गुर्जर प्रतिहार राजवंश का इतिहास | History Of Gurjar Pratihar Dynasty

Medieval History

गुर्जर प्रतिहार राजवंश

Gurjar Pratihar Dynasty

परिचय

Gurjar Pratihar Dynasty

गुर्जर प्रतिहार का शासन 7वीं से 12वीं शताब्दी के मध्य तक माना जाता है। मुहनौत नैनसी ने गुर्जर प्रतिहारो के 24 शाखाओं का उल्लेख किया है। गुर्जर प्रतिहार ओं का मूल स्थान मारवाड़ को माना गया है। इस वंश के शासक स्वयं को भगवान लक्ष्मण के वंशज मानते थे।

नामकरण

यह राजवंश दो शब्द गुर्जर और प्रतिहार से मिलकर बना है। पुलकेशिन द्वितीय एहोल अभिलेख से यह पता चलता है कि यह राजवंश गुर्जर जाति की एक शाखा थी इस वजह से इसके साथ गुर्जर शब्द जुड़ा। एक दूसरा कारण यह भी बताया जाता है कि इस राज वंश की उत्पत्ति राजस्थान के दक्षिण पश्चिम क्षेत्र में हुआ था और उस क्षेत्र को गुर्जरात्र प्रदेश कहां जाता था इस वजह से इस राजवंश के साथ गुर्जर शब्द जुड़ा हुआ था। प्रतिहार का शाब्दिक अर्थ होता है रक्षक और भगवान राम के रक्षक भाई लक्ष्मण को माना जाता है। इस राजवंश के राजा अपने आप को लक्ष्मण का वंशज मानते थे। इस वजह से इस राजवंश का नाम गुर्जर प्रतिहार राजवंश पड़ा।

गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति

❤️ कवि चंदबरदाई ने पृथ्वीराजरासो नामक ग्रंथ में कहा है कि प्रतिहार ओं का जन्म अग्निकुंड सिद्धांत से द्वारा हुआ है। इस सिद्धांत के अनुसार ऋषि वशिष्ठ ने आबू पर्वत पर राक्षसों के विनाश के लिए यज्ञ से 4 योद्धाओं को उत्पन्न किए थे। यह चार योद्धा थे परमार, प्रतिहार चौहान और चालुक्य कहलाए।

नागभट्ट प्रथम

नागभट्ट प्रथम का शासन काल संभवत 730 से 756 ई के मध्य माना जाता है। नागभट्ट प्रथम को प्रतिहार वंश का मूल के संस्थापक भी माना जाता है। नागभट्ट प्रथम को ग्वालियर अभिलेख में मलेच्छों का विनाशक कहा गया है। 725 ई में सोमनाथ मंदिर को तोड़ने वाले अरब सेनापति जुनैद को राजस्थान के युद्ध में नागभट्ट प्रथम ने पराजित किया था। नागभट्ट प्रथम के बाद कुकुक्क और देवराज ने 756 से 770 ई के मध्य शासन किया था परंतु उनके शासनकाल में कोई विशेष घटना नहीं हुई थी।

वत्सराज

ये देवराज के पुत्र और उत्तराधिकारी थे। वत्सराज का शासनकाल संभवत 770 से 805 ई के मध्य माना जाता है। वत्सराज के शासनकाल की जानकारी ग्वालियर के अभिलेख और जैन ग्रंथ कुवल्यमाला से प्राप्त होती है। वत्सराज को कुछ इतिहासकारों ने प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक भी माना है। वत्सराज को राष्ट्रकूट राजा ध्रुव ने पराजित किया था।

नागभट्ट द्वितीय

नागभट्ट द्वितीय वर्ष राज्य के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे। नागभट्ट द्वितीय का शासनकाल संभवत 805 से 833 ई के मध्य माना जाता है। नागभट्ट द्वितीय ने कन्नौज के राजा चक्रायुद्ध को पराजित करके कन्नौज पर अधिकार कर लिया था। 810 ई में राष्ट्रकूट राजा गोविंद तृतीय ने बुंदेलखंड के युद्ध में नागभट्ट द्वितीय को पराजित किया था। पर द्वितीय ने 815 ई में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था।

