1857 के सिपाही विद्रोह में झारखंड भाग लेने वाले स्वतंत्रता सेनानियों का जीवन परिचय

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झारखंड के स्वतंत्रता सेनानी

शेख भिखारी

इसका जन्म 2 October 1819 को राँची जिला के बुढ़मू में एक बुनकर (अंसारी) परिवार में हुआ था। इसके जीवन का ज्यादातर समय खुदिया-लोटवा (ओरमाँझी, राँची) में बिता। इनके पिता का नाम शेख पहलवान था। ये टिकैत उमराव सिंह के दीवान और सेनापति थे। 1857 ई के विद्रोह में इन्होंने रामगढ़ के चुटुपालु घाटी में ब्रिटिश सेना से युद्ध किया था। इन्हें अंग्रेजो ने चुटुपालु घाटी में टिकैत उमराव सिंह के साथ 8 जनवरी 1858 में बरगद पेड़ में फाँसी दे दिया था।

नीलाम्बर-पीताम्बर

पांडेय गणपत राय

पांडेय गणपत राय का जन्म 17 जनवरी 1809 ई में लोहारदग्गा के भौरों गाँव (भंडारा ब्लॉक) मे हुआ था। ये एक जमींदार कायस्थ परिवार से थे। इसके पिता का नाम राम किशुन राय श्रीवास्तव था माता का नाम सुमित्रा देवी था। इसके पत्नी का नाम सुगंधा कुँवर था। इसके चाचा सदाशिव राय श्रीवास्तव नागवंशी राजा जगन्नाथ शाहदेव के दीवान थे। चाचा की मृत्यु के पश्चात इनके सामर्थ्य को देखकर नागवंशी राज्य का दीवान बनाया गया।

1857 ई के विद्रोह के दौरान रामगढ़ बटालियन के विद्रोही सैनिक जब एक शक्तिशाली नेतृत्व के आभाव में भटक रहे थे। उस वक्त इन्होंने ही विद्रोही सैनिकों की मुलाकात विश्वनाथ शाहदेव से कराया। विश्वनाथ शाहदेव ने इन 600 सैनिकों के साथ मुक्तिवाहिनी सेना का स्थापना किया। गणपत राय इस मुक्तिवाहिनी सेना के प्रधान सेनापति नियुक्त हुए। मुक्तिवाहिनी सेना ने 1 अगस्त 1857 को डोरंडा छावनी पर अधिकार कर लिया। 2 अगस्त को पूरे राँची में मुक्तिवाहिनी सेना का अस्थाई अधिकार हो गया।

विश्वनाथ शाहदेव के साथ इन्होंने चतरा की लड़ाई में भी अंग्रेजो के विरुद्ध युद्ध किया। मगर इस लड़ाई से दोनो को चतरा से भागना पड़ा। बाद में ये दोनों लोहारदग्गा के जंगलों से छापामार युद्ध जारी रखा।

गणपत राय को कैप्टेन नेशन ने परेहपाट गाँव से गिरफ्तार किया। यह गिरफ्तारी यहाँ के जमींदार महेंद्र शाही के विश्वासघात के कारण हुआ। पांडेय गणपत राय को 21 अप्रैल 1858 में राँची जिला स्कूल के मुख्य द्वार के पास कदम्ब के पेड़ से लटकाकर फाँसी दे दिया गया। इसी पेड़ में 5 दिन पहले विश्वनाथ शाहदेब को फाँसी दिया गया था।

इनके सम्मान में पांडेय गणपत राय मेमोरियल बैडमिंटन चैंपियनशिप की शुरुआत 2018 से की गई।

