चंदेल वंश
History Of Chandel Dynasty
ऐतिहासिक स्रोत
अभिलेख
1) राजा धंगदेव का खजुराहो लेख
2) महोबा और मऊ के लेख
3) अजय गढ़ का लेख – मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में है।
4) हमीरपुर का नान्योरा लेख – उत्तर प्रदेश में है।
साहित्य
1) श्री कृष्ण मिश्र द्वारा रचित प्रबोध चंद्रोदय जो संस्कृत भाषा में लिखी हुई है।
2) याग्निक द्वारा रचित परमाल रासो ग्रंथ से। इस ग्रंथ का सिर्फ आल्हाखंड ही बचा हुआ है।
3) हसन निजामी के लेख
4) पृथ्वीराज रासो
संस्थापक
चंदेल वंश की स्थापना 831 ईसवी में नन्नूक (831-845 ई) ने की थी। नन्नूक ने कालिंजर (महोबा) को अपनी राजधानी बनाया। चंदेल वंश के प्रारंभिक राजा प्रतिहारों के सामंत थे। चंदेल वंश की स्थापना के समय प्रतिहार राजा नागभट्ट द्वितीय का शासन था। नन्नूक के पुत्र वाकपति थे। वाकपति के 2 पुत्र थे जय शक्ति और विजय शक्ति। जय शक्ति का वास्तविक नाम जेजाक था और उन्होंने ही अपने नाम पर पूरे चंदेल साम्राज्य का नाम जेजाकभुक्ति रखा था आज बुंदेलखंड कहा जाता है।
Note:-बुंदेलखंड का यह नाम ओरछा के बुंदेला राजा द्वारा प्रदान किया गया था।
Note:- कुछ इतिहासकार यह मानते हैं कि नन्नूक ने खजुराहो में चंदेल वंश की स्थापना की थी। उस समय खजुराहो को खजूर वाटिका या खजूर बगीचा कहा जाता था।
यशोवर्मन
यशोवर्मन ने खजुराहो में विष्णु मंदिर की स्थापना की। इस मंदिर को चतुर्भुज मंदिर भी कहा जाता है। इन्होंने चंदेल वंश का विस्तार भी किया मालवा और चेदी पर अधिकार कर किया था।
धंगदेव (950-1008)
यह यशोवर्मन का पुत्र था। धंगदेव पहले स्वतंत्र शासक बने। इन्होंने चंदेल वंश को प्रतिहार वंश से स्वतंत्र कराया। इन्होंने खजुराहो में जिन्नाथ, विश्वनाथ और बैद्यनाथ मंदिर का निर्माण कराया। इन्होंने राजधानी कालिंजर से खजुराहो में स्थापित किया। धंगदेव ने अपना शरीर गंगा जमुना के संगम पर त्याग दिया था।
गंडदेव (1008-1019)- यह धगदेव का पुत्र था। गंडदेव ने आनंदपाल द्वारा मोहम्मद गजनबी के खिलाफ बनाया गया संघ में भाग लिया था।
विद्याधर (1019-1029)
यह चंदेल वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली एवं प्रतापी शासक था। 1019 ईस्वी में इन्होंने गुर्जर प्रतिहार शासक राज्यपाल की हत्या कर दी क्योंकि राज्यपाल ने मोहम्मद गजनबी से युद्ध करने के बजाय युद्ध के मैदान को छोड़कर भाग गया था। विद्याधर ने मोहम्मद गजनबी के सेना के साथ युद्ध किया और इस युद्ध में मोहम्मद गजनबी ने इसे हरा नहीं पाया। इन्होंने परमार शासक राजा भोज को एवं कलचुरी शासक गांगेयदेव को परास्त किया था।खजुराहो में स्थित कंदरिया महादेव का स्थापना इसने ही की थी। कंदरिया महादेव मंदिर बेसर कला से निर्मित है।
कीर्तिवर्मन
इन के दरबार में विद्वान कृष्ण मिश्र रहा करते थे जिन्होंने प्रबोधचंद्रोदय की रचना की।
परमर्दिदेव
इसका मूल नाम परमाल था। 1182 ई में चौहान शासक पृथ्वीराज तृतीय ने इसे हरा दिया और चंदेल राज्य को अपने साम्राज्य में मिला लिया। इस युद्ध में परमर्दिदेव के दो सेनानायक आल्हा और उदल मारा गया।
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