Temples of Jharkhand

झारखंड के मंदिर|List Of Temples Of Jharkhand|Jharkhand ke Mandir

Jharkhand Art/CultureJharkhand GK

झारखंड के प्रसिद्ध मंदिर

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बैद्यनाथ धाम (Baidhnath Dham)

वैद्यनाथ मंदिर झारखंड के देवघर जिले में अवस्थित है। यहां स्थित ज्योर्तिलिंग को कामना लिंग भी कहा जाता है। इस मंदिर का पुनरोद्धार गिद्धौर राजवंश के दसवें राजा पूरमल ने कराया था। यहां शिवलिंग की स्थापना रावण ने की थी इसलिए इसे “रावणेश्वर” महादेव कहते है। इस मन्दिर के परिसर में और 21 बड़े मंदिर है। इस मंदिर के मुख्यद्वार के पास ही “बैजू मंदिर” है (बैजू एक आदिवासी था जिसने भगवान शिव की भक्तिपूर्वक आराधना की थी)।

सनातन परंपरा के अनुसार 12ज्योर्तिलिंग है जिसमे से यह मंदिर भी है,और सनातन परंपरा के अनुसार इसे कामना लिंग भी कहते है। साथ साथ इस मंदिर को “हृदय पीठ” और “चिता भूमि” भी कहा जाता है क्योंकि सती की हृदय यहीं पर गिरी थी और उनका दाह संस्कार भी यही पर हुआ था। दुनिया का सबसे लंबा मेला श्रावणी मेला यही पर सावन महीने में लगता है, जब श्रद्धालु अजगेबीनाथ धाम (सुल्तानगंज) से जल लेकर बैद्यनाथ धाम आते है।

महात्मा गांधी जब इस मंदिर में दर्शन करने आए थे तो इस मंदिर के बारे में अपनी पत्रिका “यंग इंडिया” में इस मंदिर के बारे में लिखते हुए यहां के पण्डो की तारीफ की थी और कहा था कि यहां कोई छुवाछूत नही है। यह मंदिर नागर शैली में बनी है।

देवड़ी मंदिर (Devri Temple)

यह मंदिर राँची जिला के तमाड़ प्रखंड के देवरीग्राम में अवस्थित है। यह मन्दिर दुर्गा माता को समर्पित है ।इस मन्दिर में माता की सौलहभूजी प्रतिमा इस मंदिर का निर्माण केड़ा (सिंहभूम)के एक आदिवासी राजा ने किया था। इस मंदिर का निर्माण पत्थरों को एक एक ऊपर रखकर किया गया है इन पत्थरों को आपस में जोड़ा नही गया है।

कोल विद्रोह के दौरान 1830-31 में अंग्रेज अधिकारियों ने इस मंदिर पर गोलियां चलाई जिसका चिन्हअभी भी स्पष्ट रूप से दिखता है। यहां माता का पुजारी आदिवासी समुदाय से होते है।

Note:- कोल विद्रोह के दौरान शिव मन्दिर, हारिण (राँची) में भी अंग्रेजो ने गोलियां चलवाई थी।

कैथा शिव मंदिर (Kaitha Shiv Mandir)

रामगढ़ राज्य का राजधानी बादम से रामगढ़ में हस्तांतरण राजा दलेल सिंह ने किया। राजा दलेल सिंह ने ही इस मंदिर का निर्माण रामगढ़ में 1670 ई में किया। इस मंदिर के निर्माण में बंगाल शैली,मुगल शैली और राजपूत शैली का उपयोग किया गया है। यह एक शिव मंदिर है। मंदिर के अंदर एक गुफा जिसमे माता कैथेश्वरी की पूजा होती है और इसीलिए इसे कैथा शिव मंदिर कहते है। यह नदी दामोदर नदी के तट पर अवस्थित है।

मंदिर में एक बेलनाकार गुम्बद है जिसमे वर्षा का पानी एकत्रित होता था और यह पानी बूंद बूंद करके शिवलिंग पर गिरता था। दलेर सिंह एक शिवभक्त था इसने “शिवसागर” नामक एक ग्रंथ भी लिखा था। इस मंदिर को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया गया है।

माता योगिनी मंदिर (Mata Yogini Temple)

यह मन्दिर गोड्डा जिला के पथरगामा प्रखण्ड में बाराकोपा पहाड़ी पर स्थित है। महाभारत में इस मंदिर का जिक्र “गुप्त योगिनी” के नाम से है। जब माता सती का जलता हुआ शव को लेकर शिवजी तांडव करने लगे तब भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के शव को 51 टुकड़े में बांट दिया जहां – जहां ये टुकड़े गिरे वहां वहां शक्तिपीठ की स्थापना की गई।

