MAINS QUESTION NO 39 – Explain Forest Issues With Tribal Groups in Respect Of Jharkhand. Examine The Status Of Implementaion of FRA in Jharkhand.
मुख्य प्रश्न संख्या 39 – झारखंड के संबंध में जनजातीय समूहों के साथ वन संबंधित मुद्दों की व्याख्या करें। झारखंड में “वन अधिकार अधिनियम” के कार्यान्वयन की स्थिति की जांच करें।
Introduction – Jharkhand a land of forest comprising 29.76% of geographical area as forest. There are 33 Adivasi communities inhibit here and which is 26.2% of population of Jharkhand. Pre-British Rule Period The tribals of Jharkhand lived independently in the forest and used the things obtained from it. He had very good relations with the local kings. Some scared places were there which no one allowed to use even a single leaf. Eg : Khuntkatti, Bhuinhari, Kodkar & Pradhani system (SP).
During the British rule, britishers started exploiting tribal lands by imposing taxes and restrictions through the Permanent Settlement System, 1793. In 1855 Lord Dalhausi declared the timber of forest as state property. By the first Forest Act, 1865, any land covered with trees and bushes started being declared as forest land. Evolution of Forest department in 1866 arguin that Adivasis are not capable enough to conserve forest. Under the Indian Forest Act 1878, forests have been classified into three types: (i) Reserved forests (ii) Protected forests (iii) Village forests from which the tribals were deprived of their rights to hunt and collect forest produce.
After independance many Acts & policies made to regulate the forest in the name of conservation of forest & wildlife e.g National Forest Policy 1952, National Agriculture Commission, Wild Life Protection Act 1972, Forest Conservation Act 1980 National Forest Policy, 1988, Forest Reserve Act 2006.Each & Every regulation hampered the natural rights of Adivasis with forest. To again regenerate forest right to the tribal groups FRA, 2006 enacted.
परिचय – झारखण्ड एक वन बाहुल्य भूमि है जिसमें भौगोलिक क्षेत्र का 29.76% भाग में वन है। यहां 33 आदिवासी समुदाय निवास करते हैं जो झारखंड की आबादी का 26.2% है। वे इन जंगलों से न केवल आजीविका प्राप्त करते हैं बल्कि इसे अपनी संस्कृति का हिस्सा भी मानते हैं।
ब्रिटिश शासन के पूर्व झारखंड के आदिवासी जंगलों में स्वतंत्र रूप से रहते थे और उनसे प्राप्त वस्तुओं का उपयोग करते थे। स्थानीय राजाओं से उनके अच्छे संबंध थे। कुछ स्थान तो ऐसे थे जिनका कोई पत्ता भी इस्तेमाल कर नही सकता था जैसे: खुटकट्टी, भुइंहारी, कोडकर और प्रधानी जमीन (संताल परगना)। ब्रिटिश शासन के दौरान 1793 में स्थायी बंदोबस्त प्रणाली द्वारा कर और प्रतिबंध लगाकर आदिवासी और उसके भूमि का शोषण शुरू कर दिया। 1855 में लॉर्ड डलहौसी ने जंगल की लकड़ी को राज्य संपत्ति घोषित कर दिया, जिससे समस्या और गहरी हो गई। प्रथम वन कानून, 1865 के द्वारा पेड़ों और झाड़ियों से ढकी किसी भी भूमि को वन भूमि घोषित किया जाने लगा। 1866 में वन विभाग ने तर्क दिया कि आदिवासी जंगल बचाने में सक्षम नहीं हैं। भारतीय वन कानून 1878 के तहत वनों को तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है: (i) आरक्षित वन (ii) संरक्षित वन (iii) ग्राम वन, जिससे आदिवासियों के शिकार और वन्य उत्पाद संग्रहण के अधिकार सीमित कर दिए गए।
स्वतंत्रता के बाद वन और वन्यजीवों के संरक्षण के नाम पर वनों को विनियमित करने के लिए कई अधिनियम और नीतियां बनाई गईं, जैसे राष्ट्रीय वन नीति 1952, राष्ट्रीय कृषि आयोग, वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972, वन संरक्षण अधिनियम 1980, राष्ट्रीय वन नीति 1988, वन रिजर्व अधिनियम 2006। प्रत्येक नीति ने आदिवासियों के जंगल के प्राकृतिक अधिकारों को बाधित किया। जनजातीय समूहों को फिर से वन अधिकार दिलाने के लिए वन अधिकार अधिनियम, 2006 अधिनियमित किया गया।
Forest Issues With Tribal Groups
जनजातीय समूहों के साथ वन संबंधित मुद्दे
Dependency on forest for hunting and gathering – A large percentage of the tribal population in Jharkhand is completely dependent on forests. The forestry sector in Jharkhand contributes 4 to 7% of employment, mainly to tribal groups. Even today also Birhor, Sabar, Korba and some other small tribal groups are completly dependent on Jungle for their livelihood. In National Forest Policy 1988 it is called as intimate relationship.
