Non-Cooperation Movement in Jharkhand

असहयोग आंदोलन में झारखंड | Non-Cooperation Movement Of Jharkhand

Freedom Struggle In JharkhandJharkhand GK

झारखंड में असहयोग आंदोलन

Non-Cooperation Movement In Jharkhand

कलकत्ता अधिवेशन

सितंबर 1920 में कलकत्ता में काँग्रेस का विशेष अधिवेशन हुआ जहाँ असहयोग प्रस्ताव पारित किया गया। इस अधिवेशन की अध्यक्षता लाला लाजपत राय ने की थी। इस प्रस्ताव की पुष्टि 1920 के नागपुर के वार्षिक अधिवेशन में हुआ। कलकत्ता अधिवेशन में झारखंड के कई प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इन प्रतिनिधियों ने गाँधीजी से निवेदन किया कि वो छोटानागपुर को आजाद घोषित करें। इस पर गाँधी जी ने कहा था- कपास बोओ, चरखा चलाओ, छोटानागपुर आजाद हो जाएगा।

कलकत्ता के विशेष अधिवेशन में भाग लेने गए पलामू के धनी सिंह खरवार पर असहयोग आंदोलन का बहुत प्रभाव पड़ा। कलकत्ता से वापस आते ही पलामू किला के अंदर आदिवासियों की एक सभा की। जिसमे निर्णय लिया गया कि जंगल को काट कर कपास की खेती की जाएगी। सभा के दूसरे दिन हजारों पेड़ काट डाले और कपास के लिए खेत बनाये गए। धनी सिंह खरवार को “पलामू का राजा” घोषित किया गया। धनी सिंह खरवार के नेतृत्व में आदिवासियों का एक जुलूस डाल्टेनगंज पहुँचा। इस जुलूस पर लाठी चार्ज की गई तथा भीड़ में घोड़ा दौड़ाकर भीड़ को छितर-बितर कर दिया गया।

नागपुर अधिवेशन

26 दिसंबर से 31 दिसंबर तक कोंग्रेस का वार्षिक अधिवेशन नागपुर में चला जिसकी अध्यक्षता विजय राघवाचारी ने किया। इस अधिवेशन में कलकत्ता के विशेष अधिवेशन में पारित असहयोग प्रस्ताव का सर्वसम्मति से समर्थन किया। असहयोग आंदोलन के तहत दो तरह के कार्यक्रम तय किये गए- सकारात्मक और नकारात्मक। सकारात्मक कार्यक्रम में राष्ट्रीय विद्यालय, राष्ट्रीय पंचायत, खादी आश्रम की स्थापना का लक्ष्य रखा गया। वहीं नकरात्मक कार्यक्रम के अंतर्गत टैक्स न चुकाना, अंग्रेजी शिक्षा का बहिष्कार, न्यायालयों का बहिष्कार मद्य निषेध का प्रचार, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार आदि तय किया गया।

बिहार स्टूडेंट काँग्रेस

असहयोग आंदोलन के दौरान झारखंड में बिहार स्टूडेंट कांफ्रेंस (बिहारी छात्र सम्मेलन) के दो अधिवेशन हुए।:-

1) 15वाँ अधिवेशन

यह 10 October 1920 को डाल्टेनगंज में हुआ। इसकी अध्यक्षता सी एफ एन्ड्रूज ने किया। इस अधिवेशन में अंग्रेजो के साथ असहयोग करने का प्रस्ताव पास किया गया तथा विदेशी कपड़ो का विरोध और स्वदेशी अपनाने का व्रत लिया गया। इस अधिवेशन के तुरंत बाद राष्ट्रीय विद्यालय बनाये गए। जिसके प्रधानाध्यापक बिंदेश्वरी पाठक बनाये गए। यह राष्ट्रीय विद्यालय पूरे असहयोग आंदोलन के दौरान राष्ट्रवादी गतिविधियों का एक केंद्र रहा। हुसैनाबाद में राष्ट्रीय मध्य विद्यालय बनाया गया। कई गाँवो में राष्ट्रीय पंचायत की स्थापना की गई जहाँ लोग अपने झगड़े को खुद निबटाते थे।

2) 16वाँ अधिवेशन

5-6 October 1921 में 16वाँ बिहारी स्टूडेंट कॉन्फ्रेंस हज़ारीबाग में हुआ। जिसकी अध्यक्षता सरला देवी ने की। बजरंग सहाय, के बी सहाय, राम नारायण सिंह जैसे नेताओं ने इस सम्मेलन में भाग लिया और भाषण दिए।

