Q1. Bring out the philosophy of the Indian polity as enshrined in the preamble of the Indian constitution. Also, discuss various changes made to the preamble since its adoption in Indian Constitution.
Q1. भारतीय संविधान की प्रस्तावना में निहित भारतीय राजनीति के दर्शन को प्रस्तुत करे। इसके अलावा, भारतीय संविधान में प्रस्तावना को अपनाने के बाद से इसमें किए गए विभिन्न परिवर्तनों पर भी चर्चा करें।
Introduction:-The preamble of a constitution is a brief introductory statement that outlines the fundamental purposes, values, and principles upon which the rest of the constitution is built. It is borrowed from US constitution & it’s style of language taken from Australia. The Preamble to Indian Constitution is based on the “Objective Resolution” drafted by Jawaharlal Nehru. While not legally binding in itself, the preamble serves as a guiding framework and sets the tone for the interpretation and application of the constitution’s provisions.
परिचय:-संविधान की प्रस्तावना एक संक्षिप्त परिचयात्मक कथन है जो उन मूलभूत उद्देश्यों, मूल्यों और सिद्धांतों को रेखांकित करता है जिन पर शेष संविधान का निर्माण किया गया है। यह अमेरिकी संविधान से लिया गया है और इसकी भाषा शैली ऑस्ट्रेलिया से ली गई है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना जवाहरलाल नेहरू द्वारा तैयार किया गया “उद्देश्य संकल्प” पर आधारित है। अपने आप में कानूनी रूप से बाध्यकारी न होते हुए भी, प्रस्तावना एक मार्गदर्शक ढांचे के रूप में कार्य करती है और संविधान के प्रावधानों की व्याख्या और अनुप्रयोग के लिए आधार निर्धारित करती है।
Interpretations given by various political scientists
Pandit Thakur Das ”The Preamble is the soul of the Constitution. It is a yardstick with which one can measure the worth of the Constitution.”
NA Palkhivala ” the identity card of the Constitution.’
K.M. Munshidefined the Preamble as the “Horoscope of our sovereign democratic Republic.”
Subhash Kashyap has mentioned that “If Constitution is the body then Preamble is the Soul, If the Preamble is a foundation then Constitution is a structure or building standing on it.
विभिन्न राजनीतिक वैज्ञानिकों द्वारा दी गई व्याख्याएँ
पंडित ठाकुर दास ”प्रस्तावना संविधान की आत्मा है। यह एक पैमाना है जिससे कोई भी संविधान के मूल्य को माप सकता है।”
एनए पालखीवाला ”संविधान का पहचान पत्र.”
के.एम.मुंशी ने प्रस्तावना को “हमारे संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य की कुंडली” के रूप में परिभाषित किया।
सुभाष कश्यप ने कहा है कि “यदि संविधान शरीर है तो प्रस्तावना आत्मा है, यदि प्रस्तावना नींव है तो संविधान उस पर खड़ी एक इमारत है।”
Philosophy of the Indian polity as enshrined in the preamble
The preamble of the constitution refers to the underlying philosophy or ideology that is expressed within constitution. It represents the fundamental ideas and aspirations that shaped the drafting of the constitution and provides a vision for the society and government. In Berubari Union case (1960) SC said Preamble is key to the minds of the constitution makers but opined its not part of the constitution. In Kesavananda Bharati case (1973) SC said Preamble can be amended but not altering the basic features of the constitution and it is a part of the constitution. In LIC India case (1995) SC reiterated Preamble as integral part of the constitution. Philosophy of the Indian polity as enshrined in the preamble may be understand by following words & expression of constitution:-
संविधान की प्रस्तावना उस अंतर्निहित दर्शन या विचारधारा को संदर्भित करती है जो संविधान के भीतर निहित है। यह उन मौलिक विचारों और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है जिन्होंने संविधान के प्रारूपण को आकार दिया और समाज तथा सरकार के लिए एक दृष्टिकोण प्रदान करता है। बेरुबारी यूनियन मामले (1960) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रस्तावना संविधान निर्माताओं के दिमाग की कुंजी है, लेकिन यह संविधान का हिस्सा नहीं है। केशवानंद भारती मामले (1973) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है लेकिन संविधान की मूल विशेषताओं में बदलाव नहीं किया जा सकता है और यह संविधान का हिस्सा है। एलआईसी इंडिया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने प्रस्तावना दोहराईएलआईसी इंडिया मामले (1995) में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अभिन्न अंग के रूप में प्रस्तावना को दोहराया। प्रस्तावना में निहित भारतीय राजनीति के दर्शन को प्रस्तावना में अंकित निम्नलिखित शब्दों और वाक्यांशों के द्वारा समझा जा सकता है: –
Power lies in people- First few words of i.e. “we the people of India” suggest that the ultimate power lies in the hands of the people. It also reavels that the source of our constitution is the people of India. The fist few words “we the people of India” and the last few words “do HEREBY ADOPT, ENACT AND GIVE TO OURSELVES THIS CONSTITUTION” fufils the basic nature of democracy that is “by the people, for the people and of the people”.
