मुंडा शासन व्यवस्था
परिचय
यह मुंडा समाज की परंपरागत शासन व्यवस्था है। मुंडा समुदाय अपने आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक मामलो का निपटारा इस शासन व्यवस्था से करते थे। आज भी कुछ क्षेत्र में इस व्यवस्था की झलक देखने को मिलती है।
यह व्यवस्था 4 स्तरीय होता है।
हातू पंचायत ➡ पट्टी पंचायत ➡ पड़हा पंचायत ➡ राज पंचायत
ग्राम पंचायत
मुंडा गांव को खूटकट्टी गांव कहा जाता है। ग्राम,मुंडा पंचायत प्रशासन की सबसे छोटी इकाई होती है जिसे “हातु” कहा जाता है। ग्राम पंचायत की बैठक अखड़ा में होती है। ग्राम पंचायत में निम्न अधिकारी होते है:-
मुंडा
इस पंचायत व्यवस्था में मुंडा या हातूमुंडा ग्राम पंचायत (हातू पंचायत) का प्रशासनिक और न्यायिक प्रमुख होता है। मुंडा गांव के बुजुर्ग लोगो और पंचायत के अधिकारियो के मदद से विवादो का निपटारा करता है। गांव से बाहर के मामलो पर भी मुंडा निर्णय लेता है। मुंडा अपने गांव में लगान भी वसूलता है ।
मांझी
यह मुंडा का मुख्य सहायक होता है। प्रशासनिक कार्यो में यह मुंडा का मदद करता है।
पाहन
गांव का मुख्य धार्मिक अधिकारी पाहन होता है। पाहन गांव के सारे धार्मिक विवादो का निपटारा करता है तथा प्रशासन में मुंडा का सहयोग करता है।
पुजार
यह पाहन का मुख्य सहयोगी होता है। सारे धार्मिक कृत्यों को पूरा करने में यह पाहन का सहयोग करता है। पाहन की अनुपस्थिति में यह पाहन का पद संभालता है।
महतो
महतो ग्राम पंचायत का सन्देशवाहक होता है। यह मुंडा और पाहन दोनो का सहायक होता है। यह मुंडा और पाहन के संदेश को गांव के हर घर तक पहुंचाता है। इसके अलावा गांव के बाहर या गांव के अंदर की महत्वपूर्ण सूचना को मुंडा तक पहुंचाता है।
पट्टी पंचायत
कई ग्राम पंचायत को मिलाकर पट्टी पंचायत बनाया जाता है। इसका मुखिया मानकी कहलाता है। इस पंचायत का अभी लोप हो चुका है। पूर्व में भी यह पंचायत कुछ सीमित क्षेत्र में थे। इस पंचायत का धीरे धीरे पड़हा पंचायत में विलय हो गया, जिस क्षेत्र में ऐसा हुआ उस क्षेत्र में पड़हा राजा को मानकी भी कहा जाता है।
पड़हा पंचायत
कई हातु पंचायत(सामान्यतः 12 से 20 गांव) को मिलाकर एक पड़हा पंचायत का निर्माण होता है। जिस मामले का निपटारा हातू पंचायत में नहीं हो पाता उस मामले को पड़हा पंचायत में लायााजाता है। पड़हा पंचायत दो या दो सेे अधिक गांवों के विवाद को सुलझाता है। इसके अलावा जो व्यक्ति हातु पंचायत के निर्णय से असंतुष्ट होता है वो इस पंचायत में अपील कर सकता है। पड़हा पंचायत का प्ररधान पड़हा राजा होता है। यह पद वंशानुगत नही होता है। पड़हा राजा के सहयोग के लिए निम्न अधिकारी होतेे है:-
Note :- मुंडा क्षेत्र में पहले 12 पड़हा थे अभी 22 पड़हा है।
ठाकुर
यह पड़हा राजा का मुख्य सहयोगी होता है। पड़हा राजा की अनुपस्थिति में इनका सारा कार्यभार ठाकुर देखता है। यह पद पड़हा पंचायत का दूसरा सबसे बड़ा पद है। यह पद वंशानुगत होता है जो प्रायः बड़े बेटे को दिया जाता है।
दीवान
यह पड़हा पंचायत का मंत्री होता है। इसका मुख्य काम पड़हा राजा के आदेश को लागू करवाना है। दीवान दो तरह के होते है। गढ़ दीवान और राज दीवान। गढ़ दीवान गढ़ के अंदर के कार्यों की देख रेख करता है तथा राज दीवान गढ़ के बाहर।
पांडेय
इसका मुख्य काम दस्तवेजो को सुरक्षित रखना तथा जरूरत पड़े तो पड़हा पंचायत के समक्ष प्रस्तुुुत करना। पांडेय पड़हा राजा के आदेश पर नोटिस भी जारी करता है।
