Q 2. खोरठा भाखाक एगो मानक रूप दिए लागिन बिदआन गुलाञ जे उतासुता करल हे, ओकर चरचा करा।
खोरठा भाषा का मानकीकरण – भाषा मानकीकरण का अर्थ वो प्रक्रिया है जिसके द्वारा इसके बोलनेवाले और लिखनेवाले किसी भाषा को पुनः एक मानक और पारंपरिक रूप देने का प्रयास किया जाता है। झारखंड में विभिन्न प्रकार के क्षेत्रीय भाषा पाया जाता है जैसे खोरठा, संताली, हो, मुंडारी, नागपुरी मालतो, कुरुख। मानकीकरण की समस्या झारखंड के सभी क्षेत्रीय भाषा में पाया जाता है। इन चीजों का ध्यान रखकर रामदयाल मुंडा और डॉ सुरेश कुमार सिंह के प्रयास के पश्चात बिहार सरकार ने 1980 में रांची विश्वविद्यालय के अंतर्गत “जनजातीय और क्षेत्रीय भाषा विभाग” की स्थापना की। कहा जा सकता है कि झारखंड के सभी क्षेत्रीय भाषा के मानकीकरण की जरूरत है किंतु सबसे ज्यादा जरूरत खोरठा भाषा की है।
खोरठा भाखाक मानकीकरनेक – भाखा मानकीकनेक माने ऊ परकिरिआ जेकर लागिन कोनहो भाखाक बोलवइया आर लिखवइया घुइर करि एगो मानक आर पारंपरिक रूप दिएक परजास करे। झारखंडडे भिनू-भिनू परकारेक (नाना रकम) छेतरिय भाखा पावल जाइ जइसन खोरठा, संताली, हो, मुंडारी, नागपुरी मालतो, कुरुख। मानकीकरनेक समसिया झारखंडेक सोब छेतरिय भाखाय पावल जाइ। सेइ जिनिस टाक धियान राखि रामदयाल मुंडा आर डॉ कुमार सुरेस सिंह के परजासेक बादें, 1980 बछरे बिहार सरकारें “झारखंड जनजातीय और क्षेत्रीय भाषा विभाग” रांची विश्वविद्यालएक भीतरे खोललकइ। कहेल पारे कि झारखंडेक सोब छेतरिय भाखाक मानकीकरन के दरकार हइ मकिन खोरठाक सबले बेसी दरकार हे।
खोरठा भाखाक मानकीकरनेक उतासुता
अभी तक सिर्फ चार बार खोरठा भाषा का मानकीकरण हुआ है। मानकीकरण के बैठक में प्रसिद्ध जानकार लोग एक जगह में अपनी समझ का आदान-प्रदान करके खोरठा भाषा को मानक रूप देने के लिए प्रयास करता है। डॉ ए के झा ने पारसनाथ पहाड़ और दामोदर नदी के बीच के क्षेत्र के खोरठा को खोरठा का केंद्रीय रूप माना है। डॉ गजानन महतो ने पारसनाथ और लुगू पहाड़ के बीच के क्षेत्र को खोरठा का श्रेष्ठ रूप माना है।
एखन ले खालि चाइर बेर खोरठा भाखाक मानकीकरन भेइल हे। मानकीकरन बइठके खोरठाक नामकइजका जानकर लोक एक जाइघाइ आपन बुइझ के आदान-परदान कइर के खोरठा भाखाक मानक रूप दिएक लागिन उता-सुता करे। डॉ ए के झाञ पारसनाथ पहाड़ आर दामूदर नदिक माझेक छेतरेक खोरठाक केंदरिय रूप मानल हइ। डॉ गजानन महतोञ पारसनाथ पहाड़ आर लुगु पहाड़डेक माँझेक छेतरेक खोरठाक गड़िया रूप मानल हइ।