शिकार और संग्रहण के लिए जंगल पर निर्भरता – झारखंड में आदिवासियों की आबादी का एक बड़ा प्रतिशत पूरी तरह से जंगल पर निर्भर है। झारखंड में वानिकी क्षेत्र रोजगार में 4 से 7% का योगदान देता है, जिसमे मुख्य रूप से जनजातीय समूह है। आज भी बिरहोर, सबर, कोरबा और कुछ अन्य छोटे आदिवासी समूह अपनी आजीविका के लिए पूर्णतया जंगल पर निर्भर हैं। राष्ट्रीय वन नीति, 1988 में इसे अंतरंग संबंध कहा गया है।
Identity, Culture and Existence – 33 Tribal communities celebrate many nature festivals like forest based festivals like Sarhul, Karma etc. In which the tribals worship and protect trees. In this way the tribals are culturally connected to the forest. Their gotras are related to animals, birds, trees, mountains etc. which they associate with their existence and identity. Hunting festivals are a part of the culture of tribal groups, in which they go into the forest and collect food. Jani Shikar and Sendra are celebrated in Oraon tribe, Donger, Shikari Utsav etc. are celebrated in Santhal. In this way, the forest has an interdependent relationship with the tribals which cannot be divided.
पहचान, संस्कृति और अस्तित्व – 33 जनजातीय समुदाय जंगल पर आधारित त्यौहार जैसे सरहुल, करमा आदि कई प्रकृति के त्योहार मनाते हैं। जिसमें आदिवासी पेड़ों की पूजा करते हैं और उनकी रक्षा करते हैं। इस तरह सांस्कृतिक रूप से आदिवासी जंगल से जुड़े हुए है। उनके गोत्र पशु, पक्षी, पेड़, पहाड़ आदि से संबंधित हैं जिसे वे अपने अस्तित्व और पहचान से जोड़ते है। शिकार उत्सव आदिवासी समूहों की संस्कृति का एक हिस्सा है, जिसमें वे जंगल में जाते हैं और भोजन इकट्ठा करते हैं। उराँव जनजाति में जनी शिकार और सेंदरा, संथाल में डोंगेर, शिकारी उत्सव आदि मनाए जाते हैं। इस तरह से जंगल का आदिवासियों से अन्योन्याश्रय संबंध है जिसे विभाजित नही किया जा सकता।
Basis of life –A large population of tribal groups in Jharkhand depend on forests for their livelihood. They obtain major and minor forest produce such as Timber, Mahua, Lac, Gum, Sarai oil, fire wood, Honey etc. They use jungle as pasture land for their cattle. Their total economy are cantered on jungles.
