सेनवंश का इतिहास
History Of Sain Dynasty
परिचय
सेन वंश के अभिलेखों के अनुसार सेन वंश के राजा मूलतः कर्नाटक के रहने वाले थे। सेन वंश की स्थापना सामंत सेन के द्वारा बंगाल के राढ नामक स्थान पर की गई थी। सेन वंश की राजकीय भाषा संस्कृत थी। इसकी प्रारंभिक राजधानी गौड़ (माल्दा जिला में) थी फिर क्रमशः विक्रमपुर (मुंशीगंज, बांग्लादेश) और नवद्वीप (लखनौती आधुनिक नदिया) में स्थानांतरित हुई।
सेन वंश के ऐतिहासिक स्रोत
अभिलेख
देवपाड़ा अभिलेख – यह अभिलेख सेन राजा विजयसेन का है जिसमें उनकी विजयों का उल्लेख किया गया है। भारत में हिंदी से उतिकिरण किया गया यह पहला प्राप्त अभिलेख है।
साहित्य
🌹 वल्लालचरित ग्रंथ- इस ग्रंथ से सेन राजा बल्लाल सेन के राज्य का वर्णन मिलता है। ग्रंथ की रचना बल्लाल सेन ने अपने गुरु के साथ मिलकर की थी।
🌹 स्मृति दानसागर ग्रंथ – इस ग्रंथ की रचना बल्लाल सेन ने अपने गुरु के साथ मिलकर की थी।
🌹अद्भुतसागर ग्रंथ – इस ग्रंथ की रचना भी बल्लाल सेन ने अपने गुरु के साथ मिलकर की थी। इस ग्रंथ के पूरा होने से पहले ही वल्लाल सेन की मृत्यु हो गई थी। इस ग्रंथ को कवि जयदेव ने पूरा किया था
🌹 गीतगोविंद ग्रंथ- इस ग्रंथ की रचना जयदेव ने की थी।
सामंत सेन
इसका शासनकाल संभवत 1070 से 1095 ई के मध्य माना जाता है। सामंत सेन को सेन वंश का संस्थापक माना जाता है। सामंत सेन के द्वारा ही आधुनिक पश्चिम बंगाल के राढ नामक स्थान पर एक छोटे से राज्य की स्थापना की गई थी। सामंत सेन के बाद उसके पुत्र हेमंत सेन राजा बने जिन्होंने 1095 से 1096 ई के मध्य शासन किया।
विजय सेन
इसका शासनकाल संभवत 1096 से 1158 ई के मध्य में था। विजय सेन, हेमंत सेन के पुत्र एवं उत्तराधिकारी थे। विजयसेन को सेन वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। विजय सेन ने परममहेश्वर और अरिराज वृषशंकर की उपाधि धारण की थी। विजय सेन को शैव धर्म के अनुयाई और कुछ इतिहासकार वैष्णव धर्म के अनुयायी मानते हैं।
विजय सेन के द्वारा देवपाड़ा में प्रद्युमनेश्वर शिव मंदिर तथा एक झील का निर्माण करवाया था। विजय सेन के द्वारा ही देवपाड़ा में एक अभिलेख उत्कीर्ण कराया गया था जिसकी रचना उमापतिधर नामक कवि ने की थी। इसी अभिलेख में विजय सेन के विजयों का उल्लेख किया गया है। विजय सेन की रानी के द्वारा “कनकतुलापुरुष महादान” यज्ञ का आयोजन करवाया गया था।
विजय सेन ने पाल वंश के राजा मदनपाल की राजधानी गौड़ पर अधिकार कर लिया था और मदन पाल को मगध में शरण लेनी पड़ी थी। विजय सेन की पहली राजधानी विजयपुर तथा दूसरी राजधानी विक्रमपुर में थी।
बल्लाल सेन
बल्लाल सेन विजय सिंह के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे। बल्लाल सेन का शासन काल संभवत 1158 से 1179 ई क मध्य में था। बललाल सेन के द्वारा गौड़ेश्वर की उपाधि धारण की गई थी। ढाका में स्थित ढाकेश्वरी दुर्गा मंदिर की स्थापना बल्लाल सेन ने करवाया था
बल्लाल सेन के द्वारा कुलीन प्रथा की शुरुआत की गई थी। जिसमें ब्राह्मण वैश्य और कायस्थ को ही केवल श्रेष्ठ माना गया था बाकी क्षत्रिय और शूद्र को छोटे कुल का माना गया था।
लक्ष्मण सेन
यह बल्लाल सेन के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे। इसका शासनकाल संभवत 1179 से 1205 ई के मध्य में माना जाता है। लक्ष्मण सेन ने परम भागवत की उपाधि धारण की थी। लक्ष्मण सेन वैष्णव धर्म के अनुयायी थे। लक्ष्मण सेन की राजधानी लक्ष्मणवती थी जिसे मध्यकाल में लखनौती कहा गया और आधुनिक समय में नदिया कहा जाता है। लक्ष्मण सेन के दरबार में जयदेव, धोयी, हलायुद्ध और श्रीधरदास जैसे विद्वान रहते थे जिसमें जयदेव का स्थान सर्वोच्च था।
1202 इसी में कुतुबुद्दीन ऐबक के सेनापति मोहम्मद बख्तियार खिलजी ने लक्ष्मण सेन को पराजित करके उसकी राजधानी नदिया पर अधिकार कर लिया था। लक्ष्मण सेन ने पूर्वी बंगाल (बांग्लादेश) में जाकर शरण ली थी और लक्ष्मण सेन के बाद बाकी सभी सेन राजाओं ने पूर्वी बंगाल से ही अपना शासन किया।
लक्ष्मण सेन के बाद केशव सेन और विश्वरूप सेन राजा हुए।विश्वरूप सेन के उत्तराधिकारी सूर्य सेन को पराजित करके दशरथ देव ने पूर्वी बंगाल में देव वंश की स्थापना की थी।
सेन वंश से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
🪲 जयदेव ने गीतगोविंद, धोयी ने पवनदूत और हलायुद्ध ने ब्राह्मणसर्वस्य नामक ग्रंथ की रचना की थी।
🪲 हलायुद्ध लक्ष्मण सेन का प्रधान न्यायाधीश एवं मुख्यमंत्री था।
🪲 सेन राजवंश प्रथम राजवंश था जिसने अपना अभिलेख सर्वप्रथम हिंदी में उत्कीर्ण करवाया था।
🪲 लक्ष्मण सेन बंगाल का अंतिम हिंदू शासक था।
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