1773 का रेगुलेटिंग एक्ट
Regulating Act 1773
परिचय
इसे East India Company Act, 1772 के नाम से भी जाना जाता है। रेगुलेटिंग एक्ट, 1773 (विनियमन अधिनियम, 1773) ब्रिटिश सरकार द्वारा उठाया गया पहला कदम था जिसके अंतर्गत कंपनी के कार्यों को नियमित और नियंत्रित करने का प्रयास किया गया। इससे पहले ब्रिटिश सरकार ने 1767 में केवल कंपनी के कार्यों में हस्तक्षेप करते हुए 40 लाख की वार्षिक आय में 10% अपना हिस्सा तय किया था। इस वक्त द्वारा पहली बार कंपनी के प्रशासनिक और राजनीतिक कार्यों को मान्यता मिली और इसके द्वारा भारत में केंद्रीय प्रशासन की नींव रखी गई।
पृष्ठभूमि
प्लासी के युद्ध तथा बक्सर के युद्ध के बाद भारत में कंपनी राजनीतिक रूप से बहुत मजबूत होती गई वही आर्थिक रूप से कमजोर होती चली गई थी। 1768-69 के दौरान यह दृष्टिगत हुआ कि कंपनी फायदे के बजाय नुकसान में चली गई है। इससे पहले कंपनी प्रति वर्ष 4 लाख पाउंड ब्रिटिश सरकार को इंग्लैंड भेजती थी। 1772 आते आते कंपनी की यह हालत हो गई थी कि उसे 1 मिलियन पाउंड ब्रिटिश सरकार से उधार लेना पड़ा था। लगातार हो रहे कंपनी के नुकसान से ब्रिटिश सरकार ने कंपनी के एकाधिकार पर अंकुश लगाने तथा इस पर नियंत्रण लगाने के लिए रेगुलेटिंग एक्ट, 1773 पारित किया। कंपनी के लगातार नुकसान में जाने का मुख्य कारण निम्न था: –
🥊 1969-70 सत्र के दौरान बंगाल में आई अकाल। इस अकाल के वजह से बंगाल की लगभग एक तिहाई आबादी की मृत्यु हो गई थी।
🥊 प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध – 1767- 69 के दौरान हैदर अली और अंग्रेजों के बीच जो युद्ध हुआ था उसका कोई रिजल्ट ना निकला तथा कंपनी की इसमें अथाह पैसे की बर्बादी हुई थी।
🥊 इस दौरान कंपनी को चाय व्यापार में बहुत नुकसान लगा था। कंपनी भारत से चाय ले जाकर अमेरिका में बेचा करती थी परंतु बाद में अमेरिका में करीब 85% चाय का व्यापार डच लोगों के द्वारा तस्करी की मदद से होने लगा और ईस्ट इंडिया कंपनी की चाय की मांग बहुत कम हो गए इसका कंपनी के व्यापार पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा।
🥊 क्लाइव द्वारा बनाई गई द्वैध शासन व्यवस्था कारगर साबित नही हुई इससे भ्रष्टाचार अपने चरम पर चला गया था। कंपनी के अधिकारी तो अमीर हो रहे थे मगर कंपनी घाटे में जा रही थी।
Note:- ईस्ट इंडिया कंपनी के खराब आर्थिक स्थिति को देखकर तत्कालीन ब्रिटेन के प्रधानमंत्री नॉर्थ ने एक गोपनीय कमेटी (Secret Committee) की गठन की और इस कमेटी के सिफारिश पर रेगुलेटिंग एक्ट 1773 पारित किया गया था।
रेगुलेटिंग एक्ट के तहत निम्न प्रावधान किए गए: –
Governor General पद का सृजन
🌟 बंगाल प्रांत के गवर्नर को संपूर्ण भारत के अंग्रेजी क्षेत्रों का गवर्नर जनरल बना दिया गया और उसका कार्यकाल 5 वर्ष निश्चित कर दिया गया । मद्रास तथा मुंबई के गवर्नर बंगाल के गवर्नर के अधीन कर दिए गए। इस तरह से वारेन हेस्टिंग्स को भारत के अंग्रेजी क्षेत्रों का पहला गवर्नर जनरल बनाया गया था।
Executive Council की स्थापना
🌟 गवर्नर जनरल के शासन कार्य में सहायता देने के लिए 4 सदस्यों की एककार्यकारिणी परिषद् (Executive Council) बनाई गई और सदस्यों की कार्यकाल अवधि 4 वर्ष निश्चित की गई थी।
🌟 गवर्नर जनरल और उसकी काउंसिल को उच्चतम न्यायालय के अधीन कर दिया गया। गवर्नर जनरल और उसकी काउसिल द्वारा पारित किए गए समस्त कानून तब तक वह नहीं माने जा सकते थे जब तक उसे उच्च न्यायालय में रजिस्टर्ड न लिया गया हो।
उच्चतम न्यायालय की स्थापना
