मौलिक अधिकार
उत्पत्ति – मूल अधिकारों का सर्वप्रथम विकास ब्रिटेन में हुआ जब १२१५ में सम्राट जॉन को ब्रिटिश जनता ने प्राचीन स्वतंत्रताओं को मान्यता प्रदान करेने हेतु “मैग्ना कार्टा” पर हस्ताक्षर करने को बाध्य कर दिया था। इसलिए मुल अधिकार को भारत के संविधान का मैग्नार्टा भी कहते हैं। भारत के मूल अधिकार अमेरिका से लिए गए
संविधान में स्थिति – संविधान के भाग III (अनुच्छेद 12-35 तक) में मौलिक अधिकारों का विवरण है। मूल संविधान में सात मौलिक अधिकार थे परन्तु वर्तमान में छः ही मौलिक अधिकार हैं। मौलिक अधिकार निम्नलिखित हैं।
समानता का अधिकार अनुच्छेद (14-18)
स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद (19-22)
19 1 (f) सम्पत्ति रखने की स्वतंत्रता (अब समाप्त हो गया)
शोषण के विरूद्ध अधिकार अनुच्छेद (23-24)
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद (25-28)
शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार अनुच्छेद (29-30)
संवैधानिक उपचारों का अधिकार अनुच्छेद 32
संपत्ति का अधिकार – संपत्ति के अधिकार को वर्ष 1978 में 44वें संविधान संशोधन द्वारा मौलिक अधिकार से विधिक अधिकार में परिवर्तित कर दिया गया था। साथ ही 19 1(f) को भी हटा दिया गया जिसमे संपत्ति रखने की स्वतंत्रता प्रदान की गई थी।
Note – 44वें संविधान संशोधन से पहले यह अनुच्छेद-31 के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार था, परंतु इस संशोधन के बाद इस अधिकार को अनुच्छेद- 300(A) (भाग – 12) के अंतर्गत एक विधिक अधिकार के रूप में स्थापित किया गया। सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार भले ही संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार नहीं रहा इसके बावजूद भी राज्य किसी व्यक्ति को उसकी निजी संपत्ति से उचित प्रक्रिया और विधि के अधिकार का पालन करके ही वंचित कर सकता है।
मौलिक अधिकारों की विशेषताएँ:
1. संविधान द्वारा संरक्षित: सामान्य कानूनी अधिकारों के विपरीत मौलिक अधिकारों को देश के संविधान द्वारा सुरक्षा प्रदान की गई है।
2.कुछ अधिकार सिर्फ नागरिकों के लिये उपलब्ध हैं, ऐसे 5 Article है:- 15, 16, 19, 29 और 30। बाकी सारे अधिकार विदेशियों को भी प्राप्त है।
3. ये स्थायी नहीं हैं। संसद इनमें कटौती कर सकती है, लेकिन संशोधन अधिनियम के तहत, न कि साधारण विधेयक द्वारा।
4. ये असीमित नहीं हैं, लेकिन वाद योग्य हैं। राज्य उन पर उचित प्रतिबंध लगा सकता है। हालाँकि कारण उचित है या नहीं इसका निर्णय अदालत करती है।
5. ये न्यायोचित हैं। जब भी इनका उल्लंघन होता है ये व्यक्तियों को अदालत जाने की अनुमति देते हैं।
6. मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामले में कोई भी पीड़ित व्यक्ति सीधे सर्वोच्च न्यायालय की शरण में जा सकता है।
समानता का अधिकार
Trick – Eq DOUBT
Eq – Equality before law & Equal Protection of Law (The State shall not deny to any person equality before the law or the equal protection of the laws within the territory of India, on grounds of religion, race, caste, sex or place of birth)
D – Discrimanation (The State shall not discriminate against any citizen on grounds only of religion, race, caste, sex, place of birth or any of them)
O – Opportunity (There shall be equality of opportunity for all citizens in matters relating to employment or appointment to any office under the State)
U – Untouchabiity (Abolition of untouchability)
