राष्ट्रकूट वंश का इतिहास | History Of Rashtrakoot Dynasty

Medieval History

History Of Rashtrakut Dynasty

राष्ट्रकूट वंश का इतिहास

परिचय

753 ईसवी में दंतीदुर्गा ने चालुक्य वंश के अंतिम राजा कीर्तिवर्मन द्वितीय को पराजित करके स्वयं को स्वतंत्र राजा घोषित कर दिया था। दंतीदुर्गा के द्वारा ही राष्ट्रकूट वंश की स्थापना की गई थी जिस की प्रारंभिक राजधानी मयूरखिड़ी (महाराष्ट्र) में थी। बाद में अमोघवर्ष प्रथम ने मान्यखेत (वर्तमान मालखेड़, शोलापुर) को राजधानी बनाया था। राष्ट्रकूट वंश के राजा सनातन जैन और बौद्ध तीनों धर्मों के अनुयाई थे। राष्ट्रकूट वंश की राजकीय भाषा कन्नड़ एवं संस्कृत थी।

राष्ट्रकूट वंश के ऐतिहासिक स्रोत

अभिलेख

🌹 एलोरा अभिलेख – अभिलेख दंती दुर्गा का है इसमें राष्ट्रकूट वंश की स्थापना कैसे हुई इसका जिक्र है।

🌹 सामंतगढ़ अभिलेख – क्या अभिलेख भी दंतीदुर्गा का है इस अभिलेख से दंतीदुर्गा के प्रारंभिक शासन के बारे में जानकारी मिलती है।

🌹 नौसारी अभिलेख – यह अभिलेख इंद्र तृतीय का है।

🌹 बड़ौदा अभिलेख – यह अभिलेख कृष्ण प्रथम का है और इस अभिलेख में एलोरा मंदिर की सुंदरता के बारे में जिक्र है।

साहित्य

🌹 कविराजमार्ग- इस ग्रंथ की रचना अमोघवर्ष ने की थी।

🌹 अमोघवृत्ति – इस ग्रंथ की रचना सक्तायनानामक कवि द्वारा किया गया था।

🌹 शांति पुराण – इस ग्रंथ की रचना कवि पोन्न द्वारा की गई थी

🌹 आदि पुराण – इसकी रचना जैन विद्वान जिनसेन द्वारा की गई थे।

दंती दुर्ग

दंती दुर्ग 735 ईसवी में चालुक्य वंश के सामंत बने। 753 ईसवी में इन्होंने चालुक्य राजा कीर्तिवर्मन द्वितीय को हराकर राष्ट्रकूट वंश की स्थापना की। दंती दुर्ग ने अपनी राजधानी मयूरखिड़ी में बनाई थी। दंती दुर्ग को चालुक्य राजा कीर्तिवर्मन द्वितीय के द्वारा “पृथ्वी वल्लभ” की उपाधि प्रदान की गई थी। दंतीदुर्गा ने परम भट्ठारक महाराजाधिराज और परमेश्वर की उपाधियां धारण की थी।

कृष्ण प्रथम

ये दंती दुर्गा के उत्तराधिकारी थे। इसका शासनकाल संभवत 758 से 773 ईसवी के मध्य में था। कृष्ण प्रथम द्वारा चांदी के सिक्के चलाए गए थे। कृष्ण प्रथम ने पूरे चालुक्य वंश को पुरी तरह से खत्म कर दिया था। इसने राजाधिराज परमेश्वर की उपाधि धारण की थी। कृष्ण प्रथम के दरबार में राजवार्तिक ग्रंथ के रचयिता जैन आचार्य अकलंक भट्ट रहते थे। कृष्ण प्रथम के द्वारा ही एलोरा के प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण करवाया गया था।

गोविंद द्वितीय

इसका शासनकाल संभवत 773 से 780 ईसवी के मध्य में था। धूलिया दान पत्र लेख के अनुसार गोविंद द्वितीय ने नासिक और खानदेश का शासन अपने छोटे भाई ध्रुव को सौंपा था।

