Jharkhand Land Reform
झारखंड में भूमि सुधार
Jharkhand Land Law
1764 में बक्सर के युद्ध के बाद 1765 में इलाहाबाद की संधि होती है जिससे अन्तर्गत बंगाल, बिहार, उड़ीसा की दीवानी कंपनी सरकार के हाथों में चली लग हैं ( इसी क्षेत्र के अंतर्गत झारखंड भी आता था), जिससे इस क्षेत्र में भूमि संबंधी कानूनों का आरंभ हुआ। 1765 ई में छोटानागपुर का क्षेत्र ब्रिटिश शासन के अंतर्गत आया था। 1765 में झारखंड क्षेत्र में सबसे पहले मालगुजारी व्यवस्था की शुरुआत हुई थी।
बंगाल रेगुलेशन,1793 के रेगुलेशन संख्या 20 के तहत रामगढ़ हिल ट्रैक्ट के पहाड़ी क्षेत्रों में स्थाई बंदोबस्ती लागू किया गया था।एवं 1805 में रेगुलेशन संख्या 18 लाया गया जो पूरे बंगाल क्षेत्र में प्रभावी था जिसमें छोटानागपुर भी आता था। । झारखंड में 1824 ई में पहली बार रैयतों के अधिकार को परिभाषित करते हुए उनकी सुरक्षा का प्रावधान किया गया था।
अंग्रेजी शासन के दौरान विभिन्न प्रकार के कानून बनाकर प्रशासनिक व्यवस्था को अपने अधीन किया। ब्रिटिश सरकार का मुख्य उद्देश्य अपने राजस्व में वृद्धि करना रहा। ब्रिटिश सरकार ने कानून बनाकर तथा न्यायालयों का उपयोग कर स्थानीय जमींदारों जागीरदारों, जागीरदारों, रैयतों की भूमि की नीलामी करना प्रारंभ कर दिया था। नीलामी से बचने हेतु जमींदार एवं जागीरदारों ने कठोरता से लगान वसूलना शुरू कर दिया। जिसके परिणामस्वरूप रैयतों की स्थिति दिन प्रति दिन खराब होती चली गई। इस स्थिति में रैयतों अन्य किसी विकल्प के अभाव में अंग्रेजों एवं जमींदारों के विरुद्ध कई विद्रोह किए। ब्रिटिश काल में जमींदारों की नियुक्ति तथा उन्हें पद से हटाने का अधिकार जिला कलेक्टर को दिया गया था।
कोल विद्रोह के बाद भूमि सुधार
इन कानूनों के बनने से झारखंड में कई भूमि संबंधित समस्याएं आई। जिससे झारखंड के क्षेत्रों में कई भीषण विद्रोह हुए जैसे हो विद्रोह, कोल विद्रोह, संथाल विद्रोह, सरदारी आंदोलन। कोल विद्रोह के बाद कई रैयतों की जमीन कंपनी सरकार ने हड़प ली। यह सभी विद्रोह जर, जंगल, जमीन की लड़ाई थी। इन विद्रोह के परिणाम स्वरूप अंग्रेजी शासन ने यह महसूस किया कि जनजातियों की समस्याओं का निराकरण किए बिना शांतिपूर्ण ढंग से वह प्रशासन चला नहीं सकता है जिसके परिणामस्वरूप भूमि संबंधित कई सुधार हुए। 1837 ई में कोल्हान क्षेत्र में विलकिंग्सन रूल को लागू किया गया था। विलकिंग्सन रूल के तहत कोल्हान क्षेत्र में रहने वालों के लिए कुछ नियम बनाए गए जो कुछ हद तक सर्वमान्य रहे ओर आदिवासियों को कुछ राहत मिली।
छोटानागपुर को बंगाल प्रांत के अधिन नॉन-रेगुलेशन प्रदेश के रूप में घोषित किया गया और यहां एक आयुक्त की नियुक्ति कर दी गई। नॉन-रेगुलेशन क्षेत्र में साधारण कानून तब तक प्रभावी नहीं होते जब तक कि उसके लिए अलग से घोषणा नहीं की जाए। 1854 ई में आदिवासियों ने जबरन अपने पूर्वजों की जमीन वापस लेने का प्रयास किया। इसे आदिवासियों तथा जमींदार ठेकेदारों के बीच हुई संघर्ष छिड़ गया जो 1858 इसमें शांत हुआ था।
जनजातियों की भूमि संबंधित समस्याओं के समाधान के लिए सरकार ने समय-समय पर कई सुधार करने के प्रयास किए। इसी क्रम में 1862 में रखलदास हलदर के नेतृत्व में हुई भूईहरी एवं स्थानीय जमींदारों की भूमि को चिन्हित करने के लिए भूईहरी सर्वे प्रारंभ किया गया था जो 1869 ई तक चला। इस सर्वे में 2,483 गांव में भूईहरी सर्वे किया गया था। जनजातियों की भूमि को संरक्षित करने हेतु सरकार की ओर से उठाया गया यह प्रथम प्रभावी कदम था।
