Extrimist Movement In Jharkhand
झारखंड में क्रांतिकारी आंदोलन
परिचय
1905 बंगाल विभाजन के दौरान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नई विचारधारा का जन्म हुआ जिसे क्रांतिकारी या गरमपंथी विचारधारा कहा गया। 1905-17 के समयांतराल को क्रांतिकारी आंदोलन का प्रथम दौर कहा जाता है। और 1926-34 के समयांतराल क्रांतिकारी आंदोलन का दूसरा दौर कहा जाता है। भारतीय राजनीति में क्रांतिकारी आंदोलन का विकास दो रूप में हुआ:- पहला, काँग्रेस के अंदर क्रांतिकारी विचारधारा का उदय। दूसरा, स्वतंत्र क्रांतिकारी दल का उदय। झारखंड में दूसरे तरह के विचारधारा का विकास ज्यादा हुआ।
संताल परगना क्षेत्र में क्रांतिकारी आंदोलन
यहाँ क्रांतिकारी विचारधारा के दोनों रूपों का विकास हुआ। यहाँ काँग्रेस के अंदर रहकर काम करने वाले क्रांतिकारी और काँग्रेस के बाहर रहकर गुप्त संस्था, समितियों से जुड़कर काम करनेवाले क्रांतिकारी दोनो सक्रिय रहे। देवघर, करमाटांड़, जसीडीह मधुपुर आदि जगहों पर बंगाल के कई क्रांतिकारियों ने अपनी कोठी बना रखी थी या किराए में ले रखे थे। ये इन कोठियों में क्रांतिकारियों को छुपाने तथा क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए उपयोग में लाते थे।
रोहिणी गाँव (देवघर) मे राजनारायण बोस, जो अरबिंदो घोष और वरिन्द्रों घोष के नाना थे, ने किराए का मकान ले रखे थे। वरिन्द्रों घोष का बचपन यही पर बिता था। अलीपुर षड्यंत्र केस के दौरान जब अरबिंदो घोष की गिरफ्तारी हुई थी तब रोहिणी स्थित इस निवास स्थान पे छापेमारी की गई थी जहाँ हथियार और गोला-बारूद मिले थे। जिसे जमीन के नीचे दबाकर तथा कुँवा के अंदर रखा गया था। अलीपुर षड्यंत्र केस का एक गवाह रोहिणी गाँव से था।
झारखंड में क्रांतिकारी पत्रकारिता के जन्मदाता सखाराम गणेश देउस्कर करोंग्राम के निवासी थे। महान क्रांतिकारी भूपेंद्र दत्त इन्हें अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।
रोड्डा आर्म्स केस
26 अगस्त 1914 में कलकत्ता स्थित एक बंदूक बनाने वाली कंपनी रोड्डा आर्म्स कंपनी की एक़ दुकान से माउजर पिस्टलों की चोरी हो गई थी। इसे रोड्डा आर्म्स केस कहा जाता है। इस केस के दो अभियुक्त बैद्यनाथ विश्वास और प्रभुदयाल मारवाड़ी की गिरफ्तारी दुमका से हुई थी।
Note:- प्रभुदयाल मारवाड़ी को स्थानीय लोग हिम्मत सिंह नाम से बुलाते थे।
Golden League
1904 ई में संताल परगना के देवघर में एक क्रांतिकारी संस्था “गोल्डेन लीग” की स्थापना की गई थी। इस संस्था ने स्वेदशी आंदोलन (बंगाल विभाजन) के दौरान बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग को लेकर आंदोलन चलाया। अरबिंदो घोष के भाई वरिन्द्रों घोष इस संस्था से सक्रिय रूप से जुड़े थे।
देवघर षड्यंत्र केस
20 October, 1927 में देवघर स्थित एक छात्रावास में छापा मारा गया। इस छापे में अवैध हथियार एवं क्रांतिकारी साहित्य बरामद किए। तीन क्रांतिकारी विद्यार्थी वीरेंद्रनाथ भट्टाचार्य और उनके छोटे भाई सुरेंद्रनाथ भट्टाचार्य एवं तेजेश चंद्र घोष गिरफ्तार किए गए। इनपर केस चलाया गया और सजा दी गई। इस केस को देवघर षड्यंत्र केस कहा जाता है।
शीलेर बाड़ी ( सिल्स लॉज)
ये देवघर स्थित एक आवास स्थल है। जहाँ बंगाल के क्रांतिकारी छुपने के लिए उपयोग करते थे। 1908 में हुए अलीपुर बम कांड के आरोपी क्रांतिकारीयों ने भी इसे छुपने के लिए उपयोग में लाया था। यहाँ वो बम बनाते थे और इसके आसपास के क्षेत्रों में परीक्षण करते थे।
R Mitra High School
