झारखंड आपदा प्रबंधन:सूखा

झारखंड आपदा प्रबंधन : सूखा | Jharkhand Disaster Management : Drought

झारखंड आपदा प्रबंधन

Jharkhand Disaster Management: Drought

झारखंड आपदा प्रबंधन:सूखा

सूखे की समस्या झारखंड की प्रमुख समस्याओं में से एक है। 2002, 2009 और 2010 में राज्य के सभी जिले सूखे से प्रभावित रहे। इस वर्ष 47% वर्षा कम हुई थी। जिस कारण 10 लाख हेक्टेयर भूमि धान की खेती नही हो पाई थी। झारखंड के सभी 24 जिले को सुखा प्रभावित घोषित किया जा चुका है।

भारतीय मौसम विभाग, दिल्ली ने सूखे से संबंधित निम्न निष्कर्ष निकाले है जो झारखंड के संबंध में भी लागू होते है:-

a) अगर किसी क्षेत्र में सामान्य से 25% कम वर्षा होती है तो उसे सामान्य सूखा कहते है।

b) अगर किसी क्षेत्र में सामान्य से 25 से 50% कम वर्षा होती है तो उसे मध्यम सूखा कहते है।

c) अगर किसी क्षेत्र में सामान्य से 50% से कम वर्षा होती है तो उसे गंभीर सूखा कहते है।

d) यदि वर्षा काल मे किसी सप्ताह 5 mm से कम वर्षा होती है और यह स्थिति अगले 4 सप्ताह तक जारी रहती है, ऐसे में खेत में खड़ी फसल सूखने लगती है। ऐसी स्थिति को कृषिगत सूखा कहते है।

सूखा के प्रकार

सूखा के दृष्टिकोण से झारखंड को तीन भागों में बाँटा जा सकता है:-

a) उच्च सूखा वाला क्षेत्र – पलामू, गढ़वा, लातेहार, चतरा, गोड्डा झारखंड के उच्च सूखाग्रस्त क्षेत्र है। भारतीय सिंचाई आयोग ने भारत के 5 क्षेत्रों को बार-बार सूखा से प्रभावित क्षेत्र की श्रेणी में रखा है इसमे से झारखंड का पलामू प्रमंडल ( पलामू, गढ़वा, लातेहार) एक क्षेत्र है। पलामू प्रमंडल में पिछले 25 वर्षों से वर्षा की गिरावट मापी गई है।

b) मध्यम सूखा वाला क्षेत्र – हज़ारीबाग, कोडरमा, गिरीडीह, देवघर, दक्षिण गुमला, सिमडेगा, उत्तर-पश्चिम सिंहभूम को मध्यम सूखा वाला क्षेत्र में रखा गया है।

c) निम्न सूखा वाला क्षेत्र – उपयुक्त दो क्षेत्रो के अलावे अन्य क्षेत्रों को निम्न सूखा क्षेत्र के अंतर्गत आता है।

Note:- राज्य में सुखा की जानकारी, उससे उत्पन्न दुष्प्रभाव तथा सूखा से निबटने के लिए “बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, राँची” में शैक्षणिक और तकनीकी कार्यक्रम चलाए जा रहे है।

सूखा से निबटने के उपाय

सूखा किसी भी राज्य के आर्थिक स्थिति को प्रभावित करता है इसलिए सूखे से बचाव को लेकर कदम उठाना अत्यंत आवश्यक है। सूखे से निपटने के लिए निम्न उपाय अपनाए जा सकते है:-

1) झारखंड के जिन क्षेत्रों में 120cm से कम वर्षा है तथा जिन क्षेत्रों में वर्षा की परिवर्तनशीलता ज्यादा देखने को मिलती है वहाँ शुष्क कृषि को विकसित करना होगा। जिसके अधीन निम्न कदम उठाए जा सकते है:-

a) प्रथम वर्षा के साथ खेतों की गहरी जुताई जिसके मिट्टी में नमी ज्यादा देर तक सुरक्षित रह सके।

b) ऐसे फसल की प्राथमिकता जो सूखे के प्रति प्रतिरोधक क्षमता रखता हो।

c) ऐसे फसल के किस्मों का विकास जी कम समय मे तैयार होता हो, तथा इसके तैयार होने में जल की जरूरत कम पड़ती हो।

2) जिन क्षेत्रों में कम वर्षा होती हो वहॉं ड्रिप सिंचाई, स्प्रिंकल सिंचाई, मल्चिंग जैसी सिंचाई के नए तकनीक को विकसित करना होगा।

3) झारखंड के कई सिंचाई परियोजना (वृहत, मध्यम, लघु तीनो) अभी अपूर्ण है। झारखंड निर्माण के बाद इन परियोजनाओं के लिए नीती बनाई गई है। मगर इन परियोजनाओं में तेजी लाने के लिए त्वरित कार्यक्रम बनाना जरूरी है।

4) तीव्र ढाल वाले क्षेत्रों में वृक्षारोपन इसके अलावा मेढ़दार एवं सीढ़ीनुमा खेतो का निर्माण ताकि पानी का बहाव रुक-रुक कर हो।

5) जल संरक्षणात्मक उपाय के जरिये वर्षा जल का संचयन जैसे बाँध, तालाब, चेक डैम, डोभा, तालाब, आहर का निर्माण करना।

6) वृक्षों की कटाई को कम करना। वाटरशेड प्रबंधन को बढ़ावा देना। मृदा संरक्षण तकनीक अपनाना। वाटर मैनेजमेंट शिक्षा और तकनीक को बढ़ावा देना।

7) अक्टूबर 2022 में कृषि निदेशालय द्वारा झारखंड के 22 जिले (सिमडेगा और पूर्वी सिंहभूम) के 226 प्रखंड को सूखाग्रस्त घोषित किया है। जिसमें 72 जिले को मध्यम सूखा और 154 जिले को गंभीर सूखाग्रस्त घोषित किया गया है।

8) सूखाड़ राहत योजना, 2022 के लिए झारखंड सरकार ने 12 सौ करोड़ रुपए आवंटित किए हैं। इसमें 30 लाख किसानों को 3500 रुपए राहत राशि के रूप में दिए जाएंगे।

झारखंड आपदा प्रबंधन:सूखा (Video)

https://youtu.be/B4nN0fdTyIQ

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