कल्याणी के चालुक्य वंश
History Of Kalyani Chalukya
परिचय
तैलप द्वितीय प्रारंभ में राष्ट्रकुट राजा कर्क द्वितीय के सामंत थे। तैलप द्वितीय ने उन्हें पराजित करके कल्याणी के चालुक्य वंश की स्थापना की थी। तैलप द्वितीय ने अपनी राजधानी मान्यखेट (आधुनिक शोलापुर, महाराष्ट्र) क्षेत्र में बनाई थी तथा कल्याणी के चालुक्य राजाओं को पश्चिम चालू की के नाम से भी जाना जाता है।
ऐतिहासिक स्रोत
अभिलेख
चिपलुन अभिलेख- यह सत्यश्रय का अभिलेख है। इसी महाराष्ट्र के रत्नागिरी से प्राप्त किया गया है। इसमें किसी साधु को दान देने का उल्लेख मिलता है।
निलगुंड अभिलेख – इस अभिलेख से कल्याणी के चालुक्य के प्रारंभिक इतिहास की जानकारी मिलती है।
कौथम अभिलेख – यह विक्रमादित्य पंचम का अभिलेख है
तेरदाल अभिलेख – यह अभिलेख विक्रमादित्य षष्ठ का है। इस अभिलेख से चालुक्य वंश की उत्पत्ति कैसे हुई इसकी जानकारी प्राप्त होती है।
साहित्य
विक्रमांकदेवचरित – इस ग्रंथ के रचयिता विल्हण थे।
गदायुद्ध – इसकी रचना कन्नड़ कवि रन्ना के द्वारा की गई थी इससे सत्याश्रय शासन काल की जानकारी मिलती है।
मिताक्षरा – इसकी रचनाकार विज्ञानेश्वर थे। यह एक हिंदी विधि ग्रंथ है तथा इस ग्रंथ में याज्ञवल्क्य स्मृति पर व्याख्या की गई है।
प्रबंधचिंतामणि – इसकी रचना मेरुतुंग के द्वारा की गई थी।
तैलप द्वितीय
तैलप द्वितीय को कल्याणी के चालुक्य वंश का संस्थापक माना जाता है। इसका शासनकाल संभवत 973 से 977 ईसवी के मध्य माना जाता है। इसने अश्वमल की उपाधि धारण की थी। इसके दरबार में प्रबंध चिंतामणि ग्रंथ के रचनाकार मैं मेरूतुंग रहते थे। इसके बाद सत्याश्रय, विक्रमादित्य पंचम और जयसिंह द्वितीय राजा हुए।
सोमेश्वर प्रथम
इस का शासनकाल 1043 से 1068 ईसवी के मध्य में था। इन्होंने अपनी राजधानी मान्यखेट से हटाकर कल्याणी (कर्नाटक) में बनाई थी।
सोमेश्वर द्वितीय
इसका शासनकाल 1068 से 1076 ईसवी के मध्य में था। 1076 ईस्वी में विक्रमादित्य षष्ठ ने सोमेश्वर द्वितीय को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया और स्वयं संपूर्ण कल्याणी के साम्राज्य का राजा बन गया था।
विक्रमादित्य षष्ठ
विक्रमादित्य षष्ठ कल्याणी के चालुक्य बादामी राजाओं में सबसे प्रतापी और शक्तिशाली राजा था। इसका शासनकाल 1076 से 1126 ईसवी के मध्य में था। इसने विक्रमांक और त्रिभुवनमल की उपाधि धारण की थी। इस के दरबार में मिताक्षरा ग्रंथ के रचनाकार विज्ञानेश्वर रहते थे। इसके बाद सोमेश्वर तृतीय, जगेदकमल्ल द्वितीय, तैलप तृतीय और जगेदक मल्ल तृतीय राजा बने।
सोमेश्वर चतुर्थ
इसे बादामी के चालुक्य का आखरी राजा माना जाता है। 1189 सी में यादव वंश के राजा ने सोमेश्वर चतुर्थ को बुरी तरह पराजित करके कल्याणी छोड़ने पर मजबूर कर दिया था। सोमेश्वर चतुर्थ ने अपना बाकी जीवन गोवा में एक सामंत के रूप में व्यतीत किया था।
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