राँची क्षेत्र में असहयोग आंदोलन

1 अगस्त 1920 में जब गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की तब राँची के हजारो विद्यार्थी और स्वयंसेवी आंदोलन में जुड़ गए। गुलाब तिवारी, नागरमल मोदी, स्वामी विश्वानन्द, रामटहल ब्रह्मचारी, मौलवी उस्मान ने अपने भाषण के द्वारा गाँधीजी के विचारों को जन-जन तक फैलाया। स्वामी विश्वानन्द मजदूर नेता थे जिसकी पकड़ कोयला खान मजदूरों पर अच्छी थी। वही मौलवी उस्मान अंजुमन इस्लामिया मदरसा के मौलवी थे। इनलोगो ने नशाबंदी, स्वदेशी प्रयोग का अभियान चलाया असहयोग आंदोलन का सर्वाधिक प्रभाव राँची में पड़ा। इसके कई मुख्य कारण थे:-

a) राँची के लोग गाँधीजी से परिचित थे क्योंकि गाँधी चंपारण सत्याग्रह के सिलसिले में 1917 में राँची आ चुके थे। राँची के लोग गाँधीजी जी से मिल चुके थे और उनके प्रभाव से प्रभावित थे। प्रसिद्ध गांधीवादी नेता गुलाब तिवारी ने इस क्षेत्र में गाँधीवादी विचारधारा का काफी प्रचार कर रखा था। राँची के लोग रौलेट एक्ट और जालियांवाला बाग घटना के समय सभा, जुलूस, शांतिमार्च, उपवास कर चुके थे पहले। इन बातों का राँची में असहयोग आंदोलन पर व्यापक प्रभाव पड़ा।

b) मौलाना कलाम आजाद 8 जुलाई 1916 से 17 दिसंबर 1919 तक राँची में रहे। इस दौरान राँची में जो हिन्दू-मुसलमान भाईचारा फैला वो लोगो मे अब तक कायम था।

c) सिद्धु भगत के नेतृत्व में ताना भगतो ने सक्रिय रूप से आंदोलन में भाग लिया। ताना भगत धीरे धीरे राँची क्षेत्र में असहयोग आंदोलन का आधार स्तंभ बन गए। जीतू भगत, तुरिया भगत ने लगानबंदी अभियान चलाया और अपनी सभाओं में स्वशासन की माँग करने लगे।

d) 1920 में राँची जिला काँग्रेस कमिटी का स्थापना किया गया। इस कमिटी ने लोगो को असहयोग आंदोलन के प्रति जागरूक किया।

e) इस आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय स्तर के नेताओं का झारखंड दौरा हुआ और भाषण हुए। 1920-21 के दौरान खुद गाँधीजी झारखंड के राँची आये जिससे लोगो का उत्साह और बढ़ गया।

18-19 नवंबर 1921 को राँची में वार्षिक “पिंजरापोल समारोह” हुआ। इस समारोह में कलकत्ता के नेता से पद्मराज जैन, भोलानाथ वर्मन और मौलवी जकारिया आये। शहर में हड़ताल होने के बावजूद सैकड़ो लोग इनके स्वागत को आये थे। ये लोग राँची में सभा करने के बाद 20 नवम्बर को लोहारदग्गा में भी सभा किये।

21 मार्च 1921 को राजेन्द्र प्रसाद ने राँची का दौरा किया और एक बड़ी असहयोग सभा में भाषण दिया।

राँची और लोहारदग्गा में राष्ट्रीय स्कूल की स्थापना की गई। डोरंडा में पंचायत कचहरी की स्थापना की।

हज़ारीबाग में असहयोग आंदोलन

आन्दोलन के शुरू होते ही कई हज़ारीबाग सेंट कोलंबा कॉलेज के कई विद्यार्थियों ने पढ़ाई छोड़ कर आंदोलन का साथ दिया। राम नारायण सिंह ने अपनी वकालत छोड़ दी और आंदोलन में पूरी तरह सक्रिय हो गए। के बी सहाय जो उस समय पटना से एम ए कर रहे थे, पढ़ाई बीच में छोड़कर आंदोलन में सक्रिय हो गए थे। बजरंग सहाय कलकत्ता से वकालत की पढ़ाई कर रहे थे, उन्होंने भी पढ़ाई बीच में छोड़ दी।

