झारखण्ड के सदान

झारखंड के सदान Sadan Of Jharkhand

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Jharkhand Ke Sadan

JPSC MAINS QUESTION

Q. झारखंड के सदान और आदिवासीयो का तुलनात्मक अध्धयन प्रस्तुत करें।

झारखंड के मूलनिवासियों को दो वर्गो में विभाजित किया गया है सदान और आदिवासी। हम यह कह सकते है झारखंड में रहनेवाले गैर-आदिवासी लोग सदान है। अनुसूचित जाति, सामान्य वर्ग, पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक सारे सदान वर्ग में आते है। सदानो का आरंभिक अधिवास झारखंड ही है। झारखंड में सदानो की संख्या आदिवासियों से अधिक है।

सदानो के प्रकार

सदान को दो वर्ग में बांटा जा सकता है। पहला वैसे सदान जो सिर्फ झारखंड में पाया जाता है जैसे रौतिया, बड़ाइक, देशावली, धानुक, घासी, पान, भुइयां, गौडाइत, प्रमाणिक, तांती, गोसाई, रक्सेल, स्वांसी, भाट, बाउरी, बिंद, झोरा, कोस्टा, सरक, मल्हार, बरगहा, खंडत, लौहाड़िया आदि। कुछ सदान ऐसे भी है जिसके गोत्र स्थानीय आदिवासी जैसे है उसका मूल निवास स्थान झारखंड माना गया है।

दूसरा वैसे सदान जो झारखण्ड के अलावे देश के अन्य भागों में भी पाया जाता है जैसे राजपूत, ब्राह्मण, कुम्हार, चमार, सोनार, कोयरी, माली, लोहार, दुसाध, तेली इत्यादि। कुछ सदान जिसके गोत्र कन्नौजिया, अवधिया, तिरहुतिया है वो बाहर से आकर यहाँ बसा है ये माना गया है।

प्रजातीय समूह की दृष्टि से सदान तीनो प्रजातीय समूह (Proto-Australoid, Australoid & Dravidian) के है।

सदानो की उत्पत्ति और विकास

डॉ बी पी केसरी ने सदानो के ऊपर अनुसंधान किया तथा सदानो के ऊपर एक पुस्तक “झारखंड के सदान” की रचना की । इसके अनुसार सदान शब्द की उत्पत्ति “सत्य” शब्द से हुआ है जो समय के साथ क्रमश सत, सदमा, सदोम, सदान में परिवर्तित हुआ। ऑस्ट्रिक भाषा परिवार (मुंडा भाषा परिवार) में सदोम का मतलब “घोड़ा” होता है और सदान शब्द इसी “सदोम” शब्द से बना है।

एक दूसरे मत (पीटर शांति नवरंगी) के अनुसार सदान झारखंड के गैर-जनजातीय हिंदी-आर्य भाषी जातीय समूह है और संभवतः निषध जातीय समूह से बना है।

व्युत्पत्ति की दृष्टि से सदान दो शब्द सद + आन से मिलकर बना है नागपुरी में इसका मतलब बैठना या आराम करना या निवास करना। नागपुरी में घर मे रहने वाले कबूतर को “सदपरेवा” कहा जाता है। और जंगल मे रहने वाले कबूतर को “बनया कबूतर” कहा जाता है। सदान इसी “सदपरेवा” की व्युत्पत्ति है। बनया कबूतर यहाँ आदिवासियों को सूचित करता है।

सदानो के पुरातात्विक प्रमाण

पुरातात्विक प्रमाण से यह पता चलता है कि झारखंड क्षेत्र में असुरों के आने से पहले यहाँ कोई सभ्य जातियां रहा करती थी। सम्भवत: यह जाती सदान ही थे। सदान आदिवासियों से पहले से झारखंड के मूलनिवासी है। झारखंड में सर्वप्रथम असुर जनजाति का आगमन हुआ जिसका सदानो ने स्वागत किया।

झारखंड का सदानीकरण

झारखंड के सबसे प्राचीन निवासी सदान थे। असुर, मुंडा और उराँव के आगमन के बाद आदिवासियों की जनसंख्या ज्यादा हो गई थी। फिर सदानीकरणके वजह से सदानो की संख्या ज्यादा हो गई। अभी झारखंड में सदानो की संख्या 60% है। झारखंड में सदानीकरण के कुछ कारण:-

1) फणिमुकुट रॉय ने उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों और अन्य जातियों को छोटानागपुर में बसने के लिए आमंत्रित किया।

2) अशोक ने रक्षित को बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए छोटानागपुर भेजा।

3) समुद्रगुप्त के आटविक विजय के दौरान आदिवासियों का मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया गया।

4). 1202-03 में कुतुबुद्दीन ऐबक के सेनापति बख्तियार खिलजी ने दक्षिण बिहार में आक्रमण किया और नालंदा, उदंतपूरी और विक्रमशिला विश्विद्यालय को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया और हिंदुओं का भारी मात्रा में खून-खराबा करवाया। प्राणों की रक्षा के लिए हिन्दुओं के विभिन्न समूहों को झारखंड में शरण लेना पड़ा। इस तरह यहाँ झारखंड में अब नई मानव-समूहों का आगमन हुआ।

5. तुगलक वंश के दौरान मलिक बया,फिरोज शाह तुगलक, मुगल सेनापतियों के आक्रमण के दौरान भी झारखण्ड का सदानीकरण होता रहा।

सदान और आदिवासी में विभिन्नता

झारखंड में सदानो और आदिवासियों की संस्कृति और परंपरा मिश्रीत है किंतु दोनो में कुछ विभिन्नता भी पाई जाती है:-

1) सदान गैर-जनजातीय मूल निवासी है जबकि आदिवासी जनजातीय मूल निवासी है।

2) सदान स्थायी जीवन जीते है जबकी आदिवासियों में घुमंतू जीवन की परंपरा भी पाई जाती है।

3) झारखंड के सदान को जनजाति के रूप में अधिसूचित किया गया है। जबकि किसी आदिवासी को सदान के रूप में अधिसूचित नही किया गया है। झारखंड में 7 सदानो को जनजाति के रूप में अधिसूचित किया गया है जो बिरजिया, चिक बड़ाइक, माहली, किसान, करमाली, लोहारा और गौडाइत है। इसके अलावा झारखंड में अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित 5 जनजाति अपने आप को आदिवासी नही मानते बल्कि वो अपने को राजपुत मानते है।

4) सदान सामुदायिक जीवन जीता है, जबकि आदिवासी का जीवन स्वरूप कबीलाई है।

5) आर्थिक दृष्टिकोण से सदान की स्थिति आदिवासियो से अच्छी है।

सदान से संबंधित मुख्य तथ्य

1) बेनीराम महथा के नागवंशवाली में नागवंश के संस्थापक फनीमुकुट राय को प्रथम सदान कहा गया है।

2) सदानो की भाषा- नागपुरी, कुरमाली, पंचपरगनिया, खोरठा और कुरमाली सदानो की मुख्य भाषा है।

3) सदानो की जीविका का मुख्य स्रोत कृषि है।

4) आदिवासियों के तरह सदानो में भी अखरा पाया जाता है।

6) सदान काँसे तथा पीतल के बर्तन को समृद्धि का द्योतक मानते है।

7) सदान समाज पितृसत्तात्मक होता है और मातृकुल में विवाह वर्जित है।

Classification Of Jharkhand Tribes

https://youtu.be/Y4Y4rLNPWEQ

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