मगर योगिनी पुराण के अनुसार सती के शव का 52 टुकड़े हुए थे और योगिनी पीठ में 52वा टुकड़ा (दायां जांघ) गिरा था जिसे गुप्त रखा गया था इसलिए महाभारत में गुप्त योगिनी के नाम से यह प्रसिद्ध है। इस मंदिर का का पुननिर्माण चारुशीला देवी(कोलकाता के पथूरया घाट की रानी) ने करवाया था। इस मंदिर के गर्भगृह में जाने के लिए एक बहुत ही पतली गुफा से गुजरना पड़ता है। ये पुरी तरह से अंधकारमय गुफा है मगर इस गुफा से गुजरते समय अंधकार का आभास नही होता है।

इस मंदिर की तंत्र साधना बिलकुल कामख्या देवी (गुवाहाटी) की तरह ही होती है।पूजा पद्धति भी एक ही तरह है। कामख्या मन्दिर की तरह इस मंदिर में भी तीन दरवाजे है और दोनो जगह पिंड की पूजा होती है।

Note:- चारुशिला देवी ने देवघर के नौलखा मंदिर के लिए भी सारे खर्च दिए। (Temples Of Jharkhand)

नौलखा मंदिर यह मंदिर देवघर शहर में स्थित है। इस मंदिर की वास्तुकला बेलूर स्थित रामकृष्ण मंदिर से मिलती है। इस मंदिर को युगल मंदिर भी कहा जाता है क्योंकि यहां पर राधाकृष्ण की युगल मूर्ति है। जब चारुशिला देवी के पति अक्षय घोष और बेटे यतींद्र घोष की मृत्यु हो गई तो वो देवघर स्थित बालानंद आश्रम से जुड़ गई। उसने नौलखा मंदिर को बनाने के लिए धन का दान दिया फिर यह मंदिर बालानंद आश्रम के एक अनुयायी ने 1948 में बनवाया।इस मंदिर के निर्माण में 9 लाख रुपए खर्च होने के वजह से इसे नौलखा मंदिर कहा जाता है।

Naulakha Temple – This temple is located in Deoghar city. The architecture of this temple resembles that of Ramakrishna temple located in Belur. This temple is also called Yugal temple Because there is a couple statue of Radha Krishna here. When Charushila Devi’s husband Akshay Ghosh and son Yatindra Ghosh died, she joined the Balananda Ashram in Deoghar. He donated money to build the Naulakha temple, then this temple was built by a follower of Balanand Ashram in 1948. Because of the expenditure of Rs 9 lakh in the construction of this temple, it is called Naulakha temple.

शिवगादी धाम (Shivgadi Dham)

यह मंदिर साहेबगंज जिला के बरहेट प्रखंड में देवाना पर्वत पर अवस्थित है। इस मंदिर को “मिनी बाबाधाम” कहा जाता है क्योंकि देवघर मंदिर की तरह यहां भी कावरिया राजमहल घाट से जल लाकर भगवान शिव को अर्पित करते है। यहां भगवान शिव की पूजा गाजेश्वरनाथ नाम से की जाती है। यहां पर गाजेश्वरनाथ की पीताम्बरी शिवलिंग है जो की गुफा में अवस्थित है जिसमे हमेशा टिप टिप पानी की बूंदे टपकती रहती है। संथाल विद्रोह के नायक सिद्धों कान्हो इस मन्दिर में पूजा करते थे।

मुगल सेनापति मानसिंह ने भी इस मंदिर में पूजा किया था। इस मंदिर के पीछे की कथा है की भगवान शिव ने यहां पर गजासुर राक्षस का वध किया था, मृत्य के जब करीब था तो गजासुर ने क्षमा याचना की तो शंकर भगवान ने आशीर्वाद दिया की यहां पर मैं तेरे नाम से मतलब गाजेश्वर नाथ नाम से जाना जाऊंगा।

यही पर जब भगवान शंकर गजासूर का वध कर रहे थे तब नंदी दो पैरो पर खड़ा हो गया था जिससे यहां दो खुर के निसान बन गए।इसी खुर के गड्ढे में हर मौसम में जल भरा रहता है जिसे शिवगंगा के रूप में जाना जाता है।

बिन्दुवासिनी मंदिर (Binduwasini Temple)

