ताना भगत आंदोलन | Tana Bhagat Movement

Jharkhand Revolt

ताना भगत आंदोलन

Tana Bhagt Movement

ताना भगत आंदोलन के अन्य नाम

1. कुरुख आंदोलन – यह आंदोलन उराँव (कुरुख) समाज के धार्मिक और सांस्कृतिक सुधार के रूप में शुरू किया। उराँव परंपरा को छोड़ चुके लोगो को पुनः समाज में वापस लाने का प्रयास किया गया। इस आन्दोलन को चलाने वाले लोग मुख्यतः उराँव समाज से थे। इसलिए इसे कुरुख आंदोलन भी कहा जाता है।

2. मुंडा विद्रोह का उराँव जनजाति में विस्तार – यह आंदोलन मुंडा आंदोलन के 13 वर्ष बाद शुरू हुई। मुंडा विद्रोह ने जिस तरह मुंडाओं में सांस्कृतिक और धार्मिक स्वरूप देने का प्रयास किया। उसी तरह ताना भगत आंदोलन ने उरांवों में धार्मिक और सांस्कृतिक सुधार किया। ताना भगत समुदाय जतरा भगत को “बिरसा मुंडा का अवतार” मानते है।

Note:- मैंकलुक्सीगंज के समीप निद्रा कारिटांड़ गांव में 9 ताना भगतों की आदमकद मूर्तियां लगाई गईं है।

Tana Bhagat Statue
Tana Bhagat Statue

Tana Bhagt Movement का प्रारंभ

यह आंदोलन एक सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलन के रूप में शुरू हुआ, जिसकी शुरुआत 21 अप्रैल 1914 में जतरा भगत द्वारा की गई। बाद में यह आंदोलन राजनीतिक हुआ और स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गया। यह एक शुद्ध अहिंसावादी आंदोलन था, जो गांधी के विचारों से प्रभावित था। आरंभ में इस आंदोलन में निम्न तत्वों पर जोर दिया गया:-

a) एकेश्वरवाद

b) पशु बलि, मांस-मदिरा का त्याग

c) आदिवासी नृत्य पर पाबंदी

d) झूम की खेती का समर्थन (स्थान्तरित खेती)

e) गाय और बैल को पवित्र मानना।

f) जमींदारों और गैर-आदिवासियों के यहाँ मजदूर के रूप में काम नही करना।

जतरा भगत की जीवनी

जतरा भगत का जन्म 2 October, 1888 में गुमला जिला के विशुनपुर प्रखंड के चिंगरी नवाटोली गाँव में हुआ। इनके पिता का नाम कोहरा भगत, माता का नाम लिबरी भगत और पत्नी का नाम बुधनी भगत था। जतरा भगत ने तुरिया भगत से हेसराग गाँव मे मति-ज्ञान(ओझा ज्ञान) लिया था। जतरा भगत ने एलान किया था – मालगुजारी नही देंगे, बेगारी नही करेंगे, टैक्स नही देंगे”

Note:- जतरा भगत के पिता का नाम कुछ जगह पे “कोदल उराँव” मिलता है।

Tana Bhagt Movement के प्रमुख नेता

ताना भगत आंदोलन के मुख्य नेता जतरा भगत थे। किंतु अन्य नेताओं द्वारा भी इसे झारखंड के अन्य भागों में फैलाया गया जो निम्न लिखित थे:-

a) देवमनिया भगत- देवमनिया भगत गुमला जिला के सिसई प्रखंड के बभूरी गाँव की निवासी थी। ये जतरा भगत के समकालीन महिला भगत थी। इन्होंने गुमला क्षेत्र के सिसई में ताना भगत आंदोलन को फैलाया।

b) शिबु भगत – इन्होंने ताना भगत आंदोलन को राँची के मांडर क्षेत्र में प्रसारित किया।

c) बलराम भगत – बलराम भगत ने इस आंदोलन को गुमला के घाघरा क्षेत्र में प्रसारित किया। ये गौरक्षिणी भगत शाखा के प्रमुख थे।

d) भीखू भगत – भीखू भगत ने इस आंदोलन को गुमला के विशुनपुर क्षेत्र में प्रसारित किया। ये विष्णु भगत शाखा के थे।

e) जीतू (जितुवा)भगत – इसने 1919 में मालगुजारी और चौकीदारी टैक्स देने से मना कर दिया था।

f) सिद्धू भगत – 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान सिद्धू भगत के नेतृत्व में पहली बार ताना भगत स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुआ। इस दौरान ताना भगतो ने शराब की दुकानों के पास धरना देना शुरू किया था।

