पलामू के चेरो वंश | Chero Dynasty Of Palamu

Ancient History Of Jharkhand

पलामू के चेरो राजवंश

Chero Dynasty Of Palamu

परिचय – उत्तरी भारत में पाल वंश के पतन के बाद चेरो वंश का उदय हुआ। इसका शासनकाल 12वीं सदी से 19वीं सदी के मध्य था। इनका शासन उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ राज्य में विस्तृत था। इसकी प्रथम राजधानी बिहियां (भोजपुर) थी जो बाद में क्रमशः तिरवां (भोजपुर), देव मार्कण्डेय (सासाराम), चैनपुर और पलामू बनी। पलामू में चेरो वंश की स्थापना 16 वीं सदी में रक्सेल वंश का अंत करके किया गया जो 1813 तक रही। इस राजवंश की आधिकारिक भाषा भोजपुरी, मगही और नागपुरी रही।

भागवत राय (1585-1605)

डॉ विरोत्तम की पुस्तक ” द नागवंशी एंड द चेरोज” के अनुसार चेरोवंश का वास्तविक संस्थापक भागवत रॉय था, जिसे रणपत चोरुह भी कहा जाता है। किंतु ज्यादातर इतिहासकार महारथ चेरो को संस्थापक मानते हुए कहते है कि महारथ चेरो ने 1535 के आसपास पलामू के चेरो वंश की नींव डाली।

पलामू के चेरो वंश का वास्त्विक संस्थापक भागवत राय को माना जाता है। इसने पलामू के अंतिम रक्सेल शासक रामसिंह को अपदस्थ करके पलामू के चेरो वंश की स्थापना की।

महारथ चेरो – अहमद यादगार के लेखों से पता चलता है की शेरशाह सूरी को महारथ चेरो के सफेद हाथी पसंद आ गया था।

अनंत राय (1605-1612)

सहबल राय(1612-1627

प्रताप राय(1627-

इसके शासनकाल में राजपरिवार में अंतर्कलह हो गया था। तेज राय और दरिया राय ने मिलकर प्रताप राय को कैद कर लिया और तेज राय ने खुद को पलामू का राजा घोषित कर दिया। 15 नवंबर 1643 ई में मदन सिंह का पुत्र सूरत सिंह और सबल सिंह ने मिलकर प्रताप राय को कैद से मुक्त कराया। फिर प्रताप राय ने तेज राय को अपदस्त कर पुनः पलामू का राजा बना।

भूपाल राय (1637-1657)

मेदिनी राय(1658-1674)

चेरो वंश के सबसे प्रतापी राजा मेदिनीराय भूपाल सिंह का उत्तराधिकारी बना और 1658 से मृत्यपर्यंत 674 तक पलामू का राजा बना रहा। मेदिनी रॉय का शासनकाल 16 वर्षो तक रहा।

मेदिनीराय ने नागवंशी राजधानी दोइसा पे आक्रमण किया था। और वहाँ लूटपाट मचाई थी। नवरत्न गढ़ में लगे विशाल पत्थर का दरवाजा को पलामू ले आया था। रघुनाथ शाह पे इस जीत की खुशी में मेदिनीराय ने पलामू का नया किला बनाया था। इस दरवाजे का नाम नागपुरी दरवाजा है। इस दरवाजे के दोनों तरफ संस्कृत और फ़ारसी में अभिलेख लिखा हुआ है जिसे मेदिनी राय के दरबारी विद्वान बरनमाली मिश्रा ने लिखा है।

1660 में औरंगज़ेब के मुगल सूबेदार दाऊद खान ने पलामू के किले पर हमला किया। दाऊद खान के इस अभियान में दरभंगा के फौजदार मिर्जा खान, चैनपुर के जागीरदार तहव्वुर खान, जिससे मेदिनी राय को सरगुजा में शरण लेना पड़ा। दाऊद खान ने मनकली खान को पलामू का फौजदार नियुक्त किया। मेदिनी राय ने सरगुजा से लगातार मनकली खान पर हमले करते रहे। अंततः पलामू में मुगलों की स्थिति कमजोर हुई और 22 अगस्त 1666 ई को मनकली खान को पलामू से भागना पड़ा। मनकली खान के वापस जाते ही मेदिनीराय ने पुनः 1666 में पलामू पर अधिकार कर लिया। मेदिनीराय न्यायी (न्यासी राजा) के रूप में प्रसिद्ध हुआ। जल्दी ही उसने पलामू को दुर्गति से उबारा। उसने कृषि के लिए बहुत कार्य किये और पलामू को कृषि प्रधान राज्य बना दिया। मेदिनी राय के काल को “चेरो काल का स्वर्णयुग” कहा जाता है।