पहला मानकीकरण – 13-14 दिसंबर 1986 ई में राँची विश्विद्यालय के “जनजातीय और क्षेत्रीय भाषा विभाग” के प्रयास से जेवियर इंस्टीट्यूट, राँची में झारखंड के क्षेत्रीय और जनजातीय भाषा के मानकीकरन के लिए पहला बैठक हुआ था। इस बैठक का प्रमुख डा ए के झा थे। शिवनाथ प्रमाणिक, बी एन ओहदार, शांति भारत, शशि कुमार जैसे समझदार लोग इस बैठक में भाग लिए थे।इस बैठक में कुछ मानक निर्धारण किया गया था जो नीचे दिया गया है:-
पहिलका मानकीकरन – 13-14 दिसंबर 1986 बछरे राँची विश्विद्यालएक “जनजातीय और क्षेत्रीय भाषा विभाग” के परजासेस जेवियर इंस्टीट्यूट, राँचीञ झारखंडेक छेतरिय आर जनजातीय भाखाक मानकीकरनेक खातिर पहिल बइठक भेल हलइ। ई बइठकेक मुखिया डा ए के झा हलइ। शिवनाथ प्रमाणिक, बी एन ओहदार, शांति भारत, शशि कुमार जइसन बुइझगर लोक ई बइठकें भाग लेल हलइ। ई बइठके कुछु मानक निरधारन भेल हलइ जे हेठे दियल गेल हे:-
सवर बरनेक मानकीकरन
1. 8 गो सवर साड़ाक(अ, आ, इ ई, उ, ऊ ए, ओ) माइनता देल गेलइ आर ऋ, ऐ आर औ साड़ाक परजोग के मनाही करल गेलइ।
8 स्वर वर्ण को मान्यता दी गई और ऋ, ऐ और औ वर्ण के प्रयोग का मनाही की गई।
2. ई आर ऊ साड़ाक परजोग सुधु दिसाबाची सरबनाम खातिर राखल गेलइ। (ई और ऊ वर्ण का प्रयोग सिर्फ दिशावाची सर्वनाम के लिए रखा गया)
3. संजोगी सवर “ऐ” लागिन ‘अइ’ आर औ खातिर “अउ” उखरान के माइनता देल गेलइ। जइसन:-ऐनक- अइनक, पैसा-पइसा, मौजा-मउजा, औजार-अउजार
संयोगी स्वर ऐ के लिए “अइ” और ऊ के लिए “अउ” लिखने की मान्यता दी गई। जैसे:-ऐनक- अइनक, पैसा-पइसा, मौजा-मउजा, औजार-अउजार।
4.”ऋ” के जाइघाइ “री/रि” के परजोगेक जोर देल गेलइ जइसन – ऋषि- रिसि, ऋण – रिन, ऋतु- रितु।
“ऋ” के जगह “री/रि” के प्रयोग पर जोर दिया गया जैसे – ऋषि- रिसि, ऋण – रिन, ऋतु- रितु
5. विसर्ग (:) के परजोग नाञ करेल कहल गेलइ। खोरठाञ विसर्ग के छांइट दिअल जाइ जइसन:- दुःख-दुख, निःसंदेह- निसंदेह, छः – छ।
विसर्ग (:) का प्रयोग न करने के लिए कहा गया खोरठा में विसर्ग को अलग करके बाहर किया गया जैसे:- दुःख-दुख, निःसंदेह- निसंदेह, छः – छ
बेंजन बरनेक मानकीकरन
1. बेंजन बरनेम 31गो साड़ाक मानइता देल गेलइ। हिंदी बरनमालाञ परजोग होवेवाला साड़ा “ङ, ण, श, ष क्ष, त्र ज्ञ, श्र” के परजोगेक मनाही करल गेलइ।
व्यंजन वर्ण में 31 वर्ण को मान्यता दिया गया। हिंदी वर्णमाला में प्रयोग होने वाला परजोग होववाला वर्ण “ङ, ण, श, ष क्ष, त्र ज्ञ, श्र” के प्रयोग की मनाही किया गया)
