नागवंश झारखंड
राजधानी
सूतियांबे –राजा फनीमुकुट राय ने रांची के पिठोरिया में इसकी पहली राजधानी सूतियांबे को बनाया । पहली शताब्दी से तीसरी शताब्दी तक यह नागवंशी साम्राज्य की राजधानी रही।
चुटिया – नाग वंश के चौथे राजा प्रताप राय ने अपनी राजधानी को सूतियांबे से चुटिया (रांची रेलवे स्टेशन के आसपास) हस्तांतरित किया। तीसरी शताब्दी से लेकर 12वीं शताब्दी तक यह नाग वंश की राजधानी बनी रही। नागवंशी साम्राज्य की सबसे ज्यादा दिन तक राजधानी चुटिया में रही।
खुखरागढ़ – नाग वंश के सबसे प्रतापी राजा भीम कर्ण ने 1122 ई में अपनी राजधानी को चुटिया से खुखरा में स्थानांतरित किया। खुखरा 12वीं शताब्दी से लेकर 17वीं शताब्दी (1627 ई) तक नागवंश की राजधानी बनी रही।
दोइसागढ़ – राजा दुर्जनसाल को जहांगीर के द्वारा बंदी बनाए जाने के बाद छोड़ दिया गया था। कैद से छूटने के बाद दुर्जन साल ने 1627 में अपनी राजधानी का स्थानांतरण खुखरा से दोइसा में किया। और नवरत्नगढ़ नामक एक भव्य राजप्रसाद बना कर वहीं से शासन प्रारंभ किया। दोइसा 1720 ई तक नाग वंश की राजधानी बना रहा
पालकोट – 1720 में उदयनाथ शाहदेव ने नाग वंश की राजधानी लालगढ़ (पालकोट) में स्थानांतरित किया जो 1870 तक नाग वंश की राजधानी बना रहा।
पालकोट भौरों – पालकोट के लालगढ़ से कुछ ही दूरी पर जगन्नाथ शाहदेव ने अपनी राजधानी बनाई थी।
रातुगढ़ – ब्रिटिश काल में प्रताप उदय नाथ शाहदेव ने 870 में नाग वंश की राजधानी को पालकोट भौरों से रातूगढ़ में स्थानांतरित किया गया। यह नागवंशीयों की अंतिम राजधानी थी। रातूगढ़ 1952 तक नागवंशी यों की राजधानी बना रहा।
नागवंशी राजधानी क्रमानुसार
Trick – पहला राजधानी सूतियांबे ये याद रखना है। इसके आगे का ट्रिक – चख दो पापर
च – चुटिया
ख – खुखरा
दो – दोइसा
पा – पालकोट
प – पालकोट भौरो
र – रातु
स्थापना
Nag Dynasty की स्थापना पहली सदी के 64 ई में हुई थी। नागवंश के संस्थापक फनीमुकुट राय थे। फनीमुकूट राय राजा बनते ही रामगढ़, बरवा (पलामू), तमाड़ (राँची), टोरी (लातेहार), गोला, पलानी, हजाम आदि क्षेत्रों का अपने नियंत्राधिन किया।
इतिहासकार जे रीड ने नागवंश के स्थापना का काल 10 वी सदी बताया है। फनीमुकूट राय नागवंश का सबसे ज्यादा दिन तक (98वर्ष) राजा बना रहा। इसका कार्यकाल 64 ई से 162 ई तक था। फनीमुकुट रॉय के पिता का नाम पुंडरीक नाग और माता का नाम पार्वती थी। इसकी माता पार्वती वाराणसी की ब्राह्मण कन्या थी। मुंडा राज्य (सुतिया नागखंड) के आखरी राजा मदरा मुंडा ने इसका लालन पालन किया था, फनीमुकुट रॉय मदरा मुंडा का दत्तक पुत्र था उसने अपने बेटे से ज्यादा योग्य होने के वजह से फनीमुकुट रॉय को मुंडा राज्य का अगला राजा बनाया और मुंडा राज्य बदलकर नागवंश हो गया।
Language – नागवंशीयों की राजकीय भाषा नागपुरी थी। धार्मिक अनुष्ठानों को संपन्न कराने के लिए संस्कृत का प्रयोग होता था।
Time Period Of Nag Dyansty
नागवंश की
Fanimukut Roy
