Santal Tribes

संताल जनजाति का विस्तृत अध्धयन| Detailed Study Of Santal Tribes

Jharkhand GKJharkhand Tribes

Santal Tribes

संताल समुदाय के गोत्र

Santal Tribes मे 12 गोत्र पाया जाता है। प्रत्येक गोत्र का अपना अलग टोटम (प्रतीक चिन्ह) होते है जिसको वो कभी नुकसान नही पहुँचाते है। संताल समाज की मान्यता है कि पिलछु हड़ाम और पिलछु बूढ़ी के 7 पुत्रों से 7 गोत्र का निर्माण हुआ। ये 7 गोत्र है टुडू, किस्कू, मरांडी, हेम्ब्रम, मुर्मू, हांसदा और सोरेन। बाद में इसमे और 5 गोत्र जुड़ गए जो है बेसरा, बास्की, पौडिया, बेदिया और चौड़े। चौड़े और पौडिया संताल की संख्या बहुत ही कम है जबकि बेदिया संताल लुप्तप्रायः हो चुकी है।

संताल जनजाति के वर्ग

संताल समाज मे 4 वर्ग पाया जाता है, वर्ग को हड़ कहा जाता है :-

1) किस्कू हड़ – राजा वर्ग

2) मुर्मू हड़ – पुजारी वर्ग

3) सोरेन हड़ – सिपाही वर्ग

4) मरांडी – किसान वर्ग

Santal Tribes Religious Life

प्रधान देवता – सिंगबोंगा या ठाकुर (विश्वविधाता)

द्वितीय प्रधान देवता – मरांग बूरू (पहाड़ देव)

ग्राम देवता – जाहेर एरा

गृह देवता – ओडाक बोंगा

विवाह

Santal Tribes मे विवाह को “बापला” कहा जाता है। संताल समाज मे अंतर्विवाह विवाह होता है मतलब अपने ही समाज के अंदर। समगोत्रीय विवाह पूर्णतः निषिद्ध है। अगर कोई व्यक्ति अपने ही गोत्र में विवाह करता है तो उसे गंभीर अपराध माना जाता है। एकल विवाह की परंपरा पाई जाती है।

बाल विवाह का प्रचलन नही होता है। साली या देवर से विवाह स्वीकृत है। बाँझपन, चरित्रहीनता, एक साथ न रहने की इच्छा तथा डायन होने के आशंका के आधार पर तलाक दिया जाता है। तलाक की स्थिति में वधूमूल्य लौटाना अनिवार्य है। संताल समाज में निम्न तरह के बापला प्रचलित है:-

सादाई बापला

इसे कीरिंग बापला भी कहा जाता है। इस विवाह को Santal Tribes मे सर्वोत्कृष्ट माना जाता है तथा सबसे ज्यादा इसका ही प्रचलन है। यह विवाह दोनो परिवारों के सहमति से सम्पन्न होता है। विवाह से पूर्व तिलक-चढ़ी और टाकाचाल उत्सव मनाया जाता है। टाकाचाल उत्सव में लड़के के पिता द्वारा लड़की के पिता को वधूमूल्य दिया जाता है जिसे “पोन” कहा जाता है। पोन प्रायः 12 रुपये की होती है।

बारात की परंपरा है ,बारात के भोजन का खर्च वर पक्ष द्वारा उठाया जाता है। वधु को हल्दी लगे कपड़े में एक टोकरी में बिठाकर कंधे द्वार तक लाया जाता है। इसी अवस्था मे वर दुल्हन का घूँघट उठाकर पाँचटीका करता है जिसे सिंदूरदान कहा जाता है और हरिबोल की ध्वनि के साथ विवाह संपन्न हो जाता है।

टूनकी दिपिल बापला

यह विवाह सादाई बापला का ही एक रूप है जो गरीब परिवार में देखने को मिलता है। इस विवाह में खर्च को कम करने के लिए वधु को वर के घर मे लाकर सिन्दूरदान के द्वारा विवाह संपन्न कराया जाता है।

घरदी जावायं बापला

इस विवाह में पुत्रहीन पिता अपने पुत्री के लिए ऐसा वर ढूँढता है जो अपने घर छोड़कर वधु के घर मे रह सके। वर को कन्या के घर मे रहना पड़ता है तथा कन्या के घर के सारे कामकाज को देखता है। इस विवाह में भी पोन दिया जाता है।

