सीएनटी एक्ट शब्दावली
CNT Act 1908 Terminology
कमाईकर – लोहार, लोहरा आदि समुदाय से लौहकर्म पर लिया जाने वाला कर।
घानीकर – तेलियों से तेल उत्पादन के लिए लिया जाने वाला कर।
तटकर – जुलाहा, अंसारी एवं स्वांसी जाति जो बुनकर के काम करते थे उन से लिया जाने वाला कर।
डालकट्टी – तसर सिल्क एवं लाह उत्पादकों से लिया जाने वाला कर।
डालाकर – नमक एवं तंबाकू के व्यापारियों से लिया जाने वाला कर।
बाछाकर – बछड़ा की पैदाइश पर पलामू और गढ़वा जिले में लिया जाने वाला कर।
चूलकर – जंगल से जलावन के लिए लकड़ी के लिए लिया जाने वाला जंगल कर।
महलीकर – महली समुदाय से बांस-कर्म के बदले लिया जाने वाला कर।
दहीकर – जमींदारों के घर में जन्म, मृत्यु या विवाह होने पर रेयतों से लिया जाने वाला कर।
छत्तीसा – धान के खेत जिसमें टांड़ जमीन भी सम्मिलित था।
मरदुम सुमारी – रैयतों की जनगणना।
नीमोकोधान – पहले के समय में नमक का आयात सिर्फ जमींदार ही कर सकते थे। जमींदार द्वारा नमक के बदले में रैयतों से ली गई धान को नीमोकोधान कहा जाता था।
ओगरा धान – ओगरा एक पद होता था जो जमींदारों के जंगल की देखभाल करता था। ओगरा के लिए रेयतो से ली गई अनाज।
भंडारीधान/कराई धान – अनाज के रूप में वह चंदा जो रैयत जमींदार के स्थानीय आदमी (भंडारी, गौडेत इत्यादि) के रखरखाव के लिए देते थे।
डाली कटारी – यह एक भूईहरी जमीन होती थी जो पाहन के संरक्षण में रहता है एवं जिसके उपज से गांव के देवी देवताओं की पूजा होती है। यह सामुदायिक भूमि है जो हस्तांतरण नहीं है।
गोमास्ता – यह गांव का एक पदाधिकारी होता था जो गांव में जमींदारों के तरफ से राजस्व या लगान वसूल करता था।
खिल्लत – जागीर के रूप में दिया जाने वाला जमीन का अनुदान।
जरीब – यह एक उपकरण है इसका उपयोग भूमि की नाप में किया जाता है यह एक सौ कड़ी का एक सीकड़ (चैन) होता है।
इजमाल – किसी भूमि की सामूहिक कब्जा को इजमाल कहा जाता है। यह सामूहिक कार्य के लिए उपयोग में लाया जाता।
चित्त-आरजी – किसी गांव के जमीन का वह भाग जो सर्वे के समय माप-जोख में दूसरे गांव की सीमा के अंतर्गत आता है।
जरोआ – जमींदारों एवं उनके परिवारों के लिए गर्म कपड़ा खरीदने के लिए रैयत के द्वारा दिया गया चंदा।
जंतल बोदा – प्रत्येक तीसरे वर्ष में आनंदपुर एस्टेट के आनंदपुर मंदिर में बलि के लिए प्रत्येक गांव से दिया जाने वाला बकरा।
दशहरा बोदा – रैयतों और प्रत्येक गांव के ग्राम प्रधान के द्वारा दशहरा पर्व में आनंदपुर एस्टेट के ठाकुर को प्रतिवर्ष दिया जाने वाला बकरा।
बैठकी सलामी – जमींदारों की मांग पर रैयत द्वारा बकरे के रूप में दिया जाने वाला कर।
गस्ती सलामी – वह राशि जो जमींदार अपने यात्रा पर बाहर जाने के क्रम में खर्च के बदले रेयतों से वसूलता था।
दसई सलामी – दशहरा उत्सव में लगने वाले खर्च हेतु जमींदार द्वारा रेयतों से लिया गया चंदा है। यह परबानी भी कहा जाता है।