1920 में हज़ारीबाग जिला काँग्रेस कमिटी का स्थापना किया गया। इस कमिटी ने लोगो को असहयोग आंदोलन के प्रति जागरूक किया। 1921 में राजेेंद्र प्रसाद हज़ारीबाग आये और लोगो से असहयोग आंदोलन से जुड़ने की अपील की। मोतीलाल नेहरु ने असहयोग आंदोलन से लोगो को जोड़ने के लिए चतरा में एक सभा किये।

इस आंदोलन के दौरान हज़ारीबाग को अग्रणी नेतृत्व कृष्ण वल्लभ सहाय औऱ सरला देवी ने दिया। वही चतरा में राम नारायण सिंह और शालिग्राम सिंह ने आन्दोलन को फैलाया। गिरीडीह में इस आंदोलन का नेतृत्व बजरंग सहाय ने किया।

1921 में चतरा और हज़ारीबाग में राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की गई।

ब्रिटिश सरकार ने के बी सहाय, सरला देवी, राम नारायण सिंह, त्रिवेणी सिंह, बजरंज सहाय, शालिग्राम सिंह को पहले हज़ारीबाग जेल में कैद रखा फिर भागलपुर जेल भेज दिया था। इन नेताओं के अलावा भोली सिंह, फूलन सिंह, शुभ नारायण लाल, जयराम साहू, चरण साहू, रामेश्वर चौबे ने हज़ारीबाग क्षेत्र में इस आंदोलन को फैलाया तथा जेल भेजे गए। 17 फरवरी 2022 को भागलपुर जेल में बंद शाहबाज अहमद के कुरान पढ़ते समय जेल अधीक्षक मेजर कूक ने कुरान को लात मार दी जिससे जेल में कैदियो ने आंदोलन किया था। रामनारायण सिंह के गवाही के बाद उसे निलंबित किया गया था।

संताल परगना में असहयोग आंदोलन

असहयोग आंदोलन का प्रभाव संताल परगना जिले में भी व्यापक रूप से पड़ा। पूरे संताल परगना जिले में नशाबंदी अभियान चलाया गया। नशाबंदी के कारण अंग्रेजों को बहुत आर्थिक नुकसान हुआ। नशाबंदी अभियान का सबसे ज्यादा प्रभाव राजमहल क्षेत्र में पड़ा। यहाँ राजमहल अनुमंडल के अनुमण्डल पदाधिकारी को खुद सशस्त्र बल प्रयोग करना पड़ा। महात्मा गाँधी ने जब संताल परगना का दौरा किया तो उसने बहुत खुशी जाहिर की कि यहाँ के संताल वर्ग ने शराब छोड़ दिया था।

संताल परगना में असहयोग आंदोलन के प्रमुख नेता जिया साहू, राम जानकी साहू, रामजस मारवाड़ी ने विदेशी वस्तुओं के खिलाफ आंदोलन चलाया और जेल भेजे गए। देवघर के विनोदानंद झा ने खादी के प्रति लोगो की जागरूकता बढ़ाने के लिए अपने सर पे खादी के गट्ठर लेकर गाँव-गाँव घूमे। महात्मा गाँधी ने अपनी संताल परगना के यात्रा के दौरान संताल समाज की तारीफ किया कि संताल समुदाय के लोग खुद ही अपना कपड़ा बुन लेते है।

1921 में असहयोग आंदोलन को प्रोत्साहित करने के लिए संताल परगना की यात्रा की। वे पाकुड़ और दुमका गए। पाकुड़ में प्रशासन के द्वारा असहयोग आंदोलनकारियों पर किये गए दमनचक्र से वे बहुत स्तब्ध हुए। काँग्रेस के सभा मे भाग लेने, भाषण देने, कुछ विशेष क्षेत्रो में भ्रमण करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। प्रशासन ने काँग्रेस के कई दफ्तर में छापेमारी, तोड़-फोड़, आगजनी और तालाबंदी कर दिया था। इसपर एक रिपोर्ट प्रांतीय काँग्रेस कमिटी को भेजा। यहाँ दमनचक्र के कारण जब राजेन्द्र प्रसाद जब पाकुड़ पहुँचे तो कोई भी उसे लेने नही आया। सारी रात उन्होंने स्टेशन में गुजारी। सुबह स्थानीय लोगो को जमा करके असहयोग आंदोलन पर कार्यक्रम किये।