ताना भगतों के वर्ग

शिबु भगत ने जब ताना भगतो को मांस खाने की इजाजत दी। तब ताना भगत के दो वर्ग बन गए:-

a) अरुआ भगत – शाकाहारी भगत। ये लोग सात्विक भोजन करते थे और अरुआ चावल का ज्यादा उपयोग करते थे।

b) जुलाहा भगत – मांसाहारी भगत, इस वर्ग का नेतृत्व शिबु भगत ने किया। शिबु भगत के अनुयायी ही जुलाहा भगत कहलाये। मांडर क्षेत्र में इसका प्रभाव हुआ, लेकिन इस वर्ग की संख्या कम थी और समय के साथ खत्म हो गई।

ताना-भगतो के वेश-भूषा और जीवन चरित

ये सफेद कपड़ा पहनते थे वो भी खादी का, सफेद टोपी पहनते थे। गौ-माता और गाँधीजी का तस्वीर साथ रखते थे, हाथ में प्रतीकात्मक हल होते थे। चमड़े से बने चप्पल का उपयोग नही करते थे। आज भी इसके झंडे में चरखा रहता है। ये शाकाहारी होते थे। लोगो में स्वतंत्रता आंदोलन की जागृति फैलाने के लिए शंख और घंटी बजाते चलते थे। साथ में “टाना बाबा टाना, टान टुन टाना” भजन गाते हुए समूह में चलते थे।

स्वतंत्रता आंदोलन में ताना-भगतों का योगदान

★ ताना भगतो ने साइमन कमीशन का विरोध किया था।

◆ 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान जब वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में बारदोली में कर न देने का आंदोलन शुरू हुआ। तब इससे प्रेरित होकर ताना भगतो ने भी कर देना बंद कर दिया था। इससे ताना भगतो को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। कर न देने के वजह से अंग्रेजी सरकार ने इनकी जमीनों को नीलाम कर दिया।

★ 1945 में लोहारदग्गा के कुडू थाने में कब्जा कर वहाँ तिरंगा झंडा फहरा दिया था। इसका नेतृत्व आशीर्वाद भगत और लालू भगत ने किया था।

◆ भारत छोड़ो आंदोलन – इस आंदोलन के दौरान 19 अगस्त 1942 में ताना भगतो ने बिशुनपुर थाना में आग लगा दिया। 21 अगस्त 1942 में मांडर के सोनचिपी आश्रम का ताला तोड़कर पुनः कब्जा जमा लिया था, जिसपे अंग्रेजो ने ताला जड़ दिया था।

ताना भगतो के शाखाएँ

कालांतर में इस आंदोलन का विस्तार हुआ और विभिन्न क्षेत्रों में फैला। रीति-रिवाजों की विभिन्नता के कारण यह आंदोलन कई शाखाओं में बँट गया। मुख्य शाखा को सादा भगत कहा गया। इसके अलावा अन्य शाखाएँ बनी जैसे:- गौरक्षिणी भगत, बाछीदान भगत, करमा भगत, लोदरी भगत, विष्णु भगत, नवा भगत और नारायण भगत

Tana Bhagat Development Authority

ताना भगतों में अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के लिए 2018 में Tana Bhagat Development Authority (ताना भगत विकास प्राधिकरण) की स्थापना की गई है।

Tana Bhagat Raiyat Agricultural Land Restoration Act, 1948

आजादी के बाद भारत सरकार ने Tana Bhagat Raiyat Agricultural Land Restoration Act, 1948 पास किया। इस एक्ट के अंतर्गत 1913 ई से 1942 ई तक ताना भगतो की जमीन जिसे ब्रिटिश सरकार ने नीलाम कर दी थी उस जमीन को वापस दिलाया गया।

कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

◆ आज के ताना भगतों में केवल उराँव ही शामिल नही है। इनमे मुंडा और खड़िया जनजाति की आबादी है, मगर उरांवों की संख्या सबसे अधिक है।

■ ताना भगत सम्प्रदाय को “गाँधीजी से प्रभावित स्वतंत्रता आंदोलन का शुद्ध आदिवासी रूप” कहा जाता है।

◆ ताना भगत आंदोलन का सर्वाधिक प्रभाव दक्षिण छोटानागपुर (राँची, गुमला, लोहारदग्गा, खूँटी, सिमडेगा) के उराँव बहुल क्षेत्रों में पड़ा। छत्तीसगढ़ के सरगुजा क्षेत्र में भी यह आंदोलन काफी सक्रिय रहा।

★ 1922 के गया कांग्रेस अधिवेशन,1920 के नागपुर कांग्रेस अधिवेशन तथा 1940 के रामगढ़ काँग्रेस अधिवेशन में ताना भगतो ने भाग लिया।

Tana Bhagt Movement Video

https://youtu.be/igpnTvRfP_k

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