राजा-राजी बापला

यह विवाह प्रेम विवाह का एक स्वरूप है। इसमें लड़का और लड़की गाँव के मांझी के समक्ष जाता है और अपने प्रेम को कबुल करता है। मांझी गाँव के वयोवृद्ध लोगो के समक्ष इन दोनों का विवाह संपन्न करवाता है।

निर्बोलक बापला

यह हठ विवाह का संताली स्वरूप है। इस तरह के विवाह में कन्या अपने पसंद के लड़के के घर मे चली जाती है और लड़के के घर मे रहकर उस घर की सेवा करने लगती है। इस दौरान लड़के के घरवाले लड़की को घर से बाहर निकालने की भरपूर कोशिश करते है। इस दौरान लड़की खाना पीना भी कम खाती है। जब यह खबर गाँव के जोगमांझी तक पहुंचती है तो वो दोनों परिवारों को समझाकर विवाह संपन्न करवाता है।

बहादुर बापला

इस तरह के विवाह तब सम्पन्न होता है जब लड़का-लड़की दोनो के परिवारवाले शादी के खिलाफ होते है। लड़का-लड़की भाग कर जंगल मे चले जाते है वही कुछ समय बिताने के बाद घर मे आकर एक कमरे में बंद कर लेते है जबतक परिवारवाले राजी नही होते दरवाजा नही खुलता है। दरवाजा खुलते ही विवाह संपन्न माना जाता है।

इतुत बापला

जब लड़की के परिवारवाले विवाह को तैयार नही होते तब लड़का किसी मेले या सामूहिक उत्सव पर लड़की के माँग में सिंदूर डाल देता है। जब लड़की के घरवाले को पता चलता है तब वे लड़के के गाँव मे आते है तथा वधूमूल्य लेकर विवाह की स्वीकृति देते है।

अपगिर बापला

जब लड़का-लड़की में प्रेम हो जाता है और किसी के आपत्ति से बात पंचायत तक पहुंचती है तो पंचायत की बैठक बुलाई जाती है जिसमे दोनो गांव के मांझी और पंचायत के सदस्य होते है। अगर लड़का और लड़की की सहमति मिलती है तो पंचायत के सामने लड़का लड़की के मांग में सिंदूर डालता है। इस स्थिति में लड़के के पिता को भोज देना पड़ता है।

गोलाइटी बापला

यह गोलट विवाह का ही स्वरूप है। यह विवाह प्रायः गरीब परिवारों में देखने को मिलता है क्योकि इस विवाह में पोन (वधूमूल्य) देना नही पड़ता है। इस विवाह में जिस घर मे लड़की दी जाती है उसी घर से बहु लाई जाती है।

सांगा बापला

यह एक पुनर्विवाह है। इस विवाह में वधु तलाकशुदा या विधवा होती है तथा वर भी विधुर या तलाकशुदा होता है। वर और कन्या आपस मे जीवनसाथी का चुनाव करती है या परिवारजनों द्वारा तय किया जाता है। वधु को वर के घर मे लाकर विवाह संपन्न कराया जाता है।

कीरिंग जवायं बापला

जब लड़की गुप्त रूप से गर्भवती हो जाती है तथा लड़का विवाह से इनकार कर देता या किसी वजह से उस लड़के से शादी नही हो सकती है उस स्थिति में जब समाज का कोई लड़का विवाह के लिए तैयार हो जाता है तो इस तरह के विवाह को कीरिंग जवायं बापला कहा जाता है। विवाह के लिए तैयार लड़के को लड़की के पिता की और से धनराशि तथा गाय या बैल दिया जाता है।

संताल समाज के संस्कार

छठीहार – पुत्र जन्म के 5वें दिन और पुत्री जन्म के तीसरे दिन में छठीहार मनाने की परंपरा है।

चाचो छठीहार – इस संस्कार के बाद ही कोई बच्चा संताल जनजाति में शामिल माना जाता है और अधिकारों और उत्सवों का आनंद ले सकता है। इस संस्कार की कोई उम्र सीमा निर्धारित नही गसी। विवाह के लिए यह संस्कार होना जरूरी होता है। अगर इस संस्कार के बिना अगर किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसे अनिवार्यतः दफनाया जाता है।

