झारखंड में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित विभुतियाँ | List Of Padamshri Awardee Of Jharkhand

झारखंड के विभूति

पदमश्री सम्मान से सम्मानित व्यक्तित्व

Padamshri Awardee Of Jharkhand

जुएल लकड़ा

ये झारखंड निर्माण आंदोलन से संबंधित अग्रणी नेताओ में से एक थे। ये उरांव समुदाय से धर्मांतरित ईसाई थे। इसका जन्म राँची जिला के मुरगु गांव में हुआ था। ये क्रिश्चियन स्टूडेंट आर्गेनाइजेशन के सदस्य थे,जिसका नाम परिवर्तित कर इसने 1915 में एक नई संस्था “छोटानागपुर उन्नति समाज” की स्थापना की जिसके ये प्रथम अध्यक्ष बने। इसने “यंग छोटानागपुर टीम” के नाम से फुटबॉल और हॉकी टीम का गठन किया।

इसे 1963 ई में पदमश्री सम्मान से सम्मानित किया गया।he is First Padamshri Awardee Of Jharkhand.पदम श्री सम्मान पाने वाले ये प्रथम झारखंडी व्यक्ति थे, इसे यह पुरस्कार सामाजिक कार्य में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए किया गया। ये पदम सम्मान प्राप्त करने वाले प्रथम झारखंडी व्यक्ति भी बने।

बहादुर सिंह चौहान

ये झारखण्ड क्षेत्र से भारत के प्रसिध्द शॉट पुट खिलाड़ी थे जो TELCO में कार्यरत थे । इसे अर्जुन पुरस्कार और 1983 में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। ये ओलंपिक में खेल चुके है। भारतीय एथलेटिक्स टीम के कोच के रूप में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए द्रोणाचार्य अवार्ड भी इन्हे मिला है। इन्होंने एशियन गेम में 3 गोल्ड, 2 सिल्वर और 3 ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया है।

भागवत मुर्मू

इन्हे 1985 में समाज सेवा के क्षेत्र में पदमश्री सम्मान दिया गया। संताल समुदाय से पहले व्यक्ति थे जिसे पदम श्री सम्मान मिला। ये पहले शुद्ध आदिवासी थे जिसे पदम श्री पुरस्कार मिला। ये 1957 से 1962 तक झाझा (बिहार) विधान सभा क्षेत्र से विधायक रहे। 1989 से 1991 तक बिहार विधान परिषद के सदस्य नामांकित किए गए। इन्होने गरीब और पिछड़ों के लिए उत्कृष्ट कार्य किए जिसके लिए इन्हे पदम श्री सम्मान दिया गया। ये संताली भाषा के प्रसिद्ध लेखक भी थे इनके द्वारा लिखे गए कई किताब विभिन्न विश्वविद्यालयों में सिलेबस का हिस्सा है। भागवत मुर्मू का उपनाम “ठाकुर” है।

चित्तू टुडू

इन्हे1992 मे कला के क्षेत्र में पदम श्री पुरस्कार मिला। इनका जन्म बिहार के बौंसी में हुआ। लोक साहित्य और संस्कृति संताली लोकगीत और कविताओं के रचना के साथ साथ अनेक साहित्यिक कृतियो की रचना की। संताली लोक गीतों का संग्रह “जवाय धुति” इसकी महत्वपूर्ण रचना है। रास बिहारी लाल के प्रसिद्ध नाटक “नए नए रास्ते” का संताली में अनुवाद किया। संताली विवाह लोकगीत संग्रह “सोने की सिकड़ी और रूपा की नथिया” की रचना से इन्होने संताल संस्कृति से लोगो को अवगत कराया। संताली भाषा में जवाहरलाल नेहरू पर इन्होने जीवनी लिखा जो काफी प्रसिद्ध हुई।

ये एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी भी रहे। ये सफाहोड आंदोलन के प्रणेता लाल हेंब्रम के साथ जुड़े और संताल समुदाय में राजनीतिक चेतना और सांस्कृतिक सुधार का प्रचार किया। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ये संताल परगना जिला कांग्रेस कमेटी से जुड़े और इन्होने संताली भाषा में स्थानीय संताल आदिवासियों और राष्ट्रवादी नेताओ के बीच जनसंपर्क का काम किया, इन्होने इस क्षेत्र में संताली भाषा से संताल समुदाय में राष्ट्रवाद का प्रसार किया। आजादी के बाद इन्हे सूचना और जनसंपर्क विभाग का अधिकारी बनाया गया।