गोइठा सलामी – कचहरी के ईंधन के खर्च के लिए लिया जाने वाला कर।
हिंडोला प्रणामी – जन्माष्टमी उत्सव पर खर्च के लिए जमींदार के द्वारा लिया जाने वाला चंदा।
रथ प्रणामी – वार्षिक उत्सव पर खर्च के लिए रैयतों द्वारा दिया गया चंदा।
हरटकी – रैयत के पास हल की संख्या अनुसार लगान भुगतान करने की एक प्रक्रिया। इस व्यवस्था में रैयत के द्वारा खेती किया जाने वाला क्षेत्र कोई मायने नहीं रखता था।
भाटा – जमींदार के द्वारा कर वसूली के लिए गांव जाने पर लगने वाला खर्च के लिए रैयतों से लिया जाने वाला कर। इसे मामूली भी कहा जाता था।
हकीमी – खुखरा के राजा द्वारा मुगल बादशाह को देने के लिए जमींदार के माध्यम से रैयतों से चंदा के रूप में जमा की जाने वाली राशि।
हरई – यह एक प्रकार की बेगारी थी जो पलामू/गढ़वा क्षेत्र में प्रचलित थी। इसमें अपने हल-बैल और अपने व्यक्तिगत सेवाएं जमींदार को देनी पड़ती थी।
तेरिज – खतियान का सारांश जिसमें रैयत का नाम, प्रत्येक भूमि का रकबा और लगान अंकित रहता है।
काडा बेओरी – दशहरा उत्सव में बलि के लिए एक भैंस खरीदने के लिए लिया गया चंदा।
बुझारत – बंदोबस्ती विभाग के मुंशी (मुंसरिम) के द्वारा अधिकार अभिलेख को पढ़कर एवं व्याख्या कर संबंधित पक्षों को समझाना।
पाही काश्त – पाही रैयत (प्रवासी रैयत) द्वारा खेती की जाने वाली भूमि।
पाही रैयत – यह वह किसान थे जो उस गांव के ना होते हुए भी गांव की भूमि पर खेती करते थे। ऐसे रैयतों को अधिकार पट्टे द्वारा दिया जाता था।
पाल – यह कछारी भूमि या बाढ़ की बहुमूल्य मिट्टी से बनी उच्च भूमि जो सामान्यतः नदी के किनारे होते हैं एवं इसमें खैनी तथा मूंग का उत्पादन किया जाता है।
परजा – खुटकट्टी गांव या भुईहरी गांव में बसाए गए नए रैयत। इस प्रकार के बसाए गए लोग साधारणतः खुदकट्टीदार या भुईहरीदार के नजदीक के संबंधी होते हैं।
बक्कजे रैयत – वह व्यक्ति जिसे पेड़ का फल एवं सूखी दाल लेने का अधिकार है। यह पेड़ मालिक की संपत्ति होती है न की बक्कजे रैयत की।
बरदोच्चा – एक निश्चित अवधि में भू-धारक के द्वारा उच्च जमींदार को रैयत के द्वारा जमींदार को एक बैल अथवा बैल के दाम के बराबर दिया जाने वाला पैसा।
बिद दिरी – पश्चिम सिंहभूम के हो गांव में, शव पर पूर्वजों की यादगारी में गांव के महत्वपूर्ण स्थान पर स्थापित पत्थर।
बेलाह – बंदोबस्ती अभिलेख में उन पेड़ों के लिए यह शब्द प्रयोग किया गया है जिन पर लाह लगाया जा सकता है किंतु पिछले 3 वर्षों से किसी कारण उस पर लाभ नहीं लगाया गया।
बरदजांच/बारडच – प्रत्येक 3 वर्षों में रैयत द्वारा जमींदारों को एक बैल या इसके मूल्य के बराबर दी जाने वाली राशि। यह प्रथा गढ़वा/पलामू के मैं बरडाऊंचा के नाम से जाना जाता है।
डांड़पंचा – यह कर उस गांव के रैयतों से लिया जाता था जिस गांव में टांड़-क्षेत्र की बहुलता होती थी।
चाकरान – जमींदारों के द्वारा अपने नौकरों या लठेतो को उनकी व्यक्तिगत या सार्वजनिक सेवाओं के बदले दिया जाने वाला जमीन। इसे सेवा भूमि भी कहा जाता है।