शक्ति लोगों में निहित है –पहले कुछ शब्द यानी “हम भारत के लोग” सुझाव देते हैं कि अंतिम शक्ति लोगों के हाथों में है। इससे यह भी पता चलता है कि हमारे संविधान का स्रोत भारत के लोग हैं। पहले कुछ शब्द “हम भारत के लोग” और अंतिम कुछ शब्द “हम इस संविधान को अपनाते हैं, लागू करते हैं और इसे अपने आप को सौंप देते हैं” लोकतंत्र की मूल प्रकृति को दर्शाता है जो “लोगों द्वारा, लोगो के लिए तथा लोगो का” है।
Nature of Indian State: It declares India to be of a sovereign, socialist, secular democratic and republican polity.
भारतीय राज्य की प्रकृति: यह भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक और गणतांत्रिक राज्य व्यवस्था घोषित करता है।
Sovereignty – The phrase “sovereign” mentioned in the Preamble shows that India is neither dependent on any other nation nor a dominion but is an independent nation. There is no one superior to the nation, there is no authority over it. India is free to settle both its internal and external affairs on its own without any external interference.
संप्रभुता- उद्देशिका में उल्लिखित “संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न” वाक्यांश से यह ज्ञात होता है कि भारत ना तो किसी अन्य राष्ट्र पर निर्भर है और ना ही कोई अधिराज्य है बल्कि यह एक स्वतंत्र राष्ट्र है। राष्ट्र से सर्वोच्च कोई नहीं, इसके ऊपर कोई प्राधिकार नहीं है। भारत अपने आंतरिक एवं बाह्य दोनों मामलों का बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप से स्वयं निस्तारण करने के लिए स्वतंत्र है।
Socialist – The word socialist was not mentioned in the original preamble. It was added to the Constitution by the 42nd Constitutional Amendment in the year 1976. Indian socialism is democratic socialism and not state socialism (communist socialism) which involves nationalization of all means of production and distribution. Democratic socialism believes in a ‘mixed economy’ where both public and private sectors co-exist. According to the Supreme Court, the goal of Indian socialism is to eliminate poverty, ignorance, disease and inequality of opportunity. Also to provide an excellent standard of living to the working people. Therefore the Indian Constitution is not in favor of completely abolishing private property but wants to balance it so that it can be used in the interest of the nation. Indian socialism is based on Marxism and Gandhism.
