Banjara Tribes

Banjara Tribes | बंजारा जातीय शासन व्यवस्था | JHARKHAND PSC PDF | JHARKHAND TRIBES

Jharkhand GKJharkhand Tribes

Banjara Tribes

बंजारा एक घुमंतू जनजाति है। इसे 1956 में अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला है। ये छोटे छोटे कबीलों में घूमते रहते है। यह झारखंड की अल्पसंख्यक जनजाति है। इसकी संख्या 2011 के जनगणना के अनुसार मात्र 487 है जो राज्य की जनजातीय जनसंख्या का मात्र 0.01% है। यह झारखंड की खोंड के बाद दूसरी सबसे कम जनसंख्या वाली जनजाति है। इसका मुख्य जमाव संताल परगना के राजमहल क्षेत्र और दुमका में मिलता है। इसकी भाषा लम्बाड़ी है। बंजारा जनजाति में रॉय की उपाधि धारण करने का प्रचलन है।

विवाह/संस्कार

बंजारा में विवाह संस्कार को वाया कहा जाता है। विवाह के समय वधु पक्ष द्वारा वर पक्ष को बैल या 140 ₹ नगद देने की परंपरा है। विवाह के समय दंपति एक दूसरे के हाथ पकड़कर सात बार अनाज को मूसल से मारते है बंजारा समुदाय में वधु मूल्य को ‘हरजी’ कहा जाता है। इसमें विधवा विवाह का प्रचलन है जिसे ‘नियोग’ कहा जाता है। इनके विवाह प्रायः वर्षा काल में होते है क्योंकि शीत और ग्रीष्म काल में ये घूमते रहते है। बंजारा जनजाति में सनातन धर्म के सारे कर्मकांड और संस्कार पाए जाते है।

बंजारा समुदाय के गोत्र/उपवर्ग

Banjara Tribes का कोई गांव नही होता,ये घूमते रहते है। इसमें कोई गोत्र व्यवस्था नहीं पाई जाती, किंतु कुछ लोग कश्यप गोत्र बताते है। बंजारा में संयुक्त परिवार न के बराबर पाया जाता है। परिवार नाभिकीय या प्राथमिक होता है जिसमे माता पिता और अविवाहित बच्चे होते है।

इसका समाज को चार उपवर्गो में बांटा जा सकता है:-

a) चौहान

b) पवार

c) राठौर

d) उर्वा

Banjara Tribes के अन्य नाम

इसे गोर, लमन और लंबाणी, मारू भाट, गवरियां नाम से देश के विभिन्न भागों में जाना जाता है।

Banjara Tribes के प्रमुख वाद्य यंत्र/नृत्य

“दंड – खेलना” इसका प्रचलित लोक नृत्य है। येे विशेष प्रकार के वाद्य यंत्र का प्रयोग करते है।

a) नरसिंहा

b) ढोल

c) ठपरा

d) चिंकारा

ये आल्हा-ऊदल को अपना वीर पुरुष मानते है। इनके गीतो में पृथ्वीराज चौहान का जिक्र मिलता है। बंजारा समुदाय की सबसे बड़ी आराध्य बंजारी देवी है। सनातन संस्कृति के हर देवी देवताओं की ये पुजा करते है।

तीज का त्यौहार बंजारा समुदाय में बहुत महत्वपूर्ण है जिसे ये हरियाली तीज कहते है। वृषपुजा की परंपरा पाई जाती है,बैल को बालाजी का सेवक मानकर पुजा जाता है। पुजारी को भगत कहा जाता है। इसकी जनसंख्या सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में है।

पहले ये नमक और मसाले का व्यापार करते थे। नमक व्यापार में टैक्स लगाने के बाद इसका कारोबार बिलकुल खतम हो गया। आज ये लोग जादूगरी, सपेरा,मदारी, जड़ी बूटी विक्रेता, ठठेरा, बाजीगर, गुलगुलिया आदि बन कर जीवन यापन करते है।

ब्रिटिश काल में1871 में ब्रिटिश काल के इस समुदाय को आपराधिक जनजाति अधिनियम के अंर्तगत लाया गया जिससे ये अपने पारंपरिक व्यवसाय को छोड़कर पहाड़ों, जंगलों में चले गए और घुमंतू जीवन जीने लगे। 8 अप्रैल को विश्व बंजारा दिवस मनाया जाता है।

पोशाक/पहनावा

पुरुष जो कमीज पहने है उसे झब्बा या झगला कहा जाता है। पुरुष रंग बिरंगी पगड़ी और धोती पहनते है। महिलाएं रंग बिरंगी घाघरा,चोली चुनरी पहनने का शौक रखती है। बंजारा महिला के घाघरा को “फेटिया” और चोली को “मंडाव” और चुनरी को “घुंघटो” कहा जाता है। ये परिधान कांच की धागे से अच्छी तरह सिलाई करके बनाई जाती है।

महिलाएं सुहाग के प्रतीक के रूप में घुघरी या दोहड़ा पहनती है। बूढ़ी महिलाएं कांचली पहनती है।

बंजारा जातीय शासन व्यवस्था

Banjara Administrative System

बंजारा जनजाति के घुमंतू प्रवृति होने के कारण कोई निश्चित निवास स्थान नहीं होता है इसलिए इसमें अन्य जनजातियों की तरह मजबूत शासन व्यवस्था नहीं पाई जाती है। ये लोग तम्बू बनाकर रहते इस तम्बू की बस्ती को टांडा कहा जाता है। टांडा किसी गांव से कुछ दूरी पर उत्तर दिशा में ऊंचे स्थान में बनाया जाता है। इस टांडा का शासन कुछ विशिष्ट व्यक्तियों द्वारा चलाया जाता है।

a) नायक –सबसे समृद्ध बंजारा को टांडा का मुखिया बनाया जाता है जो नायक कहलाता हैं।दीवानी और फौजदारी दोनो मामलों का निबटारा नायक करता है।

b) कारभारी – यह संदेशवाहक होता है जो नायक का सूचना टांडा के सभी लोगो तक पहुंचाता है।

c) हसाबी – यह दीवानी मामलों के निपटारा के लिए नायक का मदद करता है।

d) नसाबी – यह फौजदारी मामलों के निपटारा में नायक का मदद करता है।

Important Facts Related To Banjara Tribes

बंजारा जनजाति से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य

1. बैल पर समान रखकर घूमने वाले बंजारा “लक्खी बंजारा” कहलाता है। जो बैल का खरीद बिक्री करता है उसे बड़द बंजारा और जो नमक का व्यापार करता है उसे लमाना या लंबाना कहा जाता है।

2. ये शराब पीने के शौकीन होते है ये घर में ही शराब बनाते है जिसे ताड़ या सेंधी कहा जाता है। विवाह के कुछ पहले कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष को भांग खिलाने की परंपरा पाई जाती जिसे घोटा कहते है।

Banjara Tribes पे वीडियो

https://youtu.be/7IvUpvsBrj4

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