2. “श” साड़ाक जाइघाइ “स” के परजोगेक मानइता देल गेलइ। जइसन:- शेर – सेर
“श” वर्ण के जगह “स” के प्रयोग की मानइता दी गई जैसे:- शेर – सेर)
3. “ष” साड़ाक जाइघाइ “स आर ख” के परजोगेक मानइता देल गेलइ जइसन:- वर्षा – बरसा/बरखा, विष – बिस/बिख।
“ष” वर्ण के जगह “स और ख” के प्रयोग की मान्यता दी गई जैसे:- वर्षा – बरसा/बरखा, विष – बिस/बिख।
4. “ण” साड़ाक जाइघाइ “न” के परजोगेक मानइता देल गेलइ जइसन:- उदाहरण – उदाहरन, व्याकरण – बेआकरन।
“ण” वर्ण के जगह “न” के प्रयोग की मान्यता दी गई जैसे:- उदाहरण – उदाहरन, व्याकरण – बेआकरन।
5. “व” साड़ाक कोनहो सबद के आगु परजोगेक मनाही करल गेलइ। “व” साड़ाक जाइघाइ “ब” के परजोगेक मानइता देल गेलइ जइसन:- वन, बन, वंदना – बंदना। उरदु/फारसी/अरबी ले खोरठाम आइल सबदेम “व” साड़ाक जाइघाइ “ओ” साड़ाक परजोगगेक मानइता देल गेलइ जइसन:- वकील – ओकिल वकालत – ओकालत।
“व”वर्ण का किसी शब्द के आगे प्रयोग की मनाही किया गया। “व” वर्ण के जगह “ब” के प्रयोग की मान्यता दी गई जैसे:- वन, बन, वंदना – बंदना। उरदु/फारसी/अरबी से खोरठा में आए शब्द में “व” वर्ण के जगह “ओ” वर्ण के प्रयोग की मान्यता दी गई। जैसे:- वकील – ओकिल वकालत – ओकालत
6. “य” साड़ाक कोनहो सबद के आगु परजोगेक मनाही करल गेलइ ओकर जाइघाइ “ज” के परजोगेक मानइता देल गेलइ जइसन:- यमुना – जमुना, यशोदा – जसोदा। जोदि “य” साड़ा कोनहो सबदेक मांझे आबे, सेइ जाइघाइ “इअ” आर जोदि सेसे आबे सेइ जाइघाइ “इ आर आ” के परजोगेक मानइता देल गेलइ जइसन:- प्यार – पिआर, सियार – सिआर, विषय – बिसइ, समय – समइ। पहिया – पहिआ, खटिया – खटिआ। उरदु/फारसी/अरबी से खोरठा में आइल सबद मे “य” साड़ाक जाइघाइ “ए बा इया” के परजोगेक मानइता देल गेलइ जइसन:- यकीन – एकिन ओकिल वकालत – ओकालत।
“य” वर्ण के किसी शब्द का किसी शब्द के आगे प्रयोग के लिए मनाही की गई। उसके जगह “ज” के प्रयोग की मान्यता दी गई जैसे:- यमुना – जमुना, यशोदा – जसोदा। यदि “य” वर्ण किसी शब्द के बीच में आता हो उस जगह “इअ” और यदि शेष में आता हो उस जगह “इ और आ” के प्रयोग की मान्यता दी गई जैसे:- प्यार – पिआर, सियार – सिआर, विषय – बिसइ, समय – समइ। पहिया – पहिआ, खटिया – खटिआ। उरदु/फारसी/अरबी से खोरठा में आए शब्द में “य” वर्ण के जगह “ए और इया” साड़ा के के प्रयोग की मान्यता दी गई जैसे:- यकीन – एकिन ओकिल वकालत – ओकालत।
7. संजोगी बेंजन “क्ष” साड़ाक जाइघाइ “छ बा ख” के परजोगेक मानइता देल गेलइ जइसन:- क्षमा – छमा/खमा, क्षत्रिय – छतरिय/खतरिय।
