एंग्लो मराठा युद्ध | Anglo Maratha War

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एंग्लो मराठा युद्ध

पृष्ठभूमि

अंग्रेजों की स्थिति – मद्रास प्रेसीडेंसी जिसे आधिकारिक तौर पर फोर्ट सेंट जॉर्ज प्रेसीडेंसी या मद्रास प्रोविंस के रूप में भी जाना जाता है।। इसकी स्थापना 1639 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी फ़्रांसिस डे ने चंद्रागिरी के राजा से कुछ भूमि खरीदकर फोर्ट सेंट जॉर्ज नगर की स्थापना की थी

1661 में पुर्तगाल की राजकुमारी कैथरीन ऑफ ब्रेगेंजा एवं ब्रिटिश राजकुमार चार्ल्स द्वितीय का विवाह संपन्न हुआ इस अवसर पर पुर्तगालियों ने चार्ल्स द्वितीय को मुंबई दहेज के रूप में प्रदान किया। 1668 में चार्ल्स द्वितीय ने मुंबई को 10 पाउंड के वार्षिक किराए पर ईस्ट इंडिया कंपनी को दे दिया था।

1757 में प्लासी के युद्ध तथा 1764 में बक्सर के युद्ध के बाद अंग्रेजों की प्रभुसत्ता बंगाल पर स्थापित हो जाती है। 1767-69 के आंग्ल मैसूर युद्ध में हैदर अली ने मराठों और निजाम द्वारा समर्थित अंग्रेज़ी सेना को पराजित कर दिया।

हैदराबाद के निजाम की स्थिति – 1752 में झलकी के युद्ध में बाजीराव-1 ने हैदराबाद के निजाम को हराकर झलकी की संधी की।

पानीपत का तीसरा युद्ध- पानीपत का तीसरा युद्ध 1761 में अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच लड़ा गया था और इस युद्ध में मराठों को पराजय का सामना करना पड़ा था।

पानीपत के तीसरे युद्ध के कारण

1. मराठा द्वारा मुगल दरबार में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप किया जाना। इससे कुछ वर्ग संतुष्ट और कुछ असंतुष्ट हुआ और असंतुष्ट वर्ग ने अहमद शाह अब्दाली को निमंत्रण दिया। वही संतुष्ट वर्ग ने मराठों का साथ नही दिया।

2. मराठों ने कश्मीर, मुल्तान और पंजाब जैसे क्षेत्रों पर आक्रमण किया। यहाँ अहमद शाह अब्दाली के सूबेदार शासन कर रहे थे। अतः इससे अहमद शाह अब्दाली को प्रत्यक्ष चुनौती मिली। अतः अब्दाली ने पंजाब पर आक्रमण कर पुनः अधिकार कर लिया। आगे बढ़कर अब्दाली ने दिल्ली पर भी अधिकार कर लिया और मराठों को चुनौती दी।

पानीपत के तीसरे युद्ध से संबंधित प्रमुख बिंदु

1. पेशवा बालाजी बाजीराव ने अपने पुत्र विश्वास राव भाऊ के नेतृत्व में एक शक्तिशाली सेना संगठित की और अब्दाली से युद्ध करने भेजा। लेकिन वास्तविक सेनापति सदाशिव राव भाऊ (बालाजी बाजीराव का भतीजा) को बनाया।

2. सदाशिव राव भाऊ ने उत्तर भारत के विभिन्न शासकों से मदद माँगी, लेकिन उत्तर भारत का कोई भी शासक मराठों की मदद करने को तैयार नहीं हुआ। जबकि अहमद शाह अब्दाली को रुहेला सरदार नजीबुद्दौला और अवध के नवाब शुजाउद्दौला का सहयोग प्राप्त हुआ।

3. मराठा सेना की तरफ से इब्राहिम खान गार्दी मराठा तोपखाने का नेतृत्व कर रहा था। 14 जनवरी, 1761 ईस्वी को पानीपत का तीसरा युद्ध हुआ। इसमें अब्दाली की सेना मराठा सेना से बड़ी थी। युद्ध में मराठे पराजय हुए।

4. इस युद्ध में सेनापति विश्वास राव (बाजीराव का पुत्र), शमशेर राव (बाजीराव का भाई) तथा सहायक सेनापति सदाशिव राव (बाजीराव के भतीजा) की मृत्यु हो जाती है। इस अप्रत्याशित हार की खबर सुनने के पश्चात बालाजी बाजीराव की मृत्यु हो जाती है। शक्तिशाली पेशवा बालाजी बाजीराव की मृत्यु के पश्चात मराठा साम्राज्य बहुत कमजोर हो जाता है।

पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों की पराजय के मुख्य कारण

1. सदाशिव राव भाऊ की कूटनीतिक अयोग्यता।

2.मराठा सेना के साथ महिलाएँ और बच्चे युद्धभूमि में पहुँचे।

3. मराठों ने राजपूतों के आंतरिक मामलों में अनावश्यक हस्तक्षेप करके उन्हें अपना शत्रु बना लिया था।

4. मराठा सेना गुरिल्ला युद्ध पद्धति में निपुण थी, लेकिन इस युद्ध में गुरिल्ला पद्धति प्रयुक्त नही की जा सकी।

5. मराठा सेना की तोपखाने पर अत्यधिक निर्भरता।

माधवराव प्रथम – बाजीराव के दूसरे पुत्र माधवराव प्रथम उनके उत्तराधिकारी बने। माधवराव प्रथम मराठा शक्ति और क्षेत्रों में से कुछ को पुनः प्राप्त किया था जो उन्होंने पानीपत की लड़ाई में खो दिया था। माधवराव प्रथम ने हैदराबाद के निजाम तथा मैसूर राज्य द्वारा छीने गए अपने हिस्से को पुनः मराठा साम्राज्य में मिलाया। बक्सर के युद्ध में पराजित अवध के शुजादोल्लाह और मुगल शाह आलम द्वितीय से दोस्ती प्रारंभ किया। महादजी सिंधिया के मदद से शाह आलम द्वितीय की मुगल सत्ता पुनः दिल्ली में स्थापित की गई। मुगल बादशाह अब मराठों के पेंशन भोगी हो गए।

नारायण राव – जब माधवराव प्रथम की मृत्यु हुई तो मराठा खेमे में सत्ता के लिए खींचतान मच गई। उनके भाई नारायणराव पेशवा बने लेकिन उनके चाचा रघुनाथराव पेशवा बनना चाहते थे।

माधवराव 2 (सवाई माधवराव) – नारायण राव की हत्या रघुनाथ राव (राघोवा) द्वारा कर दी गई और कुछ दिन के लिए पेशवा बने। इस स्थिति में नाना फडणवीस और माहद जी सिंधिया ने मिलकर नारायण राव के 40 दिन के नवजात पुत्र माधवराव द्वितीय (माधवराव नारायण राव) को पेशवा घोषित कर दिया तथा राज्य के संचालन के लिए “12 भाईसभा” की स्थापना की जिसमें 12 सदस्य थे।

Note:- माधवराव द्वितीय ने अपना आवास शनिवारवाड़ा के दीवार से कूद कर जान दे दी थी।

उधर रघुनाथ राव पेशवा न बनने के कारण उन्होंने अंग्रेज़ों से मदद मांगी। 1775 में बॉम्बे के अंग्रेज अधिकारियों के साथ सूरत की संधि पर हस्ताक्षर किए गए जिसके अनुसार रघुनाथराव ने साल्सेट और बसिन को अंग्रेजों को सौंप दिया और बदले में उन्हें 2500 सैनिक दिए गए। इन सैनिकों के रखरखाव के लिए सूरत और भरूच की कर अदायगी की जिम्मेवारी बॉम्बे स्थित ब्रिटिश अधिकारियों को दी गई।

अंग्रेजों और रघुनाथराव की सेना ने पेशवा पर हमला किया जिसे अर्रास का युद्ध कहा जाता है। इस युद्ध में मराठों की जीत हुई।