मेदिनी राय ने अपने साम्राज्य को दक्षिणी गया, हजारीबाग और सरगुजा तक विस्तृत किया। उसने गया के शेरघाटी , जपला, कुटुम्बा, बेलूनजा सिरिस के राजा को हराकर अपने राज्य का विस्तार किया। मेदिनी राय ने आसपास के क्षेत्रीय राजा को पराजित किया जैसे

1674 ई में मेदिनीराय की मृत्यु हुई। उसके बाद पलामू का राजा क्रमशः रुद्र राय (1674-1680), दिकपाल राय (1680-1697) और साहेब राय बनता है।

साहेब राय (1697-1716)

इसका शासन 1697 ई से 1716 ई तक रहा। इसके समकालीन मुगल राजा बहादुर शाह-1, जहाँदार शाह और फर्रूखशियर था।

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रणजीत राय (1716-1722)

साहेब राय के मरने के रणजीत राय 1716 में चेरो राजा बना और 1722 तक पलामू का राजा रहा। इसके समय मे बिहार का मुगल सूबेदार सरबुलंद खान 1717 में पलामू आया था। रणजीत राय ने 1719 ई में नागवंशी राजा यदुनाथ शाह से टोरी परगना छीन लिया था। टोरी परगना चेरो के कब्जे में 1722 तक रहा, जब तक रणजीत राय जिंदा रहा तब तक।

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जयकृष्ण राय(1722-1770)

1722 में जयकृष्ण राय ( रणजीत राय का संबंधी) ने रणजीत राय को मार डाला और पलामू की गद्दी हथिया ली। जयकृष्ण राय 1770 तक पलामू का राजा बना रहा। इसके समय 1730 में बिहार का मुगल सूबेदार ने पलामू फारुख़दोल्ला का हमला हुआ। 5,000 रु सालाना कर के लिए राजी हो गया।1733 में बिहार का नायाब सूबेदार अलीवर्दी खान ने जयकृष्ण राय के समय पे पलामू अभियान किया था यहाँ भी 5000 रु/सालाना कर देना तय हुआ। और पलामू से कर की वसूली टेकारी के राजा सुंदर सिंह को सौपा। 1740 में बिहार के मुगल सूबेदार जैनुद्दीन अहमद खान ने अपने सेनापति हिदायत अली खान को पलामू के राजा जयकृष्ण राय से कर निर्धारण के लिए भेजा। यहाँ भी 5,000रु/सालाना कर निर्धारित किया गया। हिदायत अली खान का आक्रमण बिहार के मुगल अधिकारियों का आखिरी हस्तक्षेप था।

जयकृष्ण राय के समय मे ही मराठा पेशवा रघुजी भोसले पलामू से होता हुआ मिर्जापुर (UP) गया था।

1750 के बाद पलामू राज्य सिकुड़ कर छोटा होता गया। 1765 तक यह सिर्फ दक्षिण पलामू तक ही सीमित रह गया।

चित्रजीत राय (1771-1771)

ये पलामू के पूर्ववर्ती राजा रणजीत राय का पोता था, जिसने अपने दादा के हत्या का बदला जयकृष्ण राय से लिया। जयनाथ सिंह ने रंकागढ़ के ठाकुर साइनाथ सिंह का भी हत्या करवाया था। साइनाथ सिंह का भतीजा जयनाथ सिंह भी अपने चाचा के मौत का बदला लेना चाहता था। इसलिए जयनाथ सिंह और चित्रजीत राय दोनो ने मिलकर जयकृष्ण राय के खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया। 1770 में सतबरवा (पलामू जिला) के निकट चेतमा की लड़ाई हुई। इस लड़ाई में जयकृष्ण राय मारा गया। पलामू के किला में चित्रजीत राय और जयनाथ सिंह का कब्जा हो गया। चित्रजीत राय 1770 ई में पलामू का राजा बना और जयनाथ सिंह उसका दीवान।

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गोपाल राय (1771-1776)

गोपाल राय, जयकृष्ण राय का पोता था। चित्रजीत राय के पलामू का राजा बनने के बाद गोपाल राय ने राजा बनने का दावा पेश किया। पटना कौंसिल ने गोपाल राय का समर्थन किया। कैप्टेन जैकब कैमक और गोपाल राय ने मिलकर पलामू के किले में हमला किया। 21 मार्च 1771 में किला जीत लिया गया। चित्रजीत राय और जयनाथ सिंह को किला खाली करना पड़ा। 1 जुलाई 1971 को गोपाल राय को पलामू का राजा घोषित किया गया। पलामू का सालाना कर 4,000 रु तय किया गया। गोपाल राय 1776 तक पलामू का राजा रहा।

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गजराज राय (1777-1780)

बसंत राय (1780-1783)

चूड़ामन राय (1783-1813)

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