समाजवादी – मूल उद्देशिका में समाजवादी शब्द का उल्लेख नहीं था। इसे वर्ष 1976 में 42वे संविधान संशोधन के द्वारा संविधान में जोड़ा गया। भारतीय समाजवाद, लोकतांत्रिक समाजवाद है न की राज्य समाजवाद (साम्यवादी समाजवाद) जिसमें उत्पादन और वितरण के सभी साधनों का राष्ट्रीयकरण सम्मिलित है। लोकतांत्रिक समाजवाद एक ‘मिश्रित अर्थव्यवस्था’ में विश्वास रखता है जहाँ सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्र साथ-साथ मौजूद हों। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, भारतीय समाजवाद का लक्ष्य गरीबी, अज्ञानता, बीमारी और अवसर की असमानता को समाप्त करना है। साथ ही कामकाजी लोगों को एक उत्कृष्ट जीवन स्तर प्रदान करना है। इसलिए भारतीय संविधान निजी संपत्ति को पूरी तरह से समाप्त करने के पक्ष में नहीं है बल्कि इसे संतुलित करना चाहता है ताकि इसका उपयोग राष्ट्र के हित में किया जा सके। भारतीय समाजवाद मार्क्सवाद और गांधीवाद का मिश्रण है, जिसका झुकाव गांधीवादी समाजवाद की ओर है।
Secularism- The word secularism was added to the Preamble by the Constitution Amendment Act 1976 in 42. The Indian Constitution symbolizes the positive concept of secularism. The word secularism mentioned in the Preamble gives the impression that India has no religion of its own. In our country all religions have equal status. Articles 25 to 28 guarantee the right to religious freedom. Articles 29 and 30 prohibit state interference in the religious sphere of citizens and provide them with the freedom to practice their religion, belief and preserve their culture. Article 15 specifically mandates that the State shall not discriminate among citizens on the basis of religion, race, caste, sex or place of birth. Instead of the state being subservient to religion, religion is subservient to the state. This means that the state can interfere in religious matters for the purpose of social reforms. A unique feature of the historically developed Indian secularism is that it has provided special protection to minorities with respect to the preservation of their culture and traditions.
धर्मनिरपेक्षता- पंथनिरपेक्षता शब्द को 42 में संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया। भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्षता की सकारात्मक अवधारणा का प्रतीक है। प्रस्तावना में अंकित पंथनिरपेक्षता शब्द से यह आसन मिलता है कि भारत का अपना कोई धर्म नहीं है। हमारे देश में सभी धर्मों को एक समान दर्जा प्राप्त है। अनुच्छेद 25 से 28 धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। अनुच्छेद 29 और 30 नागरिकों के धार्मिक क्षेत्र में राज्य के हस्तक्षेप को प्रतिबंधित करते हैं और उन्हें अपने धर्म, विश्वास का पालन करने और अपनी संस्कृति को संरक्षित करने की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं। अनुच्छेद 15 के अनुसार विशिष्ट निर्देश है कि राज्य धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर नागरिकों के बीच कोई भेदभाव नहीं करेगा। राज्य, धर्म के अधीन होने के बजाय धर्म, राज्य के अधीन है। इसका तात्पर्य यह है कि सामाजिक सुधारो के उद्देश्य से राज्य धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है। ऐतिहासिक रूप से विकसित भारतीय पंथनिरपेक्षता की एक अद्वितीय विशेषता यह है कि अल्पसंख्यकों को उनकी संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण के संबंध में विशेष सुरक्षा प्रदान की गई है।
Democratic-The Indian Constitution provides for representative parliamentary democracy under which the executive is responsible to the legislature. The Universal Adult Franchise (Article 326), Dissolutions of the parliament (Article 85), executives’ responsibility (Article 75) and restricted power of the legislator ( Article 13) shows the democratic essence of the constitution.
लोकतांत्रिक- भारतीय संविधान प्रतिनिधि संसदीय लोकतंत्र का प्रावधान करता है जिसके तहत कार्यपालिका विधायिका के प्रति उत्तरदायी होती है। सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार (अनुच्छेद 326), संसद का विघटन (अनुच्छेद 85), विधायिका की जिम्मेदारी (अनुच्छेद 75) और विधायिका की प्रतिबंधित शक्ति (अनुच्छेद 13) लोकतंत्र को दर्शाता है।
Republic – The word ‘Republic’ in our introduction indicates that the head of the state is not a hereditary monarch but an elected President. In the Republic of India, the head of state is elected for a term of 5 years. According to Article 55(3) of the Constitution of India, the President shall be elected in accordance with the system of proportional representation by means of the single transferable vote and voting at such election shall be by secret ballot. India’s political sovereignty lies with the people rather than being concentrated in any one person and no privileged class exists. Every public office without any discrimination
गणतंत्रात्मक – हमारी प्रस्तावना में ‘गणतंत्र’ शब्द इंगित करता है कि राज्य का प्रमुख कोई वंशानुगत राजा नहीं बल्कि एक निर्वाचित राष्ट्रपति होता है। भारतीय गणतंत्र में राज्य प्रमुख को चुनाव से 5 वर्ष र के लिए चुना जाता है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 55 (3) के अनुसार, राष्ट्रपति का निर्वाचन एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुरूप किया जाएगा और ऐसे निर्वाचन में गोपनीय मतपत्रों द्वारा मतदान किया जाएगा। भारत की राजनीतिक संप्रभुता किसी एक व्यक्ति में केंद्रित होने के स्थान पर जनता में निहित है और कोई भी विशेष अधिकार प्राप्त वर्ग विद्यमान नहीं है। प्रत्येक सार्वजनिक कार्यालय बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक नागरिकों के लिए खुला होता है।
Objectives of Indian state: Justice, equality, liberty and fraternity are most sought concepts embodied here.