फनीमुकुट रॉय ने सूतियांबे (राँची जिला में) को अपनी राजधानी बनाई। फनीमुकुट रॉय के शासनकाल में नागवंश 4 क्षेत्र (घटवारी, खुखरा गढ़, दोइसागढ़ और जरची गढ़) में बंटा हुआ था। पूरे राज्य में 66 परगने थे। घटवारी में कुल 22 परगने, खुखरागढ़ में 18 परगने, दोइसागढ़ में 18 परगने और जरचीगढ़ में 8 परगने आते थे। नागवंशी राज्य के पूर्व में पंचेत राज्य और दक्षिण में क्योंझर राज्य था। फनी मुकुट रॉय ने पंचेत राज्य के गोवशी राजघराने से विवाह संबंध स्थापित किया और पंचेत राज्य की मदद से क्योंझर राज्य को पराजित किया। पंचेत राज्य की मदद से कोराम्बे के रक्सेल को भी फनीमुकूट ने परास्त किया।
फनीमुकुट राय ने अपने राज्य में गैर-आदिवासियों को बसाने का प्रयत्न किया था। पांडेय भवराय श्रीवास्तव की इसने अपना दीवान नियुक्त किया था। फनीमुकूट रॉय ने अपनी राजधानी सुतियांबे में एक सूर्य मंदिर का निर्माण कराया था जिसके लिए पूरी के पंडा को अपने राज्य में बसाया और इनके के निवास के लिए सोरंडा और महूगांव नाम का गांव बसाया। फनीमुकूट के बाद उसका बेटा मुकुट रॉय नागवंश का राजा बना।
नागवंशी राजा प्रताप रॉय ने नागवंश की राजधानी सूतियाम्बे से हटाकर स्वर्णरेखा नदी तट पर स्थित चुटिया ले गया।
Note: सुतियाम्बे राँची जिला के पिठोरिया पहाड़ी के पाद पर अवस्थित थी। चुटिया भी राँची जिला में अवस्थित था।
भीमकर्ण
नागवंशी राजाओं में सबसे प्रतापी भीमकर्ण हुआ।इसने गंधर्व राय के बाद नागवंश के राजा हुए। रॉय उपाधि धारण करने वाला आखरी राजा गंधर्व राय थे और कर्ण की उपाधि धारण करने वाले पहले राजा भीमकर्ण थे। कर्ण की उपाधि नागवंशीयो ने कल्चुरी वंश से ग्रहण किया। भीम कर्ण के समय ही सरगुजा के हैहैयवंशी रक्सेल ने 12000 घुड़सवार और पैदल सेना के साथ नागवंश राज्य पर आक्रमण किया था। रक्सेलो और भीमकर्ण की सेना के बीच “बरवा की लड़ाई” हुई जिसमे भीमकर्ण विजयी हुए और रकसेलो को सरगुजा की ओर धकेल दिया। भीमकर्ण ने रक्सेलो को खूब लूटा, लूट के समान में बासुदेवराय की मूर्ति मुख्य थी तथा बरवा (पलामू) और टोरी परगना(लातेहार) पर कब्जा कर लिया।
इस जीत के साथ नागवंशीयों का शासन गढ़वाल राज्य तक छू गया। भीमकर्ण ने अपनी राजधानी चुटिया से हटाकर खूखरागढ़ को 1122 में बनाया। राजधानी परिवर्तन का मुख्य कारण यह था की इस समय मुस्लिम आक्रांताओं( विशेषकर बख्तियार खिलजी) का आक्रमण बढ़ गया था और चुटिया बंगाल पर आक्रमण करने वाले तुर्को के मार्ग पड़ता था। खुखरा नागवंशी राज्य के मध्य में पड़ता था। भीमकर्ण ने भीमसागर नाम का जलाशय का निर्माण कराया था।
प्रताप कर्ण
इसके समय में नागवंश घटवाल के विद्रोहो से त्रस्त रहा। तमाड़ के राजा ने खूखरा के किले की घेराबंदी करके प्रतापकर्ण को कैद कर लिया था। प्रतापकर्ण को इस समय खैरागढ़ के राजा बाघदेव सिंह ने मदद की थी और कैद से मुक्त कराया था।
रघुनाथ शाह