B – Silent
T – Title (Abolition of all titles except military and academic)
कानून के समक्ष समानता और कानूनों के समान संरक्षण (अनुच्छेद 14) –अनुच्छेद 14 में कहा गया है कि भारत के राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता और विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं किया जाएगा। प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह देश का नागरिक हो या विदेशी सब पर यह अधिकार लागू होता है। इसके अतिरिक्त व्यक्ति शब्द में विधिक व्यक्ति (संवैधानिक निगम, कंपनियाँ, पंजीकृत समितियाँ) भी सम्मिलित है।
अपवाद
1) अनुच्छेद 361 के अंतर्गत राष्ट्रपति या राज्यपाल अपने कार्यकाल में किये गए किसी कार्य या लिये गए किसी निर्णय के प्रति देश के किसी भी न्यायालय में जवाबदेह नहीं होंगे। राष्ट्रपति या राज्यपाल के विरुद्ध उसकी पदावधि के दौरान किसी न्यायालय में किसी भी प्रकार की दंडात्मक कार्यवाही प्रारंभ या चालू नहीं की जा सकती है।
2) अनुच्छेद 361-A के अनुसार, कोई भी व्यक्ति यदि संसद या राज्य विधानसभा के दोनों सदनों या दोनों में से किसी एक की सत्य कार्यवाही से संबंधित विषय-वस्तु का प्रकाशन समाचार-पत्र में करता है तो उस पर किसी भी प्रकार का दीवानी या फौजदारी मुकदमा देश के किसी भी न्यायालय में नहीं चलाया जा सकता है।
3) अनुच्छेद 105 के अनुसार, संसद या उसकी किसी समिति में संसद के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिये गए किसी मत के संबंध में उसके विरुद्ध न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।
4) अनुच्छेद 194 के अनुसार, राज्य के विधानमंडल में या उसकी किसी समिति में विधानमंडल के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिये गए किसी मत के संबंध में उसके विरुद्ध न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।
5) विदेशी संप्रभु (शासक), राजदूत एवं कूटनीतिज्ञ, दीवानी एवं फौजदारी मुकदमों से मुक्त होंगे।
भेदभाव का निषेध (अनुच्छेद 15) – अनुच्छेद 15 में यह प्रावधान है कि राज्य द्वारा किसी नागरिक के प्रति केवल धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान को लेकर विभेद नहीं किया जाएगा। सार्वजनिक स्थानों तक पहुंच का अधिकार सभी के लिए होगा। तालाबों, कुओं, घाटों आदि का उपयोग जिनका रखरखाव राज्य द्वारा किया जाता है या जो आम जनता के लिए हैं।
अपवाद –महिलाओं, बच्चों, सामाजिक या शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों या अनुसूचित जाति या जनजाति के लोगों के उत्थान के लिये कुछ प्रावधान किये जा सकते हैं।
सार्वजनिक रोजगार के मामलों में अवसर की समानता (अनुच्छेद 16) – भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 में राज्य के अधीन किसी पद पर नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिये अवसर की समता होगी।
अपवाद-राज्य नियुक्तियों में आरक्षण का प्रावधान करता है या किसी पद को पिछड़े वर्ग के पक्ष में बना सकता है जिसका कि राज्य में समान प्रतिनिधित्व नहीं है।
अस्पृश्यता का उन्मूलन (अनुच्छेद 17) – अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता को समाप्त करने की व्यवस्था और किसी भी रूप में इसका आचरण निषिद्ध करता है। अस्पृश्यता से उपजी किसी निर्योग्यता को लागू करना अपराध होगा, जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा।अस्पृश्यता के अपराध के दोषी व्यक्ति को संसद या राज्य विधानसभा के लिये चुनाव हेतु अयोग्य घोषित किया जाता है।
