पालवंश का इतिहास | History Of Pala Dynasty

Medieval History

पाल वंश का इतिहास

Histroy Of Pala Dynasty

परिचय

पश्चिम बंगाल के खलिमपुर (मालदा के पास) अभिलेख के अनुसार कन्नौज के सम्राट हर्षवर्धन और असम के राजा भास्करवर्मा के द्वारा संपूर्ण गौंड राज्य को नष्ट कर दिया। इसी दौरान गौड़ शासक शशांक की मृत्यु हो जाती है जिससे किसी राजनीतिक सत्ता के अभाव में बंगाल में अव्यवस्था फैल गई थी। 750 ई में बंगाल के सामंतो और जनता की सर्वसम्मति से गोपाल को राजा बनाया गया। राजा बनने के बाद गोपाल ने पाल वंश की स्थापना की। कुछ इतिहासकार पाल वंश को क्षत्रिय नहीं मानते हैं लेकिन पाल वंश के अभिलेखों में पाल राजाओं को सूर्यवंश की शाखा बताया गया है।

पाल वंश के ऐतिहासिक स्रोत

अभिलेख

🌹 खलीमपुर ताम्रपत्र लेख – यह अभिलेख धर्मपाल का है।

🌹 मुंगेर अभिलेख – यह अभिलेख देवपाल का है

🌹 मुजफ्फरपुर का अभिलेख – यह माहिपाल का अभिलेख है।

🌹 वागगड़ का अभिलेख – यह भी माहिपाल का अभिलेख है।

🌹 देवघर अभिलेख – यह नारायण पाल का अभिलेख है।

साहित्य

❤️ उदय सुंदरी कथा – इस महाकाव्य की रचना गुजराती कवि सोडठल के द्वारा की गई है। इस महाकाव्य में धर्मपाल को उत्तर भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा अर्थात “उत्तरापथस्वामीन” कहा गया है।

❤️ रामपालचरित – इस पुस्तक के रचनाकार संध्या कर नंदी थे। इस पुस्तक में पाल वंश का राजा रामपाल के बारे में पता चलता है।

❤️ तिब्बती बौद्ध गुरु तारानाथ के लेख – तारा नाथ के अनुसार गोपाल का जन्म आधुनिक बांग्लादेश के बोगरा जिले के एक साधारण क्षत्रिय परिवार में हुआ था।

❤️ अरब यात्री सुलेमान के लेख – इसकी पुस्तक “सिलसिलीउत तुवारिख” से पालवंश की जानकारी मिलती है।

गोपाल (संभवत 750 से 770)

गोपाल वंश का संस्थापक तथा पहला स्वतंत्र राजा माना जाता है। धर्मपाल के द्वारा उत्कीर्ण कराए गए बंगाल के खलीमपुर अभिलेख (मालदा के पास) में गोपाल के शासन काल की जानकारी मिलती है। गोपाल बौद्ध धर्म के अनुयायी थे।

गोपाल ने ओदंतपुरी विश्वविद्यालय की स्थापना करवाई थी। यह विश्वविद्यालय नालंदा विश्वविद्यालय के समीप था। जिस विद्यार्थियों को नालंदा विश्वविद्यालय में प्रवेश नहीं मिलता था वह विद्यार्थी ओदंतपुरी विश्वविद्यालय में पढ़ा करते थे। ओदंतपुरी विश्वविद्यालय को बख्तियार खिलजी ने विध्वंस किया था।

नालंदा विश्वविद्यालय के पास में ही था ओदंतपुरी विश्वविद्यालय को कुछ इतिहासकार महाविहार के नाम से वर्णन करते हैं। इसे बंगाल का पहला राजा माना जाता है जिसने बुद्धिज्म को शरण दिया।

धर्मपाल

ये गोपाल के पुत्र और उत्तराधिकारी थे। धर्मपाल का शासनकाल संभवत 770 से 810 ई के मध्य में माना जाता है। धर्मपाल ने परमेश्वर, परमभट्ठारक और महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी। धर्मपाल के लेखों में उन्हें “परम सौगात” कहा गया है।