जीवन का आधार – झारखंड में जनजातीय समूह की एक बड़ी आबादी अपने जीवन यापन के लिए जंगल पर निर्भर हैं। वे इमारती लकड़ी, महुआ, लाख, गोंद, सरई तेल, जलाऊ लकड़ी, शहद आदि जैसे प्रमुख और लघु वन्य उत्पाद प्राप्त करते हैं। वे जंगल का उपयोग अपने मवेशियों के लिए चारागाह के रूप में करते हैं। उनकी पूरी अर्थव्यवस्था जंगलों पर टिकी हुई है।
Social Security – .A large population of tribal groups of Jharkhand depend on forests for food, clothing and shelter, all three dimensions of social security. They bring wood from the forest for their house. They bring wood from the forest for their house. They get fibers from the forest. They depend on forest produce and hunting for food. This means that the entire culture, identity and livelihood of tribal groups is dependent on forests and without which their life cannot be imagined. Due to modern development, they are being deprived of their original homeland and are forced to migrate to cities due to losing their original identity, language, culture etc. Therefore, it is necessary to have strict laws to protect their social structure.
सामाजिक सुरक्षा – झारखंड के जनजातीय समूह की एक बड़ी आबादी सामाजिक सुरक्षा के तीनों आयाम रोटी, कपड़ा और मकान के लिए जंगल पर निर्भर हैं। वे अपने घर के लिए जंगल से लकड़ी लाते हैं। उन्हें जंगल से रेशे मिलते हैं। वे भोजन के लिए वन उपज और शिकार पर निर्भर रहते है। इसका अर्थ यह निकलता है कि आदिवासी समूहों की पूरी संस्कृति, पहचान और आजीविका जंगल पर निर्भर है और जिसके बिना उनके जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकत। आधुनिक विकास के कारण वे अपनी मूल मातृभूमि से वंचित होते जा रहे हैं और अपनी मूल पहचान, भाषा, संस्कृति आदि खोने के कारण शहरों की ओर पलायन करने के लिए मजबूर हो रहे है। इसलिए, इनकी सामाजिक संरचना को बचाने के लिए कठोर कानून का होना आवश्यक है।
Forest Rights Act, 2006
वन अधिकार अधिनियम, 2006
Introduction – The Forest Rights Act, 2006 was enacted in 2007 by the Ministry of Tribal Affairs, Government of India. It is also known as ‘Scheduled Tribes and Other Tribal Forest Dwellers Act, 2006’. Most of the tribal people live in the forest and are landless and deprived. Their deprived status was recognized by the framework of the Indian Constitution, giving them special protection by recognizing them as ‘Scheduled Tribes’ through the Constitution (Scheduled Tribes) Order, 1950. The Ministry of Environment and Forests was not in favor of the Forest Rights Bill as it claimed that it would be detrimental to the condition of India’s forests and estimated that the bill would deplete up to 16% of the country’s forests. Environmental conservationists and forestry administrators had opposed the Act, claiming that it would destroy the forest area and the wildlife living in it. But in Jharkhand it has been found that the forest area has increased in the period after the implementation of this Act.
