आँखिक गीत (पुस्तक)
आँखिक गीत Ankhik git
कविता संख्या 51
शीर्षक: नॉच बांदर नॉच रे
नॉच बांदर नॉच रे
मोर चांहे बॉंच रे
तोर खातिर सुसनी साग
हमर खातिर माछ रे
नॉच बांदर नॉच रे
मोर चांहे बॉंच रे
हमर खातिर सोना चाँदी
तोर खातिर काँच रे
नॉच बांदर नॉच रे
मोर चांहे बॉंच रे
हमर खातिर दलान घर
तोर खातिर गाछ रे
नॉच बांदर नॉच रे
मोर चांहे बॉंच रे
यह गीत आँखिक गीत पुस्तक से ली गई है। आँखिक गीत एक प्रसिद्ध कविता-संग्रह है। जिसके रचनाकार श्रीनिवास पानुरी है। इस पुस्तक में 71 कविताएँ है तथा 11 क्षणिकाएँ (सूक्ष्म कविताएँ) है। इस पुस्तक का प्रकाशन 2011 में हुआ।
Note:- क्षणिका पद्य के रूप में होती है मगर यह पद्य से बहुत छोटा है। ये कुछ (2-4) ही पंक्ति में गहन बात को बता देती है। इसे खोरठा में फुनगुनी या चिनगिनी कहा जाता है।
हिंदी में सारांश
यहाँ कवि ने झारखंड के मूल निवासी को बांदर (बंदर) के रूप में दिखाया है। तथा बाहरी लोगों को मदारी के रूप में। झारखंड के मूलनिवासी सदियों से बाहरी लोगो जैसे:- जमींदार, साहूकार, ठेकेदार, जागीरदार के हाथों शोषित होता आया है। कवि ने यहाँ बाहरी लोगों द्वारा मूलनिवासियों के शोषण की स्थिति का वर्णन करते हुए व्यंग कविता लिखा है:-
नाचो बंदर (मूलनिवासी) नाचो रे
मरो या जिंदा रहो
तेरे लिए सुसनी साग है
मेरे (बाहरी लोग) लिए माछ (मछली) है।
नाचो बंदर नाचो रे
मरो या जिंदा रहो
मेरे लिए सोना चाँदी है
तेरे लिए काँच है।
नाचो बंदर नाचो रे
मरो या जिंदा रहो
मेरे लिये पक्का मकान (दलान घर)
तेरे लिए पेड़ (गाछ) है।
नाचो बंदर नाचो रे
मरो या जिंदा रहो
Note:- यह गीत बाहरी लोगों द्वारा यहाँ गाया गया है। (आँखिक गीत Ankhik git)
खोरठा भाषा का उद्भव और विकास Part- 1
https://youtu.be/WyzAUp6Mq9E
खोरठा भाषा का उद्भव और विकास Part-2
खोरठा भाषा का उद्भव और विकास Part-3
खोरठा भाषा का उद्भव और विकास Part-4
आँखिक गीत Ankhik git