यह मंदिर साहेबगंज के बरहरवा प्रखंड में अवस्थित है। इसे बिंदुधाम के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर बिन्दुवासिनी पहाड़ पर स्थित है जो कि राजमहल पहाड़ी का एक भगाई। यह मंदिर त्रिदेवी(काली, दुर्गा और सरस्वती) को समर्पित है। सनातन धर्म में इसे शक्तिपीठ माना जाता है यहाँ सती की तीन बून्द रक्त गिरी थी। यहाँ एक सूर्य मंदिर भी अवस्थित है जो 7 घोड़े पे सवार है। चैत्र-नवरात्रि यहाँ का सर्वप्रमुख त्यौहार है। यहाँ पर चैत्र महीने में 9 दिन के लिए रामनवमी मेला लगता है जिसे बिन्दुधाम मेला कहा जाता है।

छिन्नमस्तिका मंदिर(Chhinnmastika Temple)

यह मंदिर रामगढ़ जिला के राजरप्पा नामक स्थान पर दामोदर और भैरवी (भेड़ा) नदी के संगम पर अवस्थित है। इस मंदिर में काली माता की मूर्ति है जिसका मस्तक धड़ से अलग है इसलिए इस मंदिर का नाम छिन्नमस्तिका मंदिर है। यहां देवी की मूर्ति सौम्य,उग्र और काम तीनो रूप में है। यह मंदिर रामगढ़ राज्य की कुलदेवी मंदिर है। देवी के बाएं साकिनी (सौम्य रूप को दर्शाता है) और दाएं डाकिनी(रौद्र रूप को दर्शाता है) है।

देवी के पैरो के पास रति -कामदेव (काम रूप को दर्शाता है)है। 1947 से पहले तक यह मंदिर घने जंगल के भीतर था इसलिए इसे वनदुर्गा मंदिर भी कहा जाता है। यह सनातन परंपरा के अनुसार 51 शक्तिपिठो में से एक है। इस मंदिर का प्रत्यक्ष संबंध दक्षिणेश्वरी काली मन्दिर और कामाख्या मंदिर से है। रामगढ़ राज्य के राजाओं ने दक्षिणेश्वरी काली मंदिर के तांत्रिक और पुजारियों को यहां लाकर बसाया था। इस मंदिर की वास्तुकला कामख्या मन्दिर से मिलती है।

बासुकीनाथ धाम – यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।यह दुमका जिला के जरमुंडी प्रखंड में अवस्थित है। इसका निर्माण बसाकी तांती नामक व्यक्ति ने 16वीं शताब्दी में करवाया था। वैद्यनाथ मन्दिर की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है जब तक वासुकिनाथ में दर्शन नहीं किये जाते। बासुकीनाथ मंदिर का इतिहास भी सागर मंथन से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि सागर मंथन के दौरान पर्वत को मथने के लिए वासुकी नाग को माध्यम बनाया गया था। इन्हीं वासुकी नाग ने इस स्थान पर भगवान शिव की पूजा अर्चना की थी। यही कारण है कि यहाँ विराजमान भगवान शिव को बासुकीनाथ कहा जाता है। हिंदुओं में यह मान्यता है कि बाबा बैजनाथ में विराजमान भगवान शिव जहाँ दीवानी मुकदमों की सुनवाई करते हैं वहीं बासुकीनाथ में विराजित भोलेनाथ श्रद्धालुओं की फौजदारी फ़रियाद सुनते हैं और उनका निराकरण करते हैं। इसलिए बासुकीनाथ के दरबार को फौजदारी दरबार के नाम से भी जाना जाता है।

बाबा बासुकीनाथ
बाबा बासुकीनाथ

Basukinath Dham – This temple is dedicated to Lord Shiva. It is located in Jarmundi block of Dumka district. It was built by a person named Basaki Tanti in the 16th century. A visit to Vaidyanath temple is considered incomplete until Vasukinath is not visited. The history of Basukinath temple is also linked to Sagar Manthan. It is said that during Sagar Manthan the mountain was churned. It was this Vasuki Nag who worshiped Lord Shiva at this place. This is the reason why Lord Shiva present here is called Basukinath. It is believed among Hindus that while Lord Shiva seated in Baba Baijnath hears civil cases, Bholenath seated in Basukinath listens to the criminal complaints of the devotees and resolves them.