विश्वनाथ शाहदेव

इनका जन्म नागवंशी परिवार में 12 अगस्त 1817 में बड़कागढ़ की राजधानी सतरंजी में हुआ। बड़कागढ़ स्टेट में 97 गाँव शामिल थे। इसके पिता रघुनाथ शाहदेव तथा माता बाणेश्वरी कुँवर थी। इसके माता और पत्नी दोनों का संयोगवश एक ही नाम था। 1840 में पिता के मृत्यु के बाद बड़कागढ़ के राजा बने। जब वो राजा बने तो उन्हें पता चला कि वो एक नाममात्र का राजा है, वास्तविक शक्ति तो अंग्रेजो के हाथ मे है। उन्होंने अपने सैनिक शक्ति को बढ़ाना शुरू किया। बड़कागढ़ स्टेट की राजधानी सतरंजी से हटिया किया।

सैन्य शक्ति बढ़ाने के बाद 1855 में इन्होंने खुद को स्वतंत्र राजा घोषित किया। तब डाल्टन ने रामगढ़ बटालियन के मुख्यालय डोरंडा से 8वी नेटिव इन्फेंट्री को विश्वनाथ शाहदेब पे हमला करने के लिए भेजा। विश्वनाथ शाहदेव की इस लड़ाई में जीत हुई औऱ वह स्वतंत्र राजा बना रहा। 2 वर्ष बाद 1857 में रामगढ़ बटालियन के 600 विद्रोही सैनिकों के साथ मिलकर ” मुक्तिवाहिनी सेना” की स्थापना की।

मुक्तिवाहिनी सेना का एक प्रधान सेनापति पांडेय गणपत राय को नियुक्त किया गया। मुक्तिवाहिनी सेना ने डोरंडा, राँची पर अधिकार कर लिया। अंग्रेज और पादरी सारे राँची छोड़कर भाग गए। 2 अगस्त 1857 ई को पूरा राँची विश्वनाथ शाहदेव के कब्जे में आ गया। चतरा की लड़ाई (2 October, 1857) के बाद ये पांडेय गणपत राय के साथ भागकर लोहारदग्गा के जंगल में छुप गए थे। इनदोनो ने लोहारदग्गा के जंगल से ही अंग्रेजों के खिलाफ छापामार युध्द जारी रखा।

इन दोनों को पकड़ने के लिए मार्च 1858 में छोटानागपुर के कमिश्नर डाल्टन को स्वयं लोहारदग्गा आना पड़ा, मगर बीमार पड़ जाने के कारण यह जिम्मेदारी डिप्टी कमिश्नर कैप्टन ओक्स को दे दिया। कैप्टन ओक्स ने कैप्टन नेशन का मदद लिया। विश्वनाथ दुबे के के विश्वासघात के कारण 23 मार्च 1858 ई में लोहारदग्गा से गिरफ्तार किए गए। 16 अप्रैल 1858 ई को राँची जिला स्कूल के मुख्य द्वार के पास कदंब के वृक्ष में लटकाकर फाँसी दे दिया गया।

राँची संग्रहालय में आज भी कदम्ब पेड़ की डाली जिससे फाँसी दी गई तथा विश्वनाथ शाहदेब के तलवार मौजूद है।

भगवान सिंह और रामनाथ सिंह

ये दोनों अंग्रेजो के चाईबासा स्थित सेना-बटालियन के सैनिक थे। जिसके नेतृत्व में चाईबासा के सिपाहियों ने 03 सितंबर 1857 ई में विद्रोह किया। बाद में पोरहाट के राजा अर्जुन सिंह के साथ मिलकर अंग्रेजों से लड़ाई की।

अर्जुन सिंह

ये पोरहाट के राजा थे। इनका जन्म 1829 में तथा मृत्यु 10 मार्च 1890 में बनारस मे हुई थी। इसके पिता का नाम राजा अच्युत सिंह था। सिंहभूम से 1857 ई के सिपाही विद्रोह का नेतृत्व इन्होंने किया। इन्होंने चाईबासा के विद्रोही सैनिकों को अपने यहाँ शरण दी थी। इन्होंने हो जाती के लोगो के साथ अंग्रेजो का मुकाबला किया। डबरु मानकी, गोनो हो और खरी तांती जैसे नेताओं का साथ मिला। अंग्रेजों ने अर्जुन सिंह के ऊपर 1000 रु के इनाम का एलान किया था। जेल से निकलने के बाद इन्हें 400 रु वार्षिक पेंशन दिया गया।