Justice – The term ‘justice’ in the Preamble embraces three distinct forms- social, economic and political. Political justice secured through various provisions of Fundamental Rights (Art 12- 35) and socio-ecomic justice is secured by Directive Principles (Art 35-51). To secure social & economic justice following article is included in constitution.
Provisions for social justice – Articles 15(4) and 16(4) enable the State to make provisions for the development of SC/ST and to achieve social justice. Article 46 ensures the promotion of educational and economic interests of the Scheduled Castes, Scheduled Tribes and other weaker sections. Untouchability has been prevented under Article 17. Titles have been abolished under Article 18.
Provisions of economic justice – The following articles of the Constitution ensure economic justice:-
1. Article 43 refers to a “living wage” and not “minimum wage”.
2. Article 39(d) is also ensuring the principle of equal pay and equal work.
Provisions of political justice – The rights of the individual given in Articles 14 to 18 are the basis of political justice. Apart from this, the following articles ensure political justice:-
1. Right to vote (Article 326) and Article 19(1)(a))
2. Right to contest elections
3. Right to form political party
4. Right to criticise the government.
न्याय – प्रस्तावना में ‘न्याय’ शब्द तीन अलग-अलग रूपों को अपनाता है- सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक। राजनीतिक न्याय, मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 12-35) के विभिन्न प्रावधानों के माध्यम से सुरक्षित किया गया है और सामाजिक-आर्थिक न्याय निदेशक सिद्धांतों (अनुच्छेद 35-51) द्वारा सुरक्षित किया गया है। सामाजिक एवं आर्थिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए संविधान में निम्नलिखित अनुच्छेद शामिल किया गया है।
सामाजिक न्याय के प्रावधान – अनुच्छेद 15(4) और 16(4) राज्य को एससी/एसटी के विकास के लिए प्रावधान करने और सामाजिक न्याय प्राप्त करने में सक्षम बनाते हैं। अनुच्छेद 46 अनुसूचित जातियों अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य दुर्बल वर्गों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि का प्रावधान सुनिश्चित करता है। अनुच्छेद 17 के तहत छुआछूत को रोका गया है। अनुच्छेद 18 के तहत उपाधियों का अंत किया गया है।
आर्थिक न्याय के प्रावधान – संविधान के निम्न अनुच्छेद आर्थिक न्याय को सुनिश्चित करता है: –
1. अनुच्छेद 43 “जीविका मजदूरी” को संदर्भित करता है न कि “न्यूनतम मजदूरी” को।
2. अनुच्छेद 39(D) समान वेतन और समान कार्य के सिद्धांत को भी सुनिश्चित कर रहा है।
राजनीतिक न्याय के प्रावधान – अनुच्छेद 14 से 18 में दिए गए संता के अधिकार राजनीतिक न्याय का आधार है। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित अनुच्छेद राजनीतिक न्याय को सुनिश्चित करती है:-
1. वोट देने का अधिकार (अनुच्छेद 326) और अनुच्छेद 19 (1a)
2. चुनाव लड़ने का अधिकार
3. राजनीतिक भाग बनाने का अधिकार
4. सरकार की आलोचना करने का अधिकार.