छोटानागपुर भूधृति अधिनियम, 1869 (Chhotanagpur Tenure Act, 1869) के द्वारा लगान संबंधी विवादों की सुनवाई का अधिकार जिला कलेक्टर के स्थान पर दीवानी अदालतों को दे दिया गया। चुटिया नागपुर के क्षेत्र में 1879 ई में छोटानागपुर भूस्वामी एवं कास्तकारी प्रक्रिया अधिनियम छोटानागपुर भूस्वामी एवं कास्तकारी प्रक्रिया अधिनियम (Chhotanagpur Landlord and Tenancy Process Act)को लागू किया गया। 1897 को बंगाल कास्तकारी अधिनियम लागू किया गया।
मुंडा विद्रोह के बाद भूमि सुधार
ब्रिटिश सरकार ने छोटानागपुर के तत्कालीन कमिश्नर फोरबिस की सिफारिश पर मिस्टर लिस्टर एवं जान रीड को रांची जिले में भूमि की पैमाइश और 1902 में बंदोबस्ती का काम सौंपा। यह कार्य 1902 से 1910 ई तक चला जिसके बाद मुंडा जनजातियों की जमीन में से संबंधित खतियान तैयार किया गया। मुंडारी खुटकट्टीदारी प्रथा को 1903 ई में पुनः मान्यता प्रदान की गई। 1908 में सीएनटी एक्ट पारित हुआ। CNT लागू होने के बाद बदलती जरूरतों की अनुसार समय समय पर कई अधिनियम पारित किए गए जो CNT Act के पूरक अधिनियम (Supplementary Act) कहलाता है इस अधिनियम का वर्णन निम्न है:-
CNT Act के Supplementry Regulations
1. छोटानागपुर उधार लगान लेखा अधिनियम, 1929
Chhotanagpur Borrowing Accounts Act, 1929
2. रांची जिला आदिवासी रैयत कृषिभूमि प्रत्यावर्तन अधिनियम, 1947
Ranchi District Tribal Raiyat Agricultural Land Reversion Act, 1947
3. रांची जिला टाना भगत रैयत कृषिभूमि प्रत्यावर्तन अधिनियम, 1947
Ranchi District Tana Bhagat Rayat Agricultural Land Reversion Act, 1947
4. बिहार शेड्यूल एरिया रेगुलेशन, 1969
Bihar Schedule Area Regulation, 1969
संताल परगना में संथाल विद्रोह के पश्चात पहली बार भूमि संबंधित कानून “संथाल परगना बंदोबस्त विनियमन, 1872 (Santal Parganas Settlement Regulation, 1872) पारित किया गया।
संथाल परगना क्षेत्र में 1886 में संथाल परगना लगान नियमन (Santal Parganas Settlement Regulation,1886) पारित किया गया।
1949 में संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम पारित किया गया।
अन्य अधिनियम
झारखंड राज्य में भूमि संबंधित अधिनियम मैं प्रमुख अधिनियम निम्न है: –
1. बिहार भूमि सुधार अधिनियम को 1950 ई में लागू किया गया। (Bihar Land Reforms Act)
2. बिहार जोतों की चकबंदी अधिनियम, 1956 ( Bihar Consolidation Of Holdings Act)
3. बिहार भूमि हदबंदी अधिनियम, 1961 ( Bihar Land Ceiling Act, 1961)
4. बिहार अनुसूचित क्षेत्र विनियमन, 1969 ( Bihar Scheduled Area Regulation)
5. पंचायत प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार), 1997 (Panchayat Provisions Extension to Scheduled Area)
6. भूमि अधिग्रहण, पुनर्वासन, पुनर्व्यवस्थापन अधिनियम, 2013 (Land Acquisition, Rehabilitation & Settlement Act)
झारखंड में भूमि संबंधी कानून एवं भूमि सुधार
बिहार विशेषाधिकृत व्यक्ति वासभूमि अधिनियम, 1947
Bihar Privileged Persons Homestead Act, 1947। यह कानून उन विशेषाधिकृत व्यक्ति के कल्याण के लिए बनाया गया था जिसके पास अपनी भूमि अथवा मकान नहीं थे। ऐसे लोगों को इस अधिनियम के द्वारा रहने के लिए जमीन देने का प्रावधान है। किंतु उसे यह जमीन तभी मिलेगा जब यह उस जमीन पर पहले से ही वास करते हो। साथ ही इस कानून का प्रावधान उस क्षेत्र पर लागू नहीं होगा जो आदिवासी, हरिजन, पिछड़ी जाति या सरकारी भूमि का अतिक्रमण करके बनाए गए हो।
बिहार भूदान यज्ञ अधिनियम, 1950