1640 ई में दुर्जनशाल के मृत्यु के बाद रघुनाथ शाह नागवंशी राजा बना और मृत्युपर्यन्त 1690 (50 वर्ष) तक सकुशलतापूर्वक नागवंश के राजा रहे। ये औरंगजेब के समकालीन थे। इसके शासन के दौरान नागवंश पर दो हमले हुए। पहला औरंगजेब के सेना का तथा चेरोवंशी मेदिनीराय का। मेदिनीराय का आक्रमण मुगलों के अपेक्षाकृत ज्यादा नुकसानदेह था। मेदिनीराय ने नागवंश की राजधानी दोइसा को खूब लुटा। लूट के समान मे खूबसूरत “नागपुरी फाटक/दरवाजा” सबसे महत्वपूर्ण था। इस दरवाजा को मेदिनीराय ने पलामू के नया किला मे स्थापित करवाया। इसके शासनकाल में छोटानागपुर आस्था का केंद्र बन गया था। रघुनाथ शाह ने अपने राज्य में कई मंदिरों का निर्माण कराया जैसे:- मदन मोहन मंदिर(बोडैया), राम-सीता मंदिर(चुटिया), दोइसा का जगन्नाथ मंदिर। इसके गुरु का नाम हरिनाथ था। इसने अपने गुरु के नाम के शब्द “नाथ” को अपने नाम के साथ जोड़ लिया था। नागवंशी परंपरा के अनुसार इनका नाम “ऐनीनाथ ठाकुर” था।
रामशाह
रघुनाथ शाह के बाद रामशाह 1690 ई में नागवंश का राजा बना और मृत्युपर्यन्त 1715 ई तक शासन किया। रामशाह मुगल राजा औरंगजेब और बहादुर शाह का समकालीन था। रामशाह का संबंध मुगलों के साथ अच्छा रहा। रामशाह आक्रामक प्रवृत्ति का था जिसने रीवा राज्य के बघेल शासक, रामगढ़ राज्य और सिंहभूम में हमले और लूटपाट किये। इसने रीवा नरेश की पुत्री से अपने बेटे एनीशाह का विवाह किया। तथा सिंहभूम नरेश जगन्नाथ सिंह से अपने बहन का विवाह किया।
यदुनाथ शाह
रामशाह के मृत्यु के बाद यदुनाथ शाह 1715 ई में नागवंश का राजा बना और मृत्युपर्यन्त 1724 ई तक शासन किया। यदुनाथ शाह मुगल राजा फर्रूखशियर का समकालीन था। इसके समय पलामू के चेरो राजा रंजीत राय ने 1719 में नागवंशियों से “टोरी परगना” छीन लिया। 1717 में मुगल सम्राट फर्रूखशियर ने बिहार के नवाब सरबुलंद खान को नागवंश पर आक्रमण करने के लिए भेजा। यदुनाथ शाह को 1 लाख रुपये नजराना देना पड़ा। इस आक्रमण के बाद यदुनाथ शाह ने राजधानी पालकोट ले गया।
शिवनाथ शाह
यदुनाथ शाह के मृत्यु के बाद 1724 ई में शिवनाथ शाह नागवंश का राजा बना और मृत्युपर्यन्त 1733 ई तक राजा बना रहा। 1730 में इसके समय बिहार के मुगल सूबेदार फखरुदोल्लाह ने हमला किया। शिवनाथ शाह को 12,000 का नजराना देना पड़ा।
उदयनाथ शाह
शिवनाथ शाह के मृत्यु के बाद उदयनाथ शाह 1733 ई में नागवंश का राजा बना और मृत्युपर्यन्त 1740 ई तक बना रहा। इसके समय 1733 ई में बिहार का मुगल नायब सूबेदार अलीवर्दी खान ने हमला किया। टेकारी के जमींदार सुंदर सिंह और रामगढ़ के जमींदार विष्णु सिंह ने सालाना देना स्वीकार कर लिया। रामगढ़ के बिष्णु सिंह ने जो सालाना स्वीकार किया उसमे नागवंशियों के लिए निर्धारित सालाना कर भी था। मतलब नागवंशियों का सालाना रामगढ़ राज्य के माध्यम से ही जाता था।
श्याम सुंदर शाह
उदयनाथ शाह के मृत्यु के बाद 1740 ई में ये नागवंश के राजा बने और मृत्यपर्यन्त 1745 ई तक राजा रहे। इसके शासनकाल में ही सर्वप्रथम मराठो ने नागवंश पर आक्रमण किया। 1742 ई में मराठा भास्करराव पंडित ने झारखंड के रास्ते बंगाल पर हमला किया था। इसी क्रम में नागवंशियों पर भी हमला किया। मराठा छत्तीसगढ़ के रास्ते झारखंड में प्रवेश हुए। बंगाल में अलीवर्दी खान मजबूती से शासन कर रहा था इसलिए मराठो को बंगाल से खाली हाथ वापस जाना पड़ा। इसके अगले साल 1742 में मराठा रघुजी भोसले भी झारखंड होता हुआ बंगाल पर हमला किया था।
