पोरहाट के सिंह वंश

सिंहभूम के सिंहवंशी राज्य का विस्तृत अध्ययन | Detailed Study Of Singh Dynadty Of Porhat

Ancient History Of Jharkhand

Singh Dynasty Of Porhat

पोरहाट के सिंह वंश

सिंह राजवंश के कारण इस क्षेत्र का नाम सिंहभूम पड़ा, ऐसा दावा किया जाता है। हो जनजाति का मानना है कि सिंहभूम का यह नाम उसके आराध्य देव “सिंहबोंगा” के नाम से रखा गया। टिकैत नृपेंद्र नारायण सिंहदेव के पुस्तक “सिंहभूम, सरायकेला खरसावां थ्रू द एजेज के अनुसार ये राजस्थान के राठौड़ राजपूत थे जो पश्चिम भारत से 7वीं सदी (693 ई) में सिंहभूम आये थे। उस समय इस क्षेत्र में भुइयां और सरक की जनसंख्या ज्यादा थी। काशीनाथ सिंह ने इन जनसंख्या पर अपना आधिपत्य जमा लिया और 8वीं सदी में सिंहवंश की स्थापना की। अनेक इतिहासकारों का मानना है कि सिंह वंश का राज्य इस क्षेत्र में हो जनजाति के आगमन से पूर्व ही स्थापित हो चुका था।

सिंहवंश के बारे में जानकारी सिंहवंश के पारिवारिक इतिहास ग्रंथ “वंश प्रभा लेखन” से मिलती है। इस पुस्तक के रचयिता के नाम मगुनी राउत डोरा थे। इसी पुस्तक से हमें पता चलता है कि सिंहभूम में सिंह वंश की दो शाखाएँ स्थापित हुई थी।

पहली शाखा

प्रथम शाखा के संस्थापक काशीनाथ सिंह थे जिन्होंने 693 ई में पोरहाट राज्य की स्थापना की थी। इसके बाद इस वंश के 13 राजाओं ने शासन किया था। राज्य स्थापना के प्रारंभिक वर्षों में पोरहाट राज्य पर छोटानागपुर खास के नागवंशीयों का प्रभाव बना हुआ था। संभवतः नागवंशी ओं का प्रभाव आठवीं सदी तक रहा। संभवत सिंहभूम पर सिंह वंश का शासन तेरहवीं शताब्दी तक स्थापित रहा था। इतिहासकार ओमेली ने सिंह राजवंश का शासन काल 52 पीढ़ियों तक बताया है।

दूसरी शाखा

दूसरी शाखा 13वीं शताब्दी में (1205 ई) जिसके राजा दर्पनाथ सिंह थे। दर्पनाथ सिंह ने 1205 ई से 1262 ई तक लंबे समय तक शासन किया। इसके उत्तराधिकारी युद्धिष्ठिर हुए जिसका शासनकाल 1262 ई से 1271 ई तक रही। इसके 9 वर्ष के शासन के बाद इसके पुत्र काशीराम सिंह राजा बना।

काशीराम सिंह

युद्धिष्ठिर के मृत्यु के बाद उसका पुत्र काशीराम सिंह राजा बना। काशीराम सिंह ने बनाईं क्षेत्र में पोरहाट (आज का चक्रधरपुर) को सिंगवंशियो की राजधानी बनाई। काशीराम सिंह के बाद अच्युत सिंह शासक बना था। नृपेंद्र नारायण सिंह देव के अनुसार अच्युत सिंह ने ही पौरी देवी को अपने राज्य के अधिष्ठात्री देवी के रूप में स्थापित किया था। यह देवी भुईयां जाति की आराध्य देवी ठकुरानी माई से समानता रखती थी। सिंह वंश की स्थापना के समय सरक एवं भुईयां जातियां क्षेत्र में निवास कर रही थी।

अच्युत सिंह

काशीराम राम सिंह के बाद अच्युत सिंह सिंहवंशियो का राजा बना। इसके समय सिंहवंश की कुलदेवी पौरी देवी की प्राण-प्रतिष्ठा की गई। इस देवी की समानता भुइयाँ जाती की आराध्या “ठकुराई माई” से की जाती है। अजीत सिंह के बाद इस राज वंश का राजा त्रिलोचन सिंह बना था।