Liberty – The Preamble secures to all citizens of India liberty of thought, expression, belief, faith and worship, through their Fundamental Rights. Article 19 – 22 provides right to freedom. Also article 25-28 provides right to religion.
स्वतंत्रता – प्रस्तावना भारत के सभी नागरिकों को उनके मौलिक अधिकारों के माध्यम से विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था और पूजा की स्वतंत्रता प्रदान करती है। अनुच्छेद 19 – 22 स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है। साथ ही अनुच्छेद 25-28 धर्म का अधिकार प्रदान करता है।
Equality – The Preamble secures to all citizens of India equality of status and opportunity. This provision embraces three dimensions of equality-civic, political and economic. Article 14 – 18 provides right of equality to every citizen.There are two other provisions in the Constitution which ensure political equality. 1) According to Article 325, no person can be disqualified from being included in the voter list on the basis of religion, caste, sex or class. 2) According to Article 326, there is a provision for busy voting for the Lok Sabha and the Legislative Assemblies. Under economic capacity, under the Directive Principles of State Policy, Article 39 provides that men and women should have adequate means of living.
समानता – प्रस्तावना भारत के सभी नागरिकों को स्थिति और अवसर की समानता सुनिश्चित करती है। यह प्रावधान समानता के तीन आयामों को शामिल करता है- नागरिक, राजनीतिक और आर्थिक। अनुच्छेद 14 – 18 प्रत्येक नागरिक को समानता का अधिकार प्रदान करता है। संविधान में दो अन्य उपबंध है जो राजनीतिक समानता को सुनिश्चित करता है। 1) अनुच्छेद 325 के अनुसार धर्म जाति लिंग अथवा वर्ग के आधार पर किसी व्यक्ति को मतदाता सूची में शामिल होने से अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता। 2) अनुच्छेद 326 के अनुसार लोकसभा और विधानसभाओं के लिए व्यस्त मतदान का प्रावधान है। आर्थिक क्षमता के तहत राज्य के नीति निर्देशक तत्व के अंतर्गत अनुच्छेद 39 महिला तथा पुरुष को जीवन यापन के लिए पर्याप्त साधन और समान काम के लिए समान वेतन की अधिकार को सुरक्षित करता है।
Fraternity – The Constitution promotes this feeling of fraternity by the system of single citizenship. Also, the Fundamental Duties (Article 51-A) say that it shall be the duty of every citizen of India to promote harmony and the spirit of common brotherhood amongst all the people of India. The Preamble declares that fraternity has to assure two things, the dignity of the individual and the unity and integrity of the nation.
बंधुत्व – संविधान एकल नागरिकता की व्यवस्था द्वारा बंधुत्व की इस भावना को बढ़ावा देता है। साथ ही, मौलिक कर्तव्य (अनुच्छेद 51-A) कहते हैं कि भारत के सभी लोगों के बीच सद्भाव और समान भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा। प्रस्तावना में घोषणा की गई है कि बंधुत्व को दो चीजों को सुनिश्चित करना होगा, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता। अनुच्छेद 17 के अंतर्गत अस्पृश्यता का अंत करके तथा अनुच्छेद 18 के अंतर्गत उपाधियों का अंत करके बंधुत्व की भावना को विकसित किया गया है।
एकता और अखंडता – 42th संविधान संशोधन 1976 में अखंडता शब्द को एकता के साथ जोड़ा गया। अनुच्छेद 1 में भारत को 28 राज्य और 8 केंद्रशासित प्रदेशों का एक संघ कहा गया है। भारत के संसद में सभी राज्यों को उसका प्रतिनिधित्व उसकी जनसंख्या के अनुसार दी गई है। अनुच्छेद 51 (A) के अंतर्गत भारत की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखना, हर नागरिकों का कर्तव्य है। आपतकाल के दौरान भारत के राजनीतिक व्यवस्था का चरित्र मजबूत एकात्मक राज्य की हो जाती है।
Unity and Integrity – In the 42nd Constitution Amendment in 1976 the word integrity was added with unity. Article 1 describes India as a union of 28 states and 8 union territories. All states are given representation in the Parliament of India according to their population. Under Article 51 (A), it is the duty of every citizen to keep the unity and integrity of India intact. During the Emergency, the character of the political system of India becomes that of a strong unitary state. in the parliament of india
Amendment of the Preamble
In the Berubari case (1960), the Supreme Court did not consider the Preamble to be a part of the Constitution, hence it can not be amended under Art 368. But accepting the importance of the Preamble, he said that it is an important source for interpreting the Constitution.