सुधेंदु नारायण शाहदेव

ये सरायकेला घराने के प्रसिद्ध नर्तक है। जिन्हे 1992 में कला के क्षेत्र में पदम श्री पुरस्कार प्रदान किया गया। 1938 में इन्होंने यूरोप में छऊ नृत्य का प्रदर्शन किया। छऊ नृत्य के क्षेत्र में पदम सम्मान प्राप्त करने वाले ये प्रथम व्यक्ति है।

परशूराम मिश्रा

ये भारत के प्रसिद्ध मृदा संरक्षणविद और पर्यावरणविद थे। ये झारखंड के एकमात्र व्यक्ति जिसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पदमश्री सम्मान (2000) में मिला है। ये केंद्रीय मृदा और जल संरक्षण अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान (Central Soil & Water Conversation Research & Training Institute), चंडीगढ़ के प्रमुख थे।

चंडीगढ़ के समीप अरावली पहाड़ के तलहटी में स्थित सुखना झील की गहराई और आकार में कमी आने लगी थी। यह परिवर्तन वहां चलने वाली मौसमी धारा “कांसल कोए” द्वारा उत्पन्न अवसादन के कारण हो रहा था। उन्होंने ग्रामीणों को प्रशिक्षित किया,एक नई प्रणाली “चक्रीय विकास प्रणाली” को उस क्षेत्र में लागू करवाया, जल संचयन के लिए दो चेक डैम बनवाए। इनके प्रयास के वजह से इस सूखे क्षेत्र में सिंचाई की व्यवस्था हो गई।

मृदा अपरदन में काफी कमी आई। इस क्षेत्र में वनस्पति का प्रतिशत बड़ा। सुखना झील को नया जीवन मिला। इसके इस प्रयास को न सिर्फ भारत बल्कि विश्व ने सराहा तथा अपनाया। इसके इस कार्य के लिए इन्हें पदम श्री सम्मान से सम्मानित किया गया।

Note:- झारखंड निर्माण के पश्चात पहला पदम पुरस्कार परशुराम मिश्रा को मिला।

केदारनाथ साहू

यह झारखंड के प्रसिद्ध छऊ नर्तक और प्रशिक्षक थे। इन्हे छऊ नृत्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए वर्ष 2005 में पदम श्री सम्मान से सम्मानित किया गया। इनके शिष्य दो गोपाल प्रसाद दुबे को 2012 में और शशधर आचार्य को 2020 छऊ नृत्य कला के क्षेत्र में पदमश्री सम्मान मिल चुका है। ये राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र, सरायकेला के निदेशक थे। 1981 में इन्हे संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया।

श्याम चरण पति

इन्हें 2006 में छऊ नृत्यकला के क्षेत्र में पदम श्री सम्मान मिला। इसकी बेटी सुष्मिता पति भी प्रसिद्ध छऊ नृत्यांगना है।

मंगला प्रसाद मोहंती

इन्हे 2008 में छऊ नृत्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए कला क्षेत्र में पदम श्री पुरस्कार प्रदान किया गया। ये सरायकेला खरसावां के निवासी है।

महेंद्र सिंह धौनी

इसे खेल के क्षेत्र में 2009 में पदम श्री और 2018 में पदम भूषण पुरस्कार मिला है।

रामदयाल मुंडा

ये मुंडारी भाषा साहित्य के विद्वान और पाइका नृत्य के जानकार थे। इन्हे कला के क्षेत्र में 2010 में पदम श्री सम्मान प्रदान किया गया।

मकरध्वज दारोघा

ये प्रसिद्ध छउ नर्तक थे। जिन्हें 2011 में पदम श्री सम्मान मिला।

गोपाल प्रसाद दुबे

केदारनाथ साहू के शिष्य गोपाल प्रसाद दुबे को छ्ऊ नृत्यकला के क्षेत्र में 2012 में पदम श्री सम्मान प्रदान किया गया।