परिचय – वन अधिकार अधिनियम, 2006 को भारत सरकार के जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा 2007 लागु किया। इसे ‘अनुसूचित जनजाति और अन्य जनजातीय वन निवासी अधिनियम, 2006’ के रूप में भी जाना जाता है। अधिकांश आदिवासी लोग जंगल में रहते हैं और वे भूमिहीन और वंचित हैं। उनकी वंचित स्थिति की पहचान भारतीय संविधान की रूपरेखा द्वारा की गई थी, उन्हें संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश, 1950 के माध्यम से उन्हें ‘अनुसूचित जनजाति’ के रूप में मान्यता देकर विशेष सुरक्षा दी गई। पर्यावरण और वन मंत्रालय वन अधिकार बिल के पक्ष में नहीं था क्योंकि उसका दावा था कि यह भारत के वनों की स्थिति के लिए हानिकारक होगा और अनुमान लगाकर कहा कि यह बिल देश के 16% तक जंगल को ख़त्म कर देगा। पर्यावरण संरक्षणवादीयों और वानिकी प्रशासको ने यह दावा करते हुए इस अधिनियम का विरोध किया था कि यह अधिनियम वन क्षेत्र और उसमें रहने वाले वन्यजीवों को नष्ट कर देगा। लेकिन झारखंड में यह पाया गया है कि इस अधिनियम के कार्यान्वयन के बाद की अवधि में वन क्षेत्र में वृद्धि हुई है।
Implementation Status Of Forest Right Act (FRA, 2006) In Jharkhand
झारखंड में वन अधिकार अधिनियम (एफआरए, 2006) के कार्यान्वयन की स्थिति
झारखंड में अधिनियम के क्रियान्वयन की स्थिति संतोषजनक नहीं है। झारखंड राज्य में पंचायत चुनाव समय पर न होने के आभाव में इसका कार्यान्वयन जिला कलेक्टरों द्वारा नियंत्रित किया गया था। पड़ोसी राज्य ओडिशा और छत्तीसगढ़ की तुलना मे इस अधिनियम का झारखंड में कार्यान्वयन की स्थिति बहुत धीमी है। झारखंड राज्य भारत में कुल आदिवासी आबादी के मामले में छठे स्थान पर है और इसका क्षेत्रफल 23,721.14 वर्ग किमी है। राज्य का 29.76% भौगोलिक क्षेत्र वन क्षेत्र के अंतर्गत है। वन विभाग, झारखंड सरकार के आंकड़ों (अगस्त 2018 तक) के अनुसार यह पाया गया है कि कुल वन दावों में से लगभग 76% दावों को मंजूरी दे दी गई है और 3% दावों को खारिज कर दिया गया है। लगभग 21% दावे उप-विभाग और जिला स्तर पर लंबित हैं। झारखंड राज्य के आठ वन क्षेत्रों में कुल 56135 दावे स्वीकृत किये गये। वन क्षेत्र में, रांची वन क्षेत्र ने सबसे अधिक संख्या में यानी 14673 वन दावों को मंजूरी दी, इसके बाद सिंहभूम वन और जमशेदपुर वन क्षेत्र ने मंजूरी दी। सबसे अधिक वन दावे दुमका वन क्षेत्र को प्राप्त हुए। रांची वन क्षेत्र का सिमडेगा डिवीजन, सिंहभूम वन क्षेत्र का पोराहाट और सरायकेला, जमशेदपुर वन क्षेत्र, बोकारो वन क्षेत्र के पूर्व गिरिडीह डिवीजन, पलामू वन क्षेत्र का मेदिनीनगर डिवीजन वन दावों के मंजूरी के संदर्भ में अच्छे प्रदर्शन के कुछ उदाहरण हैं। सिंहभूम वन क्षेत्र और जमशेदपुर वन क्षेत्र ऐसे क्षेत्र है जहां सभी पांच (सरायकेला, सारंडा, कोल्हान, पोराहाट, चाईबासा) डिवीजन को दावों की 100% स्वीकृति मिली है।
The status of implementation of the Act in Jharkhand is not satisfactory. In the absence of Panchayat elections being held on time in the state of Jharkhand, its implementation was handled by the district collectors. The implementation of this Act in Jharkhand is very slow compared to the neighboring states of Odisha and Chhattisgarh. Jharkhand state ranked 6th in terms of total tribal population in India and has 23,721.14 sq. km of forest cover 29.76% of the state’s geographical area is under forest cover. As per the department of forest, the government of Jharkhand data (up to August 2018) it has been found that about 76% of the total claims have been approved and 3% of claims has been rejected. About 21% of claims have been pending at the sub-divisional and district level. In Jharkhand states, a total of 56135 claims have been approved (up to August 2018) in eight forest region. Among the forest region, the Ranchi region approved the highest number of forest claims i.e. 14673 followed by RCCF, Singbhum region and Jamshedpur region. Dumka forest area received the maximum forest claims. Simdega Division of Ranchi Forest Region, Porahat and Seraikela of Singhbhum Region Giridih Division of Bokaro Forest Region, Medininagar Division of Palamu Forest Region, there are some examples of good performance in terms of clearance of forest claims. Singhbhum forest range and Jamshedpur forest range are the areas where all the five (Seraikela, Saranda, Kolhan, Porahat, Chaibasa) divisions have got 100% approval of claims.