उपाधियों का उन्मूलन (अनुच्छेद 18) – भारत के संविधान का अनुच्छेद 18 उपाधियों का अंत करता है और इस संबंध में निम्न प्रावधान करता है:
1. यह निषेध करता है कि राज्य सेना या शिक्षा संबंधी सम्मान के अलावा और कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा।
2. यह निषेध करता है कि भारत का कोई नागरिक विदेशी राज्य से कोई उपाधि प्राप्त नहीं करेगा।
3. कोई विदेशी, राज्य के अधीन लाभ या विश्वास के किसी पद को धारण करने वाला कोई व्यक्ति किसी विदेशी राज्य से कोई भी उपाधि भारत के राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं कर सकता है।
4. राज्य के अधीन लाभ या विश्वास का पद धारण करने वाला कोई व्यक्ति किसी विदेशी राज्य से या उसके अधीन किसी रूप में कोई भेंट, उपलब्धि या पद राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं कर सकता है।
5. यह उन उपाधियों को समाप्त कर देता है जो ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा प्रदान की जाती थीं, जैसे कि राय बहादुर, खान बहादुर, आदि।
6. पद्म श्री, पद्म भूषण, पद्म विभूषण, भारत रत्न जैसे पुरस्कार और अशोक चक्र, परमवीर चक्र जैसे सैन्य सम्मान इस श्रेणी में नहीं आते हैं।
स्वतंत्रता का अधिकार
अनुच्छेद 19 (1) – अनुच्छेद 19 सभी नागरिकों को स्वतंत्रता के छह अधिकारों की गारंटी देता है। वही अनुच्छेद 19 (2) -19 (6) राज्य को अनुच्छेद 19 (1) में Resonable Restriction लगाने का अधिकार देता है:
A. वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार (Freedom of speech and expression) – यह प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति दर्शाने, मत देने, विश्वास एवं अभियोग लगाने की मौखिक, लिखित, छिपे हुए मामलों पर स्वतंत्रता देता है।
19 1 (a) के अंतर्गत निम्न अधिकार भी आते है:-
A) राष्ट्रीय ध्वज फहराने का अधिकार।
B) सूचना का अधिकार
C) प्रेस की स्वतंत्रता
D) Right to Advertisement
E) Right to remain silent
अनुच्छेद 19 (2) – इस अनुच्छेद द्वारा राज्य निम्नलिखित 8 आधारों पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित कर सकता है
- मानहानि
- विदेशी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध
- राष्ट्रीय सुरक्षा
- राज्य की अखंडता और एकता
- सार्वजनिक व्यवस्था
- Morality
- Incitement to an offence
- Contempt of Court
B. शांतिपूर्वक सम्मेलन में भाग लेने की स्वतंत्रता का अधिकार (Freedom to assemble peacefully) – किसी भी नागरिक को बिना हथियार के शांतिपूर्वक संगठित होने का अधिकार है। इसमें सार्वजनिक बैठकों में भाग लेने का अधिकार एवं प्रदर्शन शामिल है। इस स्वतंत्रता का उपयोग केवल सार्वजनिक भूमि पर बिना हथियार के किया जा सकता है। यह व्यवस्था हिंसा, अव्यवस्था, गलत संगठन एवं सार्वजनिक शांति भंग करने के लिये नहीं है।
अनुच्छेद 19 (3) – यह अनुच्छेद राज्य को इस पर तीन resonable restriction लगाने का अधिकार देता है:- SIP (Soverginity, Intrigity & Pubic Order).
C. संगठन या संघ बनाने का अधिकार ही (Freedom to form associations/unions/cooperative societies)- इसमें राजनीतिक दल बनाने का अधिकार, कंपनी, साझा फर्म, समितियाँ, क्लब, संगठन, व्यापार संगठन या लोगों की अन्य इकाई बनाने का अधिकार शामिल है।
Note:- Right to Strike 19 1(C) के अंतर्गत नहीं आता है।
अनुच्छेद 19 (4) इस पर राज्य को 4 reasonable restriction लगाने का अधिकार देता है : – SIPM (Soverginity, Intrigity & Pubic Order, Morality).