अलामत – किसी राजस्व-ग्राम के नक्शे पर स्थापित प्रतिक या चिन्ह जिनका प्रयोग किसी विशिष्ट वस्तुओं और महत्वपूर्ण स्थानों को दर्शाने के लिए किया जाता है।
अलो – गांव के पाहन को ग्रामीणों के द्वारा कटनी से पहले दिया जाने वाला अनाज जो पाहन द्वारा ग्रामीण के खेत से काटा जाता है। इसका प्रचलन पलामू और गढ़वा में है।
बालचरण – यह व्यवस्था पलामू/गढ़वा क्षेत्र में प्रचलित अलो व्यवस्था जैसा ही था। इसका प्रचलन मानभूम क्षेत्र में था जो अभी धनबाद और बोकारो जिला में पाया जाता है। इस व्यवस्था में गांव की लाया/पुरोहित को भुगतान करने का प्रचलित रिवाज है। परंपरा के अनुसार कटनी के पहले पुरोहित को अधिकार है कि धान के खेत में से वह अपने हाथ से बने वृत- क्षेत्र का धान काट कर अपने लिए ले जाए।
अनाबाद – खेती नहीं की जाने वाली वह जमीन जो सरकार के कब्जे में हो। ऐसी भूमि का उपयोग 1 जनवरी 1946 ई से एवं खतियान भाग-2 के अनुसार झारखंड सरकार और गांव के रैयतों के द्वारा उनके परंपरागत अधिकार के अनुसार भी किया जाता है।
मंगन/नेग – जमींदार के परिवार में शादी या किसी अन्य उत्सव पर परंपरागत रूप से दिया जाने वाला कर।
सलतामामी – कृषि-वर्ष के अंत में अपना अकाउंट बंद कराने के लिए रैयतों के द्वारा दिया गया शुल्क।
भेजाबेंधा – कोल्हान क्षेत्र में तीरंदाजी को बढ़ावा देने के लिए संरक्षित रखी गई जमीन। यह एक के सामुदायिक जमीन होती है जो उस वर्ष के सबसे अच्छे धनुर्धर को इनाम के रूप में दिया जाता है। जिस व्यक्ति को यह जमीन दी जाती है वह उस पर 1 वर्ष के लिए खेती कर सकता है।
पत्तल – जमींदार के घर में उत्सव जैसे शादी, जन्म या मृत्यु पर रेयतों द्वारा जमा किया गया पत्तल।
पनरिआई – जागीरदार द्वारा जमींदार के अभिलेख सुरक्षित रखने वाले को किया गया भुगतान।
पहनई भूमि –पाहन के संरक्षण में दी गई सामुदायिक भूमि। पाहन या तो चुना जाता है या तो यह पद वंशानुगत होता है। किसी व्यक्ति के पाहन का पदभार ग्रहण करने के साथ ही ऐसी जमीन गांव समुदाय के द्वारा उनके संरक्षण में दे दी जाती है। यह अहस्तांतरणीय भूमि है।
देसौली भूमि – जब पूर्वजों के द्वारा जंगल साफ कर गांव बसाया गया उस समय गांव के नजदीक में ही स्थानीय देवता देशवाली की पूजा अर्चना के लिए कुछ पेड़ों को छोड़ दिया गया। होली जैसे अन्य त्यौहारों में इस भूमि का प्रयोग होता था। गांव की सामुदायिक भूमि है।
पैनभोरा भूमि – गांव के परंपरागत सभाओं के समय पानी भरने एवं खाना बनाने का काम करने वाले को ग्राम- समुदाय द्वारा जो भूमि दी गई थी वह भूमि पैनभोरा भूमि कहलाती है।