Post FRA Implementation Effect On Jharkhand
वन अधिकार अधिनियम कार्यान्वयन के बाद झारखंड पर प्रभाव
In 2005 Forest Cover in Jharkhand was 28.34% which is became 29.76% (As per 2021 report). There is a positive increasement of 01.42% between 2005 to 2021. In 19 Districts of Jharkhand recorded positive increasement & only in 5 districts recorded minute negetive increasement (Bokaro, Chatra, Pakur Ramgarh & Hazaribag). Districtwise change between 2005 to 2021 is shown in the following table:-
2005 में झारखंड में वन आवरण 28.34% था जो अब 29.76% हो गया है (2021 की रिपोर्ट के अनुसार)। 2005 से 2021 के बीच 01.42% की सकारात्मक वृद्धि हुई है। झारखंड के 19 जिलों में सकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई और केवल 5 जिलों में मामूली नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई ((बोकारो, चतरा, पाकुड़, रामगढ़ और हज़ारीबाग)। 2005 से 2021 के बीच जिलेवार परिवर्तन निम्नलिखित तालिका में दिखाया गया है:-
Rights Under the Forest Rights Act:
Title rights – It gives FDST (Forest Dwelling Scheduled Tribes and OTFD (Other Traditional Forest Dwellers) the right to ownership to land farmed by them subject to a maximum of 4 hectares. Ownership is only for land that is actually being cultivated by the concerned family and no new lands will be granted. The Jharkhand governmen started a special drive, titled Abua Bir Dishom Abhiyan, to give land title certificates to individuals and communities under the Forests Rights Act. Apart from this, this Act provides the right to convert into ownership the leases/grants issued by any local authorities or the State Government on forest land.
स्वामित्व अधिकार – यह एफडीएसटी और ओटीएफडी को उसके द्वारा खेती की गई भूमि पर अधिकतम 4 हेक्टेयर तक स्वामित्व का अधिकार देता है। स्वामित्व केवल उस भूमि के लिए है जिस पर वास्तव में संबंधित परिवार द्वारा खेती की जा रही है और कोई नई भूमि नहीं दी जाएगी। झारखंड सरकार ने वन अधिकार अधिनियम के तहत व्यक्तियों और समुदायों को भूमि स्वामित्व प्रमाण पत्र देने के लिए अबुआ बीर दिशोम अभियान नामक एक विशेष अभियान शुरू किया। इसके अलावा यह अधिनियम वन भूमि पर किसी स्थानीय प्राधिकारो या राज्य सरकार द्वारा जारी पट्टों/अनुदानों को स्वामित्व में बदलने का अधिकार प्रदान करता है।
Use rights – The Act recognizes forest rights and ownership over forest lands to forest dwelling scheduled tribes (FDSTs) and other traditional forest dwellers (OTFDs). This Act gives them the right to collect minor forest produce and pasture for animals.
उपयोग का अधिकार – यह अधिनियम वनों में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों (एफडीएसटी) और अन्य पारंपरिक वनवासियों (ओटीएफडी) को वन भूमि पर वन अधिकारों और स्वामित्व को मान्यता देता है। यह अधिनियम इन्हे लघु वनोपज के संग्रहण और पशुओं के लिए चरागाह का अधिकार देता है।
Rights of self cultivation and habitation –The Forests Rights Act grants OTFDs & FDSTs dwellers the rights of self cultivation and habitation. The Scheduled Tribes and Other Traditional Forest Dwellers (Recognition of Forest Rights) Act, 2006, grants the rights of self cultivation and habitation, in the form of Individual Forest Rights (IFR) and Community Forest Rights (CFR). The titles cover areas such as grazing, fishing, access to water bodies, sacred sites and other community resources etc.