D. अबाध संचरण की स्वतंत्रता का अधिकार (Freedom to move freely) – भारत का नागरिक पूरे भारत में स्वतंत्र रूप से घूम सकता है।
अनुच्छेद 19 (5) – इस अधिकार को सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था या अनुसूचित जनजातियों के हितों की रक्षा के आधार पर राज्य द्वारा प्रतिबंधित भी किया जा सकता है।
Note:- संचरण की स्वतंत्रता के दो भाग हैं- आंतरिक (देश में निर्बाध संचरण) (अनुच्छेद 19) और बाहरी (देश के बाहर घूमने का अधिकार तथा देश में वापस आने का अधिकार), (अनुच्छेद 21)।
E. निवास का अधिकार (Freedom of residence) – भारत के नागरिकों को देश के किसी भी हिस्से में रहने का अधिकार है। हालाँकि सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था या अनुसूचित जनजाति के हितों की रक्षा के आधार पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। भारत का नागरिक पूरे भारत में स्वतंत्र रूप से घूम सकता है।
अनुच्छेद 19 (5) – इस अधिकार को सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था या अनुसूचित जनजातियों के हितों की रक्षा के आधार पर राज्य द्वारा प्रतिबंधित भी किया जा सकता है।
F – Abolished
G. व्यवसाय आदि की स्वतंत्रता का अधिकार (Freedom of profession)- इस अधिकार में कोई अनैतिक कृत्य शामिल नहीं है, जैसे- महिलाओं या बच्चों का दुरुपयोग या खतरनाक (हानिकारक औषधियों या विस्फोटक आदि) व्यवसाय।
अनुच्छेद 19 (6) – यह अनुच्छेद राज्य को यह अधिकार देता है कि वह किसी व्यापार व्यवसाय के लिए रीजनेबल रिस्ट्रिक्शन लगा सकता है।
Note:- Article 19 को Backbone of Fundamental Right कहा जाता है।
अपराध के लिये दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण – अनुच्छेद 20 के तहत किसी भी व्यक्ति को तब तक अपराधी नहीं माना जायेगा जब तक कि उस पर आरोप साबित नहीं हो जाता है, और इस सम्बन्ध में अनुच्छेद 20 के तहत समस्त नागरिकों को सरंक्षण प्रदान किया गया है।यह अधिकार नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों के लिये उपलब्ध है। अनुच्छेद 20 के तहत किसी भी नागरिक को 3 प्रकार की स्वतंत्रताएं प्रदान की गई हैं:
1. किसी भी व्यक्ति को अपराध के लिये तब तक दोषी नहीं ठहराया जाएगा, जब तक कि ऐसा कोई कार्य करते समय, किसी कानून का उल्लंघन नहीं किया है।
2. किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक बार से अधिक मुकदमा नही चलाया जायेगा और एक बार से अधिक दंडित नहीं किया जाएगा।
3. किसी अपराध के लिए अभियुक्त किसी व्यक्ति को स्वयं अपने विरुद्ध साक्षी होने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।
Note:- सेल्वी बनाम कर्नाटक केस में उच्चतम न्यायालय ने नार्को एनालिसिस और ब्रेन मैपिंग पर प्रतिबंध लगा दिया है किंतु डीएनए परीक्षण को लागू किया है।
प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता: अनुच्छेद 21 में घोषणा की गई है कि किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा अन्यथा नहीं। यह अधिकार नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों के लिये उपलब्ध है।
Note:- मेनका गांधी वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया की अनुच्छेद 21 के तहत प्राण का अर्थ केवल जीवित रहना मात्र नहीं है इसके अंतर्गत मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार (right to live with dignity) भी शामिल है।
Note:- पुत्तूस्वामी बनाम भारत वाद में निजता के अधिकार (Right Of Privacy) को अनुच्छेद 21 के अंतर्गत माना है। निजता के अधिकार को सुनिश्चितता प्रदान करने के लिए भारतीय सरकार ने डेटा (गोपनीयता और संरक्षण) विधेयक 2017 को पारित किया है।
Note:- उन्नीकृष्णन बनाम आंध्र प्रदेश राज्य वार्ड 1993 में उच्चतम न्यायालय ने निम्नलिखित मुद्दे को अनुच्छेद 21 के अंतर्गत रखा है:-
1. विदेश यात्रा का अधिकार
2. निजता का अधिकार
3. आश्रय का अधिकार
4. सामाजिक न्याय और आर्थिक सशक्तिकरण का अधिकार
5. एकांत कारावास के विरुद्ध अधिकार
6. हथकड़ी लगाने के विरुद्ध अधिकार
7. मृत्युदंड में देरी के विरुद्ध अधिकार
8. बंदीगृह में मृत्यु के विरुद्ध अधिकार
9. सार्वजनिक रूप में फांसी के विरुद्ध अधिकार
10 चिकित्सकीय सहायता का अधिकार
11. सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा का अधिकार
12. प्रत्येक शिशु के पूर्ण विकास का अधिकार
13. प्रदूषण मुक्त वायु एवं जल का अधिकार।
शिक्षा का अधिकार:अनुच्छेद 21(A) में घोषणा की गई है कि राज्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराएगा।
Note:-यह प्रावधान केवल आवश्यक शिक्षा के लिए है, न कि उच्च या व्यावसायिक शिक्षा के संदर्भ में। यह प्रावधान 86वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2002 के अंतर्गत किया गया था। 86वें संशोधन से पहले भी संविधान में भाग IV के अनुच्छेद 45 के तहत बच्चों के लिये निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान था।
Note:- अनुच्छेद 20 और 21 को किसी भी स्थिति में निलंबित नहीं किया जा सकता है (आपातकाल में भी नही) और यह अधिकार भारतीय तथा विदेशियों दोनों को प्राप्त है।
कुछ दशाओं में हिरासत एवं गिरफ्तारी से संरक्षण: अनुच्छेद 22 किसी व्यक्ति को हिरासत एवं गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान करता है। इस अनुच्छेद में 7 भाग है:-
1) यह खंड किसी गिरफ्तार व्यक्ति के लिए दो अधिकार को निश्चित करता है:-
a) गिरफ्तारी के कारण को शीघ्र जानने का अधिकार।
b) वकील से सलाह लेने तथा उसके द्वारा बचाव करने का अधिकार।
Note:- अगर कोई व्यक्ति अपना वकील की सहायता लेने में असमर्थ है तो राज्य उसे मुक्त विधिक सहायता प्रदान करेगा। अन्यथा इस अनुच्छेद 21 का उल्लंघन समझा जाएगा।
Note – भारत के संविधान का अनुच्छेद 39A समाज के गरीब और कमजोर वर्गों को मुफ्त विधिक सहायता प्रदान करता है।
2) गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के सामने उपस्थित किया जाएगा। इस समय में गिरफ्तार व्यक्ति को लाने के समय को नहीं जोड़ा जाएगा।
3) उपरोक्त दोनों अधिकार निम्न व्यक्ति को नहीं प्रदान किया जाएगा:-
a) विदेशी शत्रु और
b) उस व्यक्ति को जिसे निवारक निरोध के तहत गिरफ्तार किया गया है।
4) निवारक निरोध कानून के तहत अगर किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है तो उसे अधिकतम तीन माह तक कैद रखा जा सकता है अगर इससे ज्यादा दिन तक कैद में रखना हो तो तीन सदस्य वाले सलाहकार बोर्ड की अनुमति लेना अनिवार्य है।
Note:- 44 व संविधान संशोधन में निरोध की अवधि को घटकर 2 महीने कर दिया गया है। किंतु अब तक यह प्रक्रिया में नहीं है तथा अभी 3 महीने ही निरोध का समय है।
5) जिस व्यक्ति को निवारक निरोध कानून के तहत गिरफ्तार किया गया है उसे भी गिरफ्तारी के कारण को शीघ्र जानने का अधिकार है।
6) कोई भी अधिकारी जिसने किसी व्यक्ति को निवारक निरोध कानून के तहत गिरफ्तार किया है उसे गिरफ्तारी के कारण को बताने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है अगर मामला जनहित में हो तो।
7) सांसद कानून बनाकर निवारक निरोध की सीमा तय कर सकती है इसके लिए सलाहकार बोर्ड की अनुमति की जरूरत नहीं है।
Note:- निम्नलिखित कानून में किसी व्यक्ति को 3 महीने से अधिक समय तक गिरफ्तार किए जाने के संबंध में प्रावधान है: –
1. राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA)/National Security Act), 1980/
2. विदेशी मुद्रा का संरक्षण एवं व्यसन निवारण अधिनियम (COFEPOSA)/The Conservation of Foreign Exchange and Prevention of Smuggling Activities Act (COFEPOSA), 1974
3. आतंकवाद निवारक कानून( POTA)/Prevention of Terrorism Act, 2002
शोषण के विरुद्ध अधिकारअनुच्छेद (23 और 24) – संविधान के दो अनुच्छेद 23 और 24 शोषण के विरुद्ध अधिकार की गारंटी देते हैं।
अनुच्छेद 23 – मानव तस्करी (मानव व्यापार, कबूतरबाजी), बलपूर्वक श्रम (भिखारी, वेश्यावृत्ति आदि) और बेगारी का निषेध।
Note:- दास प्रथा, बच्चों तथा स्त्रियों के साथ अनैतिक व्यवहार, बंधुआ मजदूरी अनुच्छेद 23 के अंतर्गत आता है।
Note:- स्वेच्छा से किया गया कार्य, दंडस्वरूप लिया गया कार्य राज्य द्वारा ली गई अतिरिक्त सेवाएं को बलात श्रम नहीं माना जाएगा।
Note – संविधान के अनुच्छेद 35 के तहत, संसद अनुच्छेद 23 द्वारा निषिद्ध कृत्यों को दंडित करने के लिए कानून बनाने के लिए अधिकृत है। अनुच्छेद 23 के अनुसरण में संसद द्वारा पारित कानून:
1. In 1986, the Suppression of Immoral Traffic in Women and Girls Act (SITA) was amended and renamed the Immoral Traffic (Prevention) Act.
