Souria Paharia Tribes
Introduction Of Souria Paharia Tribes – सौरिया पहाड़िया अपने आप को “मलेर” कहते है। चंद्रगुप्त के समय भारत आनेवाले मेगास्थनीज ने इस जनजाति के लिए “माल्ली” और “सौरी” शब्द का उपयोग किया है। यह प्रोटो-ऑस्ट्रेलोयाड जनजातीय परिवार के अंतर्गत आते है। झारखण्ड में 8 आदिम जनजातियों में से सौरिया पहाड़िया भी एक है।
Note:- सौरिया पहाड़िया को मुगल काल में लुटेरा कहा जाता था।
Souria Paharia Tribes का निवास स्थान
इसका सबसे ज्यादा जमाव राजमहल की पहाड़ी क्षेत्र में है। बांसलोई नदी के किनारे इसकी अच्छी जनसंख्या निवास करती है। ये पहाड़ के ऊपर या पहाड़ी ढलानों में रहना पसंद करते है। कुछ नाममात्र की आबादी उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में पाई जाती है। शरत चंद्र राय के अनुसार सौरिया पहाड़िया दक्षिण भारत से विंध्याचल पर्वत और नर्मदा नदी पार करके गंगा नदी के किनारे किनारे आरामनगर (आरा, बिहार) और व्याघ्रनगर (बक्सर) में आ बसे फिर धीरे धीरे रोहतासगढ में आकर बसे जहां मुंडा जनजातियों ने जगह खाली किया था। यहां इसका सामना मुस्लिम आक्रांताओं से होता है जिससे ये दो भागो में बंट गए एक भाग मुंडा का अनुसरण करते हुए छोटानागपुर में आ बसे ये उरांव कहलाए दूसरा भाग गंगा नदी का अनुसरण करते हुए राजमहल की पहाड़ी पर जा बसे जो सौरिया पहाड़िया कहलाए।
Souria Paharia Tribes की सामाजिक व्यवस्था
सौरिया समाज पितृसत्तात्मक होता है। माल पहाड़िया और सौरिया पहाड़िया दोनो में गोत्र प्रथा नही पाई जाती है। इस जनजाति का युवाहगृह कोडवाह कहा जाता है। पुरुष युवागृह को मसर्मक कोडवाह और महिला युवगृह को पेलमक कोडवाह कहा जाता है।इसमें एकल परिवार व्यवस्था ज्यादा होती है। विवाह के उपरांत बच्चे अलग परिवार बना लेते है। इसमें गोत्र न होने के वजह से नातेदारी के आधार पर विवाह तय किया जाता है। इसमें एक विवाह की परंपरा होती है मगर कहीं कहीं बहुविवाह भी दिखाई देता है। कुछ परिस्थिति में पुनर्विवाह की अनुमति होती है।
शादी सिटू(अगुआ) द्वारा तय किया जाता है। नगद दिया जाने वाला वधुमूल्य पोन कहलाता है और समान/वस्तु के रूप में दिया जाने वाला वधुमुल्य बंदी कहलाता है। विवाह वेदसीटू (पुरोहित) करवाता है। विवाह में सिंदुरदान दाना होता है और झंडी गोसाई के समक्ष विवाह संपन्न होता है। सौरिया में हरण विवाह,सेवा विवाह,विनिमय विवाह भी प्रचलित है।
सौरिया में शव को दफनाने की प्रथा है कहीं कहीं शव जलाया जाता है जो बहुत कम होता है। व्यक्ति के जरूरी सामान के साथ दफनाया जाता है। दफनाते समय शव के सर को पश्चिम की तरफ रखा जाता है। दफनाने के बाद कब्र पर पत्थर रखे जाते और चारो कोने में मछली,मांस या मकई की खिचड़ी रख कर उसमे आग लगाई जाती है। संस्कार के बाद बाल मुड़वाने की परंपरा है, मृत्युभोज की भी प्रथा है। जिस पुरोहित द्वारा आत्मा की शांति के लिए पूजा किया जाता है उसे देवासी कहा जाता है।
साह-प्रसविदा प्रथा
सौरिया समाज में साह-प्रसविदा प्रथा का प्रचलन है जिसके प्रसव के दौरान पुरुष घर से नहीं निकलता है और बाल दाढ़ी नही कटवाते है। यह 5 दिन का समय होता है। 5वें दिन माँ-सांकशेटी त्योहार मनाया जाता है। इसे मनाए जाने तक शिशु की माता घर के चीजों को नहीं छूती और जच्चा-बच्चा का ख्याल पुरुष द्वारा रखा जाता है। इसी दिन शिशु का नामकरण होता है।बुरे आत्माओ को धोखे में रखने के लिए इनमे दो नाम रखने की परंपरा है।
Souria Paharia Tribes (आर्थिक जीवन)
इसके जीवन का आधार जंगल है ये शिकार करते है और कुरवा (स्थांतरित खेती) खेती करते है। ये पहाडी ढाल में बसे लोग खोदकर जो खेती करते थे उसे ‘मीठा खेती’ या धामी खेती कहते है।
सौरिया पहाड़िया की भाषा
Souria Pahariya Tribes की भाषा माल्तो है। माल्तो,कुरुख भाषा का ही एक उपभाग। ये दोनो भाषा दक्षिण भारत में बोली जाने वाली कन्नड़ भाषा से मिलती जुलती है। माल्तो और कुडुख दोनो भाषाएं द्रविड़ भाषा परिवार (उत्तरी द्रविड़ भाषा परिवार)के अंतर्गत आता है। माल्तो भाषा को झारखंड में पहाड़िया भाषा या राजमहली भाषा के नाम से भी जाना जाता। माल्तो भाषा के दो उपभाग है कुमारभाग पहाड़िया और सौरिया पहाड़िया। झारखंड में कुमारभाग पहाड़िया ज्यादा बोली जाती है। दोनो उपभाग में मामूली अंतर है। माल्तो की अपनी कोई लिपि नही है। पहली बार अर्नेस्ट डोरजी(1884) ने माल्तो भाषा का किताब लिखा “Introduction To The Malto Language”