Relief and development rights –The Act provides for the right to receive rehabilitation and basic amenities in case of illegal eviction or forced displacement. Also it provides Right to free prior informed consent in case of resettlement or diversion of forest land for other purposes.
राहत और विकास का अधिकार – यह अधिनियम एफडीएसटी और ओटीएफडी को अवैध बेदखली या जबरन विस्थापन के मामले में पुनर्वास और बुनियादी सुविधाएं प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करता है। इसके अलावा जंगल की जमीन को किसी अन्य कार्यों के लिए प्रयोग में लाने के के पूर्व इनलोगो से स्वतंत्र राय लेने का अधिकार प्रदान करता है।
Right to access biodiversity – Right to access biodiversity and community right to intellectual property and traditional knowledge related to biodiversity and cultural diversity.
जैव विविधता तक पहुंच का अधिकार – यह अधिनियम एफडीएसटी और ओटीएफडी को जैव विविधता तक पहुंच का अधिकार देता है साथ ही जैव विविधता से संबंधित बौद्धिक संपदा और सांस्कृतिक विविधता से संबंधित पारंपरिक ज्ञान का सामुदायिक अधिकार प्रदान करता है।
Forest management rights – It includes the right to protect, regenerate or conserve or manage any community forest resource which they have been traditionally protecting and conserving for sustainable use. Jharkhand Chief Minister Hemant Soren recently announced on Republic Day, 2021 that 800 villages will be provided community forest rights on the basis of the Scheduled Tribes and Other Traditional Forest Dwellers (Recognition of Forest Rights) Act, 2006. This is the essence of Community Forest Rights FRA.
वन प्रबंधन अधिकार – इसमें किसी भी सामुदायिक वन संसाधन की सुरक्षा, पुनर्जनन या संरक्षण या प्रबंधन करने का अधिकार शामिल है जिसे वे पारंपरिक रूप से टिकाऊपन के लिए संरक्षित और सुरक्षित करते रहे हैं। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने हाल ही में गणतंत्र दिवस, 2021 में अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के आधार पर 800 गावों को सामुदायिक वन अधिकार प्रदान किया है। यह सामुदायिक वन अधिकार FRA का सार है।
Conclusion – The Recognition of Forest Rights Act, 2006 is a landmark law that has the potential to transform the lives of millions of forest dwellers in tribal dominated states like Jharkhand. It is also an important step towards achieving the goals of social justice, ecological sustainability and democratic governance. However, to realize this potential, concerted efforts are required to overcome the challenges and ensure effective implementation of the Act.
निष्कर्ष – वन अधिकार अधिनियम, 2006 की मान्यता एक ऐतिहासिक कानून है जो झारखंड जैसे आदिवासी बहुल राज्यों के लाखों वनवासियों के जीवन को बदलने की क्षमता रखता है। यह सामाजिक न्याय, पारिस्थितिक स्थिरता और लोकतांत्रिक शासन के लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है। हालाँकि, इस क्षमता को साकार करने के लिए, चुनौतियों पर काबू पाने और अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता है।
Out of Question
Some Organization to Support Forest Right
1. Jharkhand Van Adhikar Manch
2. Jharkhand Mukti Vahini
3. Van Adhikar Jagriti Sangha (Garhwa)
4. Ambedkar Social Institute (Giridih)
5. Tribal Research and Training institute (Chaibasa)
6. Sathi (Godda)
7. Samarpan (Koderma) etc.
Way forward
1. The Jharkhand government should take a cue from neighbouring Chhattisgarh, which has started providing CFR rights in campaign mode. It has also allocated separate funds in its 2021 budget for all Gram Sabhas that have secured CFR rights. This will not only help create robust CFR management plans, but also galvanise convergence with government schemes.