महिलाओं और लड़कियों के अनैतिक व्यापार का दमन अधिनियम, 1956
2. बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976
Note:- अनुच्छेद 23 किसी भी प्रकार के शोषण पर रोक लगाता है। साथ ही, पारिश्रमिक दिए जाने पर भी किसी को उसकी इच्छा के विरुद्ध श्रम में शामिल होने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। भले ही संविधान स्पष्ट रूप से ‘गुलामी’ पर प्रतिबंध नहीं लगाता है, लेकिन ‘जबरन श्रम’ और ‘यातायात’ शब्दों को शामिल करने के कारण अनुच्छेद 23 का दायरा व्यापक है।
Note:- अनुच्छेद 23 के खंड 2 का तात्पर्य है कि सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए अनिवार्य सेवाएँ (जैसे सशस्त्र बलों में भर्ती) असंवैधानिक नहीं हैं।
Note:- अनुच्छेद 23, 24 और अनुच्छेद 17 नागरिको को न केवल राज्य से बल्कि निजी नागरिकों से भी बचाता है। और यह तीन ऑन अधिकार पूरी तरह से Absolute है।
अनुच्छेद 24 – यह बाल श्रम पर प्रतिबंध लगाता है। अनुच्छेद 24 कहता है कि “चौदह वर्ष से कम उम्र के किसी भी बच्चे को किसी कारखाने खदान या किसी अन्य खतरनाक रोजगार में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा।
Note:- यह अनुच्छेद बिना किसी अपवाद के किसी भी खतरनाक उद्योग या कारखानों या खदानों में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के रोजगार पर रोक लगाता है। हालाँकि, गैर-खतरनाक कार्यों में बच्चों के रोजगार की अनुमति है।
Note:- अनुच्छेद 24 को आधार प्रदान करने के लिए भारतीय सरकार ने बालश्रम (प्रतिषेध विनियमन) 1986 पारित किया जिसमे 14 साल के बच्चे के जोखिम बालश्रम को प्रतिबंधित किया गया था। 2006 में इसे संशोधित करके घरों एवं होटल में कार्य को भी प्रतिबंधित कर दिया गया। 2016 में इसे पुणे संशोधित किया गया तथा बाल श्रम को किसी भी रोजगार या व्यवसाय (जोखिम या बिना जोखिम दोनो) में प्रतिबंधित घोषित किया गया। इस संशोधन में दंड का प्रावधान माता-पिता तथा नियोक्ता दोनों के लिए निर्धारित किया गया। 6 माह से 2 वर्ष की सजा तथा 20k से 50k जुर्माना। अगर यह गलती दोबारा की गई जाती है तो यह सजा एक वर्ष से 3 वर्ष तक हो सकती है।
घरेलू व्यवसाय में छुट – हालांकि घरेलू व्यवसाय में बाल श्रम को छूट दी गई है। किंतु यह श्रम स्कूल के समय पर नहीं कराया जाएगा तथा अधिकतम 3 घंटे का श्रम होगा। बाल कलाकारों को 5 घंटे कार्य करने की छूट दी गई है किंतु एक समय में लगातार 3 घंटे तक की छूट है। बाल श्रम शाम 7:00 बजे के बाद तथा सुबह 8:00 बजे से पहले नहीं कराया जा सकता है।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद 25- 28
अनुच्छेद 25: – यह धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है। जिसमें किसी धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का अधिकार शामिल है।
Note:- अनुच्छेद 25 किसी व्यक्ति को किसी धर्म न मानने का अधिकार भी देता है। किसी आदमी के धर्म परिवर्तन में कोई दबाव नहीं बनाया जा सकता है।
Note:- अनुच्छेद 25 (1) के अनुसार तीन आधारों पर धार्मिक स्वतंत्रता को प्रतिबंध किया जा सकता है वह है लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य।
