Handicrafts Of Jharkhand
झारखंड की शिल्पकला
ढोकरा कला
यह एक धातु शिल्प कला है। जो झारखंड में बहुत ही प्रसिद्ध है। धीरे-धीरे इस कला का लॉक होता जा रहा है, अभी यह कला बहुत ही दयनीय स्थिति में पहुंच चुका है। स्थानीय भाषा में इसे “सिरे पेडू” तथा “घड़वा” कहा जाता है। इस कला से कोई सामग्री बनाने की विधि को मोम क्षय विधि (Lost Of Wax Process) कहा जाता है। इस कला में तांबा जस्ता और (रांगा) आदि धातुओं के मिश्रण की ढलाई करके मूर्तियां बर्तन वह रोजमर्रा के अन्य सामान बनाए जाते हैं। इस प्रक्रिया में मधुमक्खी के मोम का इस्तेमाल होता है।
इस प्रक्रिया से कोई सामग्री बनाने के लिए सबसे पहले मिट्टी से ढांचा तैयार किया जाता है फिर उसके ऊपर मोम से इच्छा कृत आकृतियां बनाई जाती है। उस मोम के परत के ऊपर मिट्टी चढ़ाई जाती है और आग में जलाया जाता है जिससे मोम पिघल जाता है। मोम से खाली हुए जगह पर पिघला हुआ मेटल को डाला जाता है। मिट्टी के ढांचे के ऊपर धातु की परत चढ़ जाती है। फिर बाहरी परत जो मिट्टी की होती है उसे कागज से खुरच खुरच कर निकाल दिया जाता है।
धान और चावल नापने के लिए जो पायला उपयोग होता है वह डोकरा कला से ही बनाया जाता है।
झारखंड में मल्हार जाति के लोग इस कला में निपुण माने जाते हैं। रांची जिला के लोहाडीह और हजारीबाग जिला के इचाक में अभी भी एक कला उन्नत अवस्था में देखने को मिलता है।
Note:- तेलंगाना में स्थित आदिलाबाद को ढोकरा हस्तकला के लिए GI टैग मिला है। इस कला की उत्पत्ति छत्तीसगढ़ के बस्तर जिला को माना जाता है। इसका संबंध हड़प्पा सभ्यता से है, हड़प्पा सभ्यता में मोहनजोदड़ो से मिली नाचते हुए कांस्य की मूर्ति इसी कला से निर्मित है।
मुखौटा शिल्प
झारखंड के सरायकेला -खरसवां मुखौटा शिल्प के लिए प्रसिध्द है। सरायकेला छऊ नृत्य के लिए मुखौटा/मुकुट अनिवार्य है। अतः सरायकेला, खरसावां, पूर्विसिंहभूम में यह शिल्प काफी विकसित है। मुखौटा मिट्टी से बनाया जाता है तथा सजावट के लिए कागज का प्रयोग किया जाता है। मुखौटा को रंगीन करने के लिए प्राकृतिक रंग का प्रयोग किया जाता है। मुखौटा बनाने वाले कुशल कारीगर महापात्रा, महाराणा या सूत्रधार कहलाता है।
बांस कर्म
झारखंड में बांस से बनी हुई वस्तुओ का बहुत प्रयोग होता है। बांस से टोकरी, खिलौने तथा अन्य कई वस्तुएं बनाई जाती है। इस कर्म में माहली समुदाय काफी निपुण होते है। झारखंड में गोंड, पहाड़िया और उलथू बिरहोर बांस कर्म से जीविका चलाते है। झारखंड में बांस की पत्ती का उपयोग करके छाता बनाया जाता है जिसे चातोम कहा जाता है। झारखंड में एक अन्य प्रकार की छाता का उपयोग किया जाता है जिसे “चूकरी” कहते हैं और यह गूंगा से बनाया जाता है।
ट्राइबल ज्वेलरी कला
ट्राईबल ज्वेलरी के लिए रांची का चेला की गांव प्रसिद्ध है। ट्राइबल ज्वेलरी को विभिन्न प्रकार के पत्थरों का उपयोग करके बनाया जाता है।
Note :- उराव जनजाति में सीप के खोल से एक विशेष प्रकार के आभूषण झिप बनाई जाता है जो इस समुदाय में काफी प्रचलित है।
काष्ठ शिल्प
झारखंड में लकड़ी बहुतायत मात्रा में पाई जाती है इसीलिए झारखंड में काष्ठ शिल्प भी विकसित अवस्था में है। लकड़ियों से खिलौने इमारत और अन्य जरूरत की वस्तुएं बनाई जाती है। पूर्वी सिंहभूम के चाकुलिया इमारती लकड़ी और बांस कर्म के लिए प्रसिद्ध है। रांची और हजारीबाग में भी काष्ठ शिल्प उन्नत अवस्था में है।
प्रस्तर शिल्प
झारखंड में प्रस्तर सिल्क भी देखने को मिलता है पत्थर से सील लोढ़ा ओखल मूर्तियां खिलौने तथा अन्य जरूरत की सामग्रियां बनाई जाती है। झारखंड के घाटशिला चांडिल और सरायकेला प्रस्तर शिल्प के लिए प्रसिद्ध है।
लेदरा/केथरी शिल्प
झारखंड में पुराने कपड़ों से लेदरा या केथरी बनाने की कला देखी जाती है। कई पुराने कपड़ों को जोड़कर लेदरा या केथरी को बनाया जाता है। जो सोने और बिछाने के काम में आता है। यह कला प्रायः झारखंड के हर परिवार के घर में देखने को मिलता है। इसका बॉर्डर में सोहराय और कोहबर की चित्रकारी देखने को मिलता है।
मृणशिल्प👊 झारखंड की शिल्पकला 👊
मिट्टी का उपयोग करके जरूरत की सामग्रियों को बनाने की कला को मृणशिल्प कहा जाता है। झारखंड में कुम्हार जाति के लोग मृणशिल्प में निपुण होते हैं। यह मिट्टी का उपयोग करके बर्तन, खिलौने मूर्तियां, तथा अन्य जरूरत की सामान बनाते हैं। इस कला को झारखंड के रांची और हजारीबाग जिले में समृद्ध रूप से देखा जा सकता है। हालांकि यह झारखंड के लगभग हर जिले में यह कला देखने को मिलती है।
कासी घास शिल्प
झारखंड में बरसात के दिनों में कासी घास बहुतायत मात्रा में मिलते हैं। इस गांव से कई प्रकार के उपयोगी सामग्री बनाया जाता है जैसे टोकरी दूध की खिलौने इत्यादि। यह शिल्प कला झारखंड के संथाल परगना जिले में देखने को मिलता है।
वस्त्र शिल्प
झारखंड के जमशेदपुर और सरायकेला में वस्त्र की रंगाई तथा छपाई का काम होता है। संथाल परगना की संथाल महिलाएं खुद अपने लिए पंची -पाडहाड़ वस्त्र बनाती है। पंची को कमर के ऊपर पहना जाता है और पाडहाड़ को कमर के नीचे।
झारखंड शिल्पकला महत्वपूर्ण तथ्य
👊 पहाड़िया जनजाति द्वारा बनाई गई काकी कंघी और काकी माला का झारखंड में प्रचलन है।
👊 यहां जंगली घास या सुबई घास कटोरा बनाने का प्रचलन है।
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