मराठो के बार-बार आक्रमण से झारखंड में मुगलों का प्रभाव खत्म हो गया। वही झारखंड अब मराठो के प्रभाव-क्षेत्र में आ गया। 31 अगस्त 1743 को दो धुर-विरोधी मराठा पेशवा के बीच समझौता हुआ। इस समझौता के आधार पर दोनो का प्रभाव-क्षेत्र का निर्धारण हुआ। झारखंड रघुजी भोसले के प्रभाव-क्षेत्र में आया।
मणिनाथ शाह
श्याम सुंदर शाह के बाद 1745 ई से 1748 ई तक बलराम नाथ शाह नागवंश के राजा बने। बलराम नाथ शाह के बाद मणिनाथ शाह 1748 ई से 1762 ई तक नागवंशी राजा रहे। मणिनाथ शाह ने बरवा, सिल्ली, राहे, बुंडू और तमाड़ के स्थानीय जमींदारों का दमन करके पुनः नागवंश के अधीन लाया था।
दृपनाथ शाहदेव
यह 1762 ई से 1790 ई तक नागवंश का राजा रहा। दृपनाथ शाहदेव के समय मुगलों का प्रभाव छोटानागपुर में खत्म हो गया। इस बात का फायदा उठाकर दृपनाथ शाहदेव ने दो बार कोल्हान को हड़पने का असफल कोशिश किया। 1770 में जब दृपनाथ शाहदेव ने तमाड़ के राजा के साथ मिलकर कोल्हान को हड़पना चाहा तब हो लोगो ने इसे परास्त कर दक्षिण नागवंशी क्षेत्र में लगातार लूटपाट करना शुरू कर दिया। दृपनाथ शाहदेव प्रथम नागवंशी राजा था जो अंग्रेजो की अधीनता स्वीकार किया और अंग्रेजो का जागीरदार बना।
इसके शासनकाल में नानानाथ शाह ने गद्दी पर दावा किया जिसका साथ रामगढ़ राज्य के राजा मुकुन्द सिंह, पलामू के जयनाथ सिंह ने और मराठा ने दिया। मराठो ने 1200 घुड़सवार और 4000 पैदल सेना लेकर फरवरी 1772 में दृपनाथ शाहदेव पर हमला किया।नागवंशीयो के अधीन रहनेवाले टोरी परगना के जमींदार ने भी मराठो का साथ दिया। मराठा ने मालगुजारी की माँग की तथा छोटानागपुर में एक सैनिक छावनी बनाने की शर्त रखी। मगर ब्रिटिश शासन ने दृपनाथ शाहदेव के साथ दिया और मराठो को पीछे हटना पड़ा। यहाँ अंगेजी सेना का नेतृत्व लेफ्टिनेंट थॉमस स्कोट ने किया था।
नाग वंश से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
1. नागवंश के इतिहास की जानकारी बेनीराम मेहता द्वारा रचित”नागवंशवली” और प्रद्युमन सिंह द्वारा रचित “नागवंश” से मिलती है।
2. नागवंशी राजा दृपनाथ शाह ने नागवंशी राजाओं की सूची तत्कालीन गवर्नर जनरल कार्नवालिस को सौपी थी।
3. नागवंश 1952 में खत्म हुआ इसका आखरी राजा चिंतामणि शरणनाथ शहदेव था।
4. फनीमुकूट राय को “आदि पुरुष” तथा “झारखंड के प्रथम सदान” भी कहा जाता है।
Detailed video of नागवंश झारखंड & Nagkhand
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सर आपने राजधानी परिवर्तन रांची से खुखरा 1122 का कारण बख्तियार खिलजी की आक्रांत बताते हैं लेकिन ऐ तो ऐबक (1206-1210)का सेनापति था तो फिर ई ?
Question बिल्कुल सही है…..नागवंशवाली बुक में राजधानी परिवर्तन का समय यही है।
बाकी बुक्स में राजधानी परिवर्तन का कारण खिलजी का आक्रमण दिया है बिना डेट बताये।
Ok sir ji