संयोगी व्यंजन “क्ष” वर्ण के जाइघाइ “छ या ख” के प्रयोग की मान्यता दी गई जैसे:- क्षमा – छमा/खमा, क्षत्रिय – छतरिय/खतरिय।
8. संजोगी बेंजन “त्र” साड़ा के जाइघाइ “तर” के परजोग के मानइता देल गेलइ जइसन:- क्षेत्र – छेतर, चरित्र – चरितर।
संयोगी व्यंजन “त्र” वर्ण के जगह “तर” के प्रयोग की मान्यता दी गई जैसे:- क्षेत्र – छेतर, चरित्र – चरितर।
9. संजोगी बेंजन “ज्ञ” साड़ाक जाइघाइ “गिय/गेय” के परजोगेक मानइता देल गेलइ जइसन:- ज्ञान – गियान, विज्ञान – बि गियान।
संयोगी व्यंजन “ज्ञ” वर्ण के जगह “गिय/गेय” के प्रयोग की मान्यता दी गई जैसे:- ज्ञान – गिआन, विज्ञान – बिगिआन।
10. संजोगी बेंजन “श्र” साड़ाक जाइघाइ “सर” के परजोगेक मानइता देल गेलइ जइसन:- हश्र – हसर।
संयोगी व्यंजन “श्र” वर्ण के जगह “सर” के प्रयोग की मान्यता दी गई जैसे:- हश्र – हसर।
संसकिरित आर हिंदी सबदेक परजोग
संसकिरित आर हिंदी ले आइल ओइसन सबद जेकर खोरठा में उखरान करले माने पुरा-पुरी बदइल जाइ तकरा मुल रुपे उधदरन चिनहाक (इनभरटेड कोमा) (“….”) भितरें लिखेक मानइता देल गेलइ। जइसन “पात्र” के खोरठा बोली में लिखलइ पातर (पतला) होवे जेकार माने पुरा-पुरी बदली गेलइ।
संस्कृत और हिंदी से आया वैसा शब्द जिसका खोरठा में लिखावट करने से अर्थ पूरी तरह बदल जाए उसे मूल रूप में Inverted comma में लिखने की मान्यता दी गई। जैसे “पात्र” के खोरठा बोली में लिखने से पातर (पतला) होता है जिसका अर्थ पूरी तरह से बदल जाता है।
ठेंठ सबद के परजोग जोर
दोसर भाखा ले आइल सबद गुलाक कम ले कम परजोग करेक आर ठेंठ खोरठाक सबदेक बेसि ले बेसि परजोग करेक सिफारिस करल गेलइ। जोदि कोनहों भाभ उखरावे लागिन सबद नाञ पावल जाइ तखन झारखंडेक कोनहो सदानी भाखाक सबद परजोग करल जाइ पारे।
दूसरे भाषा से आए शब्दों का कम से कम प्रयोग करने और शुद्ध खोरठा के शब्दों का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करने की सिफारिश की गई। यदि इसी भाव को व्यक्त करे के लिए कोई शब्द नहीं मिलता है तो किसी झारखंडी सदानी भाषा के शब्द का प्रयोग किया जा सकता है।
हाइफेन के परजोग
पहिले, समाइन बरतमान कालेक मुल किरिआ आर सहायक किरिआक मांझे अवगरह (ऽ) के परजोग करल जाइ रहल। मकिन ई बइठके अवगरह (ऽ) के परजोगेक छांइट देलकइ आर एकर बदल हाइफेन (- ) बा “ओ” के परजोग के मानइता देलकइ। जइसन: गेलऽ हलइ के बदले गेल-हलइ/गेलो हलइ।