कुसबृत भूमि – ब्राह्मणों और गोसाई लोगों को अनुदान में दी गई भूमि को कुछ कुसबृत भूमि कहा जाता है। यह लगान मुक्त होते थे या इसके प्रयोग के एवज में कुछ चंदा दिया जाता था। मूल अनुदान ग्राही के पुरुष वंशजों के समाप्त हो जाने पर जमींदार के द्वारा पुनः ग्रहण किया जाता था। हजारीबाग जिला में इस प्रकार की जमीन का अनुदान इस शर्त पर दिया जाता था कि अनुदानग्राही किसी मंदिर में पूजा करें। निर्धारित शर्तों का पालन नहीं करने पर वह वापस हो सकती थी। इस प्रकार की भूमि को पुत्र-पुत्रादिक भूमि भी कहा जाता है।
डूब भूमि – आहर (छोटा तालाब) का पानी खाली कर उसकी सतह पर गेहूं या बाजरा उगया जाता है। डूब कई सप्ताह तक पानी में डूबा रहता है।
भूतखेता – यह पाहन को ग्राम समुदाय द्वारा दी गई भूमि होती थी।
डाक मुशहरा/डाक सेस – डाक सेवा के बदले सरकार की ओर से जमींदारों द्वारा लिया जाने वाला कर। रेगुलेशन-4 1960 के द्वारा डाक सेस को समाप्त कर दिया गया।
उतुर – ग्राम-समुदाय की एक पवित्र भूमि जहां मृत व्यक्ति के दाह- संस्कार के तुरंत बाद मृतक के संबंधियों द्वारा एक विशेष अनुष्ठान का आयोजन होता है।
कमियागिरी – हजारीबाग और पलामू क्षेत्र में प्रचलित एक कृषि दास प्रथा थी जिसमें एक छोटी सी राशि के बदले में बंधुआ मजदूरी करवाया जाता था। बाद में कानून के द्वारा इसे समाप्त कर दिया गया।
Encumbered Estate – Chhotanagpur Encumbered Estate Act, 1876 के प्रावधानों के अंतर्गत जो एस्टेट दिवालिया होने की स्थिति में थे, उन्हें सरकार द्वारा अधिग्रहित कर उसका प्रबंधन किया गया।
शिकार खस्सी – शिकार के लिए चारा की व्यवस्था के लिए जमींदार को दिया जाने वाला कर।
अथरोप – रैयतों और उनके पूर्वजों द्वारा अपने जमीन पर रोपा गया वृक्ष। सामान्यतः यह परती जमीन में किया जाता है।
थाना खर्चा – कंपनी सरकार द्वारा पुलिस फोर्स की व्यवस्था से पहले, जमींदारों के द्वारा जमीनदारी पुलिस के रखरखाव में खर्च के भुगतान के लिए रैयतों से जमा किया जाने वाला कर।
दाना बंदी – यह एक प्रकार का लगान लेने की प्रक्रिया था जहां वार्षिक नगद लगान का निर्धारण खड़ी फसल के आकलन के बाद होता था।
अफोर खेत – धान की खेती के लिए बिचड़ा तैयार करने की जमीन।
इजारा – इसे ठीका भूमि भी कहा जाता था। यह एक किस्म का पट्टा होता था। इजारा तीन प्रकार के होते थे चिरस्थाई इजारा (स्थाई रूप से), बेमियादी इजारा (अनिश्चित समय के लिए) और मियादी इजारा (निश्चित समय के लिए)।
चकात – यह एक कृषि भूमि है जो हजारीबाग और इसके निकटस्थ पलामू क्षेत्रों में प्रचलित है। यह रैयती और प्रधानी दोनों किस्म का होता है। चकतदार प्रायः एक भोगता होता था जो निश्चित सीमाओं के अंदर के क्षेत्र का बंदोबस्ती लेता था।
घटवाल- जंगल महल में रहने वाले एक समुदाय जिन्हें पहाड़ी रास्ता के घाटी मार्ग की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी जाती थी। धालभूम और बड़ाभूम में यह लोग स्थानीय पुलिस सेवा के बदले में दी गई घटवाली सेवा भूमि रखते थे।
अमलनामा – भूमि के प्रबंधन या दखल देने के लिए जमींदार के द्वारा दिया गया आदेश या हुकुमनामा।
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