Panchpargania Literature
Introduction Panchpargania Literature – यह झारखंड के 16 द्वितीय राजभाषाओं में से एक है। इस भाषा को मुख्य रूप से झारखंड के पंचपरगना क्षेत्र में बोली जाती है। खोरठा,कुरमाली, नागपुरी की तरह इसे भी मागधी भाषा का अपभ्रंश माना जाता है। कर्मचंद्र महतो ने पंच परगनिया भाषा को लिपिबद्ध करने के लिए “झारलिपि” की रचना की है जिसमें 42 वर्ण है।
पंचपरगनिया भाषा के प्रथम कवि सिल्ली के राजा विनोद सिंह (विनंदिया) को माना जाता है। जिसने सर्वप्रथम सदियों से चले आ रहे पंचपरगनिया झूमर गीतों का संग्रह करके “छोटानागपुर तालमंजरी” की स्थापना की। विनोद सिंह कुरमाली भाषा के भी रचनाकार है। इसके बाद गौरांग सिंह (गौरंगीया), सोबरन , बरजू राम और दीना ने पंचपरगनिया साहित्य को आगे बढ़ाया। पंचपरगनिया साहित्य में कबीरपंथी विचारधारा को समावेश कराने का योगदान सोबरन कवि को है।
पंचपरगनिया के प्रसिद्ध साहित्य
1.कर्मचंद्र अहीर (महतो) – पंचपरगनिया का वैयाकारणिक अध्ययन, पंचपरगनिया निबंध संग्रह
2. श्रीस्टीधर महतो “सुमन” – डोभा कर फुल
3. भवप्रीतानंद ओझा – वृहत झूमर रसमंजरी
4.आमुख – उपेन्द्रनाथ सिंह
Note:- उपेन्द्रनाथ सिंह ने विनंदिया के गीतों को एकत्रित करके पंचपरगनिया में ‘ छोटानागपुर तालमंजरी” की रचना की है।
5. पंचपरगनिया लोक साहित्य – सुनीता गुप्ता
6. चन्द्र मोहन महतो – गद्य एवं पद्य जड़हन, रावण वध
7. अंबिका स्वांसी – पंचपरगनिया लोकगीत
8. पंचपरगनिया वैष्णव गीतों का स्थापत्य – रामदयाल मुंडा
9. ज्योतिलाल महादानी – पंचपरगनिया व्याकरण, धरमपुर गांव, जुआ एकटा खराब लत
10. परमानंद महतो – पंचपरगनिया भाषा, पुस पीठा
पंचपरगनिया साहित्य के महत्वपूर्ण तथ्य
1. पंचपरगनिया भाषा में प्रसिद्ध पत्रिका “बिहान” के संपादक कर्मचंद्र अहीर है।
2. प्रोफेसर केसरी प्रसाद सिंह के अनुसार पंचपरगनिया भाषा नागपुरी-अवधी का अपभ्रंश है। इनके अनुसार पंचपरगनिया नागपुरी का ही एक विशिष्ट भाग है।
3. पंचपरगनिया कवि गौरांग सिंह के कविता में बंगला भाव देखने को मिलता है।
4. पंचपरगनिया भक्ति गीतों में ज्यादातर वैष्णव भक्ति गीत है जिसमे कृष्णलीला का सौंदर्य चित्रण मिलता है।
5. पंचपरगनिया भाषा भारोपीय भाषा भारोपीय भाषा-परिवार के अंतर्गत आता है।
6. गिरी और अहिरी पंचपरगनिया की उपबोली है।
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