Note:- अनुच्छेद 25 (2) के अनुसार सिख बुद्ध और जैन को हिंदू माना गया है। इसी अनुच्छेद में सिखों को कृपाण रखने का अधिकार दिया गया है। इस अनुच्छेद में यह स्पष्टीकरण किया गया है कि धार्मिक अधिकार होने के बावजूद भी सरकार धार्मिक आचरण का नियमन कर सकती है।
अनुच्छेद 26: यह धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता देता है।
Note:- यह अधिकार किसी धार्मिक समुदाय या उसके उपवर्गों को प्राप्त है। इस अनुच्छेद के तहत किसी धर्मार्थ या पुर्त (Charitable) संस्थाओं की स्थापना किया जा सकता है। किसी धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया जा सकता है। संस्थाओं द्वारा चल या अचल संपत्ति खरीदा या बेचा जा सकता है।
Note:- धार्मिक कार्यों का प्रबंधन व्यक्तियों के द्वारा बनाए गए संस्था द्वारा किया जा सकता है वही विधि द्वारा स्थापित संस्थाओं के द्वारा धार्मिक कार्य का आयोजन नहीं किया जा सकता है।
अनुच्छेद 27 – इस अनुच्छेद के अनुसार राज्य कोई ऐसा कर नहीं लगा सकता है जिसका खर्च किसी धर्म विशेष की उन्नति के लिए किया जाय।
Note:- अनुच्छेद 27 राज्य को धार्मिक कर आरोपित करने से मना करता किंतु जरूरत के अनुसार शुल्क लगा सकता है।
अनुच्छेद 28 – इस अनुच्छेद में 3 बातों का जिक्र है।
1. पूर्णतः राज्य द्वारा वित्त संपोषित शिक्षण संस्थान में किसी प्रकार की धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी। यह कुछ शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा अथवा धार्मिक पूजा में उपस्थिति होने की स्वतंत्रता देता है।
2. ऐसी संस्थाएं जो किसी धर्मस्व या न्यास (Endowment or trust) द्वारा धार्मिक शिक्षा प्रदान करने के लिए बनाई गई हो वहां धार्मिक शिक्षा दी जा सकती है।
3. राज्य द्वारा सहायता प्राप्त या मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थान में धार्मिक शिक्षा दी जा सकती है किंतु किसी को धार्मिक शिक्षा लेने से तथा प्रार्थना में शामिल होने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।
न्यायिक विवेचनायें
1. कैथोलिक विश्व काउंसिल बना एम मध्य प्रदेश सरकार विवाद में यह निर्णय निकलकर आया की गीता का अध्ययन नैतिक शिक्षा का एक अंग है और इसे किसी भी सन में पढ़ाया जा सकता है।
2. एस आर बोम्मई केस में पंथनिरपेक्षता को संविधान की मूलभूत संरचना के अंतर्गत माना है।
3. एम इस्माइल फारुकी बनाम केंद्र सरकार के केस में अजान/ कीर्तन में सरकार की पाबंदी को वैध माना है।
4. नैतिक शिक्षा या धार्मिक शिक्षा देना पंथनिरपेक्षता के खिलाफ नहीं है यह निर्णय अरुणा राय बनाम भारत संघ केस में दिया गया है।
संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29-30)
संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने इसे भारत की संविधान की आत्मा और ह्रदय कहा है। इस अनुच्छेद में कल कर भाग है: –
अनुच्छेद 32 (1) – कोई भी नागरिक अपने मौलिक अधिकारों को प्रवर्तन करने के लिए उच्चतम न्यायालय जा सकता है।
