Jharkhand During Mughal Period
मुगलकालीन झारखंड
बाबरकालीन झारखंड
बाबर ने 1526 में इब्राहिम लोदी को पानीपत की पहली लड़ाई में हराकर मुगल वंश की नींव डाली। मुगल तुर्क था और लोदी अफगान। तुर्क और अफगान के बीच इस संघर्ष का प्रभाव पूरे उत्तर भारत मे पड़ा। पानीपत की लड़ाई के बाद अफगान बंगाल और दक्षिण बिहार (जिसमे झारखंड भी शामिल) में रहकर अपनी शक्ति बढ़ाने लगा ताकि मुगलों को अपदस्थ कर सके। इस तरह बाबर काल में झारखंड मुगलों के प्रभाव से बिल्कुल स्वतंत्र रहा लेकिन यहाँ मुगल-विरोधी अफगानों कि गतिविधि तेज हो गई। बाबर के समकालीन नागवंशी राजा बदशाल शाह स्वतंत्रता से शासन करता रहा।
हुमायूँकालीन झारखंड
हुमायूँ के शासनकाल में झारखंड के नागवंशी राजा मधुकरण शाह था जो सुगमता से शासन करता रहा। झारखंड हुमायूँ के शासनकाल में भी स्वतंत्र रहा। मगर इस दौरान मुगल-विरोधी अफगानों की गतिविधि झारखंड में बढ़ गई। हुमायूँ के सबसे बड़े दुश्मन शेर ख़ाँ (शेरशाह) ने हुमायूँ के खिलाफ झारखंड का कई बार उपयोग किया था। शेरशाह जब बंगाल अभियान के लिए निकला था तब हुमायूँ शेरशाह का पीछा करते हुए झारखंड के भुरकुंडा (रामगढ) तक आया था। किंतु उसे उसी रास्ते वापस लौटना पड़ा क्योकि हुमायूँ के भाई ने हुमायूँ के खिलाफ विद्रोह कर दिया था।
शेरशाह कालीन झारखंड
शेरशाह अफगान था और तुर्को (मुगलों) का धुर विरोधी था। अपने शक्ति बढ़ाने के लिए जब शेरशाह 1538 में बंगाल अभियान पर निकला तब हुमायूँ अपनी विशाल सेना लेकर शेरशाह के पीछे निकला था। शेरशाह का बेटा जलाल ख़ाँ हुमायुँ का रास्ता रोकने का प्रयास करता रहा। इस प्रयास के दौरान जलाल ख़ाँ ने तेलियागढ़ी में नाकेबंदी और लूटपाट की। तेलियागढ़ी होते हुए झारखंड में मुगलों के प्रवेश का मार्ग शेरशाह ने ही प्रशस्त किया। शेरशाह बंगाल के शासकों से लूटी गई सम्पदा के साथ राजमहल के पास गंगा नदी पार किया और मुगलों को चकमा देकर झारखंड के रास्ते रोहतासगढ़ पहुंचा। रोहतासगढ़ में शेरशाह ने 1538 में अधिकार कर लिया। झारखंड के सीमावर्ती रोहतासगढ़ में अपनी राजधानी स्थापित की।
महारथ चेरो और शेरशाह
पलामू क्षेत्र के महारथ चेरो ने शेरशाह को बहुत परेशान किया। वह शेरशाह के शिविर में अचानक हमला कर देता था। शिविर से हाथी, ऊँट, घोड़े, धन इत्यादि लूट लेता था। 1538 में शेरशाह ने खवास ख़ाँ को सेनापति बनाकर महारथ चेरो पर आक्रमण करने के लिए पलामू भेजा। मगर तारीख-ए-शाही के लेखक अहमद यादगार ने खवास ख़ाँ के इस अभियान का कारण श्याम सुंदर सफेद हाथी को प्राप्त करना बताया है। इस पुस्तक में श्याम सुंदर हाथी के बारे में बताया है कि यह अपने मस्तक पर कभी धूल नही डालता था और युद्ध के दौरान उसकी सामना करना बहुत कठिन था।
खवास खान और इसके सहयोगी दरिया खान 4000 घुड़सवारों के साथ महारथ चेरो पर आक्रमण करता है जिससे महारथ चेरो की हार होती है। पलामू को खवास खाँ ने लूटा और श्यामसुंदर हाथी को शेरशाह के दरबार मे पेश किया। श्याम सुंदर हाथी को हुमायूँ ने मुगलों की सत्ता हासिल करने का शुभ लक्षण माना।
Note:- वी विरोत्तम की पुस्तक “नागवंशीज एंड द चेरोज” में भी शेरशाह के इस अभियान का उल्लेख किया है।
चौसा और विलिग्राम युद्ध में हुमायूँ की हार हुई। रोहतास से बीरभूम तक का इलाका शेरशाह के कब्जे में आ गया, इसी क्षेत्र में राजमहल भी आता था। अगले 35 वर्ष तक राजमहल क्षेत्र सुर साम्राज्य के अधीन रहा।
मुगलकालीन झारखंड (बाबर, हुमायुँ, शेरशाह)
मुगलकालीन झारखंड