अर्जुन सिंह-1

त्रिलोचन सिंह के बाद इस राज वंश का राजा अर्जुन सिंह प्रथम बना। बनारस से तीर्थयात्रा से लौटते समय इसे इनके साथियों के साथ मुसलमान लुटेरों ने अगवा करके कटक में रखा था। जिसे बाद में इसके 32 साथियों के साथ छोड़ा गया था।

जगन्नाथ सिंह-2

यह उत्पीड़क स्वभाव का था। इसके उत्पीडन से तंग आकर भुइयाँ जाती ने विद्रोह किया था।

12 वीं सदी के अंत तक सिंह वंश अपने उत्थान पर था। इस वंश के अन्य शासकों में कृष्ण सिंह, अजय सिंह, शिकार सिंह, दयार सिंह, मानसिंह, अजय सिंह द्वितीय, शिव नारायण सिंह, लक्ष्मी नारायण सिंह, चित्र सिंह आदि थे।

रणजीत सिंह

यह मुगल बादशाह अकबर के समकालीन था। इसी के शासनकाल में पहली बार सिंह वंश मुगलों के अधीन हुआ। वर्ष 1593 के उड़ीसा अभियान के दौरान राजा मानसिंह सिंहभूम होता हुआ गुजरा था उस समय पोरहाट शासक रंजीत सिंह ने बिना युद्ध लड़े मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली थी और वह राजा मानसिंह के अंगरक्षक दल में शामिल हो गया।

औरंगजेब के समय सिंह वंश के शासक महिपाल सिंह, काशीराम सिंह, छत्रपति सिंह और अर्जुन सिंह थे।

जगन्नाथ सिंह चर्तुथ

अर्जुन सिंह के पुत्र जगन्नाथ सिंह चर्तुथ थे। जगन्नाथ सिंह-4 के समय में (1767 ई) में अंग्रेजो का झारखंड में प्रवेश हुआ। इसके शासनकाल में हो जनजातियों ने काफी उपद्रव मचा रखा था। हो के उपद्रव से बचने के लिए इन्होंने नागवंशी राजा दर्पनाथ शाह की मदद ली थी लेकिन हो जनजातियों ने दोनों की संयुक्त सेना को हरा दिया था।

इनके दो पुत्र पुरुषोत्तम सिंह एवं विक्रम सिंह के चीन के बीच सिंह वंश का विभाजन हो गया था। पुरुषोत्तम सिंह पोरहाट का राजा बना तथा विक्रम सिंह सरायकेला खरसावां के राजा बने। पुरुषोत्तम सिंह के पुत्र अर्जुन सिंह चतुर्थ थे जिनकी 1857 ई के विद्रोह के समय बनारस जेल में मृत्यु हो गई थी। अर्जुन सिंह के 2 पुत्र महेंद्र नारायण सिंह तथा नरपत सिंह थे। नरपत सिंह पोरहाट के अंतिम शासक थे जिनकी समय में ही 1935 ई में पोरहाट राज्य को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया था। राज्य अधिग्रहण के बदले में नरपत सिंह के भाई महेंद्र नारायण सिंह को 2 दिसंबर 1935 से मुआवजा एवं पेंशन का आदेश जारी किया गया था 1936 ई में मुआवजा ₹50 से बढ़ाकर ₹75 कर दिया गया था 1958 में महेंद्र नारायण की मृत्यु हो गई थी।

अभिराम सिंह

सिंहवंशी शासक अभिराम सिंह ने द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1803-1805) में अंग्रेजों का साथ दिया था। इस युद्ध में अंग्रेजों की विजय हुई थी जिस वजह से झारखंड से मराठों का प्रभुत्व पूरी तरह से समाप्त हो गया था। अभिराम सिंह के खिलाफ 1872 में दिवा-किसून नामक मामा-भांजा सशस्त्र विद्रोह किया था।

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