पहले सामान्य वर्तमान काल की मूल क्रिया और सहायक क्रिया के बीच अवग्रह (ऽ) का प्रयोग किया जा रहा था। लेकिन इस बैठक में अवग्रह (ऽ) के प्रयोग को छांट दिया गया और इसके जगह हाइफेन (- ) या “ओ”के प्रयोग को मान्यता दी गई। जैसे: गेलऽ हलइ के बदले गेल-हलइ/गेलो हलइ।
“कि” सबदेक परजोग
हिंदी भाखाञ परजोग होवेवाला सोवालबाचि सबद”क्या” के उचारन लागिन तीनों सबद “कि/का/किना” के परजोग करल जाइ पारे मकिन लिखेंक बेराञ सुधु ” कि” सबदेक परजोग के सिफारिस करल गेलइ।
हिंदी भास में प्रयोग होने वाला सवालवाची शब्द “क्या” को व्यक्त करने के लिए तीनों शब्द “कि/का/किना”का प्रयोग किया जा सकता है लेकिन लिखने के समय सिर्फ “कि” शब्द के प्रयोग किसीपरिश की गई।
दोसरका मानकीकरन – नवंबर मइहना 2010 बछरे रामगढ़ेक कुसवाहा धरमसालाञ दु दिनेक बइठक भेल हलइ। ई बइठकेक मुखिया डा ए के झा हलइ। शिवनाथ प्रमाणिक, बी एन ओहदार, गजाधर महतो, भुवनेश्वर साहु, बिनोद कुमार, महेद्रनाथ गोस्वामी, नागेसर महतो, वंशीलाल, शांति भारत, शशि कुमार जइसन बुइझगर लोक ई बइठकें भाग लेल हलइ। बि पी केसरी आर गिरधारी गोस्वामी जइसन भाखाबिद मुइख अतिथिक रुपे आइल हलइ। ई बइठके कुछु मानक निरधारन भेल हलइ जे हेठे दियल गेल हइ:-
दूसरा मानकीकरण – नवंबर 2010 के नवंबर महीना में रामगढ़ के कुसवाहा धरमसाला में दो दिन की बैठक हुई थी। इस बैठक का प्रमुख डा ए के झा थे। शिवनाथ प्रमाणिक, बी एन ओहदार, गजाधर महतो, भुवनेश्वर साहु, बिनोद कुमार, महेद्रनाथ गोस्वामी, नागेश्वर महतो, वंशीलाल, शांति भारत, शशि कुमार जैसे जानकार लोगों ने इस बैठक में भाग लिया था। बी पी केसरी और गिरधारी गोस्वामी जैसे भाषाविद मुख्य अतिथि के रूप में आए थे।। इस बैठक में कुछ मानक निर्धारण हुए जो नीचे दिया गया है:-
“महाप्राण” साडाक माइनता
ई बइठके म्ह (mh), न्ह (nh), ल्ह (lh) रह (rh) जइसन चाइर साड़ाक परजोगेक माइनता दियल गेलइ।
इस बैठक में म्ह (mh), न्ह (nh), ल्ह (lh) रह (rh) जैसे चार वर्ण के प्रयोग की मान्यता दी गई।
उपबेंजन के परजोग
दूगो उपबेंजन साड़ा “ड़, ढ़” के परजोग के मानइता देल गेलइ।
दो उपव्यंजन “ड़, ढ़” के प्रयोग की मान्यता दी गई।
रेफ/रफला कर परजोग
रेफ बा रफलाक परजोग के सिफारिस करल गेलइ।
रेफ या रफला के प्रयोग की सिफारिस की गई।
पांचवा साड़ाक नियम
पांचवा साड़ा (ङ, ञ,ण न, म) के अनुसुआर (•) रूपे परजोगेक मानइता देल गेलइ जइसन:- झारखण्ड – झारखंड, किन्तु – किंतु, सम्पादक – संपादक।
पांचवा वर्ण (ङ, ञ,ण न, म) का अनुस्वर (•) के रूप में प्रयोग की मान्यता दी गई जैसे:- झारखण्ड – झारखंड, किन्तु – किंतु, सम्पादक – संपादक।