मौलीक्षा मंदिर (Mouliksha Mandir)

यह मंदिर दुमका जिला के मलूटी गांव में अवस्थित है। मलूटी को मंदिरों का गांव कहा जाता है। जहां 108 प्राचीन मंदिर और उसके अवशेष मौजूद है। मौलीक्षा देवी को तारा देवी की(जो रामपुरहाट के पास तारापीठ में अवस्थित है) की बहन माना जाता है।

चुटोनाथ मंदिर – यह मंदिर दुमका जिला के जामा प्रखंड के चुटो पहाड़ी में अवस्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर “चडक पूजा” पूजा के लिए प्रसिद्ध है जो प्रतिवर्ष 14 अप्रैल को होता है। इसे पहाड़ी बाबा भी कह के स्थानीय लोग बुलाते है। इस मन्दिर के पुजारी ब्राह्मण न होकर घटवाल समुदाय से होते है। इस मंदिर में देशी शराब को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। इस मंदिर में बकरे को बलि देने की प्रथा है। मगर बकरे को घर नही ले जाया जाता है। लोग वही बगल में बहनेवाली मयूराक्षी नदी के तट में पकाते है और ग्रहण करते है।

चुटोनाथ मंदिर प्रवेश द्वार
चुटोनाथ मंदिर प्रवेश द्वार

Chutonath Mandir – This temple is situated in Chuto hill of Jama block of Dumka district. This temple is famous for the “Chadak Puja” puja which takes place annually on 14 April. Local people also call him Pahari Baba. this temple is dedicated to Lord Shiva. The priests of this temple are not Brahmins but from the Ghatwal community. Country liquor is offered as Prasad in this temple. There is a tradition of sacrificing goat in this temple. But the goat is not taken home. People cook and eat it on the banks of the river Mayurakshi flowing nearby.

4. सोमेश्वर मंदिर (Temples Of Jharkhand)

यह मंदिर दुमका जिला के सरैयहाट प्रखंड में अवस्थित है। यह भगवान शिव को समर्पित है।

5. पांडेश्वर मंदिर ( (Temples Of Jharkhand)

यह मंदिर भी दुमका जिला के सरैयहाट प्रखंड में अवस्थित है। यह भगवान शिव को समर्पित है।

वंशीधर मंदिर (Vanshidhar Temple)

यह मंदिर गढ़वा जिला के नगर उंटारी प्रखंड में स्थित है। नगर उटारी प्रखंड का नाम अभी वंशीधर नगर कर दिया गया है। इस मंदिर की स्थापना 1885 में नगर उटारी की राजमाता शिवमणि कुंवर (महाराज भवानी सिंह की विधवा) ने की थी।

1884 में राजमाता शिवमणि कुंवर को लगातार सपने आने लगे की उत्तर प्रदेश के माहुरिया (कान्हर नदी तट पर) के पास स्थित शिव पहाड़ी में श्रीकृष्ण की मूर्ति गढ़ी हुई है। मगर उस क्षेत्र में दूसरे राजा का शासन था, राजमाता अपने सैनिक बल के साथ शिवपहाड़ी की खुदाई करवाया तो वहां 1280 किलोग्राम (32 मन और 4 फीट की सोने की मूर्ति मिली)। फिर वाराणसी से राधा की अष्टधातु की मूर्ति मंगवायी गई इतनी भारी मूर्ति को लाने के लिए हाथी का प्रयोग किया गया। जिस जगह हाथी थक कर बैठ गया उसी जगह पर विशाल वंशीधर मंदिर की स्थापना की गई है।

यह राधाकृष्ण की मंदिर है जहां श्रीकृष्ण त्रिभंगी मुद्रा में वंशीवादन करते हुए कमल फूल के ऊपर है और कमल फूल शेषनाग के ऊपर है और ये शेषनाग भूमिगत है जो दिखाई नही देता।

यहां श्रीकृष्ण की मूर्ति अष्टधातु (इस मूर्ति में 32 मन शुद्ध सोना का उपयोग किया गया है) से बनी है। अष्टधातु सनातन परंपरा में पवित्र मानी जाती है। इस जगह पर एक और प्रसिद्ध शिव मंदिर है जो राजा पहाड़ी में अवस्थित है। इस मंदिर का निर्माण नगर उटारी के राजमाता शिवमणि कुंवर ने की थी।

Note:- वंशीधर नगर को पलामू की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है।

उग्रतारा मंदिर (Ugratara Temple)

