झारखंड में बौद्ध धर्म के अवशेष
Buddhism In Jharkhand
बेलनीगढ़ (गोड्डा)
यहाँ से बुद्धकालीन अवशेष प्राप्त हुए है।
पलामू किला (लातेहार)
बुद्ध की भूमि स्पर्श करती हुई एक मूर्ति पलामू का किला से प्राप्त हुई है।
सीतागढ़ा पहाड़ (हजारीबाग)
यह पहाड़ हजारीबाग जिले में अवस्थित है। यहां छठी शताब्दी के बौद्ध मठ के अवशेष मिले है जिसका जिक्र चीनी यात्री फहयान ने अपने लेखों में किया है। यहां से प्राप्त ज्यादातर सामग्री भूरा बलुआ पत्थर से बना है। इसके अलावा पत्थर के चौखट में उत्कीर्ण यक्षणियाँ, बुद्ध की चार आकृति से बना एक स्तूप, काले-भूरे पत्थर से बने एक सुंदर स्त्री की खंडित मूर्ति के अवशेष मिले है। यहां से मिली गुलाबी बलुआ पत्थर से बनी अष्टदल की आकृति को बिनाेवा भावे विश्वविद्यालय ने अपने प्रतीक चिन्ह के रूप में अपनाया है।
बौद्धपुर (धनबाद)
यह स्थल कंसाई नदी के तट पर धनबाद में अवस्थित है। इस स्थान पर बौद्ध स्मारक की प्राप्ति हुई है। बुद्धपुर के पहाड़ी ढलान पर एक ध्वस्त मंदिर स्थित है ,यहां स्थित मंदिर की स्थापत्य कला बोधगया मंदिर से मिलती है यहां स्थित शिवलिंग को बुद्धेश्वर कहा जाता है।
मूर्तिया गांव (पलामू)
पलामू के मूर्तिया गांव में एक सिंह-शीर्ष मिला है जो सांची स्तूप के द्वार पर स्थित सिंह-शीर्ष से मिलता-जुलता है। यह अवशेष अभी रांची यूनिवर्सिटी के संग्रहालय में रखी हुई है।
कटूंगा गांव (गुमला)
यह गुमला जिला में है यहां से बुद्ध की एक प्रतिमा मिली है।
पटम्बा गांव (पूर्वी सिंहभूम)
यह पूर्वी सिंहभूम में स्थित एक गांव है यहां से बुद्ध की दो मूर्ति प्राप्त हुई है।
सूर्यकुण्ड (हज़ारीबाग)
हजारीबाग के बरही में स्थित इस गांव में बुद्ध की पत्थर से बनी एक मूर्ति मिली है।
पकबीरा (पुरुलिया)
पुरुलिया के समीप पकबीरा में बौद्ध संप्रदाय के चैत्य और स्तूप के अवशेष मिले है, जिसकी खोज आर सी बोकन ने की है। पुरुलिया के निकट घोलमारा से बुद्ध की पत्थर की खंडित मूर्ति मिली है।
ईचागढ़ (सरायकेला-खरसावां)
यहाँ से बौद्ध संप्रदाय की देवी तारा देवी की मूर्ति मिली है जो पटना संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है।
दियापुर और दुलमी (धनबाद)
धनबाद जिला के दियापुर और दुलमी में भी बौद्ध स्मारक मिले है।
करुआ ग्राम(धनबाद)
धनबाद के करुआ ग्राम में बौद्ध स्तूप की प्राप्ति हुई है।
इटखोरी (चतरा)
यहाँ से कोठेश्वर नाथ का स्तूप मिला है। यहाँ भद्रकाली मंदिर परिसर में बुद्ध की 4 प्रतिमा भी मिली है। यह प्रतिमा 7वीं सदी की है और विभिन्न मुद्राओं में है।
बेलवादाग (खूँटी)
यहाँ से बौद्ध विहार के अवशेष मिले है।
घोलमारा (पुरुलिया)
यहाँ से बुद्ध की पत्थर से बनी खंडित मूर्ति मिली है।
जोन्हा (राँची)
बौद्ध धर्म से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
1. लेखक अमरदास और डॉ विरोत्तम ने अपने पुस्तक ” झारखंड-इतिहास एवं संस्कृति” में गौतम बुद्ध का जन्मस्थान झारखंड में बताया है।
2. बेंगलर ने झारखंड-बंगाल की सीमा पर स्थित “लाथोन टोंगरी” पहाड़ी पर एक बौद्ध चैत्य की खोज की थी।
3. ए शास्त्री ने 1919 में बाघ नामक स्थान पर काले पत्थर से बनी बुद्ध की मूर्ति की खोज की थी जिसकी दो भुजाएँ टूटी हुई थी। इसी स्थान पर एक अष्टदेवी कि मूर्ति मिली है। यह देवी सिंह पर सवार है। यहाँ एक लेख लिखा है जो अर्द्धबंग्ला में है और इस लेख की समानता विजयसेन की देवपाड़ा प्रशस्ति लेख से बताई गई है।
4. झारखंड में धनबाद (कंसाई नदी तट) बौद्ध धर्म का केंद्र था।
5. समुद्रगुप्त के समय बौद्ध धर्म का प्रभाव झारखंड में कम होने लगा था और वैष्णव धर्म का प्रभाव बड़ा था। गुप्तो के पतन के बाद झारखंड में बौद्ध धर्म के बढ़ते प्रभाव को गौड़ राजा शशांक ने कम किया था।
6. राजमहल के कंकजोल से बुद्ध की मूर्ति की खोज कनिघम ने किया था।
7. पूर्वी सिंहभूम के भूला गांव से बुद्ध की प्रतिमा मिली है।
8. गौतम बुद्ध बोधगया में ज्ञान प्राप्ति के बाद 45 वर्ष जहाँ उपदेश देते रहे उन क्षेत्रों में झारखंड भी शामिल थे।
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