पूर्व-मध्य काल में झारखंड | Jharkhand During Pre-Medieval Period

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पूर्व-मध्य काल में झारखंड

भारत के इतिहास में हर्षवर्धन के मृत्यु (647 ई से 1206 ई तक) से लेकर दिल्ली सल्तनत की स्थापना तक के काल को पूर्व-मध्य काल कहा जाता है। इस काल को राजपूत काल या सामंत काल भी कहा जाता है। इस काल मे भारत की सत्ता अति विकेंद्रिकित रही। 8वीं सदी के मध्य में भारत के तीन कोने में तीन शक्तिशाली साम्राज्य का उदय हुआ। पूर्व में पाल वंश, पश्चिमोत्तर में गुर्जर-प्रतिहार वंश, दक्षिण में राष्ट्रकूट वंश। ये तीनों साम्राज्य आपस मे लड़ते रहते थे। कन्नौज इन तीनो की लड़ाई का मुख्य कारण था। इन तीनो की आपसी लड़ाई से झारखंड की राजनीति और संस्कृति में काफी प्रभाव पड़ा।

झारखंड में गौड़ शासन शशांक के मृत्यु के पश्चात जब कमजोर पड़ जाता है तब झारखंड पाल वंश के अधीन आता है।

पालवंश में झारखंड

पाल शासक महेन्द्रपाल का झारखंड के कुछ क्षेत्रों में आधिपत्य रहा। 9वीं सदी के पूर्वार्द्ध तक झारखंड पाल शासक के अधीन रहा। झारखंड इटखोरी से बंगाल के पालवंशी शासक राजा महेन्द्रपाल के शिलालेख मिले है। कुछ इतिहासकार यह मानते है कि इटखोरी के माता भद्रकाली की प्रतिमा का निर्माण पाल राजाओं के काल में हुआ है। महेन्द्रपाल के समकालीन नागवंशी राजा मोहन राय और गजघण्ट राय थे। बंगाल के पाल शासकों ने बौद्ध धर्म के वज्रयान शाखा को संरक्षण दिया था। जिस कारण पूर्व-मध्य काल मे झारखंड में वज्रयान शाखा का प्रसार हुआ। वज्रयान शाखा में तंत्र-मंत्र, विधि विधान पर विशेष जोर दिया जाता है, इस कारण यहाँ के हिंदुओं में तंत्र-मंत्र का विशेष प्रचार हुआ। राजरप्पा का छिन्नमस्तिका शक्तिपीठ की स्थापना इस काल मे हुई है, इस बात से पुष्टि होती है। छिन्नमस्तिका बौद्ध वज्रयोगिनी का ही हिन्दू प्रतिरूप है। संध्याकर नन्दी रचित ‘रामचरितम’ के आधार पर इतिहासविदों ने ऐसे चार राजाओं का उल्लेख किया है जिनके राज्य झारखंड क्षेत्र में अवस्थित थे। ये चार राज्य थे–अपरा मंदार, कुजावती, तैलकम्पा एवं कजंगाल। अपरा मंदार की पहचान देवघर और मंदार पर्वत के समीपवर्ती क्षेत्र के रूप में की गयी है जहाँ का राजा लक्ष्मीसेन या लक्ष्मीसुर था। दुमका से 14 मील उत्तर का क्षेत्र कुजावती राज्य में था जिसका राजा सुरपाल था। तैलकम्पा की पहचान आधुनिक तेल्कुप्पी के रूप में हुई है जिसका राजा रुद्रशिखर था। कजंगाल संथाल परगना में स्थित आधुनिक कान्कजोल है जो नरसिम्हार्जुन द्वारा शासित था। ये चारों राजा यद्यपि पालवंशी रामपाल (1077-1130) के अधीनस्थ सामन्त थे, किन्तु इतने शक्तिशाली थे कि रामपाल को अपने खोए राज्य की प्राप्ति के लिए इन सामन्तों से याचना करनी पड़ी थी। हजारीबाग में एक बौद्ध मठ की खोज की गई है जिसे 10वीं शताब्दी में पाल शासन के दौरान बनाया गया था। सीतागढ़ा और सेखा में मिली मूर्तियां भी पाल वंश से जुड़ी हुई हैं।