यह मंदिर लातेहार जिला के चंदवा प्रखंड में नगरगांव में स्थित है। नगरगाँव में स्थित एक पहाड़ी जिसका नाम मंदारगिरी है उसके शिखर पर माता उग्रतारा का सुंदर सा मंदिर है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है की दो कुल की देवियों की मूर्ति एक ही जगह पर होना । यहां पर काली कुल की देवी उग्रतारा और श्री कुल की देवी भगवती (लक्ष्मी) एक साथ विद्यमान है इसलिए इस मन्दिर को उग्रतारा भगवती मंदिर भी कहा जाता है।

इस मंदिर का निर्माण 18वी सदी में टोरी परगना के राजा पीतांबर शाही ने कराई थी। और टोरी परगना राजपरिवार के ये कुलदेवी थी। बाद में जब मराठों का आगमन हुआ तो मराठा रानी देवी अहिल्याबाई ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। यहां नवरात्र की पूजा 16 दिन की होती है जो अन्य सभी मंदिरों से अलग है।

Note:- इसी पहाड़ी पर मदार शाह का मजार है। जो उग्रतारा माता के बहुत बड़े भक्त थे। मन्नत पूरी होने पर एक सफेद झंडा उनके मजार पर गाड़ा जाता है।

सूर्य मंदिर

Temples of Jharkhand (Sun Temple)

यह मंदिर रांची जिला के बुंडू प्रखंड में अवस्थित है। इस मंदिर का निर्माण “संस्कृति विहार नामक संस्था ने करवाया है और इसका देखभाल भी यही संस्था करती है।यह मन्दिर सूर्य देव को समर्पित है जिसमे जिसमें एक रथ रूपी मंदिर है जिसमें 9-9 घोड़े दोनो ओर लगे है तथा 7 घोड़े इसे खींच रहे है। यहां छठ पूजा में बहुत भीड़ लगती है। इस मंदिर की स्थापना 1994 में की गई थी।

Mahamaya Mandir (महामाया मंदिर)

मूल रूप से यह काली माता का तांत्रिक पीठ है ।यह मंदिर गुमला जिला के घाघरा प्रखण्ड के हापामुनी गांव में अवस्थित है। इस मंदिर का निर्माण 22वे नागवंशी राजा गजघंट राय ने 908 ई में किया था। उसने इस मंदिर की देखभाली का जिम्मेदारी अपने गुरु हरिनाथ को सौप दिया था। हरीनाथ एक मराठी ब्राह्मण था। इसमें देवी महामाया की प्रतिमा है,जिसे मंजूषा (बक्सा) के अंदर रखा गया है। चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष को पूजा के लिए महामाया देवी को मंजूषा से बाहर निकाला जाता है, पुजारी आंख में कपड़ा बांधकर माता की पूजा करते है। श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए एक दूसरी मूर्ति बना कर रखी गई है।

यहां मुख्य मंदिर खपरैल की बनी हुई है। इस मंदिर का द्वार पश्चिम की और है जो सामान्यतः किसी मंदिर में नही होता।फिर 15वी सदी में यही पर 1458 (विक्रम संवत्) ई में नागवंशी राजा शिवदास कर्ण ने भगवान बिष्णु की प्रतिमा स्थापित की और मराठा गुरु सियानाथ को देखभाल की जिम्मेदारी दिया।

नोट:- इस मंदिर का संबंध लरका आंदोलन और कोल विद्रोह से है।

पाथरोल काली मंदिर (Pathrol Kali Mandir)

यह मन्दिर देवघर जिला के कोरों प्रखंड के पाथरोल गांव में अवस्थित है। यहां स्थित काली मंदिर को पाथरोलेश्वरी देवी के नाम से जाना जाता है।इस मंदिर का निर्माण पाथरोल के राजा दिग्विजय सिंह ने 16वीं सदी में किया था। राजा दिग्गजय जब बाल्यावस्था में थे तब खौतोरिया नामक उसके रिश्तेदार ने उसके पिता की हत्या करके पाथरोल का राजा बन गया।जब दिग्विजय वयस्क हुआ तो उसने खौतोरिया का मारकर अपना राज्य वापस लिया। एक दिन स्वपन में उसके काली माता आई और कहा दक्षिणेश्वरी काली मंदिर के पास मेरी एक मूर्ति आधा जल और आधा स्थल में है उसे मंदिर में स्थापित करें।राजा दिग्विजय ने ऐसा ही किया।

भुवनेश्वरी मंदिर (Bhubneashwari Temple)