झारखंड सरकार को पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ से सीख लेनी चाहिए, जिसने अभियान शुरू करके में सामुदायिक वन अधिकार प्रदान करना शुरू कर दिया है। इसने अपने 2021 के बजट में सामुदायिक वन अधिकार अधिकार प्राप्त सभी ग्राम सभाओं के लिए अलग से धनराशि भी आवंटित की है। इससे न केवल मजबूत सामुदायिक वन अधिकार प्रबंधन योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी, बल्कि सरकारी योजनाओं के साथ अभिसरण भी होगा।
2. Jharkhand can also emulate another neighbouring state Odisha to catalyse the rights recognition process in the state. Tribal Research Institute (TRI) Odisha has come out with an FRA atlas: It offers a baseline for informing implementation, planning and setting targets for district-wise rights recognition.
झारखंड राज्य में सामुदायिक वन अधिकार मान्यता प्रक्रिया को उत्प्रेरित करने के लिए एक अन्य पड़ोसी राज्य ओडिशा का भी अनुकरण कर सकता है। जनजातीय अनुसंधान संस्थान (टीआरआई) ओडिशा एक वन अधिकार एटलस लेकर आया है। यह जिलेवार अधिकारों की मान्यता के लिए कार्यान्वयन, योजना और लक्ष्य निर्धारित करने की सूचना देने के लिए आधार रेखा प्रदान करता है।
Challange In FRA in Jharkhand
पंचायत चुनाव में अनियमितता – झारखंड के निर्माण के 10 साल बाद पहला और दूसरा पंचायती चुनाव क्रमशः 2010 एवं 2015 में हुआ। पुनः तीसरा चुनाव 2020 में होना था वो भी समय से नही हो पाया, 2 वर्ष के विलंब से 2022 में हुआ। इस प्रकार ग्राम सभा की नियमित स्थापना न होने के कारण FRA Act कार्यान्वयन जिला कलेक्टरों द्वारा नियंत्रित किया गया।
Irregularities in Panchayat elections – 10 years after the creation of Jharkhand, the first and second Panchayat elections were held in 2010 and 2015 respectively. Again the third election was to be held in 2020.
राजनीतिक अस्थिरता – स्थापना के समय से ही झारखंड की राजनीतिक व्यवस्था अस्थिर रही है। स्थापना के 23 वर्ष तक 11 बार सरकार बनी और 3 बार राष्ट्रपति शासन लागू हुआ। राजनीतिक अस्थिरता के कारण FRA Act का सही से क्रियान्वयन नहीं हो पाया जिसका प्रभाव आज भी परिलक्षित हो रहा है।
Political instability – Jharkhand’s political system has been unstable since its inception. In the 23 years since its establishment, governments were formed 11 times and President’s rule was imposed 3 times. Due to political instability, the FRA Act could not be implemented properly, the impact of which is still visible today.
जागरूकता की कमी –अधिनियम के प्रावधानों और प्रक्रियाओं के बारे में झारखंड के वनवासियों, सरकारी अधिकारियों, नागरिक समाज संगठनों और अन्य हितधारकों के बीच जागरूकता और क्षमता का अभाव है। उड़ीसा और छत्तीसगढ़ राज्य ने जागरूकता फैलाने के लिए कई अभियान चलाए है। वही झारखंड ने अपना पहला अभियान 2023 में अबुआ बीर दिशोम अभियान चलाया है।
Lack of Awareness –There is a lack of awareness and capacity among forest dwellers, government officials, civil society organizations and other stakeholders in Jharkhand regarding the provisions and procedures of the Act. The state of Orissa and Chhattisgarh have launched several campaigns to spread awareness. Jharkhand has launched its first campaign Abua Bir Dishom campaign in 2023.