द्रविड़ ➡ उत्तरी द्रविड़ ➡ कुडुख ➡ माल्तो ➡ कुमारभाग पहाड़िया और सौरिया पहाड़िया
सौरिया पहाड़िया के धार्मिक जीवन
Souria Pahariya Tribes में प्रकृति और पूर्वजों की पूजा का खास महत्व है। ये अपने पूर्वजों की आत्मा को “जीवे उरक्क्या” कहते है जिसे ये 5 दिन तक जब तक मृत्युभोज नही दिया जाता तब तक भयंकर आत्मा होती है, फिर मृत्युभोज के बाद यह आत्मा परोपकारी हो जाती है। पूर्वजों के पुण्यतिथि के रूप में कर्रा पूजा मनाया जाता है।
मानवविज्ञानी रिजले ने इसके धार्मिक जीवन का अध्ययन करके इसके धर्म के स्वरूप को ‘जीववाद’ कहा। सौरिया पहाड़िया बहुदेववादी है इसके देवता निम्न है:-
लौहू गोसाई- इसके सर्वोच्च देवता लौहू गोसाईहै । इसे सौरिया पहाड़िया सृष्टि(सृष्टिकर्ता) कर्ता मानते है।
बेरू गोसाई- ये सूर्य देव को बेरू गोसाई के नाम से पूजा करते है।
बिल्प गोसाई- ये चंद्र देव को बिल्प गोसाई के नाम से पूजा करते है।
काल गोसाई – काल गोसाई कृषि का देवता है जिसकी पुजा बुआई और रोपाई के काल(समय) में किया जाता है।
राजेयी गोसाई – ये विपत्ति देवता के रूप में पूजा जाता है। एक बड़े वृक्ष के नीचे काले पत्थर स्थापित किए जाते है और इसके चारो ओर झाड़ी लगा दी जाती है। जब गांव में कोई विपत्ति आती है जैसे आदमखोर बाघ या अन्य जंगली जानवर का आक्रमण या गांव में महामारी तब इसकी पूजा की जाती है।
पो गोसाईं – यह मार्ग देवता है।
जरमात्रे गोसाई – ये जन्म का देवता के रूप में पूजे जाते है।
दरमरे गोसाई – इसकी पूजा सत्यदेव के रूप में की जाती है।
ओंटगा गोसाईं – यह शिकार देवता के रूप मे पूजा जाता है।
दूआरा गोसाई – यह गृह देवता होता है जब घर में कोई विपत्ति आती है तब इसकी पूजा की जाती हैं।
धार्मिक प्रधान को कांदो मांझी कहा जाता है। कोतवार और चालवे कांदो मांझी का धार्मिक कार्य में सहायक होता है।
सौरिया पहाड़िया के वाद्य यंत्र
इसके त्योहारों में नृत्य गान की परंपरा है। सौरिया पहाड़िया के प्रमुख वाद्य यंत्र निम्न है:-
a) बंसली (बांसुरी)
b) बानम (वायलिन)
c) खैलू (ढोल)
सौरिया पहाड़िया जातीय शासन व्यवस्था
Souria Pahariya Tribes के गांव का प्रधान मांझी या सियनार होता है। गांव के शासन व्यवस्था को मांझी ही चलाता है। दीवानी और फौजदारी दोनो मामले का मुखिया मांझी होता है। मांझी को मदद करने के लिए निम्न पदाधिकारी होते है:-
गौड़ैत- इसे भंडारी भी कहा जाता है। इसका काम संदेशवाहक का होता है। मांझी के संदेश को यह गांव के हर घर तक पहुंचाता है।
कोतवार- ये पंचायत का व्यवस्थापक होता है। बैठक का इंतजाम करना इसकी जिम्मेदारी होती है।
गिरी- ये गांव के प्रभावशाली लोग होते है। ये भी पंचायत के अंग होते है।
15-20 गांवो का एक संगठन होता है जिसे अद्दा कहा जाता है जिसका प्रमुख नायक कहलाता है। ये दो गांवो के बीच के झगड़ा का फैसला करता है या वो फैसला जिसका निपटारा ग्राम स्तर पर नही हो पाता। 70-80 गांव को मिलाकर एक पहाड़ बनता है जिसका मुखिया सरदार कहलाता है। सौरिया पहाड़िया पंचायत व्यवस्था का सबसे बड़ा अधिकारी सरदार होता है।
मांझी, नायक और सरदार का पद वंशानुगत होता है और योग्य बड़े बेटे को यह पद हस्तांतरित किया जाता है। पहाड़िया विद्रोह के पश्चात ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसके शासन व्यवस्था को मान्यता दी और सरदार,नायक,मांझी आदि अधिकारियों को मासिक भत्ता दिया जाने लगा।
मांझी को गांव से कर वसूलने का काम दिया गया और सरदार को गांव के जन्म -मरण आंकड़ों का हिसाब रखने का तथा इस क्षेत्र में गैर -कानूनी काम पर निगरानी रखने का कार्य दिया गया। स्वतंत्रता के बाद पंचायती राजव्यवस्था के लागू होने पर इसके गांव वैधानिक पंचायत के अंग हो गए और धीरे धीरे इसके परंपरागत शासन व्यवस्था खत्म होते जा रहे है।
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