In the Golaknath case (1967) the Supreme Court said that the Preamble is the soul of the Constitution. In the same Sajjan Singh case (1964), the Supreme Court held that the Preamble is a comprehensive part of the Constitution.
After the judgment of the Kesavanand Bharati case, it was accepted that the preamble is part of the Constitution. As a part of the Constitution, preamble can be amended under Article 368 of the Constitution, but the basic structure of the preamble can not be amended. As of now, the preamble is only amended once through the 42nd Amendment Act, 1976.
The term ‘Socialist’, ‘Secular’, and ‘Integrity’ were added to the preamble through 42nd Amendment Act, 1976. ‘Socialist’ and ‘Secular’ were added between ‘Sovereign’ and ‘Democratic’.‘ And Unity of the Nation’ was changed to ‘Unity and Integrity of the Nation’.
In the case LIC Vs Consumer Education and Research Center (1995), the Supreme Court again reiterated that the Preamble is an integral part of the Constitution.
बेरुबारी मामले (1960) में उच्चतम न्यायालय ने प्रस्तावना को संविधान का अंग नही माना इसलिए इसे अनुच्छेद 368 के तहत संशोधित नहीं किया जा सकता है। किन्तु प्रस्तावना के महत्व को स्वीकारते हुए कहा कि संविधान कि व्याख्या करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
गोलकनाथ मामले (1967) में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि प्रस्तावना संविधान की आत्मा है। वही सज्जन सिंह मामले (1964) में उच्चतम न्यायालय ने यह माना कि प्रस्तावना, संविधान का विस्तृत भाग है।
केशवानंद भारती मामले (1973) के फैसले के बाद यह स्वीकार किया गया कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है। संविधान के एक भाग के रूप में, संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है, लेकिन प्रस्तावना की मूल संरचना में संशोधन नहीं किया जा सकता है। और राष्ट्र की एकता’ को ‘राष्ट्र की एकता और अखंडता’ में बदल दिया गया।
42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ शब्द जोड़े गए। ‘संप्रभु’ और ‘लोकतांत्रिक’ के बीच ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ को जोड़ा गया। ‘और राष्ट्र की एकता’ को ‘राष्ट्र की एकता और अखंडता’ में बदल दिया गया।
LIC Vs Consumer Education and Research Centre (1995) मामले में उच्चतम न्यायलय ने पुनः इस बात को दोहराया कि प्रस्तावना संविधान का अभिन्न अंग है।
Conclusion :-
Thus we can say that the Preamble of the Indian Constitution presents the basic philosophy of the Indian Constitution, on which the Constitution of India is based. The goal of the Preamble is to establish a social system where the people are sovereign, the government is elected and accountable to the people, the power of the government is limited by the fundamental rights of the people and the people have the right to choose their own. The philosophy of the Preamble helps the Court, the State, the Government and the citizens to decide whether a particular provision is in accordance with its spirit or not.
निष्कर्ष:-इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना भारतीय संविधान के मूल दर्शन को प्रस्तुत करती है, जिस पर भारत का संविधान आधारित है। प्रस्तावना का लक्ष्य एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था स्थापित करना है जहां जनता संप्रभु हो, सरकार निर्वाचित हो और जनता के प्रति उत्तरदायी हो, शासन की सत्ता जनता के मूल अधिकारों से सीमित हो तथा जनता को अपने विकास का समुचित अवसर प्राप्त हो। प्रस्तावना का दर्शन, न्यायालय, राज्य , सरकार और नागरिकों को इस संबंध में निर्णय लेने में मदद करता है कि क्या कोई विशेष प्रावधान उसकी भावना के अनुरूप है या नही।