उधर 1773 ई के रेगुलेटिंग एक्ट के तहत बंगाल के गवर्नर जनरल के अधीन मुंबई और मद्रास प्रेसीडेंसी को लाया गया था। इसके तहत वारेन हेस्टिंग प्रथम गवर्नर जनरल बने थे। और संधि के तहत वारेन हेस्टिंग को मुंबई और मद्रास प्रेसीडेंसी के मामले पर निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त हुआ था। वॉरेन हेस्टिंग्स के तहत ब्रिटिश कलकत्ता काउंसिल ने सूरत की संधि को रद्द कर दिया और एक नई संधि, पुरंदर की संधि पर 1776 में कलकत्ता काउंसिल और मराठा मंत्री नाना फड़नवीस के बीच हस्ताक्षर किए गए। तदनुसार, रघुनाथराव को केवल पेंशन दी गई और साल्सेट को अंग्रेजों ने बरकरार रखा। इस संधि के तहत माधवराव को पेशवा माना गया।लेकिन बंबई में ब्रिटिश अधिकारियों ने इस संधि का उल्लंघन किया और रघुनाथराव को आश्रय दिया। कोलकाता के अधिकारियों और मुंबई के अधिकारियों के बीच विवाद बढ़ने पर इसकी सूचना ब्रिटिश संसद तक पहुंची वहां सूरत की संधि को मान्यता प्रदान किया गया क्योंकि यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए ज्यादा फायदेमंद था। 1777 में, नाना फड़नवीस ने कलकत्ता काउंसिल के साथ अपनी संधि के खिलाफ जाकर फ्रांसीसियों को पश्चिमी तट पर एक बंदरगाह दे दिया। इसके बाद वारेन हेस्टिंग ने 1979 में मराठा साम्राज्य पर दो तरफ से आक्रमण किया एक ग्वालियर की तरफ से दूसरा पुणे की तरफ से। पुणे की तरह से किए गए आक्रमण में वाडगांव में एक युद्ध हुआ जिसे तेलगांव का युद्ध कहते हैं। इस युद्ध में महादजी शिंदे के नेतृत्व में मराठों ने अंग्रेजों पर निर्णायक जीत हासिल की। 1779 में अंग्रेजों को वाडगांव की संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

वहीं ग्वालियर की तरफ से किए गए आक्रमण से अंग्रेज विजय हुए जिसे अंग्रेजों ने ग्वालियर गुजरात और अहमदाबाद के क्षेत्र को मराठो से छीन लिया। उधर द्वितीय एंग्लो मैसूर युद्ध (1780-84) युद्ध शुरू हो गया। इस स्थिति में अंग्रेजों ने मराठो के साथ सालबाई की संधि 1782 में की। इस तरह प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध में मराठों की जीत हुई।

सालाबाई संधी के परिणाम – इस संधि के तहत पुरंधर की संधि के बाद अंग्रेजों द्वारा लिए गए सभी क्षेत्र मराठों को वापस सौंप दिए गए। माधव राव द्वितीय को पेशवा मान लिया गया तथा रघुनाथ राव को 3 लाख पेंशन भोगी बनाया गया। मराठों ने यह भी वादा किया कि वे फ्रांसीसियों को और अधिक क्षेत्र नहीं देंगे।ईस्ट इंडिया कंपनी ने साल्सेट और भरूच पर अपना अधिका बरकरार रखा। अंग्रेजों ने मराठों से यह गारंटी भी प्राप्त की कि वे मैसूर के हैदर अली से दक्कन में अपनी संपत्ति वापस ले लेंगे।

Note:- इस दौरान मराठा क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान देने का कारण यहां कपास का काफी मात्रा में उत्पादन होना था। पहले अंग्रेजों को कच्चा कपास अमेरिका से प्राप्त होता था जो 1776 में अंग्रेजों से आजाद हो गया उसके बाद कपास की प्राप्ति बंद हो चुकी थी। तथा मैसूर साम्राज्य में अपनी सत्ता मालाबार तट में होने वाले मसाले के लिए चाहता था।

Note:- प्रथम एंग्लो मराठा युद्ध की संधी

Tricks- सूरत पर बड़ा साला

सूरत – सूरत की संधी(1975)

पर – पुरंदर की संधी (1976)

बड़ा – बड़गांव की संधी (1979)

साला – सलाबाई की संधी (1982)

दूसरा आंग्ल-मराठा युद्ध

दूसरा आंग्ल-मराठा युद्ध 1803 से 1805 तक हुआ। प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध के अंत में 1782 में सालबाई की संधि हुई और इससे अगले बीस वर्षों के लिए मराठों और अंग्रेजों के बीच शांति स्थापित हुई। 1795 में पेशवा माधव नारायण की मृत्यु हो गई। रघुनाथ राव के पुत्र बाजीराव द्वितीय अगले पेशवा बने और नाना फड़नवीस मुख्यमंत्री बने।

उस समय के दौरान, लॉर्ड वेलेस्ली ने सहायक नीति की शुरुआत की जिसके अनुसार भारतीय शासकों को सेना रखने का अधिकार नहीं रह जाता था, वे सेना के लिए ब्रिटिश सरकार के अधीन हो जाते थे। ब्रिटिश सेना को बनाए रखने के लिए भुगतान करना पड़ता था। महाद जी सिंधिया और नाना फड़नवीस ने सहायक संधि प्रणाली को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, क्योंकि वे ब्रिटिश इरादों से अवगत थे। 1796 में महादजी सिंधिया और 1800 में फड़नविस के मृत्यु अंग्रेजों के लिए अनुकूल हो गई। क्योंकि उसके मृत्यु के पश्चात पांच प्रमुख मराठा संघ आपस में झगड़ने लगे। ये मराठा संघ थे:-