धर्मपाल के दरबार में प्रसिद्ध बौद्धगुरू और लेखक हरीभद्र सूरी रहते थे। गुजराती कवि सोडठल ने अपनी पुस्तक उदय सुंदरी कथा में धर्मपाल को उत्तरापथस्वामीन कहा है। धर्मपाल को पाल वंश का प्रथम शक्तिशाली तथा महान राजा माना जाता है क्योंकि इस के शासनकाल में पाल साम्राज्य की सीमाएं बंगाल बिहार झारखंड उत्तर प्रदेश के कन्नौज तक विस्तृत था। धर्मपाल ने कन्नौज के राजा चक्रायुद्ध को पराजित करके अपने अधीन किया था।

कन्नौज का त्रिपक्षीय संघर्ष पाल राजा धर्मपाल, प्रतिहार राजा वत्सराज और राष्ट्रकूट राजा ध्रुव के मध्य हुआ था। इसमें किस राजा की विजय हुई इस पर भारतीय इतिहासकारों में मतभेद है। लेकिन गुजराती कवि सोडठल और अरब यात्री सुलेमान के लेखों में धर्मपाल को विजयी बताया गया है। त्रिपक्षीय संघर्ष के बाद राष्ट्रकूट राजा ध्रुव ने अपनी पुत्री का विवाह धर्मपाल से किया था और उसी के गर्भ से देवपाल का जन्म हुआ था।

धर्मपाल साहित्य और ललित कला के प्रेमी थे। उनके शासनकाल में बौद्ध धर्म का खूब प्रचार प्रसार हुआ था। धर्मपाल के द्वारा विक्रमशिला विश्वविद्यालय और सोमपुरी विश्वविद्यालय का निर्माण कराया गया था जो बौद्ध धर्म की शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। विक्रमशिला विश्वविद्यालय आधुनिक बिहार के भागलपुर जिले में स्थित है। इसी विश्वविद्यालय में प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान अतीश दीपांकर रहते थे।

वही सोमपुरी विश्वविद्यालय आधुनिक बांग्लादेश के नवगांव जिले में स्थित है। 1985 में इस स्थल को यूनेस्को के द्वारा विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया है। धर्मपाल की वीरगाथा नेपाल के ग्रंथों में आज भी सुरक्षित है।

देवपाल

देवपाल धर्मपाल के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे। देवपाल का शासनकाल संभवत 810 से 850 ईसवी तक था। देव पाल ने अपनी राजधानी मुद्गलपुर (मुंगेर) को बनाई थी। देव पालने “परम सौगात” की उपाधि धारण की थी। देवपाल के दरबार में प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान वज्रदत्त रहते थे जिन्होंने “लोकेश्वरशतक” की रचना की थी। देवपाल के सेनापति का नाम लवसेन था। देव पाल के सेनापति लवसेन ने उड़ीसा की उत्कल जाति को पूरी तरह खत्म करके उनके राज्य को पाल साम्राज्य का हिस्सा बनाया था।

देवपाल के शासनकाल में पाल सम्राज्य सबसे विशाल था जिसकी सीमाएं बंगाल बिहार उत्तर प्रदेश मालवा दिल्ली राजपूताना झारखंड उड़ीसा और असम से भी आगे तक थी।

देवपाल के शासनकाल में सुलेमान भारत आया था उसने बंगाल को रुहमा नाम से संबोधित किया था। सुलेमान ने अपनी पुस्तक “सिलसिलीउत तुवारिख” में देवपाल को भारत का सबसे शक्तिशाली राजा कहां है। इसने देव पाल को राष्ट्रकूट और गुर्जर- प्रतिहारो से ज्यादा शक्तिशाली राजा बताया था।

नालंदा लेख के अनुसार देवपाल बौद्ध धर्म के अनुयायी थे और उनके शासनकाल में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार भारत के अलावा अन्य देशों में भी हुआ था। देवपाल ने प्रतिहार राजा मिहिरभोज को पराजित किया था।