यह स्कूल क्रांतिकारी आंदोलन के दौरान काफी सक्रिय रहा। कई क्रांतिकारी नेता ने यहाँ शिक्षक के रुप मे सेवा दी और क्रांतिकारी आंदोलन में विद्यार्थियों को सक्रिय रखा। राज नारायण बासु (अरिबिन्दो घोष के नाना), सखाराम गणेश देउस्कर तथा शांति कुमार बक्शी जैसे नेताओं ने यहाँ शिक्षक की भूमिका निभाई। प्रधानाचार्य शांति कुमार बक्शी यहाँ विद्यार्थियों को क्रांतिकारी एवं राष्ट्रवादी प्रशिक्षण देते थे।
बी बी मित्रा, एम एन बोस, सुकुमार मित्रा भी देवघर से क्रांतिकारी नेता थे।
दुमका के पूंजीपति हेमचंद्र नाथ घोष क्रांतिकारियों को धन मुहैया करवाते थे।
राँची क्षेत्र में क्रांतिकारी आंदोलन
राँची में क्रांतिकारी आंदोलन का नेतृत्व गणेश चंद्र घोष ने किया था। क्रांतिकारी डॉ यददूगोपाल मुखर्जी ने जेल से छूटने के बाद राँची को अपना कर्मस्थली बनाया। क्रांतिकारी आंदोलन के दूसरे चरण को छोटानागपुर में डॉ यददूगोपाल मुखर्जी और बसावन सिंह ने फैलाया।
बेलूर मठ के क्रांतिकारी नेता सचिन्द्र कुमार सेन डोरंडा में कुछ दिन के लिए निवास किया था। पी एन बोस भी राँची से क्रांतिकारी आंदोलन में सक्रिय रहे।
सिंहभूम क्षेत्र में क्रांतिकारी आंदोलन
बंगाल के क्रांतिकारियों द्वारा जमशेदपुर, चाईबासा का प्रयोग छुपने के लिए करते थे। ढाका, मैमनसिंह, कलकत्ता के कई क्रांतिकारीयों ने सिंहभूम में शरण लिया था। और यही से गुप्त तरीके से क्रांतिकारी आंदोलन को जारी रखा। इन क्रांतिकारियों में दुर्गादास बनर्जी, सत्य रंजन, मोहिनी मोहन राय थे। ढाका निवासी सुरेंद्र कुमार राय ने भी टाटा कंपनी में नोकरी कर रखी थी।
ये लोग सिर्फ नाम के लिए टाटा कंपनी से जुड़े थे ये मुख्य रूप से क्रांतिकारी थे।इस दौरान टाटा कंपनी को सरकार ने चेतावनी भी दी की वो जाँच पड़ताल कर कर्मचारियों का चयन करें। अलीपुर जेल से रिहा हुए सुधांशु भूषण बनर्जी ने भी सिंहभूम के सोनुआ गाँव मे अपना ठिकाना बनाया और क्रांतिकारी गतिविधियों में लिप्त रहे हालाँकि बाद में वो हज़ारीबाग चले गए।
गिरीन्द्रनाथ मुखर्जी – कलकत्ता निवासी गिरीन्द्रनाथ मुखर्जी ने अपने भाई अमरनाथ मुखर्जी, जो टाटा कंपनी में कार्यरत थे, से मिलकर सिंहभूम के नवयुवकों में क्रांतिकारी आंदोलन का सूत्रपात किया। गिरीन्द्रनाथ मुखर्जी ने 1902 में अमेरिका और जापान की यात्रा की और वहाँ से क्रांतिकारी साहित्य भारत भेजा। 1908 में उन्होंने न्यूयॉर्क से घोषणा की- “रक्तरंजित क्रांति से ही भारत को मुक्त किया जा सकता है”।
आनंद कमल चक्रवर्ती- यह एक क्रांतिकारी पत्रकार थे। जिन्होंने क्रांतिकारी आंदोलन के दौरान “तरुण शक्ति” नामक क्रांतिकारी पत्रिका का संपादन किया। यह पत्रिका चाईबासा से प्रकाशित होती थी। इस कारण इन्हें जेल जाना पड़ा।
हज़ारीबाग क्षेत्र में क्रांतिकारी आंदोलन
राम विनोद सिंह – ये संत कोलंबस कॉलेज, हज़ारीबाग के विद्यार्थी थे जिन्होंने कॉलेज के विद्यार्थियों के साथ मिलकर हज़ारीबाग में क्रांतिकारी आंदोलन की शुरुआत की। 14 नवम्बर 1918 को इसे गिरफ्तार कर लिया गया। इनके गिरफ्तारी के विरोध में हज़ारीबाग के छात्रों ने जुलूस निकाली। राम विनोद सिंह को “हज़ारीबाग का जतिन बाघा” कहा जाता है।
मनोरंजन गुहा – यह गिरीडीह के क्रांतिकारी थे। ये कई अभ्रक खान के मालिक थे। ये क्रांतिकारियों को धन मुहैया कराता था।
निर्मल चंद्र बनर्जी – इन्होंने जनवरी 1913 में गिरीडीह में खंभे में चढ़कर “आमार स्वाधीन भारत” शीर्षक से छपे पर्चे को चिपकाया। यह पर्चा चौबीस परगना से क्रिस्टो राय ने गिरीडीह लाया था।
पलामू क्षेत्र में क्रांतिकारी आंदोलन
गया षड्यंत्र केस – गया में 1933 में हुई राजनीतिक डकैती के ऊपर 18 क्रांतिकारियों पर मुकदमा चलाई गई थी। जिनमे दो क्रांतिकारी परमनाथ मुखर्जी एवं गणेश प्रसाद वर्मा मेदिनीनगर के थे।
झारखंड में क्रांतिकारी आंदोलन