झारखण्ड के स्वतंत्रता सेनानियो/विभूतियों के जन्म स्थल तथा शहादत स्थल
स्वतंत्रता सेनानियो के जन्मस्थान
Jharkhand Freedomfighters Birthplace
दिवा सोरेन- मातकोम बेड़ा (राजनगर,सरायकेला-खरसावां)
किसुन सोरेन- गोविंदपुर (राजनगर, सरायकेला-खरसावां)
नीलांबर-पीतांबर- मदगढ़ी (भंडारिया प्रखंड, गढ़वा)
गया मुंडा – एटकीडीह( मुरहू प्रखंड, खूँटी )
बिरसा मुंडा – उलिहातु (अड़की प्रखंड, खूंटी)
तेलंगा खड़िया- मुरगु (सिसई प्रखंड, गुमला)
जतरा भगत- चिंगरी नवाटोली (विशुनपुर प्रखंड, गुमला)
सिद्धो-कान्हो- भोगनाडीह (बरहैत प्रखंड, साहेबगंज)
बुधु भगत- सिलगाई (चान्हो प्रखंड, राँची)
भागीरथ महतो- तलडीहा (गोड्डा)
Note:- उपरोक्त सारे गांव को शहीद ग्राम योजना के तहत विकसित किया जाता है।
अल्बर्ट एक्का- जरी गांव (अल्बर्ट एक्का प्रखंड, गुमला)
रघुनाथ महतो- घुटियाडीह (नीमडीह प्रखंड,सरायकेला खरसावां)
तिलका मांझी- तिलकपुर (सुलतानगंज, भागलपुर,बिहार)
जयपाल सिंह – पाहनटोली, टकरा हातु (खूँटी)
शेख भिखारी- खुदिया लोटवा (ओरमांझी, राँची)
टिकैत उमराव सिंह- खटंगा पातर (ओरमांझी, राँची)
विश्वनाथ शाहदेव- सतरंजी (राँची)
पांडेय गणपत राय – भौरो गांव (भंडारा प्रखण्ड, लोहरदग्गा)
सखाराम गणेश देउस्कर- कौरों ग्राम देवघर)
जमशेदजी टाटा- नौसारी गांव (गुजरात)
राम नारायण सिंह- तेतरिया गांव(चतरा)
जे आर डी टाटा- पेरिस, फ्रांस
शिबू सोरेन – नेमरा (गोला प्रखंड,रामगढ़)
बाबूलाल मरांडी- कोदाईबॉक (तीसरी प्रखण्ड,गिरिडीह)
कार्तिक उरांव- लिटा टोली (गुमला)
कृष्ण वल्लभ सहाय- शेखपुरा (बिहार)
फादर कामिल बुल्के- रैम्सकैपले (बेल्जियम)
जुएल लकड़ा- मुरगु गांव (राँची)
सुशील कुमार बागे- भीजपुर (कोलीबिरा, सिमडेगा)
फटेल सिंह- पहाड़ पानरी (गुमला)
बख्तर साय- वासुदेव कोना (गुमला)
पोटो सरदार- राजबास गाँव (जगन्नाथपुर, पश्चिम सिंहभूम)
शहादत स्थल
बिरसा मुंडा – 3 फरवरी 1900 में चक्रधरपुर के संतरा जंगल से गिरफ्तार हुआ। 09 जून 1900 में राँची जेल में हैजा बीमारीऔर पुलिस की यातना से शहीद हुए।
दिवा-किसुन – 1872 में सरायकेला जेल में फाँसी
मुंडल सिंह – 4 अप्रैल 1812 में कोलकाता (फोर्ट विलियम) में फाँसी।
बख्तर साई- 4 अप्रैल 1812 में कोलकाता (फोर्ट विलियम)में फाँसी।
शेख भिखारी – 8 जनवरी 1858 चुटूपालु घाटी में फांसी। बाद में इसके लाश को टैगोर हिल के पास मोराबादी में टांग दिया गया था।
टिकैत उमराव सिंह – 8 जनवरी 1858 चुटूपालु घाटी में फांसी। बाद में इसके लाश को टैगोर हिल के पास मोराबादी में टांग दिया गया था।
नीलांबर-पीताम्बर – 28 मार्च 1859 नीलांबर पीतांबर नगर में फांसी।
फूलो-झानों- संग्रामपुर (पाकुड़) युद्ध के दौरान 1855 में