यह संस्कार गाँव के सारे अधिकारी मांझी, नायके, प्रामाणिक, गोडाईत, जोगमांझी आदि के उपस्थिति में होता है जिसमे सभी आमंत्रित मेहमान को हड़िया पिलाया जाता है तथा ठाकुरजी की पूजा की जाती है। नृत्य संगीत होता है।

नामकरण – प्रायः पहले संतान का नामकरण दादा-दादी के नाम पर तथा दूसरे बच्चे का नामकरण नाना-नानी के आधार पर किया जाता है।

संताल समुदाय के पर्व-त्यौहार

बा-पर्व – ये संताल समुदाय का बसंतोत्सव है। यह चैत महीना के शुक्ल पक्ष के तृतीया को मनाया जाता है।

Note :- यह मुंडा के सरहुल,उरांव के खद्दी और खड़िया के जोकोर के समतुल्य है। ये सारे चैत महीना के शुक्ल पक्ष के तृतीया को मनाया जाता है।

एरोक पर्व – ये संताल समुदाय द्वारा आषाढ महीने में बीज बोने के समय मनाया जाता है।

हरियाड पर्व – ये संताल समुदाय द्वारा सावन महीने में फसल की हरियाली और अच्छी उपज के लिए मनाया जाता है।

सोहराय पर्व –ये संताल समुदाय द्वारा कार्तिक अमावस्या में पशुओं को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है।

साकरात पर्व – ये संताल समुदाय द्वारा पुस महीने में घर की कुशलता कुशलता के लिए मनाया जाता है।

भागसीम पर्व – ये संताल समुदाय द्वारा माघ महीने में गांव के ओहदेदार को अगले साल के लिए ओहदे की स्वीकृति देने के लिए मनाया जाता है।

बाहा पर्व – यह संताल समुदाय का होली के समतुल्य त्यौहार है इसमें वो शुद्ध जल एक दूसरे के ऊपर छिड़कते है।

संताल जनजाति से संबंधित तथ्य

1) आर कास्टेयर्स की उपन्यास “हड़मा का गाँव” में संताल जनजाति का पहाड़िया जनजाति के क्षेत्र में बसने का उल्लेख मिलता है। आर कास्टेयर्स 1885 से 1898 तक संताल परगना के डिप्टी कमिश्नर रहे।

चादर-बादर लोक कला

संथाल जनजाति की एक कठपुतली प्रदर्शन कला है। इसे चदर बदोनी लोककला भी कहा जाता है। इस अद्भुत कला का धीरे-धीरे लोप होता जा रहा है। पश्चिम बंगाल सरकार ने इस कला को संरक्षण देने के लिए कुकुरगाछी में राष्ट्रीय कठपुतली संग्रहालय की स्थापना की है। चादर और बादर यह लकड़ी से बने दो कठपुतली होते हैं। यह लोक कला झारखंड के संथाल परगना के अलावे बंगाल और उड़ीसा में भी प्रचलित है। इसमें लकड़ी का एक बॉक्स बनाया जाता है जिसमें चादर और बादर कठपुतली को रखा जाता है, जो पर्दे के साथ तीन या चार तरफ खुले होते हैं।

कलाकार कठपुतलियों का उपयोग करते हुए आदिवासी संगीत वाद्य यंत्रों के साथ प्राचीन संथाल संस्कृति के शब्दों और कविताओं द्वारा कहानियां सुनाता है। चित्रित कठपुतली 5 से 9 इंच लंबी होती है और इसमें चलने वाले अंग होते हैं जिन्हें कलाकार द्वारा जोड़-तोड़ करके उनसे जुड़ी स्ट्रिंग का उपयोग किया जाता है। इस लोक कला में 8 से 10 लोगों की टीम मांदर, नगाड़ा, घुंगरू, झाल और करताल जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ नाचते गाते हैं। इस कला को बंगाल में पुतुल और हिंदी में कठपुतली के नाम से जाना जाता है।

Munda Tribes Detailed Study

https://youtu.be/9_k1VYEKLPc

17 thoughts on “संताल जनजाति का विस्तृत अध्धयन| Detailed Study Of Santal Tribes

  1. भागसिम या माघ सिम जो माघ महीने में मनाया जाता है

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