संविधान की प्रस्तावना
Preamble Of Constitution
पंडित नेहरू को संविधान की प्रस्तावना का जनक माना जाता है क्योंकि इनके द्वारा संविधान सभा में प्रस्तुत “उद्देश्य प्रस्ताव” को भारतीय संविधान की प्रस्तावना का आधार माना जाता है। भारत के संविधान का स्वरूप कैसा होगा यह उद्देश्य प्रस्ताव में समाहित था। भारतीय संविधान की प्रस्तावना उद्देश्य प्रस्ताव का ही संशोधित रूप है। इन्हीं कारणों से भारतीय संविधान के प्रस्तावना को उद्देशिका भी कहा जाता है। भारतीय संविधान में प्रस्तावना को अमेरिका के संविधान से लिया गया है तथा इस प्रस्तावना में लिखी गई भाषा शैली को ऑस्ट्रेलिया के संविधान से लिया गया है।
प्रस्तावना
“हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक, गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को:
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता
प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में
व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की
एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता
बढ़ाने के लिए
दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ईस्वी (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत 2006 विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत,अधिनियमित और आत्मर्पित करते हैं।”
न्याय
भारत के संविधान की प्रस्तावना में तीन प्रकार का न्याय का वर्णन है :- सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय एवं राजनीतिक न्याय।
Note:- सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय की परिकल्पना भारतीय संविधान की प्रस्तावना में (रूस की क्रांति 1917) से लिया गया है।
स्वतंत्रता
भारत के संविधान की प्रस्तावना में पांच प्रकार की स्वतंत्रता का वर्णन है:- विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म एवं उपासना।
समानता
भारत के संविधान की प्रस्तावना में दो प्रकार की समानता का वर्णन है:- प्रतिष्ठा एवं अवसर।
हम भारत के लोग….
भारतीय संविधान की प्रस्तावना की शुरुआत “हम भारत के लोग” वाक्यांश से शुरू होता है। प्रस्तावना में लिखे वाक्यांश हम भारत के लोग.. से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय संविधान का स्रोत भारत की जनता है अर्थात भारतीय संविधान को भारत के जनता के द्वारा बनाया गया है तथा जनता के द्वारा स्वीकृत किया गया है तथा दूसरी भारत में जनता सर्वोच्च है।
प्रस्तावना में संशोधन
“केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य” इस विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय सुनाया था की प्रस्तावना का संशोधन उसी तरह किया जा सकता है जिस तरह संविधान के अन्य भागों का संशोधन किया जाता है । अब तक प्रस्तावना में सिर्फ एक बार संशोधन किया गया है। 42वां संविधान संशोधन, 1976 के द्वारा प्रस्तावना में 3 नए शब्द को जोड़ा गया है समाजवाद, पंथनिरपेक्ष और अखंडता। इसी केस में Theory Of Basic Structure (मूल ढांचा का सिद्धांत) दिया गया इसके आधार पर संविधान की मूल ढांचा को नहीं बदला जा सकता है।
Note:- केशवानंद भारती बनाम स्टेट ऑफ केरल यह विवाद भारतीय न्यायिक इतिहास की सबसे बड़ी विवाद मानी जाती है जिसे सुलझाने के लिए सबसे ज्यादा 13 जजों की बेंच बनी थी।
प्रस्तावना पर कथन
🔥 एन ए पालकीवाला ने प्रस्तावना को भारतीय संविधान का परिचय पत्र कहां है।
🔥 अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर ने कहा है की प्रस्तावना हमारे दीर्घकालीन सपनों का विचार है।
🔥 ठाकुरदास भार्गव ने प्रस्तावना को भारतीय संविधान की आत्मा तथा आभूषण कहा तथा इन्होंने ही प्रस्तावना को भारतीय संविधान का सबसे महत्वपूर्ण भाग कहा था।
Note:- भीमराव अंबेडकर ने अनुच्छेद 32 को भारतीय संविधान की आत्मा कहा था।
🔥 कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने प्रस्तावना को भारतीय संविधान का जन्म कुंडली (Horoscope) कहा था।
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
Preamble of constitution
🔥 प्रस्तावना में “भारत” शब्द का प्रयोग दो बार किया गया है।
🔥 प्रस्तावना में भारतीय संविधान के पांच स्वरूप बताए गए हैं संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न, समाजवादी, लोकतांत्रिक, गणराज्य और पंथनिरपेक्ष
🔥 बेरूवाड़ी संघवाद केस (1960) में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रस्तावना को भारतीय संविधान का अंग नहीं माना गया था किंतु बाद में केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य केस (1973) में प्रस्तावना को भारतीय संविधान का अंग माना गया।
🔥 प्रस्तावना में अंकित स्वतंत्रता समानता और बंधुत्व की परिकल्पना फ्रांसीसी क्रांति (1789-1799) से लिया गया है।
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