ध्रुव निरुपम

ध्रुव का शासनकाल संभवत 780 से 793 ईसवी के मध्य में माना जाता है। ध्रुव का उल्लेख धूलिया दान पत्र लेख में किया गया है। ध्रुव को धारा वर्ष के नाम से भी जाना जाता है।

ध्रुव ने कन्नौज के त्रिपक्षीय संघर्ष में हिस्सा लिया था लेकिन त्रिपक्षीय संघर्ष में किसकी जीत हुई थी इस पर इतिहासकार एकमत नहीं है क्योंकि कुछ इतिहासकार मानते हैं कि त्रिपक्षीय संघर्ष में ध्रुव की जीत हुई थी परंतु यह सत्य नहीं है।

गोविंद तृतीय

इसका शासनकाल संभवत 793 से 814 ईसवी के मध्य में माना जाता है। गोविंद तृतीय ने अपने पिता की तरह कन्नौज के त्रिपक्षीय युद्ध में भाग लिया था और इसमें गोविंद तृतीय की जीत हुई थी।

अमोघवर्ष प्रथम

इसका शासनकाल संभवत 814 से 878 ईसवी के मध्य माना जाता है। इसके द्वारा कन्नड़ भाषा में कविराज मार्ग एवं प्रश्नोत्तर मलिका ग्रंथ की रचना की गई थी। अमोघवर्ष प्रथम के दरबार में आदि पुराण के रचयिता जिनसेन अमोघवृत्ति के रचयिता सक्तायना और गणितसार संग्रह के रचयिता महावीराचार्य रहते थे। अमोघ वर्ष प्रथम जैन धर्म के अनुयायी थे और जिनसेन इनके गुरु थे। इसने मान्यखेत शहर को बसाया तथा इसे अपनी राजधानी बनाया था। अमोघ वर्ष प्रथम ने जल समाधि के द्वारा अपना प्राण त्याग दिया था।

कृष्ण द्वितीय

किसने द्वितीय का शासनकाल संभवत 878 से 914 ईसवी के मध्य में था किसने द्वितीय का संपूर्ण शासनकाल चालुक्य वंश के राजाओं के साथ संघर्ष में बीता था।

इंद्र तृतीय

इसका शासनकाल संभवत 914 से 927 ईसवी के मध्य में माना जाता है। इंद्र तृतीय के शासनकाल में प्रसिद्ध अरब यात्री अलमसूदी ने भारत की यात्रा की थी। अलमसूदी ने अपने लेखों में इंद्र तृतीय को भारत का सबसे अच्छा राजा बताया है।

तृतीय के बाद अमोघ वर्ष द्वितीय, गोविंद चतुर्थ और अमोघ वर्ष तृतीय राजा हुए परंतु इनमें से कोई भी शक्तिशाली राजा नहीं हुआ।

कृष्ण तृतीय

इसका शासनकाल संभवत 939 से 967 ईसवी के मध्य में माना जाता है। कृष्ण तृतीय ने कांची और तंजौर पर विजय प्राप्त करने के बाद तंजयकोंड की उपाधि धारण की थी। इसने चोल वंश के राजा परांतक प्रथम को पराजित कर रामेश्वरम में एक सुंदर मंदिर और एक विजय स्तंभ का निर्माण करवाया था। शांति पुराण के रचयिता कभी पोन्न कृष्ण तृतीय के दरबार में रहते थे। कृष्ण तृतीय के बाद खोट्टिग या अमोघ वर्ष चतुर्थ राजा हुए।

कर्क द्वितीय

इसका शासनकाल 972 से 975 के मध्य में माना जाता है। तैलप द्वितीय ने कर्क द्वितीय को पराजित करके कल्याणी के चालुक्य वंश की स्थापना की थी।

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शुंग वंश का इतिहास वीडियो

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