बहुबचन बनवेक नियम
खोरठा भाखाक सबदेम बांगला भाखाक पारा गुला/गुली/गुलइन/गुलिन जोइड़ के बहुबचन बनवेक मानइता देल गेलइ।
खोरठा भाषा के शब्दों का बांग्ला भाषा की तरह गुला/गुली/गुलइन/गुलिन जोड़ के बहुबचन बनाने की मान्यता दी गई।
तिसरका मानकीकरन – 2013 बछरे खोरठा साहित्य संस्कृति परिषदेक परजासे रामगढ़ेक (कांकेबार) पटेल छातराबासें तिसरका भेल हलइ। ई बइठकें मुइख काइज जेटेट परिखाञ पुछल सोबाल के जांच- पड़ताल करेक हलइ। ई बइठक के मुखिया डा बी एन ओहदार हलइ। दिनेश दिनमणि, गिरधारी गोस्वामी, अनाम अजनबी, भुवनेश्वर साहु, नागेश्वर महतो जइसन खोरठा के जानकार लोक ई बइठक में भाग लेल हलइ। ई बइठके पइछला दुबेर भेल मानकीकरन आर सिफारिस के दोहरावल आर कुछु मानक के माइनता देल गेलइ जे हेठे दिएल गेल हे:-
तीसरा मानकीकरण – 2013 ई में खोरठा साहित्य संस्कृति परिषद के प्रयास से रामगढ़े (कांकेबार) के पटेल छात्रावास में तीसरा मानकीकरण हुआ था। इस बैठक का मुख्य कार्य जेटेट परीक्षा में पूछे गए सवाल की जांच- पड़ताल करना था। इस बैठक का प्रमुख डा बीएन ओहदार थे। दिनेश दिनमणि, गिरधारी गोस्वामी, अनाम अजनबी, भुवनेश्वर साहु, नागेश्वर महतो जैसे खोरठा के जानकार लोग इस बैठक में भाग लिए थे। इस बैठक में पिछला दोबार के मानकीकरण और सिफारिश को दोहराया गया तथा कुछ मानक की मान्यता दी गई जो नीचे दिया गया है:-
1. साड़ा “ड़, ढ़” के उपबेंजन कहल गेलइ आर एकरा ट-बरगे जाइघा दियल गेलइ।
वर्ण “ड़, ढ़” को उपव्यंजन कहा गया और इसे ट-वर्ग में जगह दिया गया।
2. अपसबद आर मंड़उ सबदेक परजोग करेल मनाहि के सिफारिस करल गेलइ। जइसन:- तुबेक, ठुंसेक, कोचेक ई तीनोको माने होवे खाएक मकिन ई अपसबद हकइ।
अपशब्द और अश्लील शब्द के प्रयोग की मनाही की सिफारिश गई। जैसे:- तुबेक, ठुंसेक, कोचेक ये तीनो का मतलब खाना खाना होता है किंतु यह एक अपशब्द है।
3. खोरठा भाखाञ एकरूपता लाने लेल बहुबचन बनवेल लागिन अइन/ वइन परतइ के बदल बांगला भाखाक परतइ गुला/गुली/गुलइन/गुलिन जोइड़ के बहुबचन बनवेक पर जोर देल गेलइ।
खोरठा भाषा में एकरूपता लाने के लिए बहुबचन बनाने के लिए अइन/ वइन प्रत्यय के बदले बांग्ला भाषा में प्रयुक्त प्रत्यय गुला/गुली/गुलइन/गुलिन जोड़कर बहुवचन बनाने पर जोर दिया गया।
4. मेसरी बाइकें (मिश्र वाक्य) संजोजक “कि” के बदलें “जे” के परजोग करेक सिफारिस करल गेलइ।