🌟 रेगुलेटिंग एक्ट के तहत 1774 में कोलकाता में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गई थी जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश तथा तीन अन्य न्यायाधीश नियुक्त किए गए थे। इस उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश एलिजा इम्पे को नियुक्त किया गया था। अन्य तीन न्यायाधीशों में चैंबर्स, लिमेंस्टर और हाइड को नियुक्त किया गया था।
निजी व्यापार और उपहार लेने में प्रतिबंध
🌟 इस अधिनियम के तहत कंपनी के अधिकारियों/कर्मचारियों को निजी व्यापार करने और भारतीय लोगों से उपहार तथा रिश्वत लेना प्रतिबंधित कर दिया।
Board Of Director में बदलाव
🌟 रेगुलेटिंग एक्ट के द्वारा बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के सदस्यों की कार्यकाल को एक वर्ष से बढ़ाकर 4 वर्ष कर दिया गया। बोर्ड ऑफ डायरेक्टर की संख्या 24 थी। इस एक्ट के तहत इसकी सदस्य संख्या में कोई बदलाव नहीं किया गया था। किंतु पहले इन सदस्यों के चुनाव में कंपनी के वे शेरहोल्डर भाग लेते थे जिसकी शेयर की मूल्य £500 या इससे ज्यादा थी। इस एक्ट के तहत यह शेयर मूल्य को बढ़ाकर £1000 कर दिया गया।
🌟 इस एक्ट के द्वारा, ब्रिटिश सरकार को बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के माध्यम से कंपनी पर नियंत्रण मजबूत हो गया। इसे राजस्व, नागरिक और सैन्य मामले की जानकारी ब्रिटिश सरकार को देना आवश्यक कर दिया गया था।
रेगुलेटिंग एक्ट की कमियां
रेगुलेटिंग एक्ट के माध्यम से कंपनी पर अंकुश लगाया गया किंतु इसमें कई सारी कमियां सामने आई :-
🔥 मद्रास और बॉम्बे को बंगाल गवर्नर जनरल के अधीन कर दिया गया था लेकिन इनके बीच शक्तियों का विभाजन और अस्पष्ट था
🔥 गवर्नर जनरल की शक्तियां बहुत ही कम हो गई थी गवर्नर जनरल को कोई भी फैसला लेने से पहले कार्यकारिणी परिषद की आज्ञा लेनी पड़ती थी और जवाबदेही जनरल गवर्नर जनरल के ऊपर थी।
🔥 इस एक्ट में उच्चतम न्यायालय और गवर्नर जनरल के बीच के संबंध और अपरिभाषित थे। उच्चतम न्यायालय और गवर्नर जनरल के बीच मतभेद शुरू हो गया दोनों एक दूसरे को अपने अधीन करना चाहते थे।
🔥 ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारियों के पास एक समस्या आ गई कि वह किसकी सुने उच्चतम न्यायालय की या गवर्नर जनरल की।
Note:- रेगुलेटिंग एक्ट की उपरोक्त कमियों को जांचने के लिए टचेत (Tuchet Committee) कमेटी बनाया गया और इस कमेटी के रिपोर्ट पर सेटेलमेंट एक्ट 1781 पारित किया गया।
रेगुलेटिंग एक्ट 1773 की उपरोक्त कमियों को दूर करने के लिए सेटलमेंट एक्ट, 1781 पारित हुआ तथा बाद में पिट्स इंडिया एक्ट, 1784 को पारित किया गया था।
Settlement Act, 1781
🐫 नए कानून को बनाने तथा लागू करते समय भारतीय कानून और समाजिक स्थिति को ध्यान में रखा जाने का प्रावधान किया गया।
🐫 उच्चतम न्यायालय और गवर्नर जनरल के बीच विवादों को सूल जाने के लिए दोनों की शक्तियों को परिभाषित किया गया।
🐫 राजस्व से जुड़े सभी मामलों में उच्चतम न्यायालय के दखल को खत्म कर दिया गया।
🐫 गवर्नर जनरल और उसकी काउंसिल को उच्चतम न्यायालय के दायरे से बाहर कर दिया गया।
🐫 कोलकाता के सभी निवासियों को उच्चतम न्यायालय के दायरे में कर दिया गया।
🐫 गवर्नर जनरल काउंसिल को प्रांतीय न्यायालय तथा काउंसिल के लिए कानून बनाने का अधिकार दिया गया।
🐫 ईस्ट इंडिया के कंपनी के सारे कर्मचारियों को उच्चतम न्यायालय के दायरे से बाहर रखा गया।
🐫 मद्रास और बॉम्बे के गवर्नर की शक्तियों को परिभाषित किया गया।