यह मंदिर जमशेदपुर में अवस्थित है। झारखंड के खूबसूरत मंदिरों में से यह एक है। इस मन्दिर को टेल्को मंदिर के नाम से भी जानते है क्योंकि यह टेल्को कॉलोनी में अवस्थित है। ये द्रविड़ वास्तुकला से बना हुआ मंदिर है। इसकी स्थापना 1978 ई में एक तमिल पुजारी रंगराजन द्वारा की गई है। पूरे भारतवर्ष में 3 माता भगवती का यज्ञपीठ बनाया गया है एक गुजरात एक तमिलनाडु और एक यह भुवनेश्वरी मंदिर। यह मंदिर 500 मीटर ऊंचा है जो झारखंड की सबसे ऊंची मंदिर है। This temple is one of the highest temples of Jharkhand

जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple)

यह मंदिर राँची जिला के हटिया क्षेत्र में जगन्नाथपुर में स्थित है। यह मंदिर कलिंग शैली में बना है।इसका निर्माण नागवंशी शासक रामशाह के कार्यकाल में उसके एक अधिकारी ऐनी शाह ने 1691 में कराया था। यह मंदिर पूरी के जगन्नाथ मंदिर जैसा बनाया गया है।

पूरी की तरह ही यहां 9 दिन का रथयात्रा मेला लगता है आषाढ़ महीने में।इस मंदिर का निर्माण एक पहाड़ी पर किया गया है कुछ दूर में एक दूसरी पहाड़ी है जिसे मासी बाड़ी(इनके मौसी का नाम गुडीचा देवी) कहा जाता है। सुभद्रा,बलराम और श्रीकृष्ण को 9 दिन यही पर रखा जाता ह रथयात्रा त्यौहार के दौरान।

जब नागवंशी राजा विश्वनाथ शाहदेव ने 1857 में अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी थी तब नगवंशीयो के 84 गांव को अंग्रेजो में अंग्रेजो ने कब्जा कर लिया था जिसमे मन्दिर का हिस्सा भी आता था।जब कोर्ट में केस किया गया तब मन्दिर वापस नगवंशियो के अधिकार में आया था।

राधावल्लभ मंदिर-(Radha Vallabh Temple)

यह मंदिर राँची रेलवे स्टेशन से बिलकुल सामने चुटिया नामक स्थान में अवस्थित है।इसका स्थापना नागवंशी राजा रघुनाथ शाहदेव ने 1685 ई में किया था। यह स्थान पहले रघुनाथ शाह का राजमहल हुआ करता था। चैतन्य महाप्रभु के दो भक्त गोरा और निताय कीर्तन करते करते चुटिया राजमहल में आया था। उन दोनो भक्तो ने वृंदावन की तरह राधावल्लभ मंदिर बनाने का सलाह दिया।

उनके कहने पर ही रघुनाथ शाह ने अपने महल में इस मंदिर का निर्माण कराया था।इस मंदिर के देखभाल के लिए रघुनाथ शाह ने कुछ गांव दान में भी दिए। बाद में जब मंदिर का निर्माण हो गया तब चैतन्य महाप्रभु भी यहां आए और पूजा अर्चना किए थे और कुछ दिन विश्राम भी किए थे। इस मंदिर में राम और श्रीकृष्ण दोनों की पूजा एक साथ होती है। लोग अभी इसे सीताराम मंदिर के नाम से जानते है मगर मंदिर के शिलालेख में राधावल्लभ नाम मिलता है। बाद में रघुनाथ शाह चुटिया को छोड़ कर रातू के किला में चले गए। मंदिर की जिम्मेवारी मराठा गुरु ब्रह्मचारी हरिनाथ दिया गया।

मदनमोहन मंदिर (Madanmohan Temple)

यह मंदिर रांची जिला में कांके के नजदीक बोडेया गांव में स्थित है।इसका निर्माण नागवंशी राजा रघुनाथ शाह ने 1665 ई में आरंभ किया था। इस मंदिर के निर्माण में 17 वर्ष लगे थे। यह मंदिर 1682 में बन कर तैयार हुआ था। इस मंदिर के शिल्पकार का नाम अनिरुद्ध था। यह राधाकृष्ण की मंदिर है। मंदिर में लगे शिलालेख के अनुसार इस मंदिर को बनाने में चौदह हजार का खर्च आया था। मन्दिर के गर्भ गृह में पुजारी के आलवे कोई प्रवेश नहीं करता है।

टूटी झरना मंदिर (Tuti Jharna Temple)