अर्जुन सिंह की गिरफ्तारी के बाद सिंहभूम क्षेत्र में प्रशासनिक पकरिवर्तन किये गए। सिंहवंशी राज्य के कुछ क्षेत्रों को सरायकेला राजा और कुछ क्षेत्र को सरायकेला राजा के अंतर्गत कर दिया गया। शेष क्षेत्रों को नया पोरहाट बनाया गया। इस नवगठित पोरहाट का राजा अर्जुन सिंह के एकमात्र पुत्र नरपत सिंह को बनाया गया। नरपत सिंह की मृत्यु 1934 में होने के बाद यह क्षेत्र 1947 तक पूर्णतः अंग्रेजो के अधीन रहा।

जग्गू दीवान

इसका मूल नाम जगबंधु पटनायक था। ये राजा अच्युत सिंह और उसके पुत्र अर्जुन सिंह दोनो के दीवान रहे। इसका जन्म केड़ा के भवानीपुर गांव में हुआ था। अर्जून सिंह के साथ मिलकर इसने भी 1857 के विद्रोह में अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। जब चाईबासा कैंट के विद्रोही सिपाही राँची की तरफ जा रहे थे। तब सरायकेला और खरसावां रियासत के राजाओं ने रास्ता रोकने का कोशिश किया था। तब जग्गू दीवान ने विद्रोहियों की मदद की थी। दो हाथी की मदद से संजय नदी पार कराया था और विद्रोही सैनिकों को अर्जुन सिंह के पास लेकर आए थे। जग्गू दीवान ने आदिवासियो को संगठित किया था और अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध में शामिल किया था।

राँची के कमिश्नर डाल्टन के आदेश से 1858 में जग्गू दीवान को चाईबासा से अंग्रेजों ने पकड़ लिया था। जग्गू दीवान को और अन्य क्रांतिकारियों के साथ 10 नवंबर 1858 में चक्रधरपुर के पुरानी बस्ती के बलिया घाट में क्रूरतापूर्वक हत्या कर दिया था।

बैद्यनाथ सिंह और रघुदेव

बैद्यनाथ सिंह अर्जुन सिंह के छोटे भाई थे। रघुदेव, बैद्यनाथ सिंह के दीवान थे। इन दोनों ने मिलकर केरा के ठाकुर के कोठी पर हमला किया और उसकी संपत्ति लूट ली। केरा का ठाकुर अर्जुन सिंह के निकट सम्बन्धी थे लेकिन अंग्रेजो के पिछलग्गु थे। इस विद्रोह में वे अंग्रेजो का साथ दे रहे थे। इन दोनों ने अंग्रेजो के पिछलग्गू आनंदपुर के जमींदार के संपत्ति को लूट कर विद्रोह के लिए हथियार और पैसा जमा किया था।

नीलमणि सिंह

ये पंचेत राज्य के राजा थे। 1857 के विद्रोह के दौरान जब पुरुलिया में सिपाहियों ने विद्रोह किया। उस समय मानभूम के सभी राजा और जमींदारों ने अंग्रेजो का साथ दिया। वही प्रिंसीपल असिस्टेंट कमिश्नर ओक्स के प्रार्थना के बाद भी नीलमणी सिंह ने विद्रोहियों का साथ दिया। जैपुर इलाके के संताल भी इस विद्रोह के दौरान अंग्रेजो के खिलाफ हो गए थे। नीलमणी सिंह ने संताल विद्रोहियों की हौसला बढ़ाया। इसके सरकार विद्रोही रवैये के कारण कैप्टेन माउंट गोमरी ने नवम्बर 1857 में गिरफ्तार कर लिया। इन्हें अलीपुर जेल भेज दिया गया।

सुरेंद्र शाही

ये संभलपुर राज्य के राजकुमार थे जिसने उदयंत शाही के साथ मिलकर संभलपुर में 1857 ई के विद्रोह के दौरान अंग्रेजो के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया। गिरफ्तार होने के बाद अंग्रेजो ने इसे हज़ारीबाग जेल में कैद रखा। जब रामगढ़ छावनी के सिपाहियों ने विद्रोह किया और हज़ारीबाग जेल में हमला करके सुरेन्द शाही और उदयंत शाही को कैद से आजाद कराया। जेल से रिहा होते ही विद्रोहियों ने सुरेंद्र शाही के नेतृत्व में हज़ारीबाग में विद्रोह तेज कर दिया। 30 जुलाई 1857 ई में इनके नेतृत्व में विद्रोही राँची की और कूच किये। पिठोरिया के जमींदार जगतपाल सिंह ने इन विद्रोहियों का रास्ता रोकने पर मार्ग बदलना पड़ा। सुरेंद्र शाही सैनिकों के साथ ट्रिब्यूटरी महाल के विद्रोहियों से मिल गए। इस तरह झारखंड क्षेत्र में इसका योगदान खत्म हुआ।

टिकैत उमराव सिंह

इनका जन्म बंधगांव राजपरिवार में राँची जिला के ओरमांझी प्रखंड के खटंगा पातर गाँव मे हुआ था। ये आसपास के 12 गाँव के जमींदार थे। टिकैत उमराव सिंह अपने छोटे भाई टिकैत घासी सिंह के साथ 1857 ई के सिपाही विद्रोह में अंग्रेजो से युद्ध किया था। टिकैत उमराव सिंह के दीवान शेख भिखारी थे। 1857 ई के विद्रोह के दौरान जब मैकडोनाल्ड की मद्रासी सेना ने राँची प्रवेश की कोशिश की तब शेख भिखारी के साथ चुटुपालु कि घाटी में अंग्रेजी सेना का रास्ता रोका।

टिकैत उमराव सिंह और शेख भिखारी 6 जनवरी 1858 ई को गिरफ्तार कर लिए गए। 8 जनवरी को चुटुपालु घाटी (रामगढ़) में बरगद के पेड़ पर लटकाकर दोनो को फाँसी दे दी गई।

टिकैत घासी सिंह

ये टिकैत उमराव सिंह के भाई थे। अपने भाई उमराव सिंह और शेख भिखारी के के साथ मैकडोनाल्ड की मद्रासी सेना को राँची जाने से चुटुपालु घाटी में रोका था। मैकडोनाल्ड ने इसे गिरफ्तार कर लोहारदग्गा जेल में कैद किया था वही इसकी मृत्यु हो गई।

जमादार माधव सिंह

जयमंगल पांडेय और नादिर अली

भवानीबक्श राय

चेरो राजपरिवार से रिश्ता रखने वाले भवानीबक्श राय चकला के जमीदार थे। इन्होंने पलामू क्षेत्र में 1857 ई का विद्रोह 26 सितंबर 1957 में शुरू किया। राजहरा के कोयला खान में आग लगाने वाले विद्रोहियों में इसके ब्राह्मण अनुयायियों की संख्या काफी थी। कुछ ब्राह्मण अनुयायियों को तुरंत फाँसी पे टाँग दिया गया था। इनके बड़े भाई रामबक्श राय और छोटे भाई देवीबख्श राय ने भी विद्रोहियों का साथ दिया।

झारखंड के स्वतंत्रता सेनानी (पांडेय गणपत राय)

https://youtu.be/reldc4VPGDk

झारखंड के स्वतंत्रता सेनानी (विश्वनाथ शाहदेव)

https://youtu.be/eOCQyDckLfI

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