मिश्र वाक्य में संजोजक “कि” के बदलें “जे”के प्रयोग करने की सिफारिस की गई।
5. हिंदी भाखाम परजोग सवालबाचि सबद”क्या” के बदले ” कि” सबद के परजोग करेक माइनता दियल गेलइ।
हिंदी भाखा में प्रयोग होने वाले सवालवाची शब्द “क्या” के बदले ” कि” शब्द के प्रयोग की मान्यता दिया गया।
6. लोकोकतिक लागिन पटतइर आर मुहावरा लागिन आहना सबद के परजोग होवेल चाहि।
लोकोक्ति के लिए पटतइर और मुहावरा के लिए आहना शब्द का प्रयोग होना चाहिए।
7. संज्ञा सबद लागिन संइगा/सइंगा के परजोग नाञ होवे चाही। एकर खातिर संग्या लिखेक चाही।
संज्ञा शब्द के लिए संइगा/सइंगा का प्रयोग नहीं होना चाहिए। इसके लिए संग्या लिखना चाहिए।
चाइरका मानकीकरन – ई बइठक सितंबर 2019 बछरे भेल हलइ। जेकर मुइख अतिथि विनोबा भावे विश्विद्यालएक कुलपति डॉ रमेस सरन आर गिरिडीहेक सांसद चंदर परकास चउधरी जी हलथ। ई बइठके बेयाकरन पर बिसेस जोर दिएल गेलइ। जेकर एखन ले आधिकारिक जानकारी नाञ बहराइल हे।
चौथा मानकीकरण – ये बैठक सितंबर 2019 में की गई। इसका मुख्य अतिथि विनोबा भावे विश्वविद्याल के कुलपति डॉ रमेश शरण और गिरिडीह के सासंद चंद्र प्रकाश चौधरी जी थे। इस बैठक में व्याकरण पर विशेष जोर दिया गया जिसकी अभी आधिकारिक जानकारी अप्राप्य है।
निंघरउति – माइर-कुइट के ई कहे पारे कि खोरठा भाखाक बिकास खातिर मानकीकरन महत राखेवाला परजास हकइ। मानकीकरन बइठके नाना रकम बिचारेक धियान राखिक साड़ागत, बाइकगत, सबदगत, पइदगत, बेआकरनगत आधारे ढेर मानकीकरन भेइल हइ। मानकीकरन खातिर बइठक बतरसिरे होते रहल चाहि काहेकि खोरठा झारखंडेक सबसे बोड़ जनमानुस के भाखा हकइ। हामिन के ई बिसूआस हइ कि आगू दिना खोरठा मानकीकरन लाइ एगो नावां आर इसथिर मानक रूप बनतइ।
निष्कर्ष – निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि खोरठा भाषा के विकास के लिए मानकीकरण एक महत्वपूर्ण प्रयास है। मानकीकरण के बैठक में विभिन्न प्रकार के विचार को ध्यान में रखते हुए शब्दगत, वाक्यगत, पद्यगत, व्याकरणगत, आधार पर बहुत मानकीकरण हुआ है। मानकीकरण के लिए बैठक बीच-बीच में होते रहना चाहिए क्योंकि खोरठा झारखंड के सबसे बड़ा जनसंपर्क की भाषा है। हमे यह विश्वास है कि आगे के दिनों में खोरठा भाषा का एक नया और मानक रूप बनेगा।
शब्द संग्रह
देदार – प्रचुर
दरकार – जरूरत
ढांगा-ओसार – लंबा -चौड़ा
भीरी – निकटवर्ती
दाइ -मुश्किल
जाइघाइ – स्थान पे
सुधु/खालि – सिर्फ
बतसिरे – समय समय पर
उता सुता – प्रयास
नामकइजका -प्रसिद्ध
जूनजूनार- अत्यावश्यक
साड़ा – वर्ण