रामभद्र

रामभद्र नागभट्ट द्वितीय के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे। रामभद्र का शासनकाल 833 से 836 ईसवी तक माना जाता है। रामभद्र को बंगाल के पाल राजा देवपाल ने बुरी तरह पराजित किया था।

मिहिरभोज

मिहिरभोज रामभद्र के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे। मिहिर भोज का शासनकाल 836 से 850 ईसवी के मध्य माना जाता है। मिहिरभोज ने उत्तर प्रदेश के कन्नौज को अपनी राजधानी बनाई थी। मिहिर भोज ने ग्वालियर के तेली मंदिर का निर्माण भी करवाया था। ये भगवान विष्णु के भक्त थे। मिहिरभोज को प्रारंभ में कई पराजय का सामना करना पड़ा था परंतु अंत में इसने अपने साम्राज्य को फिर से खड़ा किया था। मिहिर भोज के सिक्कों में आदिवराह अंकित है इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि मिहिरभोज ने आदिवराह की उपाधि धारण की थी। पाल वंश के राजा देव पाल ने मिहिरभोज को परास्त किया था। देव पाल की मृत्यु के बाद ही मिहिर भोज ने अपने आप को स्वतंत्र घोषित किया था। कुछ इतिहासकार का मानना है कि कलचुरी वंश के राजा कोकल्ल ने भी मिहिरभोज को पराजित किया था।

Note:- अरब यात्री सुलेमान ने मिहिरभोज को इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन कहा था।

महेंद्रपाल प्रथम

महेंद्र पाल प्रथम मिहिर भोज के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे। महेंद्र पाल प्रथम का शासनकाल 885 से 910 ई तक माना जाता है। महेंद्र पाल प्रथम के शासनकाल में कोई महत्वपूर्ण घटना तो नहीं हुई परंतु उसने अपने साम्राज्य को सुरक्षित रखा था। महेंद्र पाल प्रथम के बाद भोज द्वितीय राजा बने जिसने 910 से 912 ई तक शासन किया था।

महीपाल

महिपाल का शासनकल 912 से 944 ई के मध्य माना जाता है। महिपाल के दरबार में संस्कृत के महान कवि तथा नाटककार राजशेखर रहते थे जिन्होंने कर्पूरमंजरी, बाल रामायण, बाल भारत और काव्यमीमांसा नामक ग्रंथों की रचना की थी। महेंद्र पाल के बाद महेंद्र पाल द्वितीय, देवपाल, विनयपाल, महिपाल द्वितीय और विजयपाल राजा हुए परंतु इनमें से कोई योग्य राजा नहीं हुआ।

राज्यपाल

राज्यपाल के शासनकाल 1018 ई में महमूद गजनबी ने कन्नौज पर आक्रमण किया और खूब लूटपाट मचाई परंतु राज्यपाल ने उसका मुकाबला नहीं किया और कन्नौज छोड़कर भाग गया था। जिससे नाराज होकर बुंदेलखंड के चंदेल वंश के राजा गंडदेव ने अपने पुत्र विद्याधर देव को भेजकर राज्यपाल की हत्या करवा दी थी।

त्रिलोचनपाल

त्रिलोचन पाल, राज्यपाल के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे। त्रिलोचन पाल का शासनकाल संभवत 1019 से 1027 ई के मध्य माना जाता है। त्रिलोचन पाल के शासनकाल में फिर से मोहम्मद गजनबी ने आक्रमण कर लूटपाट मचाई लेकिन त्रिलोचनपाल ने महमूद गजनबी का सामना नहीं किया।

यशपाल

यशपाल त्रिलोचनपाल के पुत्र तथा उत्तराधिकारी थे। यशपाल का शासनकाल 1027 से 1036 ई के मध्य माना जाता है यशपाल को गुर्जर प्रतिहार वंश का अंतिम राजा भी माना जाता है। 1036 ई में यशपाल की हत्या चंद्रदेव के द्वारा कर दी जाती है और कन्नौज पर एक नए राजवंश गढ़वाल वंश का उदय हो जाता है।

Gurjar Pratihar Dynasty

मौर्यकालीन झारखंड Video

https://youtu.be/AnHYinlrV-k

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