बरकंदाज
यह दीवान का मुख्य सहयोगी होता है। इस पद को सिपाही के नाम से भी जाना जाता है। इसका मुख्य काम दीवान के आदेश पर गांव -गांव में नोटिस पहुंचाना है।
दरोगा
यह सभा में कार्यवाही के दौरान सभा का नियंत्रण करता है। कोई व्यक्ति आवेश में आकर किसी पे हमला न कर दे , शोर शराबा इस तरह के मामलो से निपटने का काम दारोगा का होता है। इसे कर्ता भी कहा जाता है।
लाल
पड़हा पंचायत में किसी भी मामले का निर्णय लेते समय वकील की तरह कार्य करने वाले अधिकारी को लाल कहा जाता है। यह पक्ष और विपक्ष दोनों पक्षों के लिए बहस करता है और अपने अपने तर्क को पड़हा पंचायत में प्रस्तुत करता है उसके बाद ही पड़हा राजा निर्णय सुनात है। लाल की तीन श्रेणियां होती है बड़लाल मझलाल और छोटेलाल।
पुरोहित
यह किसी व्यक्ति का शुद्धिकरण करके पुनः समाज में शामिल करता है। अगर किसी व्यक्ति को दंडस्वरूप समाज से बहिष्कृत कर दिया गया हो तो उसका शुद्धिकरण पुरोहित द्वारा किया जाता है। मुंडा शासन व्यवस्था में सबसे बड़ी सजा “जात -बाहर” है। यह सजा यौन अपराध, समगोत्री विवाह और पंचायत का आदेश न मानने के लिए दिया जाता है। अगर कोई व्यक्ति क्षमा याचना के साथ पुनः समाज में आना चाहता हो तो उसे पुरोहित द्वारा शुद्धिकरण रस्म के बाद समाज में शामिल किया जाता है।
घटवार
यह दंडस्वरूप जमा किए गए पैसे का हिसाब किताब रखता है।
चवार डोलाइत
इसका मुख्य काम बैठक में आए लोगो का हाथ पैर पैर धुलाने का प्रबंध करना।
पान खवास
इसका मुख्य काम बैठक में आए लोगो को खैनी-चुना, पान उपलब्ध कराना।
राज पंचायत
मुंडा पंचायत व्यवस्था में यह सबसे उच्च स्तर का पंचायत होता है। इस पंचायत के फैसले पूरे मुंडा समाज में मान्य है। इसका प्रधान राजा या सरदार कहलाता है। जिस मामले का निपटारा पड़हा पंचायत के अधीन नहीं हो पाता उस मामले का निपटारा इस पंचायत में होता है। यह सर्वोच्च अपीलीय अदालत भी है। पड़हा पंचायत के निर्णय से असंतुष्ट व्यक्ति अपने मामले को इस अदालत में प्रस्तुत कर सकता है। इस पंचायत के अंतर्गत 22 पड़हा आते है।
मुंडा शासन व्यवस्था से संबंधित तथ्य
1. महिलाओं की स्थिति – मुंडा पंचायत व्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी नहीं होती थी। कोई भी महिला मुंडा या कोई अन्य अधिकारी नही बन सकती है। अगर कोई महिला ताउम्र डिंडा (अविवाहित) रहती है तो गांव पंचायत द्वारा उसके पिता के हिस्से से जमीन दिया जाता हैं ताकि महिला का भरण पोषण हो सके। यह जमीन बेचा या किसी को हस्तांतरण नही किया जा सकता है। विधवा को अपने पति की जमीन से भरण पोषण का अधिकार दिया जाता है मगर वो भी इस जमीन को नहीं बेच सकती।
2. अधिकारियो के पद का स्वरूप – हातु मुंडा, मानकी, पड़हा राजा, राजा/सरदार (सारे प्रधान) चुनाव के माध्यम से चुना जाता है। ये पद वंशानुगत नही होते। बाकी अन्य पद ठाकुर, दीवान, लाल, दरोगा, पांडेय वंशानुगत होते है। यह पद बड़े बेटे को सौपा जाता है अगर बड़ा बेटा योग्य नहीं होता तो उसके किसी योग्य रिश्तेदार को यह पद प्रदान किया जाता है।
3. मुंडा का चुनाव – रांची जिला के लौहजिमी क्षेत्र में 9 जून को वर्ष मे एक बार मुंडा, पड़हा राजा और राजा मिलते है और जिस गांव में मुंडा का पद रिक्त रहता है उस गांव के लिए मुंडा का चयन होता है। मुंडा चयन के दौरान पगड़ी रस्म होता है। चयनित मुंडा को पगड़ी पहनाकर कार्यभार सौपा जाता है।
मुंडा शासन व्यवस्था (Video)