प्रेमलता अग्रवाल

She is First Female Padamshri Awardee Of Jharkhand. ये एक प्रसिद्ध पर्वतारोही है जो सातों महादेश के सर्वोच्च शिखर में पहुंची। ऐवरेस्ट पर चढ़ने वाली प्रथम झारखंडी यही है। ये भारत की दूसरी सर्वाधिक उम्र की महिला है जिसने ऐवरेस्ट पर चढ़ाई की (2011 में ,48 साल की उम्र में)। इनका ही रिकॉर्ड जम्मू कश्मीर की रहने वाली संगीता सिंधी बहल (53 वर्ष में) ने 2019 में तोड़ा। ये टाटा स्टील में कार्यरत है और यहीं इसने बछेंद्री पाल से प्रशिक्षण ली थी। इसे 2013 में पदम श्री अवार्ड दिया गया तथा 2017 में तेनजिंग नोर्वे नेशनल एडवेंचर अवार्ड से सम्मानित किया गया।

अशोक भगत

येे झारखंड क्षेत्र के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता है। इनका जन्म यूपी के आजमगढ़ में हुआ मगर इसका मुख्य कार्य क्षेत्र गुमला जिला का विशुनपुर प्रखंड है। इन्होन “विकास भारती” नाम से एक संस्था बनाया है। इस संस्था के मदद से अशोक भगत ने पिछड़े और गरीब लोगो के उत्थान के लिए अभूतपूर्व कार्य किए जिससे इन्हें 2015 में समाज सेवा के क्षेत्र में पदम श्री सम्मान दिया गया। ये बाबाजी उपनाम से जाने जाते है।

दीपिका कुमारी

ये झारखंड से विश्व की प्रथम वरीयता प्राप्त धनुर्धर है जिसे 2012 में अर्जुन पुरस्कार तथा 2016 में पदम श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसका जन्म रांची जिला में हुआ था। दिल्ली में आयोजित कॉमनवेल्थ खेल 2010 में इन्होंने व्यक्तिगत रिकर्व प्रतियोगिता मैं स्वर्ण पदक हासिल किया। वहीं इसी प्रतियोगिता में महीला टीम रिकर्व प्रतियोगिता में मुंबईला देवी तथा डोला बनर्जी के साथ मिलकर स्वर्ण पदक जीती।

सिमोन उरांव मिंज

ये झारखण्ड के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणविद है। ये “जल पुरुष” और “सिमोन बाबा” के रूप में विख्यात है। इन्होने राँची के बेड़ो ब्लॉक में जल संचयन और पर्यावरण के क्षेत्र में अतुलनीय काम किया। बेड़ो ब्लॉक सूखाग्रस्त क्षेत्र था, यहां कई जलाशयों का इन्होने ग्रामीणों के साथ मिलकर निर्माण किया।

वृहत वृक्षारोपण किया, कै तालाब कुआं खुदवाया। इस सूखे ब्लॉक को सुखा से मुक्त करवाया। समाज के प्रति इस महत्वपूर्ण योगदान के लिए इन्हे समाज सेवा के क्षेत्र में 2016 में पदम श्री सम्मान से सम्मानित किया गया। 1964 में ये उरांव समाज में पड़हा राजा चुने गए थे।

Note :- निर्देशक बीजू टोप्पो ने सिमोन उरांव के जीवन पर आधारित एक फिल्म “झरिया ” बनाया है !

बलबीर दत्त

ये झारखंड के प्रसिद्ध पत्रकार और लेखक है। इन्हें पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए 2017 में पदम श्री सम्मान से सम्मानित किया गया। इनका जन्म पाकिस्तान के रावलपिंडी में हुआ था,विभाजन के बाद पिता के साथ रांची में आकर बसे। ये हिंदी दैनिक पत्रिका देशप्राण, रांची एक्सप्रैस (दैनिक), जय मातृभूमि (साप्ताहिक) के संपादक है।

बलबीर दत्त ने कई प्रसिद्ध पुस्तक लिखे जिनमे से “कहानी झारखंड आंदोलन की, जयपाल सिंह एक रोमांचक अनकही कहानी,पाकिस्तान सफरनामा, इमरजेंसी का कहर और सेंसर का जहर” प्रमुख रचना है।

मुकुंद नायक

सिमडेगा के बोकबा गांव में जन्मे मुकुंद नायक झारखंड के एक प्रसिद्ध कलाकार है जिन्हे “प्रिंस ऑफ छोटानागपुर स्टेज” कहा जाता है। ये प्रसिद्ध गीतकार, नर्तक और गायक है। मुकुंद नायक नागपुरी लोक नृत्य “झूमर” के प्रसिद्ध नर्तक है। 1988 में इन्होंने “हांगकांग डांस फेस्टिवल” में झूमर नृत्य का प्रदर्शन किया। 1985 में इन्होने “कुंजवन” नामक संस्था बनाया और इसके नागपुरी कला संस्कृति को बहुत ऊंचाई तक पहुंचाया।