यह मंदिर रामगढ़ जिला में रामगढ़ कैंट में स्थित है।यह मंदिर अत्यंत रहस्यों से घिरा है।1925 में जब अंग्रेजों ने इस क्षेत्र में रेलवे लाइन बिछाने के लिए खुदाई करवाया था तब यह मंदिर मिला था। मंदिर के अंदर एक शिवलिंग मिला और बगल में सफेद गंगा माता की मूर्ति। गंगा माता के नाभी से जल निकल कर हथेलियों से होकर सीधे शिवलिंग पर गिरता है।

यहां जल का कोई श्रोत न होते हुए भी पानी का प्रवाह निरंतर होता है। इस पर ब्रिटिश काल से ही शोध होते रहे है मगर अब तक कोई कारण पता नही चला है। मन्दिर के पास के चापाकल में भी निरंतर खुद ब खुद पानी गिरता रहता है उसे चलाने की भी जरूरत नहीं। आश्चर्य की बात ये है की बगल से ही एक नदी गुजरती है वह पूरी तरह से दुखी रहती है जबकि नदी से बहुत ऊंचाई पर स्थित मंदिर में पानी का निरंतर प्रवाह होता है।

झारखंडी धाम मंदिर (Jharkhand Dham)

यह मंदिर गिरिडीह जिला के धनवार के निकट अवस्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह एक छतविहीन मंदिर है,यहां छत बनाने की बहुत कोशिश की गई मगर हर बार अनहोनी हो जाती है। यह मंदिर इरगा नदी के तट पर अवस्थित है। इस मंदिर के सहयोग से 1976 में संस्कृत हिंदी विद्यापीठ की स्थापना किया गया और यह शिक्षण संस्थान बिनोवा भावे विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त है। झारखंड महोत्सव इसी मंदिर के परिसर में मनाया जाता है।

हरिहरधाम मंदिर (Harihardham Temple)

यह मन्दिर गिरिडीह जिला के बगोदर में अवस्थित है। यह मंदिर विवाह के लिए प्रसिद्ध है। हर साल यह मंदिर अपने प्रांगण में हुए विवाह की रिकॉर्ड तोड़ता है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। भगवान शिव को यहां कुंदौरा महादेव के नाम से पुजा किया जाता है।यहां एक 65 फीट का शिवलिंग है और यही शिवलिंग एक मन्दिर है, इसी विशाल शिवलिंग के अंदर एक छोटा शिवलिंग है।

कर्णेश्वर धाम (Karneshvar Dham)

यह एक 28 मंदिर का समूह जो देवघर जिला के कौरों प्रखंड में अवस्थित है। इसमें एक मुख्य मंदिर है जिसे कर्णेश्वर महादेव नाम से पुजा जाता है। इसी के परिसर में और 27 महादेव मंदिर है। इसका निर्माण अंगराज कर्ण ने महाभारत काल में कराया था । महाभारत काल में ये क्षेत्र अंग राज्य के अंतर्गत आता था और यह क्षेत्र अंगरज कर्ण के अधीन था। और इस मंदिर के कारण ही इस जगह का नाम कौरों पड़ा।

पहाड़ी मंदिर (Pahadi Temple)

यह मन्दिर राँची शहर में रांची पहाड़ी मन्दिर में अवस्थित है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है की 15 अगस्त और 26 जनवरी को यहां विधिवत तिरंगा झंडा फहराया जाता है। यह मन्दिर आजादी से पहले अंग्रेजो के कब्जे में था यहां पर विद्रोहियों को फांसी दी जाती थी इसलिए इस पहाड़ का नाम फांसी टुंगरी पड़ गया। आजादी के बाद राँची में सबसे पहला तिरंगा स्वतंत्रता सेनानी कृष्ण चंद्र दास ने यही फहराया।

पहाड़ी मंदिर में एक पत्थर लगा हुआ हैं जिसपर 14-15 अगस्त के रात में आजादी का संदेश लिखा हुआ है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है जिसे पहाड़ी बाबा के नाम से पूजा जाता है। यहां पर झारखंड का सबसे ऊंचा झंडा स्थित है जिसकी ऊंचाई 293 फीट है जिसे तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने 23 जनवरी 2016 के फहराया।

Note:- इस पहाड़ी का पहले नाम टीरीबुरु था जो बाद में फांसी टुंगरी हुआ। फिर इसका नाम बदल कर राँची पहाड़ी कर दिया गया।

टांगीनाथ धाम (Tangi Nath Dham)