पालवंश का झारखंड में प्रभाव

पालवंश का झारखंड में अवशेष

सीतागढ़ा पहाड़ी – हजारीबाग के सीतागढ़ा पहाड़ी के तलहटी (बहोरनपुर)में मिली मूर्तियां पाल वंश की है।

सेखा शिव मंदिर – सीतागढ़ा पहाड़ी से छह किलोमीटर दूर अमनारी पंचायत के सेखा शिव मंदिर में रखी मूर्तियां आठवीं व नौवीं शताब्दी की है

गुर्जर-प्रतिहार वंश में झारखंड

9वीं सदी के उत्तरार्द्ध में जब पाल शासक की शक्ति झारखंड क्षेत्र में कम हो जाती है तब झारखंड के कुछ क्षेत्र गुर्जर-प्रतिहार राजवंश के अधीन आता है। 1169 ई. के फुलवारी स्थित शिलालेख से ज्ञात होता है कि पलामू के जपला क्षेत्र में खैरवालवंशी प्रताप धवल महानायक की हैसियत से शासन करता था। महानायक की पदवी से प्रतीत होता है कि वह गहड़वालों का सामन्त था।

पूर्व-मध्य काल में (13वीं सदी) में उड़ीसा के गंगराजा जयसिंह देव द्वितीय ने खुद को झारखण्ड का राजा घोषित किया था। इसके द्वारा जारी किया गया ताम्रपत्र में पहली बार “झारखंड” शब्द का प्रयोग मिलता है।

पूर्व-मध्य काल के संस्कृत साहित्य में झारखंड को कालिंद देश कहकर संबोधित किया गया। सेन वंश के दरबार मे रहने वाले प्रख्यात विद्वान जयदेव ने अपनी पुस्तक “गीतगोविन्द” में झारखंड से जुड़ी परंपराओं का विस्तृत वर्णन किया है।

ढाल वंश

इस वंश का शासन अभी के पूर्वी सिंहभूम के घाटशिला के आस पास के क्षेत्रों में था। इसकी राजधानी आधुनिक घाटशिला के पास में नरसिंहगढ़ में थी। ढाल वंश के संस्थापक और उसके स्थापना काल को लेकर विद्वानों में मतैक्य नहीं है, किंतु इस बात में सबका मत एक है कि इसकी स्थापना पूर्व मध्य काल में हुई थी। ओमाले के मतानुसार राजपुताना स्थित ढोलपुर के जगन्‍नाथ ने स्थानीय राजा चिन्तामणि धोबा को पराजित कर इस राज्य की नींव रखी। जनश्रुति के आधार पर डाल्टन (E. T. Dalton) ने लिखा कि इस वंश के संस्थापक का जन्म ब्राह्मणी माता और धोबी पिता से हुआ। जबकि रीड की मान्यता है कि इस वंश का सम्बन्ध भूमिज जनजाति से है। इस सबके विपरीत कुछ विद्वानों ने इस वंश को परमार वंश से जोड़ने की भी कोशिश की है। परंपरागत गीतों में इस वंश के संस्थापक का नाम चिंतामणि धोबा मिलता है जबकि कुछ प्रमाणों में संस्थापक का नाम लिम्बू ढाल मिलता है। महुलिया पहाड़ पर स्थित रंकिनी देवी ढाल राजाओं के कुलदेवी है। इस राज्य में नरबलि का प्रचलन था। ढाल शासकों के वजह से इस क्षेत्र का नाम ढालभूम पड़ा।

मंदिरों का निर्माण

पूर्व-मध्य काल मे झारखंड में मंदिर निर्माण में बहुत प्रगति हुई। इस काल मे कई प्रसिद्ध मंदिरों का निर्माण हुआ जैसे महामाया मंदिर, टांगीनाथ मंदिर, छिन्नमस्तिका मंदिर।

इसी काल मे ही झारखंड में ही चेरो, खरवार और संताल जनजातियों का झारखंड में प्रवेश हुआ।

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