इन्होंने प्रसिद्ध नागपुरी सिनेमा “बाहा” में गीत लिखे है तथा नागपुरी सिनेमा “फुलमुनिया” में गीत गाए है। नागपुरी कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए इन्हे 2017 में पदम श्री सम्मान प्रदान किया गया। 2019 में इन्हे संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है। इन्हे झारखंड रत्न पुरस्कार भी मिल चुका है।

जमुना टुडू

ये झारखंड की प्रसिद्ध पर्यावरण संरक्षण कार्यकर्ता है। इनका जन्म उड़ीसा के मयूरभंज जिला में हुआ था। इनका विवाह झारखण्ड के चाकुलिया स्थित मुतुखम गांव में हुआ था। इस गांव के आस पास के क्षेत्र में गैर-कानूनी तरीके से वृक्षों की कटाई जंगल माफिया और नक्सलियों द्वारा होती थी। इन्होन पांच महिलाओं के ग्रुप के साथ इस जंगल माफियाओं और नक्सलियों के खिलाफ मोर्चा खोला।

बाद में क्षेत्र की और महिलाओं को एकत्रित करके “वन सुरक्षा समिति” की स्थापना की और इस क्षेत्र में जंगल कटाई को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनकी वीरता को देखकर इन्हे “लेडी टारजन” नाम दिया गया। 2019 में इन्हे पदम श्री सम्मान से सम्मानित किया गया। 2017 में इन्हे “Women Transforming India Award” दिया गया। 2014 में ये Godfrey Phillips National Bravery Awards से सम्मानित हो चुकी है।

Note:- इनके इस काम में और एक बहादुर महिला चामी मुर्मू का बहुत योगदान है। इन्हे 2019 में नारी शक्ति पुरस्कार प्रदान किया गया।

दिगंबर हांसदा

इनका जन्म पूर्वी सिंहभूम के घाटशिला के दोआपानी गांव में हुआ था। इन्होंने भारतीय संविधान का ओलचिकी (संताली) में अनुवाद किया। संताली साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान देने के लिए इन्हे 2018 में पदमश्री सम्मान दिया गया। ये JPSC और UPSC में संताली साहित्य के सिलेबस निर्माण समिति के सदस्य थे। संताली भाषा के ज्ञानपीठ पुरस्कार चयन समिति के सदस्य भी रहे। वे लालबहादुर शास्त्री मेमोरियल कॉलेज के प्रिंसिपल रहे। वे संताली साहित्य अकादमी के संस्थापक सदस्य भी रहे। AISFA (All India Santali Film Academy) द्वारा इन्हे लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार दिया गया।

डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी

ये झारखंड के प्रसिद्ध समाजसेवी डॉक्टर है जो कभी RIMS, Ranchi के पैथोलॉजी लैब के हेड थे। जनसाधारण में ये गरीबों के डॉक्टर के रूप में जाने जाते है। पिछले पांच दशक से ये गरीबों का इलाज मात्र ₹5 की फीस से कर रहे है। इनके इस विशिष्ट योगदान के लिए 2019 में स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में इन्हे पदम श्री सम्मान से सम्मानित किया गया।

बुलू इमाम

झारखंड के हजारीबाग में जन्मे बुलू इमाम एक प्रसिद्ध पर्यावरणविद है जिन्होंने जनजातीय परंपरा और इनके सांस्कृतिक विरासत के सुरक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान दिया ।इनके इस योगदान के लिए 2019 में सांस्कृतिक कार्य के क्षेत्र में पदम श्री सम्मान प्रदान किया गया।

ये स्वतंत्रता सेनानी सैय्यद हसन इमाम के पोते है, जिन्होंने कांग्रेस के बॉम्बे अधिवेशन,1918 की अध्यक्षता की थी। 2011 में इन्हे “Gandhi International Peace Prize” से सम्मानित किया गया। झारखंडी जनजातीय कला के विकास के क्षेत्र में इन्हे 2002 में विजय रत्न पुरस्कार प्रदान किया ज्ञान। पर्यावरण सुरक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए 2002 में इन्हे राष्ट्रीय गौरव सम्मान दिया गया। 2006 में इन्हे राजकीय सांस्कृतिक सम्मान दिया गया।