Note:- अनुच्छेद 226 के अनुसार कोई भी नागरिक को अपने मौलिक अधिकारों के हनन होने पर प्रवर्तन करने के लिए उच्च न्यायालय जा सकता है।
अनुच्छेद 32 (2)- उच्चतम न्यायालय मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए आदेश/निर्देश और पांच रिट जारी कर सकता है।
यह पांच रेट निम्नलिखित है:-
1. बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) -इसके अंतर्गत गिरफ्तारी का आदेश जारी करने वाले अधिकारी को आदेश देता है कि वह बंदी को न्यायाधीश के सामने उपस्थिति दर्ज करें और उसके कैद करने की वजह बताए। न्यायाधीश अगर उन कारणों से असंतुष्ट होता है तो बंदी को छोड़ने का हुक्म जारी कर सकता है।
2. परमादेश (Mandamus) – इसके द्वारा न्यायालय अधिकारी को आदेश देती है कि वह उस कार्य को करें जो उसके क्षेत्र अधिकार के अंतर्गत है।
3. प्रतिषेध (Prohibition) -किसी भी न्यायिक या अर्द्ध-न्यायिक संस्था के विरुद्ध जारी हो सकता है, इसके माध्यम से न्यायालय के न्यायिक अर्द्ध-न्यायिक संस्था को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर निकलकर कार्य करने से रोकती है।
प्रतिषेध रिट का मुख्य उद्देश्य किसी अधीनस्थ न्यायालय को अपनी अधिकारिता का अतिक्रमण करने से रोकना है तथा विधायिका, कार्यपालिका या किसी निजी व्यक्ति या निजी संस्था के खिलाफ इसका प्रयोग नहीं होता।
4. उत्प्रेषण (Certiorari) – यह रिट किसी वरिष्ठ न्यायालय द्वारा किसी अधीनस्थ न्यायालय या न्यायिक निकाय जो अपनी अधिकारिता का उल्लंघन कर रहा है, को रोकने के उद्देश्य से जारी की जाती है।
प्रतिषेध व उत्प्रेषण में एक अंतर है। प्रतिषेध रिट उस समय जारी की जाती है जब कोई कार्यवाही चल रही हो। इसका मूल उद्देश्य कार्रवाई को रोकना होता है, जबकि उत्प्रेषण रिट कार्रवाई समाप्त होने के बाद निर्णय समाप्ति के उद्देश्य से की जाती है।
5. अधिकार पृच्छा (Qua Warranto) – यह इस कड़ी में अंतिम रिट है जिसका अर्थ ‘आप क्या प्राधिकार है?’ होता है यह अवैधानिक रूप से किसी सार्वजनिक पद पर आसीन व्यक्ति के विरुद्ध जारी किया जाता है।
Note:- उच्च न्यायालय अनुच्छेद 226 के तहत और उच्चतम न्यायालय अनुच्छेद 32 के तहत रिट जारी कर सकता है। उच्चतम न्यायालय सिर्फ मौलिक अधिकार से संबंधित रेट मामलों में रिट जारी कर सकता है वहीं उच्च न्यायालय मौलिक अधिकार के अलावा अन्य मामलों में भी रिट जारी कर सकता है। इसका अर्थ यह है कि उच्च न्यायालय का रिट जारी करने का अधिकार ज्यादा व्यापक है।
अनुच्छेद 32 (3) – सांसद विधि बनाकर रिट जारी करने की शक्ति निचले अदालतों को भी दे सकता है।
अनुच्छेद 32 (4) – मूल अधिकार को तब तक निलंबन नहीं किया जा सकता है जब तक की संविधान में ही कहीं और इसका जिक्र ना हो।
Note:- संविधान में दो स्थानों में मूल अधिकार केनिलंबन की बात की गई है:-
अनुच्छेद 358 – राष्ट्रीय आपात के दौरान अनुच्छेद19 (1) का निलंबन
अनुच्छेद 359- राष्ट्रीय आपात के दौरान अनुच्छेद कुछ या सारे मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 20 और 21 को छोड़कर) का निलंबन अधिसूचना जारी करके किया जा सकता है।
Note:- ठाकुरदास भार्गव ने संविधान की प्रस्तावना को संविधान की आत्मा कहा है।