जावा के शैलेंद्रवंशी शासक बालपुत्र देव के अनुरोध पर देवपाल ने उसे नालंदा में एक बौद्ध विहार बनवाने के लिए 5 गांव दान में दिए थे

देवपाल के बाद महेंद्रपाल, विग्रहपाल, नारायणपाल, राज्यपाल गोपाल द्वितीय और विग्रहपाल द्वितीय राजा हुए परंतु इन के शासनकाल की ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है।

महिपाल प्रथम (988 से 1038 ई)

यह विग्रहपाल द्वितीय के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे। महिपाल प्रथम के शासनकाल में चोल राजा राजेंद्र चोल ने बंगाल पर आक्रमण किया था। महिपाल प्रथम के शासनकाल में सारनाथ, नालंदा और काशी में अनेक बौद्ध विहारो का पुनर्निर्माण करवाया गया था।

इसे पाल वंश का दूसरा संस्थापक माना जाता है क्योंकि देवपाल के बाद पाल वंश बहुत कमजोर हो गया था उसको इसने पुनः एक शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में परिवर्तित किया था। महिपाल प्रथम ने अनेक तालाब का निर्माण कराया था। इसने कई नगरों को बसाया था। महिपाल प्रथम के दरबार में बौद्ध विद्वान आचार्य अतिशा दीपांकर रहते थे जिसे महिपाल प्रथम ने बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए तिब्बत भेजा था।

नयपाल (1038 से 1055 ई)

ये महिपाल प्रथम के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे। नयपाल के शासनकाल में चेदि (आधुनिक नाम बुंदेलखंड) के कलचुरी राजा लक्ष्मीकर्ण और नयपाल के मध्य भीषण युद्ध हुआ था जिसमें विक्रमशिला विश्वविद्यालय के आचार्य दीपंकर श्रीज्ञान ने दोनों राजाओं के मध्य संधि करवाई थी। संधि की शर्त के अनुसार नेपाल के पुत्र विग्रहपाल तृतीय का विवाह कलचुरी राजा लक्ष्मीकर्ण की पुत्री यौवनश्री से करवाया गया था।

नयपाल के बाद भी विग्रहपाल तृतीय, महिपाल द्वितीय, सुरपाल राजा हुए परंतु उनके शासनकाल में कोई विशेष घटना नहीं हुई।

रामपाल (1077 से 1120 ई)

ये महिपाल द्वितीय के भाई तथा सुरपाल के उत्तराधिकारी थे। रामपाल ने असम और कलिंग पर विजय प्राप्त की थी। रामपाल का परम मित्र पूर्वी बंगाल (बांग्लादेश) का राजा यादव बर्मन था जिसने असम और कलिंग विजय में रामपाल की मदद की थी।

रामपाल के बाद कुमारपाल, गोपाल तृतीय, मदनपाल, गोविंद पाल राजा हुए परंतु इनमें से कोई राजा शक्तिशाली नहीं हुआ और पाल वंश का पतन होता गया । पाल वंश का अंतिम राजा गोविंद पाल था। कुछ इतिहासकार मदन पाल को पाल वंश का अंतिम राजा मानते हैं।

Note:- संध्याकर नंदी ने मदनपाल के दरबार में रहकर रामपाल चरित पुस्तक की रचना की थी।

पाल वंश के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

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🍻 गौड़ीरीति नामक साहित्यिक विद्या का विकास पाल शासकों के समय में ही हुआ था।

🍻 सभी पाल शासक बौद्ध धर्म (महायान और वज्रयान) के अनुयायी थे।

🍻 उदंतपुरी के प्रसिद्ध बौद्ध विहार का निर्माण देव पाल ने करवाया था।

🍻 विजय सेन ने पाल वंश के राजा मदन मदन पाल की राजधानी गौड़ पर अधिकार कर लिया था और मदन पाल को मगध में शरण लेनी पड़ी थी।

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मगध का उत्कर्ष Video

https://youtu.be/w8NINc1cGG0

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