1991 में इन्होने इसको शैलचित्र की खोज की और बाद में इन्होने 1993 उत्तरी कर्णपुरा घाटी में कई और शैलचित्र की खोज की। इन्होंने 1995 में हजारीबाग में “Sankriti Musium & Art Gallery” और 1993 में TWAC ( Tribal Women Art Cooperative) की स्थापना की। TWAC के जरिए झारखंड के सोहराय और कोहबर चित्रकला को दुनिया के 50 से अधिक देशों में प्रदर्शित किया गया। कोहबर और सोहराय को GI Tag दिलाने में इनका महत्वपूर्ण योगदान है। इन्होंने कई लेखों और पुस्तको की रचना किए :-

a) Antiquarian Remains Of Jharkhand

b) The Nomadic Birhors Of Hazaribag

c) The Manjhi Santal Of Hazaribag

d) Hazaribag School Of Painting & Decorative Arts

e) Oraon Songs & Stories By Filomina Tirkey

f) Bridal Cave

बुलू इमाम ने कई फिल्म और डॉक्यूमेंट्री की भी रचना की है जिसका उल्लेख निम्न है:-

a) The One-Eared Elephant From Hazaribag

b) Search For The First Dog

c) Tribal Women Artist – इस फिल्म को 48th National Film Award ,2001 मिला। इस फिल्म को Best Cultural Film चुना गया था।

शशधर आचार्य

केदारनाथ साहू के शिष्य शशधर आचार्य को छ्ऊ नृत्यकला के क्षेत्र में 2020 में पदम श्री सम्मान प्रदान किया गया। हुई। ये सरायकेला खरसावांं के निवासी है।

मधु मंसूरी हंसमुख

इनका जन्म राँची जिला के सिमिलिया गांव में हुआ था। ये झारखण्ड के प्रसिद्ध नागपुरी लेखक, नागपुरी गायक और नागपुरी गीतकार है। इन्होन कई नागपुरी गीत लिखे मगर “नागपुरी कर कोरा” इसके सबसे प्रसिद्ध रचना है। 2011 में इन्हे झारखंड रत्न और 2020 में इन्हे पदम श्री सम्मान कला के क्षेत्र में मिला । झारखण्ड आंदोलन के लिए इन्होंने कई नागपुरी गीत लिखे।

छूटनी देवी

छूटनी महतो को सामाजिक कार्य के क्षेत्र में वर्ष 2021 में पदम श्री सम्मान दिया गया। इन्होंने झारखंड में डायन प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई और कई औरत की जिंदगी बचाई। ये सरायकेला खरसवां जिला के गम्हारिया के बिरबांस गांव की रहने वाली है।

गिरधारी राम गौंझु

ये नागपुरी और हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। इन्हें 2022 में मरणोपरांत पदम श्री सम्मान प्रदान किया गया। इनके द्वारा कई प्रसिद्ध पुस्तक लिखे गए है जो निम्न है:-

a) झारखंड के सांस्कृतिक विरासत

b) नागपुरी के प्राचीन कवि

c) रुगड़ा-खुखरी

d) झारखंड के वाद्य-यंत्र

e) सदानी नागपुरी सगरी व्याकरण

f) नागपुरी शब्दकोश

g) ऋतु के रंग मादर के संग

h) अमृत पुत्र: मरांग गोमके जयपाल सिंह

i) महाराजा मदरा मुंडा

Note:- अब तक 7 झारखंडी को छऊ नृत्यकला के क्षेत्र में पदमश्री पुरस्कार मिल चुका है। सुधेंदु नारायण सिंह (1992), केदारनाथ साहू (2005), श्यामचरण पति (2006), मंगला प्रसाद मोहंती (2008) पति, मकरध्वज दारोघा (2011), गोपाल प्रसाद दुबे (2012) और शशधर आचार्य (2020) को।

Padamshri Awardee Of Jharkhand (अशोक भगत & बलबीर दत्त)

https://youtu.be/dmDxeHPAeVs

Padamshri Awardee Of Jharkhand (बुलु इमाम)

https://youtu.be/491QTZGm6_Y

Padamshri Awardee Of Jharkhand (सिमोन उराँव & मुकुन्द नायक)

https://youtu.be/yxXio7UtcM0

Padamshri Awardee Of Jharkhand (दिगंबर हांसदा)

https://youtu.be/EIaAWXXSYM8

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