Bihar Bhoodan Yagya Act, 1950 के तहत भूमि के मालिकों द्वारा अपनी अतिरिक्त भूमि को “भूदान यज्ञ समिति” को दान के रूप में दिया गया था। इस दान में दी गई जमीन का वितरण भूमिहीनों के बीच किए जाने का प्रावधान है। इस कानून के तहत सरकारी या आदिवासी जमीन के दान को वैध दान नहीं माना जाता है।
बिहार भूमि सुधार अधिनियम को 1950
इस अधिनियम के द्वारा अविभाजित बिहार सरकार ने अधिसूचना जारी कर जमीदारी प्रथा का उन्मूलन किया था। इस अधिनियम के पश्चात सभी प्रकार की भूमि का स्वामित्व सरकार के हाथ में चला गया किंतु सरकार के अधीन निजी स्वामित्व को बरकरार रखा गया। इस अधिनियम के तहत जमींदारों के स्थान पर सरकार और उसके प्रतिनिधि राजस्व संग्रहण करने लगे। झारखंड क्षेत्र में पाई जाने वाली भुईहरी एवं खूंटकट्टी किसमें की जमीन सरकार में निहित नहीं हुई। यहां पूर्वर्ती व्यवस्था ही लागू रही।
बिहार सरकार स्टेट्स (खास महल) मैनुअल,1953
Bihar Government States (Khas Mahal) Manual, 1953 के द्वारा झारखंड सरकार, उन रैयती जमीनों को जो ब्रिटिश सरकार द्वारा देशद्रोह का आरोप लगाकर अधिग्रहित किया गया था, राज्य सरकार आवासीय प्रयोजन हेतु बंदोबस्ती करती है। साथ ही कुछ मामलों में व्यापारिक उपयोग की भी इजाजत दी जाती है।
बिहार लोक भूमि अतिक्रमण अधिनियम, 1956
Bihar Public Land Encroachment Act, 1956 के अन्तर्गत लोक भूमि (Public land) को परिभाषित किया गया है। जिसके अनुसार Public land के अंतर्गत सरकार में निहित सभी जमीन, निगम प्राधिकारो की भूमि, सरकारी विभागों की जमीन, अर्जित भूमि आदि आता है। परंतु इनमें रैयती जमीन का अतिक्रमण शामिल नहीं है। सामान्यतः गैर वन सरकारी भूमि में अतिक्रमण की सुनवाई अंचल अधिकारी करते हैं। इसके आदेश के विरुद्ध अपील का भी प्रावधान है।
बिहार भूमि अधिकतम सीमा/हदबंदी अधिनियम, 1961
Bihar Land Ceiling Act, 1961 अधिनियम के तहत ग्रामीण क्षेत्र में भू-धारकों के लिए निर्धारित अधिकतम सीमा से अधिक भूमि को “अधिशेष भूमि (surplus land)” घोषित करने का प्रावधान है। इस अधिनियम के तहत सरकार अधिशेष भूमि का अधिग्रहण कर सकती है तथा भूमिहीन लोगों में इसका वितरण किया जाता है।
बिहार अभिधारी होल्डिंग (अभिलेखों का अनुरक्षण) अधिनियम, 1973
The Bihar Tenant Holding (Maintenance of Records) Act, 1973 अधिनियम के धारा 14 में राज्य में भू-हस्तांतरण के बाद नाम हस्तांतरण (दाखिल खारिज, Mutation) का प्रवधान है। दाखिल खारिज से संबंधित वाद की अपील भूमि सुधार उप समाहर्ता (Deputy Collector) के न्यायालय में होती है। झारखंड राज्य सेवा देने की गारंटी अधिनियम, 2011(Jharkhand State Service Delivery Guarantee Act, 2011) के अनुसार आपत्ति रहित दाखिल खारिज आवेदनों का निष्पादन 30 दिनों के भीतर और आपत्ति सहित आवेदनों के लिए 90 दिन की समयसीमा निर्धारित है।
भूमि अधिग्रहण, पुनर्वासन, पुनर्व्यवस्थापन अधिनियम, 2013
केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार के विभिन्न परियोजना के लिए Land Acquisition Act, 2013 बनाई गई है। इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार सभी प्रमंडल के आयुक्त को संबंधित प्रमंडल का पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन आयुक्त तथा सभी जिलों के अपर समाहर्ता (Additional collector) को संबंधित जिला का पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन प्रशासक नियुक्त किया गया है।
Other State Acts
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