यह मंदिर गुमला जिला के मझगाँव पहाड़ में स्थित है। यह भगवान शिव को समर्पित है। भगवान शिव को टांगीनाथ नाम से पूजा किया जाता है। यह भगवान परशुराम की तपोभूमि है। भगवान परशुराम ने यहां भगवान शिव की आराधना की और अपना त्रिशूल (टांगी) यहां गाड़ दिया।यह टांगी आज भी यहां मौजूद है जो जमीन में गड़ी हुई है। आश्चर्य की बात ये है की इस त्रिशूल में कभी जंग नही लगती। स्थानीय आदिवासी ही यहां पुजारी है।

महादेवशाल मंदिर (Mahadevshal Temple)

यह मंदिर खरखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिला के चक्रधरपुर अनुमंडल में गोइलकेरा में अवस्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। 19वीं सदी में जब मुंबई -कलकत्ता का रेलवे लाइन बिछाया जा रहा था तब वहां खुदाई में एक शिवलिंग मिला इसे देखकर मजदूरों ने काम रोक दिया जिससे वहां के इंजीनियर रॉबर्ट हेनरी नाराज हो गए।

रॉबर्ट हेनरी ने फावड़ा लेकर शिवलिंग को दो टुकड़ों में तोड़ दिया। शाम तक वह इंजीनियर तड़प तड़प के मार गया। आगे अंग्रेज अधिकारियों को रेलवे लाइन का रास्ता बदलना पड़ा। जिस गांव बड़ौला में ये घटना हुई वही पर शिवजी का मंदिर बनाया गया जिसे महादेवशाल धाम मंदिर बनाया गया।इस मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग का एक टुकड़ा स्थापित किया गया और दूसरे टुकड़े को पास के ही रतनपूर पहाड़ी में स्थापित किया गया।

सती मठ ( (Temples Of Jharkhand)

यह गुमला जिला के पालकोट में अवस्थित है। इसका निर्माण एक नागवंशी रानी ने करवाया था। इस स्थान पर सती स्थल मेला लगता है। प्राचीन काल में प्रचलित सती प्रथा के कारण जब कोई महिला सती होती थी तब उस स्थान पे सती स्मारक बनाई जाती थी।

Note:- झारखंड में कई स्थलों में सती स्थल का पता चला है जो निम्न है:-

a). पलामू जिला के पाटन प्रखंड के सोले गाँव मे एक सती स्मारक है।

b).बोकारो जिला के चास प्रखंड के बीसा और पैलाडीह गाँव मे भी सती स्थल है।

c). चतरा जिला के इटखोरी स्थित क़ानूनिया माता मंदिर से सती स्थल की प्राप्ति हुई है।

d). हज़ारीबाग के विष्णुगढ़ प्रखंड के झरिया गाँव मे एक सती स्तंभ है।

Temples of Jharkhand (महादानी मंदिर)

यह मंदिर राँची जिला के बेड़ो में अवस्थित है। इस मंदिर का निर्माण पालवंश के दौरान चट्टानों को जोड़कर किया गया है। यह भगवान शिव का मंदिर द्रविड़ और बेसरमिश्रीत वास्तुकला से बनी है। इस मंदिर के निर्माण में लाल रंग के पत्थर का निर्माण किया गया है। भगवान शिव के ऊपर किया गया जलाभिषेक का जल पास में स्थित ढुकु तालाब में एकत्रित होता है।

नगाड़ा मंदिर (Nagada Temple)

यह ऐतिहासिक मन्दिर पश्चिम सिंहभूम में सारंडा जंगल में अवस्थित है। यह छोटानगरा गांव में स्थित है। यहां एक शिव मन्दिर में नगाड़ा रखा हुआ है कि जिसके बारे में मान्यता है कि यह इंसानों के खाल से बनाया गया है, जिसे क्योंझर के राजा ने बनवाया था। गांव में विपत्ति के समय यह नगाड़ा अपने आप बजने लगता है। भगवान शंकर घोड़े से अब भी इस क्षेत्र में भ्रमण करते हैं।

Temples of Jharkhand Video (ये भी देखें) Part-1

https://youtu.be/Vs1GlAjIZMQ

Temples of Jharkhand Video (ये भी देखें) Part-2

https://youtu.be/S85YRJJC2Fs

Temples of Jharkhand Video (ये भी देखें) Part-3

https://youtu.be/G3qtjbwGUE0

Temples of Jharkhand Video (ये भी देखें) Part-4

https://youtu.be/Vs1GlAjIZMQ

Temples of Jharkhand Video (ये भी देखें) Objective

https://youtu.be/K1WVYi0uUcE

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