Q. दसगो लोकबाइन लिखिक ओकर माने फरिछ करा आर ऊ सबके बाइक में परजोग करा।
Q. दस लोकोक्ति लिखकर उसका अर्थ स्पष्ट करे और उन सबको वाक्य में प्रयोग करे।
Ans. लोकबाइन माने पूरान जूग से चल आइ रहल लोकेक बानि। जे खातिर एकरा लोकोतियो कहल जा हइ, माने लोक + उकति - लोकेक कहल बा लोक कहन। ई एगो परकिरन साहित के भाग लागइ। लोकबाइन बोइल-चाइल के बेबहारिक भाखाम ओंठगल रहे हइ। एकर भिनु-भिनु रूप भेटाबे हइ जेकर में मुइख रूपे फिगांठी आर सिकखा (शिक्षा) ले लसतंगा राखे वाला लोकबाइन हइ। लोकबाइनेक परजोग बतरसिरे (आवश्यकतानुसार) करल जाइ। हेठे कुछु पटतइर देखल जाइ पारइ:-
हिंदी अर्थ – लोकबाइन का अर्थ मनुष्य द्वारा पुराने समय से चलता आ रहा वाणी है। इसका मतलब लोगो की वाणी है। जिसके लिए इसे लोकोक्ति भी कहा जाता है, मतलाब लोग+उक्ति – लोकोक्ति या लोकवाणी। यह प्रकीर्ण साहित्य का एक भाग है। लोकोक्ति बोलचाल की व्यवहारिक भाषा में समाया हुआ रहता है। जिसमे मुख्य रूप से हास्य और शिक्षा से संबंधित होते है। ह भिन्न भिन्न रूप में पाया जाता है। लोकबाइन का प्रयोग आवश्यकतानुसार किया जाता है। नीचे कुछ उदाहरण देखा जा सकता है। करल जाइ।
1. अघन सुखे फुलल गाल, फइर बहोरिया ओहे हाल – अघन सुखे फुलल गाल करेक नाञ चाही बचकुन सिधा- सोझा रहेल चाहि काहेकि बहोरियाक ओहे गाल होवेम बेइसी देरी सिधा-सोझा।
अर्थ – अगहन महीना में सुख के कारण बहु का गाल फूल जाता है वही महीने के बीतने पर पुराना हाल हो जाता है। – अगहन महीने में गाल नही फूलाना चाहिए बल्कि विनम्र रहना चाहिए नही तो वही गाल होने में देर नहीं लगती।
2 . अनकर धने बिकरम राजा – ई जुगे आपन गोड़े डढाइ के चाहि अनकर धने बिकरम राजा बनले कोनहो पूइछ नाइ।
अर्थ – दूसरे के धन में विक्रमादित्य राजा – इस युग में अपने पैर में खड़ा होना चाहिए दूसरे के धन से विक्रम राजा बनने से कोई नही पूछता।
3. एगो के सुहो, एगो के दुहो – आइज काइल के जुगे धिया-पुता दुइयो के सुहेक दरकार हे, नाइ कि एगो के सुहो दोसर के दुहो।
अर्थ – एक को सहलाना, दूजे को दुहना – आजकल के युग में बेटी- बेटा दोनो को प्यार करना चाहिए, येन कि एक को प्यार करो दूसरे से काम लो।
4. जउ संग गोहुम पिसाइ- आपन संग-साथी बदल नाइतो जउ संग गोहुम पिसाइते देर नाइ लागे।
अर्थ – जौ के साथ गेंहू भी पिसता है – अपना संगत बदलो नही तो जौ के साथ गेंहू पीसाने में देर नही लगेगी।
5. नवा मदारी होरहोरवा सांप – तोंय दलानेक उपर चढल हे हूआं नवा मदारी होरहोरवा सांप रकम काहे करे हे।
अर्थ – नया मदारी हरहरिया (विषहीन मगर ज्यादा फुफकार मारने वाला) सांप – तुम छत के ऊपर चढ़े हो वहां नया मदारी हरहरिया सांप की तरह क्यों कर रहे हो।
6. मने-मने गूर-चिडा खाइक – दुइ चारगो मुइख परिखाक जोबाब लिखले हे, बेसि गुर-चिड़ा खाइक दरकार नाइ, ईटा जेपीएससी परिखा लागइ खेल नाय बूझी।
अर्थ – मन-मन में गुड़ चूड़ा खाना – दी- चार मुख्य परीक्षा के जवाब लिखे ही, ज्यादा गुड़-चूड़ा खाने की जरूरत नही, ये JPSC का परीक्षा है खेल मत समझो।
7. लंगट बेइस, झंझट नाय – मोहन सीधा-सोझा लोक लागइ, झंझट से बेइस ऊ लंगटे रहल चाहे।
अर्थ – नंगा अच्छा, झंझट नही – मोहन सीधा-साधा आदमी है, झंझट से अच्छा वह नंगा रहना चाहता है।
8. सइ परासेक तीन पात- दोइर-दोइर के थइक गेलियो आब तो इसथिति सइ परासेक तीन पात भइ गेलइ।
अर्थ – फिर से ढाक के तीन पत्ते – दौड़ दौड़ के थक गया अब तो स्थिति फिर से ढाक के तीन पत्ते की तरह हो गई है।
9. फुचकल माछ बोड होवे – जेइटा भगवाने देहो संतोस राख, सोब समय फुचकल माछ बोड होवे हे।
अर्थ – हाथ से छूटा हुआ मछली बड़ा होता है – जो भगवान देता है संतोष रखो, हर समय हाथ से छूटा हुआ मछली बड़ा लगता है।
10. जंदे भोज, तंदे सोझ- हिआँ मिल-मेसाइ के रह, खाली जंदे भोज देखले आर तंदे सोझाय देले नाइ चलतो।
अर्थ – जिधर भोज, उधर सीधा – यहां मिल- मिलाके रहो। सिर्फ जिधर भोज, उधर सीधा होने से नही चलेगा
माइर कुइट – माइर कुइट के कहेल पारे कि लोक जीवन में लोकबाइन के परजोग डेगे-डेगे हइ। कखनु फिगांठी करेक समय आर कखनु गढिया भाव दरसावेक समय। ई लोकबाइन लोकेक बोली में चाइर-चांद लगाय देबे हइ। कोंहों -कोंहो पूरना समाजिक अनूभब के दरसन करावे हइ। सइ खातिर लोकोक्ति कोनहो भी भाखाक गहना रूपे फुरछाइल हइ।
निष्कर्ष:- निष्कर्षत: कह सकते है कि जीवन में लोकोक्ति का प्रयोग कदम-कदम पे होता है। कभी हास्य करते समय कभी गंभीर भाव दर्शाने के समय। ये लोकोक्ति लोगो के बोली में चार चांद लगा देती है।कही कही पुराना सामाजिक अनुभव का दर्शन कराता है। इसलिए लोकोक्ति किसी भी भाषा में गहना के रूप में दिखाई पड़ता है।
शब्दावली (सबद भंडार)
फिगांठी – हास्य
बतरसिरे – आवश्यकतानुसार
लसतंगा – संबंधित
पटतइर -उदाहरण
गढिया – गंभीर
फूरछाना – दिखाई पड़ना/स्पष्ट करना
फूटानी -दिखावा