दुमका अनुमंडलमें गाँधी टोपी पहनने में प्रतिबंध लगा दिया गया था। वही देवघर में असहयोग आंदोलनकारियों का तीर्थयात्रियों की सेवा करने में प्रतिबंध लगा दिया गया था। जनता में भय बढ़ाने के लिए प्रमथ नाथ सिन्हा को हाथ मे हथकड़ी और कमर में रस्सी बाँध कर लाया गया था।

जामताड़ा के जे बी सी उच्च विद्यालय के विद्यार्थियों ने 13 जनवरी 1921 को सरकारी विद्यालय का बहिष्कार किया। जामताड़ा के स्थानीय नेता दर्शनानंद ने नशाखोरी के खिलाफ आंदोलन चलाया तथा कई सभाएँ की।

देवघर के आर मित्रा उच्च विद्यालय के विद्यार्थियों ने युवा विनोदानंद झा और प्रफुल्ल चंद्र सेन के नेतृत्व में राष्ट्रीय विद्यालय की माँग की।

जनवरी 1922 में साहेबगंज के रेलवे कर्मचारियों ने हड़ताल किया जहाँ सशस्त्र बल का प्रयोग किया गया।

सिंहभूम में असहयोग आंदोलन

झारखंड में असहयोग आंदोलन का प्रभाव सिंहभूम में भी हुआ। असहयोग आंदोलन के दौरान जमशेदपुर का गोलमुरी मैदान सिंहभूम जिला का केंद्रबिंदु रहा। गोलमुरी मैदान में असहयोग आंदोलन के दौरान 5, 6, 8, और 9 फरवरी 2021 में जन-सभाएँ की गई। 5 फरवरी को बी जी साठे ने, 6 फरवरी को प्रभास चंद्र मित्र ने, 8 फरवरी के के भट्ट ने तथा 9 फ़रवरी को अब्दुल गनी ने इन सभाओं की अध्यक्षता की। इन चारों सभाओं में काठियावाड़ (गुजरात) के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी हरि शंकर व्यास ने भाषण दिए थे। इन सभाओं में बाल गंगाधर तिलक की प्रतिमा तथा एक टाऊन हॉल के लिए धन इकट्ठा किया गया था।

8 मार्च 1921 में फिर से गोलमुरी मैदान में जनसभा हुई, इस जनसभा में 15 मार्च 1921 को पूरा जमशेदपुर में हड़ताल रखने का निर्णय लिया गया।

जय राम मारवाड़ी, शिवराम मारवाड़ी ने चक्रधरपुर में शराबबन्दी अभियान को आगे बढ़ाया। चक्रधरपुर में राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की गई थी। जून 1921 में बिहार के प्रसिद्ध कांग्रेसी नेता मजहर-उल-हक चक्रधरपुर आये और जन-सभाएँ की।

नासिक के कांग्रेसी नेता हाजी अब्दुल्लाह ने चक्रधरपुर और चाईबासा का दौरा किये तथा असहयोग आंदोलन के प्रति लोगो को जागरूक किया। पूरी के प्रसिद्ध नेता अनंत मिश्रा ने असहयोग आंदोलन के सिलसिले में फरवरी 1922 को चाईबासा आये थे।

1921 में अहमदाबाद काँग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए गुरुचरण हो अपने साथियों के साथ गए।

पलामू में असहयोग आंदोलन

शेख साहब, जो पलामू निवासी थे, ने अपनी वकालत छोड़ दी और आंदोलन में पूरी तरह सक्रिय हो गए।

पलामू में असहयोग आंदोलन के प्रमुख नेता थे वारिश इमाम, अमृत महतो, अचंभित राम, टिकैत राम, शिवनंदन राम, रामधनी साव, झम्पन साहू, नाकछेदी साहू, बालचंद साहू, हुसैनी साहू,धनी सिंह, जदुपति सिंह। इन नेताओं को ब्रिटिश सरकार ने जेल में कैद किया था।

मानभूम में असहयोग आंदोलन

पुरुलिया और धनबाद में राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की गई। मानभूम क्षेत्र में असहयोग आंदोलन का नेतृत्व स्वामी सोमेश्वरानंद ने किया।