A. बड़ौदा के गायकवाड़

B. नागपुर और बरार के भौसले

C. इंदौर के होल्कर

D. ग्वालियर के सिंधिया

E. पूना के पेशवा

फडणवीस के मृत्यु के बाद बाजीराव द्वितीय अपनी मनमानी करने लगे। 1 अप्रैल 1801 को, पेशवा बाजीराव द्वितीय ने ग्वालियर के दौलतराव सिंधिया के मदद से जसवन्त राव होल्कर के भाई विथुजी की बेरहमी से हत्या कर दी गई। परिणामस्वरूप, पूना की लड़ाई जसवन्त राव होल्कर और बाजीराव द्वितीय और सिंधिया की संयुक्त सेनाओं के बीच हुई। 25 अक्टूबर 1802 को, जसवन्त राव होल्कर ने दोनों सेनाओं को हराकर युद्ध जीता और विनायक राव को पूना का पेशवा नियुक्त किया। इसके बाद, बाजीराव द्वितीय बसिन भाग गए और 31 दिसंबर 1802 को अंग्रेजों के साथ बसिन की संधि पर हस्ताक्षर किए। जिससे पेशवा ब्रिटिश सरकार का सहायक राज्य बन जाता है। इस संधि के तहत सेवा के रखरखाव के खर्च के लिए बाजीराव द्वितीय ने सूरत के राजस्व को अंग्रेजों को दे दिया। भोसले और सिंधिया ने संधि से इनकार कर दिया, जिससे दूसरे आंग्ल मराठा युद्ध की शुरुआत हुई। इस संधि के बाद होलकर और सिंधिया ने मिलकर बाजीराव द्वितीय पर हमला किया जिससे 1803 में द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध की शुरुआत हो गई। इस युद्ध में सिंधिया और भोंसले दोनों की हार हुई जिससे 1803 ईस्वी में सुरजी अर्जुन गांव की संधि सिंधिया के साथ और इसी वर्ष 1803 में देवगांव की संधि भोसले के साथ हुई और यह दोनों ब्रिटिश सरकार के सहायक राज्य बन गए। इसके बाद 1805 में होल्कर परिवार से अंग्रेजो ए राजपुरघाट की संधि की। इस तरह द्वितीय आंग्ल मराठा वर में मैराथन के पांचो संघ ने वेलेजली की सहायक संधि को स्वीकार कर लिया।

Note:- द्वितीय एंग्लो मराठा युद्ध की संधी

Tricks- बदेसुरा

ब – बसिन की संधि (1802)

दे – देवगांव की संधि (1803)

सु – सुर्जी अर्जुन गांव की संधि (1803)

रा – राजापुर घाट की संधी (1804)

तीसरा एंग्लो मराठा युद्ध

यह युद्ध 1817 से 1819 तक चला था। उस समय लार्ड हेस्टिंग बंगाल के गवर्नर जनरल थे। द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध के बाद पूरा मराठा साम्राज्य ब्रिटिश सरकार के सहायक राज्य बन चुका था। ब्रिटिश सरकार ने मराठों के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया था। जो मराठों के आत्म सम्मान के खिलाफ था। बाजीराव द्वितीय ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए पुनः अंग्रेजों के साथ बगावत शुरू कर दी। अप्पा साहब के साथ मिलकर बाजीराव द्वितीय ने अंग्रेजों पर हमला किया। बाजीराव द्वितीय ने पुणे की तरफ से और अप्पा साहब ने नागपुर की तरफ से अंग्रेजों पर हमला किया किंतु यह दोनों पराजित हुए। इस युद्ध के दौरान बाजीराव द्वितीय और ब्रिटिश कमांडर मेंलकम के बीच कोरेगांव तथा अष्टी का युद्ध हुआ। बाजीराव द्वितीय को मेंलकम के सामने आत्म समर्पण करना पड़ा। इस युद्ध के बाद अंग्रेजों ने पेशवा पद को समाप्त कर बाजीराव द्वितीय को पुणे से हटकर कानपुर के निकट बिठूर में 8 लाख वार्षिक पेंशन पर जीने के लिए भेज दिया जहां इसकी मृत्यु 1853 में हो जाती है।

Note:- बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र, नाना साहब कानपुर में 1857 के विद्रोह के नेताओं में से एक बने।

Tricks:- नागपुर

ना- नागपुर की संधि (1816)

ग- ग्वालियर की संधि (1817)

पु – पूना की संधि (1817)

र -मंदसौर की संधि – (1818)

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