बेंगी के चालुक्य वंश
History Of Bengi Chalukya
परिचय
बेंगी के चालुक्य वंश की स्थापना विष्णु वर्धन के द्वारा की गई थी। इसकी प्रारंभिक राजधानी पिष्टपुर (आधुनिक पीतमपुरा, आंध्र प्रदेश) थी इसके बाद बैंगी (एलुरु के समीप गोदावरी जिला आंध्र प्रदेश) में राजधानी बनाई गई और अंत में राजमहेंद्री (आधुनिक राजमुंद्री आंध्र प्रदेश में) को राजधानी बनाया गया था। बेंगी के चालूक्यों ने सनातन उज्जैन दोनों धर्म को आश्रय दिया था। इस की राजकीय भाषा तेलुगु, कन्नड़ और संस्कृत थी।
स्थापना
पल्लव राजा महेन्दवर्मन प्रथम और चालुक्य (वातापी) के नरेश पुलेकिशन द्वितीय के बीच भीषण संघर्ष कांचीपुरम के पास हुआ था। इस युद्ध में किसी को भी स्पष्ट जीत नहीं मिली मगर पुलेकिशन द्वितीय ने महेंद्र वर्मन प्रथम के साम्राज्य के उत्तरी भाग के कुछ हिस्सों में कब्जा कर लिया और पुलकेशिन द्वितीय ने इसे अपने भाई विष्णुवर्धन को सौंप दिया। कालांतर में विष्णु वर्धन ने इसी स्थान पर चालुक्य (बेंगी) वंश की स्थापना की।
ऐतिहासिक स्रोत
अभिलेख
सतारा का दान पत्र लेख- यह अभिलेख महाराष्ट्र के सतारा में स्थित है। इस अभिलेख से विष्णुवर्धन के बारे में जानकारी मिलती है।
पिष्टपुर अभिलेख – इस अभिलेख में कई बेंगी राजाओं के बारे में जानकारी मिलती है।
साहित्य
अवंतीसुंदरी कथा – इस ग्रंथ के रचयिता के बारे में इतिहासकारों में बहुत मतभेद है।
किरातार्जुनीयम् ग्रंथ – इस ग्रंथ के रचयिता भारवी थे।
विष्णुवर्धन
इन्हें बेंगी के चालूक्यों का संस्थापक माना जाता है। विष्णुवर्धन का शासनकाल संभवत 615 से 633 या 624 से 64 ई के मध्य माना जाता है। विष्णुवर्धन को चालूक्य लेखों में कुब्ज विष्णु वर्धन कहां गया है। कवी भारवी विष्णुवर्धन के दरबार में रहते थे। विष्णु वर्धन के द्वारा पृथ्वी का युवराज, पृथ्वीवल्लभ, मकरध्वज और विषमसिद्धि की उपाधियाँ धारण की गई थी। विष्णु वर्धन की रानी एय्यना के द्वारा वेजवाड़ा (आधुनिक विजयवाड़ा) के प्रसिद्ध जैन मंदिर को अपार दान दिया था।
विष्णु वर्धन के बाद जयसिंह प्रथम इंद्रवर्मन, विष्णुवर्धन द्वितीय, सरवलोकाश्रय या विजयसिंह, जयसिंह द्वितीय, कोकुल विक्रमादित्य, विष्णुवर्धन तृतीय, विजयादित्य प्रथम और विष्णुवर्धन चतुर्थ राजा हुए। यह सभी के सभी नाम मात्र के राजा हुए उनके शासनकाल में कोई विशेष कार्य नहीं हुए।
विष्णुवर्धन चतुर्थ
इस का शासनकाल 764 से 799 ईसवी तक माना जाता है। 769 ईसवी में इसी राष्ट्रकुट राजा द्वारा पराजित किया जाता है और इसके बाद यह राष्ट्रकूट के अधीन हो जाता है और नाम मात्र का राजा बना हुआ रहता है।
विजयादित्य तृतीय
इसका शासन काल 848 से 893 ईसवी के मध्य में था। इसे बेंगी के चालुक्य वंश का सबसे शक्तिशाली और प्रतापी राजा माना जाता है। इसने पल्लव पांडय, दक्षिण कोशल, कलिंग, कलचुरी और राष्ट्रकूट राजाओं को पराजित कर अपने संपूर्ण साम्राज्य को फिर से स्वतंत्र किया था।
शक्तिवर्मन
शक्ति वर्मन को बेंगी के चालुक्य वंश का अंतिम राजा माना जाता है।
National Symobol Of India Video
History Of Bengi Chalukya