चांदो-भैरव – 1855 में बरहैत मुठभेड़ में शहीद
सिद्धो- बरहैत से गिरफ्तार और बरहैत के पंचकठिया में 5 दिसम्बर 1855 में फांसी।
कान्हो- जामताड़ा जिला के उपरबंधा गांव से गिरफ्तार और भोगनाडीह के ठाकुरबाड़ी में 23 फरवरी 1856 में फांसी।
तिलका मांझी – 1875 में भागलपुर में बरगद के पेड़ में फांसी। ये जगह अभी बाबा तिलका मांझी चौक कहलाता है।
गया मुंडा-ऐटकीडीह में 6 जनवरी 1900 को गिरफ्तार हुआ और रांची जेल में फाँसी दी गई।
पोटो सरदार – 1 जनवरी 1838 को जगन्नाथपुर जेल में फांसी।
जयमंगल पांडेय – चतरा में 4 अक्टूबर 1857 में फांसी।
नादिर अली – चतरा में 4 अक्टूबर 1857 में फांसी।
रघुनाथ महतो – 1778 में पुलिस मुठभेड़ में लोटा गांव में वीरगति।
रानी सर्वेश्वरी – 6 मई 1807 में भागलपुर जेल में मृत्यु
बुद्धू भगत – 14 फरवरी 1832 में कैप्टन इम्पे के सेना के साथ मुठभेड़ में शहीद।
गंगानारायण सिंह – 7 फरवरी 1833 को खरसावां के ठाकुर चेतन सिंह द्वारा हत्या।
तेलंगा खड़िया – 23 अप्रैल 1880 में बोधन सिंह द्वारा गुमला जिले के सिसई में गोली मारी गई।
भागीरथ मांझी – 1879 में इसकी मृत्यु हुई।
जतरा भगत – 1917 में राँची में इसकी मृत्यु हुई।
नीलमणि सिंह – अलीपुर जेल में मृत्यु हुई।
अल्बर्ट एक्का – 3 दिसम्बर 1971 में बांग्लादेश के गंगासागर में शहीद हिली-युद्ध (भारत-पाक युद्ध) के दौरान।
सिंदराय, बिंदराय और सुर्गा मुंडा –हजारीबाग जेल में
बीजू मांझी – हजारीबाग जेल में मौत
विश्वनाथ शाहदेव –16 अप्रैल 1857 में राँची के कमिश्नर कंपाउंड में।
गणपत राय – 21 अप्रैल 1857 में राँची के कमिश्नर कंपाउंड में।
राजा अर्जुन सिंह – बनारस जेल भेजा गया और बनारस में ही मृत्यु।
जग्गू दीवान – चक्रधरपुर के बलियाघाट में 1858 में क्रूरतापूर्वक हत्या।
पोटो सरदार – इनको 1 जनवरी 1938 में जगन्नाथपुर में बूड़ई हो और नारा हो के साथ फाँसी दी गई। अगले दिन 2 जनवरी 1938 को सेरेंगसिया घाटी में इनके सहयोगी बोरा हो और पांडुआ हो को फाँसी दी गई।
झारखंड विद्रोह के दौरान वृक्ष
1.नीलांबर -पीतांबर को आम के पेड़ में फांसी दी गई।
2. टिकैत उमराव सिंह और शेख भिखारी को बरगद के पेड़ में फांसी दी गई।
3. सिद्धो को बरगद के पेड़ में फांसी दी गई थी।
4.तिलका मांझी को बरगद पेड़ में फांसी दी गई थी।
5. गणपत राय और विश्वनाथ शाहदेव को कदम्ब के पेड़ पर फांसी दी गई।
6. तिलका मांझी ने ताड़ के पेड़ से छुपकर अगस्टस क्लीवलैंड को तीर मारा था।
7. संताल विद्रोह में साल की टहनियों को विद्रोह के प्रतीक के रूप में गांव-गांव में घुमाया गया था।
8.पोटो सरदार को बरगद के पेड़ में फाँसी दी गई थी।
Jharkhand Freedomfighters Birthplace