Tribes Of Jarkhand
Parhia Tribe परहिया जनजाति
यह झारखंड की एक लघु जनजाति है। झारखंड में यह जनजाति पलामू के पहाड़ों में निवास करती है। ये झाला (झोपड़ीनुमा घर) मे निवास करते है। इसकी सबसे ज्यादा जनसंख्या उत्तर प्रदेश (सोनभद्र) में पाई जाती है। पहले ये घुमक्कड़ प्रवृत्ति के थे, अभी स्थायी जीवन जीते है। इस जनजाति में परिवारों की गिनती चूल्हे से होती है जिसे “कुराला” कहा जाता है।
वर्गीकरण
ये प्रोटो ऑस्ट्रलोयड प्रजातीय समूह के अंतर्गत आते है। झारखंड में इसे आदिम जनजाति का दर्जा प्राप्त है। पहले इसमे गोत्र प्रथा थी मगर समय के साथ गोत्र प्रथा खत्म हो गई है। अभी पूरे परहिया समाज का संचालन नातेदारी व्यवस्था द्वारा होता है जिसे ये ‘पारी’ कहते है।
आर्थिक जीवन
ये जनजाति स्थान्तरित कृषि करते है जिसे “बियोड़ा” कहा जाता है। परहिया का शाब्दिक अर्थ “जंगल को जलानेवाला” होता है। स्थान्तरित कृषि के दौरान ये जंगल को जला देते थे इस वजह से इनका यह नाम पड़ा। जंगल इनके जीवन का मुख्य आधार है।
सामाजिक जीवन
इनके समाज पितृसत्तात्मक होते है। विवाह के दौरान वधुमूल्य देने की प्रथा है जिसे “डाली” कहा जाता है। नातेदारी को ये “पारी” कहते है। जन्म से जुड़ी नातेदारी को धैयानिया (कुल-कुटुंब) तथा विवाह से जुड़ी नातेदारी को सनाही (हित-कुटुंब) कहा जाता है।
धार्मिक जीवन
इनके धार्मिक प्रधान को बैगा कहा जाता है। ये भगवान शिव को अपना वंशज मानते है। इस जनजाति के प्रधान देवता धरती माता है। ये ज्वालामुखी देवी की भी पूजा करते है।
शासन व्यवस्था
हर परहिया गाँव मे जातीय पंचायत होती है जिसे “भैयारी” या “जातिगोठ” कहा जाता है। जातीय ग्राम पंचायत का मुखिया महतो कहलाता है। महतो का सहायक कहतो/खतो होता है। 8-10 गाँव मिलाकर अन्तरग्रामीण पंचायत होते है जिसे “कारा भैयारी” कहा जाता है। यह दो या अधिक गाँव के बीच का विवाद सुलझाता है।
अन्य तथ्य
1. डाल्टन ने इसे “महान जनजाति का अवशेष” कहा है।