Telanga Kharia Biography

तेलंगा खड़िया की जीवनी | Telanga Kharia Biography

झारखंड के विभूति

तेलंगा खड़िया की जीवनी

Telanga Kharia Biography

इनका जन्म 09 फरवरी 1806 को गुमला जिला (उस समय लोहारदग्गा जिला) के सिसई प्रखंड के मुरगु गाँव ( उस समय मुरुनगुर) में एक पाहन परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम ठुईया खड़िया था जो रातू के नागवंशी राजा देवनाथ शाह और गोविन्दनाथ शाह के यहाँ भंडारी के पद पर कार्यरत थे। तेलंगा बचपन मे वाचाल (ज्यादा बोलने वाला) प्रवृत्ति के थे। वाचाल को खड़िया भाषा मे तेलबंगा कहा जाता है, इसी शब्द से उनका नाम तेलंगा पड़ा। इनके माता का नाम पेती खड़िया था। इसके पत्नी का नाम रतनी खड़िया था जिसने तेलंगा खड़िया के वीरगति के बाद खड़िया विद्रोह को जारी रखा।

खड़िया विद्रोह

तेलंगा खड़िया ने 1850 से 1880 (मृत्यु पर्यन्त) तक जमीदारों, महाजनों और अंग्रेजो के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह किया। आदिवासियों की छीनी हुई जमीन की वापसी और उस जमीन पर खड़िया समुदाय की परंपरागत अधिकारों के लिए तेलंगा खड़िया ने विद्रोह किया। उसने “जोरी पंचायत” नामक एक संगठन बनाया। इस संगठन के माध्यम से उसने खड़िया युवाओं को शोषण से लड़ने के लिए प्रेरित किया। इस संगठन की सभा क्षेत्र के विभिन्न भागों में कराई तथा 1500 युवाओं को संगठन का हिस्सा बनाया। अखड़ा में युवाओं को पारंपरिक हथियारों (तीर, भाला, फरसा) का प्रशिक्षण तथा राजनीतिक शिक्षा दिया जाता था। कंपनी सरकार के विरुद्ध तेलंगा ने 1850 में गुरिल्ला युद्ध छेड़ दिया। इनके विद्रोह से कंपनी सरकार बहुत परेशान हो गए।

विद्रोह के क्रम में 21 मार्च 1852 में गुमला के बसिया जिले के कुम्हरिया गाँव मे तेलंगा खड़िया गिरफ्तार कर लिए गए। उनपर तत्कालीन जिला मुख्यालय लोहारदग्गा में मुकदमा चला। मुकदमे में सजा में उन्हें संभवतः 14 से 18 साल के बीच मे की सजा हुई थी। इन्हें यह सजा कलकत्ता के जेल में काटनी पड़ी।

सजा काटने के बाद जब तेलंगा खड़िया वापस अपने गाँव आया तो तो उन्होंने 1859 का Chhotanagpur Landlord & tenacy Procedure Act का विरोध शुरू किया। बूढ़े तेलंगा ने पुनः 1880 में विद्रोह शुरू कर दिया जिसे खडिया विद्रोह के नाम से जाना जाता है। यह विद्रोह पहले से ज्यादा मजबूत विद्रोह था। इस विद्रोह को”खड़िया विद्रोह” के नाम से जाना जाता है।

23 अप्रैल 1880 को जब तेलंगा खड़िया अपने शिष्यों के साथ दैनिक प्रार्थना कर रहे थे तब सिपाही बोधन सिंह ने उसपर गोलियाँ चला दी, जिससे तेलंगा वीरगति को प्राप्त हुए। तेलंगा के शिष्यों ने इनके घायल शरीर को अंग्रेजो के हाथों से बचाकर दक्षिण कोयल के तट पर स्थित सोसो निमटोली में इनका अंतिम संस्कार किया। इस स्थान को “तेलंगा टोपा टाँड़” कहा जाता है।

Important Facts from Telanga Kharia Biography

1) खड़िया समाज तेलंगा खड़िया के याद में “तेलंगा संवत” का पालन करते है।

2) गुमला जिला के चाँदाली गाँव मे तेलंगा खड़िया का समाधि स्थल बनाया गया है। जहाँ पर प्रति वर्ष 9 फरवरी को शहीद तेलंगा मेला का आयोजन किया जाता है।

3. तेलंगा खड़िया के गाँव मुरगु को शहीद ग्राम योजना के तहत विकसित किया जा रहा है।

4. अम्बाघाघ जलप्रपात में डूबती हुई रतनी खड़िया को तेलंगा ने बचाया था जिससे बाद में उसका शुभ विवाह हुआ।

5) इसने 74 वर्ष की उम्र में वीरगति को प्राप्त किया था।

6) कुछ विद्वानों के अनुसार तेलंगा खड़िया का अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह का समय 1831-32 से 1880 तक था।

Telanga Kharia Biography Video

https://youtu.be/xeypGMfYCsw

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