उपेक्षित कर्ण
उद्भासाल कर्ण
पहला दृश्य
कुंती:
इस बच्चे को कहां रखूं? इस पाप को कहां छुपाऊ? क्या कहेंगे लोग मुझे ? किस आंख से देखेगा ? यह दुनिया इतना बड़ा किंतु आज मुझे छिपने के लिए किस जगह, कोई गढ्ढा नहीं। सूर्यदेव! सूर्य देव!! आपने जो धन दिया, उसको हम आज रख नहीं पा रहे हैं। आपने मुझे पुत्र दिया मैं जो कुंवारी! मेरा तो विवाह नहीं हुआ है लोग मुझे कुल्टा, कहेंगे पापिन कहेंगे, अंधी, नीच कहेंगे। आज हम समाज मैं मुंह नहीं दिखा पाऊंगी। हाय! कहां जाऊं, क्या करूं! ………… रक्षा करो सूर्यदेव! रक्षा करो! नारी का लाज रखो प्रभु। आज नारी का लाज रखो। यह अपयश क्या कोमल हृदय की नारी सा पाएगा।
आकाशवाणी:
परेशान ना हो कुंती। परेशान ना होवो, कुंती तुम्हारा पुत्र दुनिया का श्रेष्ठ, वीर, दानी, यशस्वी है सबसे पहले सोना के पेटी में इसको भरके निश्चित मन से गंगा में बहा दो।…… इसकी मृत्यु नहीं है।
शब्दावली
उदभासल- उपेक्षित, कातर – परेशान/व्याकुल होना
उदभासल कर्ण नाटक के महत्वपूर्ण तथ्य
🤏 यह श्रीनिवास पानुरी द्वारा रचित एक एकांकी नाटक रचना है और इस नाटक में कुल 11 दृश्य है। इस नाटक में कुल 1 अंक है। इस नाटक का आधार महाभारत का एक पात्र कर्ण है। इसकी रचना 1963 ईस्वी में किया गया और इसका प्रथम प्रकाशन 2012 में हुआ तथा द्वितीय प्रकाशन 2019 में हुआ। इसके प्रकाशक श्री नारायण महतो थे। इसका मुद्रण यूनिक प्रिंटिंग प्रेस गोविंदपुर, धनबाद में हुआ था। इस नाटक का द्वितीय प्रकाशन पृथ्वी प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा हुआ था। इस नाटक की भूमिका नारायण महतो द्वारा लिखी गई है जो पेशे से अधिवक्ता है।
पुरुष पात्र
द्रोणाचार्य, अर्जुन, कर्ण, एकलव्य, कृपाचार्य, दुर्योधन, भीम, तरुण परशुराम, कृष्ण, विदुर, सुयश, अपयश और दुगो बाभन (दो ब्राह्मण
महिला पात्र
कुंती, मीरा और सोनी
🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏🤏