Judicial Appointment Commission Act, 2014 was declared null and void by the Supreme Court by relying on this doctrine. Arun Jaitley termed it the “tyranny of the unelected” in his criticism of the NJAC judgment in 2015.

न्यायिक अतिरेक – यह सिद्धांत न्यायिक अतिरेक की अनुमति देता है। हाल ही में, राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 को इस सिद्धांत पर भरोसा करके सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अमान्य घोषित कर दिया गया था। अरुण जेटली ने 2015 में एनजेएसी फैसले की आलोचना में इसे “अनिर्वाचित लोगों का अत्याचार” कहा था।

Conclusion – The basic structure doctrine helps to maintain the balance between flexibility and rigidity present in the amending powers of the Constitution. Some of the core and essential features of the Constitution which have been upheld in the judgements of the apex court include the sovereign, democratic and secular character of the polity, the established rule of law, the independence of the judiciary and the fundamental rights of citizens etc. Between the tussle in Parliament and the judiciary, one thing that has become certain is that all the laws and constitutional amendments are now subject to judicial review and any law which transgresses the basic structure is likely to be struck down by the Supreme Court. The Parliament’s power to amend the Constitution isn’t absolute and therefore the Supreme Court is still considered as the final interpreter of all constitutional amendments.

निष्कर्ष – बुनियादी संरचना सिद्धांत संविधान की संशोधन शक्तियों में मौजूद लचीलेपन और कठोरता के बीच संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। संविधान की कुछ मूल और आवश्यक विशेषताएं जिन्हें शीर्ष न्यायालय के निर्णयों में बरकरार रखा गया है उनमें संप्रभुता, राजनीति का लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्षता, कानून का स्थापित शासन, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और नागरिकों के मौलिक अधिकार आदि। संसद और न्यायपालिका में खींचतान के बीच एक बात तो तय हो गई है कि सभी कानून और संवैधानिक संशोधन अब न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं और कोई भी कानून जो मूल संरचना का उल्लंघन करता है, उसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द किये जाने की संभावना है। संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति पूर्ण नहीं है और इसलिए सर्वोच्च न्यायालय को अभी भी सभी संवैधानिक संशोधनों का अंतिम व्याख्याकार माना जाता है।

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