मालवा के परमार वंश वंश | Parmar Dynasty Of Malwa

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मालवा के परमार वंश वंश

Parmar Dynasty परमार वंश

Parmar Dynasty

संस्थापक- उपेंद्र कृष्णराज। उपेंद्र कृष्णराज स्वतंत्र राजा नहीं थे बल्कि यह राष्ट्रकूट राजा ध्रुव और गोविंद तृतीय के सामंत थे। (Parmar Dynasty परमार वंश )

Note:- इस वंश को पवार/पंवार वंश भी कहा जाता है

कालावधि – 10 वीं शताब्दी के आरंभ से 1305 ई तक

राजधानी – प्रारंभिक राजधानी उज्जैन बाद में धार बनी

भाषा – संस्कृत। धर्म – शैव

अंत – 1305 ई में मालवा को अलाउद्दीन खिलजी ने अपने राज्य में मिला लिया।

जानकारी के स्रोत

🌹 प्रबंध चिंतामणि मेरुतुंग द्वारा रचित संस्कृत में।

🌹 नवसाहसंकचरित पद्म गुप्त द्वारा रचित संस्कृत में।

🌹 भोज प्रबंध बल्लाल मिश्र द्वारा रचित संस्कृत में

🌹 तिलक मंजरी धनपाल द्वारा रचित संस्कृत में

🌹 अलबरूनी और फरिश्ता के लेख

नोट – अलबरूनी का वास्तविक नाम अबू रेहान था जो मोहम्मद गजनवी के साथ भारत आया था। इसके द्वारा रचित पुस्तक तहकीक ए हिंद द्वारा भारत के इतिहास की जानकारी मिलती है।

🌹उदयपुर प्रशस्ति

🌹 अहमदाबाद अभिलेख

🌹उज्जैन अभिलेख

🌹 सियक द्वितीय का ताम्रपत्र लेख (गुजरात के हरसोल से)

सियक द्वितीय

प्रथम स्वतंत्र एवं शक्तिशाली राजा – सियक द्वितीय/श्रीहर्ष/सिंहदत्त भट्ट। ये राष्ट्रकूट शासक कृष्ण तृतीय के सामंत थे। इसके समय में प्रतिहारों के पतनीकरण का फायदा उठाकर स्वतंत्र परमार राज्य की स्थापना की। सियक द्वितीय ने राष्ट्रकुटो की राजधानी मान्यखेत (शोलापुर) पर अधिकार कर अपनी स्थिति राष्ट्रकुटों से भी मजबूत कर ली। सियक द्वितीय के दो पुत्र थे वाक्कपती मूंज और सिंधुराज। वाक्कपती मूंज दत्तक पुत्र था जो इसे मूंज घास में पड़े हुए मिले थे।

वाक्कपति मूंज

🌹 उदयपुर अभिलेख के अनुसार त्रिपुरी (जबलपुर ) के कलचूरि राजा युवराज द्वितीय को परास्त किया। चालुक्य राजा तैलप द्वितीय के बार-बार आक्रमण के कारण में कल्चुरी से संधि की जिससे तैलप द्वीतीय से युद्ध में कल्चरियो ने मूंज की मदद की।

🌹 प्रबंध चिंतामणि के अनुसार चालुक्य नरेश तैलप द्वितीय को 6 बार पराजित किया। 7 वीं बार में तैलप द्वितीय जीतता है और मुंज को बंदी बनाकर मार डालता है।

🌹 इन्होंने कृत्रिम झील मूंज सागर (धार में) का निर्माण कराया।

🌹 ये कला और संस्कृति के महान संरक्षक थे। नवसाहसांक चरित के लेखक पदमगुप्त, द्शरूपक के रचयिता धनंजय, कालनिर्णय एवं दशरुपावलोक के रचयिता धनिक, हलायुध, शोभन एवं अमितगति जैसे विद्वान इसके दरबार में रहते थे।

🌹 उज्जैन अभिलेख के अनुसार इसे हूणों का पूर्ण दमन करने का श्रेय दिया जाता है।

🌹 मूंज ने अमोघवर्ष, श्री वल्लभ उत्पल राज की उपाधि धारण किया था।

सिंधुराज

ये मूंज के छोटे भाई थे। पद्मदास मूंज और सिधुराज के दरबार के राजकवि थे। इसने चालुक्य नरेश सत्याश्रय को पराजित किया और अपने खोए हुए राज्य को वापस लिया। सिंधूराज के बेटे राजा भोज हुए।

राजा भोज

ये परमार वंश के सबसे प्रतापी और शक्तिशाली राजा थे। भारत के सबसे विद्वान नरेशों में एक थे। इन के शासनकाल में 23 ग्रंथों की रचना हुई थी।

