Jharkhand During Shahjahan Period
शाहजहाँकालीन झारखंड
शाहजहाँ का शासनकाल 1628 से 1658 तक था। मुगल बादशाह शाहजहाँ के समय में मुगलों एवं झारखंड के क्षेत्रीय राजाओं के साथ राजनीतिक संबंध निम्न थे:-
नागवंश के साथ संबंध
शाहजहाँ के समकालीन नागवंशी राजा दुर्जनशाल और रघुनाथ शाह थे। 1627 में जब दुर्जनशाल मुगलों की कैद से आजाद होकर पुनः नागवंश का राजा बना, सर्वप्रथम उसने अपनी राजधानी को खुखरा से दोइसा (गुमला) में हस्तांतरित किया। नई राजधानी का फैसला सुरक्षा के कारण लिया गया दोइसा, खुखरा से ज्यादा सुरक्षित था क्योंकि ये तीन ओर पहाड़ से और एक तरफ दक्षिण कोयल नदी से घिरा था। दुर्जनशाल ने दोइसा में कई सुंदर महल बनवाये जिसमें नवरत्नगढ़ राजप्रासाद सबसे महत्वपूर्ण है। इसके बाद दोइसा लगभग 100 वर्षो तक नागवंशियों की राजधानी बनी रही।
दुर्जनशाल की मृत्यु 1640 ई में होने के बाद रघुनाथ शाह (1640 – 1690) नागवंशियों का राजा बना। इसके समय मुगल सेनापति खानजादा ने नागवंश पर हमला किया। रघुनाथ शाह और खानजादा के बीच संधि हुई। रघुनाथ शाह ने कुछ मामूली रकम की मालगुजारी देना मंजूर कर लिया।
पलामू के चेरो के साथ संबंध
सहबल राय के बाद प्रताप रॉय पलामू का राजा बना। यह एक योग्य और शक्तिशाली राजा था। इसके काल मे पलामू काफी समृद्ध हुआ। पुराना पलामू का किला इन्होंने ही बनवाया।
अब्दुल्ला खान का अभियान
1632 में बिहार के मुगल सूबेदार अब्दुल्ला खान को शाहजहाँ ने पलामू की जागीर दी, जहाँ का सालाना 1 लाख 36 हजार तय किया गया। इतनी बड़ी रकम तय होने के बाद अब्दुल्ला खान ने प्रताप राय से ज्यादा धन वसूलने का प्रयास किया। इतनी बड़ी रकम के माँग के कारण प्रताप रॉय ने कर देना ही बंद कर दिया। प्रताप रॉय शक्तिशाली राजा होने के कारण अब्दुल्ला खान ने आक्रमण नही किया।
शाइस्ता खान का अभियान
अब्दुल्ला खान के असफल होने के बाद शाहजहाँ ने शाइस्ता खान को बिहार का सूबेदार बनाया और शाहजहाँ ने उसे पलामू पर अधिकार करने का आदेश दिया। 12 October 1641 को शाइस्ता खान ने पलामू पर आक्रमण कर दिया। 26 जनवरी 2642 ई को चेरो- मुगल युद्ध बावली चेरोवान (आधुनिक बकोरिया) में हुई। प्रताप रॉय को बंदी बना लिया गया। प्रताप राय सालाना देने के लिए राजी हो गया। इस संधि में प्रताप राय ने तत्काल रिहाई के लिए 80,000 रु शाइस्ता खान को देना स्वीकार किया।
इतिकाद खान का अभियान
मगर शाइस्ता खान के पलामू वापस लौटने के बाद प्रताप रॉय ने अगले वर्ष का सालाना मालगुजारी भी नही दिया और ना ही पटना जाकर हाजरी लगाई। उधर नाराज शाहजहाँ ने इतिकाद खान को बिहार का मुगल सूबेदार घोषित किया और पलामू पर पुनः आक्रमण करने का आदेश दिया। इतिकाद खान ने जबरदस्त खान को सेनापति बनाकर पलामू में आक्रमण के लिए भेजा। 1643 में जबरदस्त खान ने पलामू पर आक्रमण किया।
यहाँ भी प्रताप राय और जबरदस्त खान के बीच 1944 में संधि हुई। संधि के तहत प्रताप राय 1 लाख रुपये और एक हाथी जबरदस्त खान को दिया तथा साथ में पटना चलना भी स्वीकार किया। इसके बदले में शाहजहाँ ने प्रताप राय को एक हजार की मुगल मनसबदारी प्रदान की तथा पलामू को प्रताप राय के अधिकार क्षेत्र में ही रहने दिया। प्रताप राय की मृत्यु कुछ महीनों बाद ही हो गई और पलामू का नया राजा भूपाल रॉय बना।
सिंहभूम के सिंह वंश के साथ संबंध
अकबर के शासनकाल में ही सिंहवंशीयो ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली थी। इसके संबंध मुगलों के साथ अच्छे रहे। शाहजहाँ के शासनकाल में ही सिंहवंशीयों ने पहली बार सालाना कर देना शुरू किया। यह कर उड़ीसा के मुगल सूबेदार द्वारा लिया जाता था।
मानभूम से संबंध
शाहजहाँ के शासनकाल में पंचेत के राजा वीर नारायण सिंह और मुगल सेना के बीच युद्ध हुआ था। इस युद्ध के पश्चात वीर नारायण सिंह को 700 घुड़सवार सैनिक मुगलों को देने पड़े थे।
रामगढ़ राज्य से संबंध
शाहजहाँ के शासनकाल में ही सर्वप्रथम रामगढ़ राज्य मुगलों के प्रभाव क्षेत्र में आया।
राजमहल से संबंध
शाहजहाँ ने राजमहल में एक शाही टकसाल की स्थापना की थी।शाहजहाँ ने बंगाल की राजधानी राजमहल से ढाका कर दिया। इस तरह राजमहल 1592 से 1639 तक बंगाल की राजधानी रहा।
मुख्य तथ्य
शाहजहाँ के समय मे आनेवाले विदेशी यात्री वर्नियर (डॉक्टर)और ट्रेवेनियर (जौहरी) ने भी अपने यात्रा वृत्तांत में शंख नदी से मिलने वाली हीरे का वर्णन किया है। ये दोनों फ्रांस से आये थे। बर्नियर की पुस्तक ” Travels In Mughal Empire” में खुखरा का वर्णन किया है। वर्नियर और ट्रेवेनियर ने झारखंड के राजमहल क्षेत्र में भ्रमण किया था। (शाहजहाँकालीन झारखंड)
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