Jharkhand Environment Policy

झारखंड पर्यावरण | Jharkhand Environment|Jarkhand Eco Tourism Policy 2015

Miscellaneous

झारखंड के पर्यावरण

Jharkhand Environment GK

Jharkhand Eco-Tourism Policy, 2015

झारखंड सरकार ने 2015 में Jharkhand Eco-Tourism Policy, 2015 अपनाया। इस के अंतर्गत झारखंड के निम्न 8 स्थानों को ईको-टूरिज्म को ध्यान मे रखकर विकसित किया जा रहा है।

1. फॉसिल पार्क (साहेबगंज)

2. पारसनाथ (गिरिडीह)

3. कैनहरी पहाड़ी (हज़ारीबाग)

4. सिंहभूम हाथी अभ्यारण (पूर्वी सिंहभूम)

5. नेतरहाट (लातेहार)

6. बेतला बाघ अभ्यारण्य ( लातेहार)

7. त्रिकुट पहाड़ (देवघर)

8. तिलैया बाँध (कोडरमा)

Jharkhand State Action Plan On Climate Change

NAPCC(National Action Plan On Climate Change) के गाइडलाइन के तहत केंद्र सरकार ने 2009 में सभी राज्यो और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वो SAPCC बनाये। झारखंड सरकार ने 2014 में अपना SAPCC (State Action Plan On Climate Change) बनाया। और निम्नलिखित उद्देश्य निर्धारित किये।

1. जलवायु परिवर्तन से सर्वाधिक प्रभावित होने वाले क्षेत्रों का पहचान करना। SAPCC-2014 के तहत सरायकेला-खरसावां जिला को सबसे संवेदनशील घोषित किया गया।

2. जलवायु परिवर्तन से प्रभावित क्षेत्रों की राज्य-स्तरीय मानचित्र तैयार करना।

3. कोयला और खनन आधारित से उत्पन्न प्रदूषण को नियंत्रित करना ।

4. जलवायु परिवर्तन से संवेदनशील क्षेत्रो के लिए अलग नीति और योजना निर्धारित करना।

Jharkhand State Pollution Control Board (झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड)

इस बोर्ड का निर्माण 2001 में Water (Prevention & Control Of Pollution) Act, 1974 के Section-4 के तहत किया गया। इस बोर्ड में राज्य सरकार द्वारा एक चेयरमैन,15 सदस्य और एक सचिव होता है। इस बोर्ड का मुख्यालय हटिया के HEC Complex में स्थित है।

इस बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय सह प्रयोगशाला धनबाद, जमशेदपुर, देवघर और हज़ारीबाग में अवस्थित है। इस बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय सह केंद्रीय प्रयोगशाला तुपुदाना (राँची) में अवस्थित है। यह एक नियामक इकाई है जो उद्योगों को पर्यावरण मित्र बनाने के लिए नए तथा उच्च तकनीक को प्रेरित करता है। साथ ही जल के उपयोग को कम करने तथा गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोत के उपयोग को प्रोत्साहित करता है।

वनबंधु कल्याण योजना

भारत सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय ने 2015-16 में इस योजना की शुरुआत की। इस योजना का मुख्य उद्देश्य आदिवासी समाज का सर्वांगीण विकास है, उनके जीवन स्तर को सुधारना, शिक्षा और रोजगार प्रदान करना, उसके संस्कृति और विरासत का संरक्षण है।

वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत वनों में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य परंपरागत वन्य निवासी जो 2006 से पूर्व तक वनों में निवास कर रहे है एवं जीवनयापन के लिए वन एवं वनोत्पाद पर निर्भर है, को वन भूमि का पट्टा दिया जाता है।

इस योजना के अंतर्गत 10 राज्यो के 10 प्रखंड (प्रत्येक राज्य से एक) को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में चुना गया। ये 10 राज्य झारखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलांगना, उड़ीसा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और गुजरात है। इस प्रोजेक्ट के तहत पाकुड़ जिला के लिट्टीपाड़ा प्रखंड को चुना गया है।

Important Facts

1) देवघर में काँवरिया पथ पर शिवलिंगम पुष्प के वृक्ष लगाए गए है। यह पुष्प हिमाचल और उत्तराखंड के तराई क्षेत्रो में पाया जाता है जिसकी सुगंध काफी दूर तक जाती है। झारखंड में माखन कटोरी फूल और शिवलिंगम फूल का संरक्षण किया जा रहा है।

2) झारखंड में रुद्राक्ष, हाथी कुम्भी, सोला छाल और मेघ वृक्ष पर रिसर्च किया जा रहा है और इन पेड़ों को झारखंड में संरक्षण देने की योजना है। मेघ पेड़ के छाल का प्रयोग अगरबत्ती बनाने में किया जाता है।

3) भारत मे कल्पतरु के वृक्ष की कुल संख्या 9 है जिसमे राँची में 4 है। यह वृक्ष मुख्यतः अफ्रीका में पाया जाता है। इस वृक्ष में अति शुष्क समय मे अधिक जलधारण करने की क्षमता होती है।

4) झारखंड में पर्यावरण में हो रहे परिवर्तन का असर और बदलते पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए केंद्र सरकार ने झारखंड के दो जिले जामताड़ा के नारायणपुर और रामगढ़ के पतरातू का चयन किया है। इसके तहत

झारखंड के प्रमंडलों का अध्धयन Video

https://youtu.be/2uX1yQADYso

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