विभिन्न विभागों द्वारा प्रतिरोध एवं विरोध- वन विभाग,राजस्व विभाग, खनन उद्योग, वन्यजीव संरक्षणवादी और अन्य निहित स्वार्थी तत्व जो इस अधिनियम को वन भूमि और संसाधनों पर अपने नियंत्रण और हितों के लिए खतरा मानते हैं।
Resistance and opposition by various departments – Forest Department, Revenue Department, Mining Industry, Wildlife Conservationists and other vested interest elements who find this Act a threat to their control and interests over forest land and resources.
वन दावों में देरी और अस्वीकृति – झारखंड में इस अधिनियम के अंतर्गत जितने वन दावे आते है उसको स्वीकृति मिलने में काफी देरी होती है क्योंकि इसे नौकरशाही बाधाओं, प्रक्रियात्मक जटिलताओं, अपर्याप्त साक्ष्य, दोषपूर्ण सत्यापन, राजनीतिक हस्तक्षेप और भ्रष्टाचार से होकर गुजरना पड़ता है। अगस्त 2018 तक के आंकड़ों के अनुसार यह पाया गया है कि कुल वन दावों में से सिर्फ 76% दावों को ही मंजूरी दी गई। और 3% दावों को खारिज कर दिया गया है। लगभग 21% दावे उप-विभाग और जिला स्तर पर लंबित हैं।
Delay and rejection in forest claims – In Jharkhand, there is a lot of delay in getting approval of the forest claims covered under this Act because it has to go through bureaucratic hurdles, procedural complexities, inadequate evidence, faulty verification, political interference and corruption. According to the data till August 2018, it has been found that only 76% of the total forest claims were approved. Another 3% of claims have been rejected. About 21% of the claims are pending at the sub-division and district level.
विरोधाभासी कानून – राज्य सरकारों द्वारा विरोधाभासी कानूनों, नियमों, नीतियों और आदेशों के माध्यम से इस अधिनियम का उल्लंघन और कमजोरीकरण हो रहा है। विरोधाभासी कानून ग्राम सभाओं के अधिकारों और भूमिका को कमजोर करता है। इस अधिनियम के सहयोगी PESA Act को अब तक झारखंड में लागू नहीं किया जा सका है।
Contradictory Laws – This Act is being violated and weakened through contradictory laws, rules, policies and orders by state governments. Contradictory laws weaken the rights and role of Gram Sabhas. The PESA Act, a companion of this Act, has not yet been implemented in Jharkhand.
विकास परियोजना – झारखंड में खनन, बांध, सड़क, उद्योग आदि जैसी विकास परियोजनाओं के लिए वन भूमि का अधिग्रहण काफी ज्यादा किया जा रहा है वो भी ग्राम सभाओं की पूर्व सहमति के बिना और अधिनियम का अनुपालन सुनिश्चित किए बिना। वनवासियों को उनके अधिकारों को मान्यता दिए बिना और पर्याप्त पुनर्वास प्रदान किए बिना, संरक्षण, पर्यटन, वन्यजीव संरक्षण आदि के नाम पर उनकी भूमि और आवास से विस्थापन और बेदखली की घटनाएं झारखंड में देखने को मिलती है।
Devlopment Project – In Jharkhand, forest land is being acquired extensively for development projects like mining, dams, roads, industries etc., that too without prior consent of Gram Sabhas and without ensuring compliance with the Act. Incidents of displacement and eviction of forest dwellers from their lands and habitats in the name of conservation, tourism, wildlife conservation, etc. without recognizing their rights and providing adequate rehabilitation are being witnessed in Jharkhand.
संघर्ष और विवाद – झारखंड में वनवासियों और वनवासियों के बीच, वनवासियों और गैर-वनवासियों के बीच, और वनवासियों और सरकारी अधिकारियों के बीच वन भूमि और भूमि के स्वामित्व और पहुंच को लेकर संघर्ष और विवाद आम बात है।
Conflicts and disputes – It is common in Jharkhad the conflicts and disputes among forest dwellers, between forest dwellers and non-forest dwellers, and between forest dwellers and government authorities over the ownership and access to forest land and resources.