सखाराम गणेश देउस्कर
इस महापुरुष का जन्म झारखंड में देवघर जिला के करों प्रखण्ड में 17 दिसंबर 1869 में हुआ था। ये एक मराठी ब्राह्मण थे। जब 18 वीं सदी में मराठों का राज्य विस्तार (बंगाल के नवाब अलीवर्दी खान के शासनकाल में 1740-65) झारखंड में हुआ था। तब इनके पूर्वज झारखंड के करों ग्राम में आकर बस गए थे। मूल रूप से इनके पूर्वज महाराष्ट्र के रत्नागिरी के देउस नामक गांव के रहने वाले थे। इसका सरनेम देउस्कर दो गांवो देउस और कौरों के संगम से बना है। पांच वर्ष के उम्र में माताजी के देहांत होने के बाद इसका पालन पोषण इनके बुआ विद्यानुरागिनी ने किया था। अंग्रेजी के साथ साथ मराठी और बांग्ला भाषा में इन्होंने निपुणता हासिल की। बाल गंगाधर तिलक से ये प्रभावित थे, और उसे ही अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। महान क्रान्तिकारी भूपेंद्र नाथ दत्त ने Sakharam Ganesh Deuskar को अपना राजनीतिक गुरु बनाया था।
1891 में Sakharam Ganesh Deuskar ने देवघर के आर मित्रा हाई स्कूल से मैट्रिक पास करते है और 1893 में उसी स्कूल में शिक्षक नियुक्त होते है।
इसी स्कूल में अध्यापन के दौरान ही उसकी मुलाकात स्वतंत्रता सेनानी राजनारायण बासु (अरविंदो घोष और वरिंद्रो घोष के नानाजी) से होता है। इन क्रांतिकारियों की उपस्थिति के कारण ही आर मित्रा स्कूल में राष्ट्रवाद का प्रचार हुआ था। राष्ट्रीय आंदोलन में आर मित्रा स्कूल ने बढ-चढ़ कर हिस्सा लिया था। इसी स्कूल के हेडमास्टर शांति कुमार बक्शी क्रांतिकारियों को ट्रेनिंग और सहयोग देता था।
साथ ही बंगाल से निकलने वाले बंगला भाषा से प्रकाशित दैनिक पत्रिका “हितवादी” पत्रिका के उपसंपादक थे। इस पत्रिका में वो अंग्रेजो के शोषण और अत्याचार के खिलाफ क्रांतिकारी लेख छापते थे। तत्कालीन देवघर के मजिस्ट्रेट हार्ड के अत्याचार खिलाफ बहुत से लेख उसने हितवादी में छापने के कारण मजिस्ट्रेट हार्ड उसके पीछे पड़ गया। 1894 में देउस्कर ने शिक्षक पद से त्यागपत्र दे दिया और वो कलकत्ता जाकर हितवादी अखबार में पूर्णरूपेण काम करने लगे कुछ समय पश्चात वो हितवादी पत्रिका के संपादक बन गए। 1907 में कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में जब कांग्रेस नरम दल और गरम दल दो भागो में बंट गया तब हितवादी के मालिक ने उसे बाल गंगाधर तिलक और गरम दल के खिलाफ छापने को कहा तो इसने मना कर दिया और हितवादी के संपादक पद से त्यागपत्र दे दिया।
हितवादी से त्यागपत्र देने के बाद वो कलकत्ता राष्ट्रीय शिक्षा परिषद के स्कूल में इतिहास और बंगला विषय के शिक्षक हुए। राष्ट्रीय शिक्षा परिषद के प्रबंधक गण उसके क्रांतिकारी विचार से उसे सशंकित नजर से देखने लगे फलस्वरूप उसे वहां से भी 1910 में त्यागपत्र देना पड़ा। फिर उसे पुनः हितवादी पत्रिका का संपादक बनने का निमंत्रण आया जिसे उसने स्वीकार कर लिया।
सखाराम गणेश देउस्कर की रचनाएँ
Sakharam Ganesh Deuskar एक राष्ट्रवादी पत्रकार के साथ साथ बहुत ही उच्च कोटि के लेखक थे। उसके द्वारा पुस्तको की सूची निम्नलिखित है।
1. महामती रानाडे (1901)
2. झांसीर राजकुमार (1901)
3.बाजीराव (1902)
4. आनंदी बाई (1903)
5. शिवाजीर महत्व (1903)
6. शिवाजीर शिक्षा (1904)
7. देशेर कोथा (1904)
8. कृषकेर सर्वनाश (1904)
9. शिवाजी (1906)
10. देशेर कोथा -परिशिष्ट (1907)
11. तिलकेर मुकदमा (1908)
इन पुस्तको के आलावा देउस्कर ने हिंदी,बंगाली और मराठी में बहुत सारे ग्रंथो की रचना की है।
देशेर कोथा (1904)
देउस्कर की यह पुस्तक सबसे ज्यादा चर्चा में आया। इसे बंगला भाषा में 1904 में लिखा गया था। इसमें ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बहुत ही सटीक और कठोर शब्दों को लिखा गया था। ब्रिटिश सरकार द्वारा अत्याचार शोषण का वर्णन किया गया था। यह पुस्तक के पांच संस्करण से ही तेरह हजार प्रतियां बिक जाने के बाद अंग्रेजो की हालत खराब हो गई और 1910 में इसमें प्रतिबंध लगा दिया। इस पुस्तक का हिंदी में अनुवाद “देश की बात” के नाम से बाबूराव विष्णु पराड़कर ने 1908 में किया जो मुंबई से प्रकाशित हुई। बाद में यह कलकत्ता से 1910 में प्रकाशित हुआ।
देउस्कर से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
1. अरबिंदो घोष ने कहा था “स्वराज” शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग देउस्कर ने किया था।
2.इसकी मृत्यु 23 नवंबर 1912 में 43 वर्ष की उम्र में कौरोग्राम में ही हुआ था।
3. देउस्कर “युगांतर” नमक क्रांतिकारी पत्रिका में भी नियमित लेख छापते थे।
4. देउस्कर ने कलकत्ता में “बुद्धिवर्धिनी सभा” का गठन किया।
5. बंग -भंग आंदोलन में भी इसकी भागीदारी थी।
6. देउस्कर के पुस्तक”तिलकेर मुकदमा” जो बंगला में छपा था उस पर भी अल्पकालिक पाबंदी लगी थी।
7. देउस्कर की रचना देशेर कोथा ने बंग-भंग आंदोलन को बहुत प्रभावित किया।
8. इसके निवास स्थान को अभी सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय बना दिया गया है।
Sakharam Ganesh Deuskar