🌹इसने कविराज, परम भट्ठारक, परमेश्वर, नव विक्रमादित्य, लोकनारायण, अवंती नायक, मालवाधीश, की उपाधि धारण की। इसने निम्न ग्रंथों की रचना की:-

a) आयुर्वेद सर्वस्व (चिकित्सा शास्त्र)

b) समरांगन सूत्रधार (स्थापत्य शास्त्र)

c) राजमार्तण्ड

d) विद्या विनोद

e) सरस्वती कंठाभरण

f) कुर्मशतक

g) श्रृंगार मंजरी

h) सिद्धांत संग्रह

i) चारूचर्चा

j) सिद्धांत प्रकाश

🌹 राजा भोज का शासनकाल 1010 से 1055 तक माना जाता है।

🌹 इन्होन भोजपुर शहर ( रायसेन, मध्य प्रदेश) और भोजसर या भोजताल तालाब (भोपाल) का निर्माण कराया। इसी से इस जगह का नाम भोपाल पड़ा। भोजपुर में इन्होंने भोजेश्वर शिव मंदिर का स्थापना किया था। भोजपुर शहर से गुजरने वाली बेतवा नदी पर इन्होंने विशाल बांध की स्थापना की थी। इस बांध को Cyclopean Dam भी कहा जाता है। बाद हुशंगशाह गोरी ने इस बांध को तुड़वा दिया था। राजा भोज ने भोपाल शहर की स्थापना की थी।

Note:- बेतवा नदी रायसेन से ही निकलती है।

🌹 इन्होंने राजधानी उज्जैन से धार में परिवर्तित की। धार में एक सरस्वती मंदिर का निर्माण कराया, यही वाग्देवी की प्रतिमा की स्थापना की। इस मंदिर के परिसर में संस्कृत कंठाभरण या भोजशाला संस्कृत विद्यालय भी खोला। राजा भोज के शासनकाल में धारा नगरी विद्या व विद्वानों का प्रमुख केंद्र थी।

Note:- यही वाग्देवी (सरस्वती) की प्रतिमा ज्ञानपीठ पुरस्कार के प्रतीक के रूप में दिया जाता है। वाग्देवी की मूर्ति अभी लंदन के म्यूजियम में है।

🌹 इन्होन चित्तौड़गढ़ में त्रिभुवन नारायण मंदिर का निर्माण करवाया। इस मंदिर का अन्य नाम सम सिद्धेश्वर मंदिर है। यहां भगवान शिव समाधि के मुद्रा में बैठे हुए हैं। इन्होंने केदारनाथ मंदिर और महाकाल मंदिर का मरम्मत भी करवाया था।

🌹 समकालीन कल्याण के चालुक्य और अंहिलवाड़ के चालुक्य को परास्त किया था।

🌹 ये चंदेल शासक विद्याधर द्वारा पराजित हुए।

🌹 चालुक्य राजा जयसिंह द्वितीय से युद्ध के लिए राजा भोज ने चोल शासक राजेंद्र चोल और कलचुरी शासक गांगेय देव देव के साथ एक संघ बनाया था। इस युद्ध में जयसिंह द्वितीय पराजित हुआ। बाद में राजा भोज और गांगेय देव के बीच में मतभेद हो गया और दोनों के बीच में युद्ध हुआ जिसमें राजा भोज ने गंगई देव को परास्त किया।

🌹 मोहम्मद गजनवी के आक्रमण के दौरान कश्मीर के हिंदूशाही राजा आनंदपाल के मदद के लिए राजा भोज ने अपनी सेना भेजी थी। जब मोहम्मद गजनी ने 1025 ईस्वी में सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया था उस समय वह चाहता था कि मालवा पर भी आक्रमण करें मगर उस समय राजा भोज इतनी मजबूत थे कि उसे वापस जाना पड़ा।

Note:- जब अल्पतगीन और सुबुक्तगीन का आक्रमण हुआ था उस समय राजा धंगदेव ने अपनी सेना भेजी

🌹जब राजा भोज बूढ़े हो गए थे उस समय चालुक्य नरेश सोमेश्वर, गुजरात के सोलंकी नरेश भीम -1 और कल्चुरी नरेश लक्ष्मीकर्ण के संंघ के साथ युद्ध करते हुए परास्त हुए तथा शोकाकुल से मृत्यु हो गई। उसके मृत्यु से संबंधित महत्वपूर्ण कहावत है – “अध्य धारा निराधारा निरालंबा सरस्वती”। इसका मतलब विद्या और विद्वान दोनों निराश्रित हो गए।

🌹 इनके दरबारी कवि धनपाल थे जिसने तिलकमंजरी की रचना की। इसने जैन धर्म को अपना लिया था।

🌹 राजा भोज शैव धर्म के अनुयायी थे कुछ इतिहासकार इसे जैन धर्म से भी संबंधित मानते हैं।

🌹 अकबर ने इसे कंठावरण वाणीविलास की उपाधि दी थी।

🌹 इन के दरबार में भास्कर भट्ट, दामोदर मिश्र नामक विद्वान रहते थे। अकबरनामा/आईने अकबरी के अनुसार राजा भोज के दरबार में 509 विद्वान रहते थे।

Parmar Dynasty परमार वंश

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