Haribaba Aandolan
हरिबाबा आंदोलन
यह आंदोलन सिंहभूम के दक्षिणी भाग और राँची जिला में 1930-31 में चलाया गया। इस विद्रोह के मुख्य प्रवर्तक दुका हो थे। दुका हो को हरिबाबा के नाम से लोग पुकारते थे। इसलिए इस आंदोलन का नाम हरिबाबा आंदोलन पड़ा। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य टूटती और बिखरती सामाजिक और धार्मिक व्यवस्था का सुदृढ़ करना था। इस आंदोलन के द्वारा हो समाज को संगठित करने का प्रयास किया गया ताकि वो बाहरी आदमी द्वारा शोषित न हो। इस आंदोलन में बारकेला पीड़ के भूतगाँव निवासी सिंगराई हो, भड़ाहातू क्षेत्र के बामिया हो, गाड़िया क्षेत्र के दुला हो, हरि हो, बिरजो हो की प्रमुख भूमिका रही।
हरिबाबा आंदोलन के धार्मिक विचार
इस आंदोलन के जरिये भूत-प्रेत की पूजा पर आक्रमण किया गया। जिस पेड़ पर भूत-बोंगा देसौली का निवास स्थान माना जाता था उस पेड़ को काट दिया जाता था। जिस भी चीज पर भूत-प्रेत होने का शक होता था उसका बहिष्कार किया जाता था। ये बजरंगबली को अपना मुख्य आराध्य मानते थे। ये “ओ भाई, हनुमान लाख-लखाई” का मंत्रोच्चारण करते थे जिसका मतलब होता था एक हनुमानजी लाखो भूतों का विनाश कर सकता है।
ये बृहस्पतिवार को विश्राम का दिन तथा हनुमानजी के पूजा का दिन मानते थे। इसके अनुयायी मांस-मछली नही खाते थे। हड़िया-दारू नही पीते थे। दो बार स्नान करते थे। स्वच्छता पे बहुत ध्यान देते थे। घर के आँगन में तुलसी का पेड़ अनिवार्यतः लगाते थे, तथा पूजा करते थे। यज्ञोपवीत (जनेऊ) पहनते थे।
ईसाई मिशनरियों ने इस आंदोलन का विरोध किया क्योकि ये हो समाज के ईसाईकरण के खिलाफ थे।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
यह आंदोलन एक सामाजिक-धार्मिक आंदोलन के रूप में शुरू हुआ लेकिन समय के साथ यह राजनीतिक आंदोलन बन गया। इसके अनुयायी भारत के स्वतंत्रता का समर्थन और ब्रिटिश शासन का विरोध करने लगे। यह आंदोलन गाँधी जी के विचारों से प्रभावित था। 15 मई 1931 में इसके अनुयायी उग्र हो गए और सिंहभूम के सभी टेलीग्राफ लाइन उखाड़ के फेंक दिए। कई लोगो को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया। हरिबाबा को जेल में डालने के बाद यह आंदोलन खत्म हो गया।
हरिबाबा आंदोलन Video