This great man was born on 17 December 1869 in Karon block of Deoghar district in Jharkhand. He was a Marathi Brahmin. When the state expansion of Marathas took place in Jharkhand in the 18th century (during the reign of Nawab Alivardi Khan of Bengal 1740-65). Then his ancestors came and settled in Karon village of Jharkhand. Originally his ancestors were residents of a village named Deus in Ratnagiri, Maharashtra. Its surname Deuskar is formed from the confluence of two villages Deus and Koran. After his mother’s death when he was five years old, he was brought up by his aunt Vidyanuragini. Along with English, he gained proficiency in Marathi and Bengali languages. He was influenced by Bal Gangadhar Tilak, and considered him as his political guru. The great revolutionary Bhupendra Nath Dutt had made Sakharam Ganesh Deuskar his political guru.
Deuskar’s education –In 1891, Sakharam Ganesh Deuskar passed matriculation from R Mitra High School, Deoghar and in 1893 was appointed a teacher in the same school.
While teaching in this school, he meets freedom fighter Rajnarayan Basu (grandfather of Aurobindo Ghosh and Varindro Ghosh). It was due to the presence of these revolutionaries that the nation was born in R Mitra School. R Mitra School had actively participated in the national movement. The headmaster of this school, Shanti Kumar Bakshi, used to provide training and support to the revolutionaries.
He was also the sub-editor of the daily magazine “Hitwadi” published in Bengali language from Bengal. In this magazine he used to publish revolutionary articles against the exploitation and atrocities of the British. Magistrate Hard went after him because he published many articles in Hitavadi against the atrocities of the then Deoghar Magistrate Hard. In 1894, Deuskar resigned from the post of teacher and went to Calcutta and started working full-time in the Hitawadi newspaper. After some time, he became the editor of the Hitawadi magazine. In the Surat session of the Congress in 1907, when the Congress got divided into two parts, the moderate party and the extremist party, then the owner of Hitawadi asked it to print it against Bal Gangadhar Tilak and the extremist party, So he refused and resigned from the post of editor of Hitawadi.
After resigning from Hitawadi, he became a teacher of history and Bengali subjects in the school of Calcutta National Education Council. The managers of the National Education Council started looking at him with suspicion due to his revolutionary ideas, as a result he had to resign from there too in 1910. Then he was again invited to become the editor of Hitawadi magazine.
Books Of Deuskar
Sakharam Ganesh Deuskar was a nationalist journalist as well as a writer of very high quality. Following is the list of books by him:-
1. Mahamati Ranade (1901)
2. Jhansir Rajkumar (1901)
3. Bajirao (1902)
4. Anandi Bai (1903)
5. Shivajir Mahatva (1903)
6. Shivajir Siksha (1904)
7. Desher Kotha (1904)
8. Krishaker Sarvanash (1904)
9. Shivaji (1906)
10. Desher Kotha -Appendix (1907)
11. Tilker Mukadama (1908)
Apart from these books, Deuskar has written many books in Hindi, Bengali and Marathi.
Desher Kotha (1904) – This book of Deuskar became the most discussed. It was written in Bengali language in 1904. Very precise and harsh words were written in it against the British rule. Atrocious exploitation by the British government was described. After thirteen thousand copies of this book were sold in just five editions, the condition of the British deteriorated and it was banned in 1910. This book was translated into Hindi by the name of “Desh Ki Baat” by Baburao Vishnu Paradkar in 1908, which was published from Mumbai. Later it was published from Calcutta in 1910.
Important Facts
1. Aurobindo Ghosh had said that the word “Swaraj” was first used by Deuskar.
2.He died on 23 November 1912 in Kourogram at the age of 43.
3. Deuskar also used to publish regular articles in “Yugantar” Namak Krantikari magazine.
4. Deuskar formed “Buddhivardhini Sabha” in Calcutta.
5. It also had participation in the partition movement.
6. Deuskar’s book “Tilker Sude”, which was published in Bengali, was also banned for a short period.
7. Deuskar’s composition Desher Kotha greatly influenced the Banga-Bhang movement.
8. Its residence has now been converted into Saraswati Shishu Mandir Vidyalaya.
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